ओम् शान्ति।
यह महिमा किसकी सुनी? पारलौकिक परमपिता परम आत्मा अर्थात् परमात्मा की। सभी भक्त
अथवा साधना करने वाले उनको याद करते हैं। उनका नाम फिर पतित-पावन भी है। बच्चे जानते
हैं भारत पावन था। लक्ष्मी-नारायण आदि का पवित्र प्रवृत्ति मार्ग का धर्म था, जिसको
आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहा जाता है। भारत में पवित्रता सुख शान्ति सम्पत्ति सब
कुछ था। पवित्रता नहीं है तो न शान्ति है, न सुख है। शान्ति के लिए भटकते रहते हैं।
जंगल में फिरते रहते हैं। एक को भी शान्ति नहीं है क्योंकि न बाप को जानते हैं, न
अपने को समझते कि मैं आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर है। इन द्वारा कर्म करना होता है।
मेरा तो स्वधर्म ही शान्त है। यह शरीर के आरगन्स हैं। आत्मा को यह भी पता नहीं है
कि हम आत्मायें निर्वाण वा परमधाम की वासी हैं। इस कर्मक्षेत्र पर हम शरीर का आधार
ले पार्ट बजाते हैं। शान्ति का हार गले में पड़ा है और धक्का खाते रहते हैं बाहर।
पूछते रहते मन को शान्ति कैसे मिले? उनको यह पता नहीं है कि आत्मा मन - बुद्धि सहित
है। आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान है। वह शान्ति का सागर है, हम उनकी सन्तान
हैं। अब अशान्ति तो सारी दुनिया को है ना। सब कहते हैं पीस हो। अब सारी दुनिया का
मालिक तो एक है जिसको शिवाए नम: कहते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान, शिव कौन है? यह भी कोई
मनुष्य नहीं जानते हैं। पूजा भी करते हैं, कई तो फिर अपने को शिवोहम् कह देते हैं।
अरे शिव तो एक ही बाप है ना। मनुष्य अपने को शिव कहलायें, यह तो बड़ा पाप हो गया।
शिव को ही पतित-पावन कहा जाता है। ब्रह्मा विष्णु शंकर को अथवा कोई मनुष्य को
पतित-पावन नहीं कह सकते। पतित-पावन सद्गति दाता है ही एक। मनुष्य, मनुष्य को पावन
बना न सकें क्योंकि सारी दुनिया का प्रश्न है ना। बाप समझाते हैं जब सतयुग था -
भारत पावन था, अब पतित है। तो जो सारी सृष्टि को पावन बनाने वाला है उनको ही याद
करना चाहिए। बाकी यह तो है ही पतित दुनिया। यह जो कहते हैं महान आत्मा, यह कोई है
नहीं। पारलौकिक बाप को ही जानते नहीं हैं। भारत में शिव जयन्ती गाई जाती है तो जरूर
भारत में आया होगा - पतितों को पावन बनाने। कहते हैं मैं संगम पर आता हूँ, जिसको
कुम्भ कहा जाता है। वह पानी के सागर और नदियों का कुम्भ नहीं। कुम्भ इनको कहा जाता
है जबकि ज्ञान सागर पतित-पावन बाप आकर सभी आत्माओं को पावन बनाते हैं। यह भी जानते
हो भारत जब स्वर्ग था तो एक ही धर्म था। सतयुग में सूर्यवंशी राज्य था फिर त्रेता
में चन्द्रवंशी, जिसकी महिमा है - राम राजा, राम प्रजा.. त्रेता की इतनी महिमा है
तो सतयुग की उससे भी जास्ती होगी। भारत ही स्वर्ग था, पवित्र जीव आत्मायें थीं बाकी
और सभी धर्म की आत्मायें निर्वाणधाम में थी। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है - यह
भी कोई मनुष्य मात्र नहीं जानते। आत्मा इतनी छोटी सी बिन्दी है, उनमें 84 जन्मों का
पार्ट भरा हुआ है। 84 लाख जन्म तो हो न सके। 84 लाख जन्मों में कल्प - कल्पान्तर
फिरते रहें, यह तो हो नहीं सकता। है ही 84 जन्मों का चक्र, सो भी सभी का नहीं है।
जो पहले थे वह अब पीछे पड़ गये हैं, फिर वह पहले जायेंगे। पीछे आने वाली सभी आत्मायें
निर्वाणधाम में रहती हैं। यह सब बातें बाप समझाते हैं। उनको ही वर्ल्ड आलमाइटी
अथॉरिटी कहा जाता है।
बाप कहते हैं मैं आकर ब्रह्मा द्वारा सभी वेदों शास्त्रों गीता आदि का सार समझाता
हूँ। यह सब भक्ति मार्ग के कर्मकाण्ड के शास्त्र बनाये हुए हैं। मैंने आकर कैसे
यज्ञ रचा, यह बातें तो शास्त्रों में हैं नहीं। इनका नाम ही है राजस्व अश्वमेध
रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र है शिव, इसमें सबको स्वाहा होना है। बाप कहते हैं देह सहित
जो भी मित्र-सम्बन्धी आदि हैं, उन सबको भूल जाओ। एक ही बाप को याद करो। मैं संन्यासी,
उदासी हूँ, क्रिश्चियन हूँ... यह सब देह के धर्म हैं इनको छोड़ मामेकम् याद करो।
निराकार आयेंगे तो जरूर शरीर में ना। कहते हैं मुझे प्रकृति का आधार लेना पड़ता है।
मैं ही आकर इस तन द्वारा नई दुनिया स्थापन करता हूँ। पुरानी दुनिया का विनाश सामने
खड़ा है। गाया भी जाता है प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा स्थापना, सूक्ष्मवतन है ही
फरिश्तों की दुनिया। वहाँ हड्डी मांस नहीं होता है। वहाँ सूक्ष्म शरीर होता है
सफेद-सफेद जैसे घोस्ट होते हैं ना। आत्मा, जिसको शरीर नहीं मिलता है, तो वह भटकती
रहती है। छाया रूपी शरीर दिखाई पड़ता है, उनको पकड़ नहीं सकते हैं। अब बाप कहते हैं
बच्चे याद करो तो याद से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। गाया भी जाता है बहुत गई,
थोड़ी रही.. अब बाकी थोड़ा समय है। जितना हो सके बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति
हो जायेगी। गीता में कोई एक दो अक्षर राइट लिखे हैं। जैसे आटे में लून (नमक)
कोई-कोई अक्षर सही हैं। पहले तो भगवान निराकार है यह मालूम होना चाहिए। वह निराकार
भगवान फिर वाच कैसे करते हैं? कहते हैं साधारण ब्रह्मा तन में प्रवेश कर राजयोग
सिखलाता हूँ। बच्चे मुझे याद करो। मैं आता ही हूँ एक धर्म की स्थापना कर बाकी सब
धर्मो का विनाश कराने। अभी तो अनेक धर्म हैं। आज से 5 हजार वर्ष पहले सतयुग में एक
ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। सभी आत्मायें अपना-अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर
जाती हैं, उनको कयामत का समय कहा जाता है। सभी के दु:खों का हिसाब-किताब चुक्तू होता
है। दु:ख मिलता ही है पापों के कारण। पाप का हिसाब चुक्तू होने के बाद फिर पुण्य का
शुरू हो जाता है। हरेक चीज़ शुद्ध बनाने के लिए आग जलाई जाती है। यज्ञ रचते हैं,
उसमें भी आग जलाते हैं। यह तो मैटेरियल यज्ञ नहीं है। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। ऐसे
नहीं कहते कृष्ण ज्ञान यज्ञ। कृष्ण ने कोई यज्ञ नहीं रचा, कृष्ण तो प्रिन्स था।
यज्ञ रचा जाता है आफतों के समय। इस समय सब तरफ आफतें हैं ना, बहुत मनुष्य रूद्र
यज्ञ भी रचते हैं। रूद्र ज्ञान यज्ञ नहीं रचते हैं। वह तो रूद्र परमपिता परमात्मा
ही आकर रचते हैं। कहते हैं यह जो रूद्र ज्ञान यज्ञ है, इसमें सबकी आहुति हो जायेगी।
बाबा आया हुआ है - यज्ञ भी रचा हुआ है। जब तक राजाई स्थापन हो जाए और सब पावन बन
जाएं। फट से सब तो पावन नहीं बनते। योग लगाते रहो अन्त तक। यह है ही योग की रेस।
बाप को जितना जास्ती याद करते हैं, उतना दौड़ी लगाकर जाए रूद्र के गले का हार बनते
हैं। फिर विष्णु के गले की माला बनेंगे। पहले रूद्र की माला फिर विष्णु की माला।
पहले बाप सबको घर ले जाते हैं, जो जितना पुरूषार्थ करेंगे वही नर से नारायण, नारी
से लक्ष्मी बन राज्य करते हैं। गोया यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन हो रहा
है। तुमको बाप राजयोग सिखला रहे हैं। जैसे 5 हजार वर्ष पहले सिखलाया था फिर कल्प
बाद सिखलाने आये हैं। शिव जयन्ती अथवा शिवरात्रि भी मनाते हैं। रात अर्थात् कलियुगी
पुरानी दुनिया का अन्त, नई दुनिया का आदि। सतयुग त्रेता है दिन, द्वापर कलियुग है
रात। बेहद का दिन ब्रह्मा का, फिर बेहद की रात ब्रह्मा की। कृष्ण का दिन - रात नहीं
गाया जाता है। कृष्ण को ज्ञान ही नहीं रहता। ब्रह्मा को ज्ञान मिलता है शिवबाबा से।
फिर तुम बच्चों को मिलता है इनसे। गोया शिवबाबा तुमको ब्रह्मा तन से ज्ञान दे रहा
है। तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। मनुष्य सृष्टि में एक भी त्रिकालदर्शी कोई हो न
सके। अगर होवे तो नॉलेज दे ना। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है? कभी भी कोई नॉलेज दे
न सके।
भगवान तो सभी का एक ही है। कृष्ण को थोड़ेही सब भगवान मानेंगे। वह तो राजकुमार
है। राजकुमार भगवान होता है क्या? अगर वह राज्य करे तो फिर गँवाना भी पड़े। बाप कहते
हैं तुमको विश्व का मालिक बनाए मैं फिर निर्वाणधाम में जाकर रहता हूँ। फिर जब दु:ख
शुरू होता है तब मेरा पार्ट भी शुरू होता है। मैं सुनवाई करता हूँ, मुझे कहते भी
हैं हे रहमदिल। भक्ति भी पहले अव्यभिचारी अर्थात् एक शिव की करते हैं फिर देवताओं
की शुरू करते हैं। अभी तो व्यभिचारी भक्ति बन गई है। पुजारी भी यह नहीं जानते कि कब
से पूजा शुरू होती है। शिव वा सोमनाथ एक ही बात है। शिव है निराकार। सोमनाथ क्यों
कहते हैं? क्योंकि सोमनाथ बाप ने बच्चों को ज्ञान-अमृत पिलाया है। नाम तो ढेर हैं
बबुलनाथ भी कहते हैं क्योंकि बबुल के जो कांटे थे उनको फूल बनाने वाला, सर्व का
सद्गति दाता बाप है। उनको फिर सर्वव्यापी कहना.. यह तो ग्लानि हुई ना। बाप कहते हैं
जब संगम का समय होता है तब एक ही बार मैं आता हूँ, जब भक्ति पूरी होती है तब ही मैं
आता हूँ। यह नियम है। मैं आता ही एक बार हूँ। बाप एक है, अवतार भी एक है। एक ही बार
आकर सबको पवित्र राजयोगी बनाता हूँ। तुम्हारा राजयोग है, संन्यासियों का है हठयोग,
राजयोग सिखला न सकें। यह हठयोगियों का भी एक धर्म है भारत को थमाने के लिए। पवित्रता
तो चाहिए ना। भारत 100 परसेन्ट पावन था, अभी पतित है, तब कहते हैं आकर पावन बनाओ।
सतयुग है पावन जीव आत्माओं की दुनिया। अभी तो गृहस्थ धर्म पतित है। सतयुग में
गृहस्थ धर्म पावन था। अब फिर से वही पावन गृहस्थ धर्म की स्थापना हो रही है। एक बाप
ही सर्व का मुक्ति, जीवनमुक्ति दाता है। मनुष्य, मनुष्य को मुक्ति, जीवनमुक्ति दे न
सके।
तुम हो ज्ञान सागर बाप के बच्चे। तुम ब्राह्मण सच्ची-सच्ची यात्रा करायेंगे। बाकी
सब हैं झूठी यात्रा कराने वाले। तुम हो डबल अहिंसक। कोई हिंसा नहीं करते हो - न
लड़ते हो, न काम कटारी चलाते हो। काम पर जीत पाने में मेहनत लगती है। विकारों को
जीतना है, तुम ब्रह्माकुमार कुमारियां शिवबाबा से वर्सा लेते हो, तुम आपस में
भाई-बहन ठहरे। हम अभी निराकार भगवान के बच्चे आपस में भाई-भाई हैं फिर ब्रह्मा बाबा
के बच्चे हैं - तो जरूर निर्विकारी बनना चाहिए ना अर्थात् विश्व की बादशाही तुमको
मिलती है। यह है बहुत जन्मों के अन्त का जन्म। कमल फूल समान पवित्र बनो, तब ऊंच पद
मिलता है। अभी बाप द्वारा तुम बहुत समझदार बनते हो। सृष्टि की नॉलेज तुम्हारी बुद्धि
में है। तुम हो गये स्वदर्शन चक्रधारी। स्व आत्मा को दर्शन होता है अर्थात् नॉलेज
मिलती है परमपिता परमात्मा से, जिसको ही नॉलेजफुल कहते हैं। मनुष्य सृष्टि का
बीजरूप है, चैतन्य है। अब आये हैं नॉलेज देने। एक ही बीज है, यह भी जानते हैं। बीज
से झाड़ कैसे निकलता है, यह उल्टा वृक्ष है। बीज ऊपर है। पहले-पहले निकलता है दैवी
झाड़, फिर इस्लामी, बौद्धी.. वृद्धि होती जाती है। यह ज्ञान अभी तुमको मिला है और
कोई भी दे न सके। तुम जो सुनते हो, वह तुम्हारी ही बुद्धि में रहा। सतयुग आदि में
तो शास्त्र होते नहीं। कितनी सहज 5 हजार वर्ष की कहानी है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) समय कम है, बहुत गई थोड़ी रही.. इसलिए जो भी श्वांस बची है - बाप की
याद में सफल करना है। पुराने पाप के हिसाब-किताब को चुक्तू करना है।
2) शान्ति स्वधर्म में स्थित होने के लिए पवित्र जरूर बनना है। जहाँ पवित्रता है
वहाँ शान्ति है। मेरा स्वधर्म ही शान्ति है, मैं शान्ति के सागर बाप की सन्तान
हूँ.. यह अनुभव करना है।