ओम् शान्ति।
यह माता की महिमा भारत में ही गाई जाती है। जगत अम्बा बरोबर भाग्य विधाता है। इनका
नाम ही रखा हुआ है कामधेनु अर्थात् सब कामनायें पूरी करने वाली। यह वर्सा उनको कहाँ
से मिलता है? शिवबाबा द्वारा जगत अम्बा और जगतपिता को वर्सा मिलता है। बच्चों को यह
निश्चय हुआ है कि हम आत्मायें हैं। आत्मा को देख नहीं सकते हैं, जान सकते हैं। जीव
और आत्मा हैं। आत्मा अविनाशी है, शरीर तो विनाशी है जो इन ऑखों से देखा जाता है।
आत्मा का साक्षात्कार होता है। कहते हैं - विवेकानंद को आत्मा का साक्षात्कार हुआ,
परन्तु समझ न सका। बच्चे समझते हैं हम अपनी आत्मा का साक्षात्कार करेंगे तो जैसे
बाप का भी करेंगे। जैसे आत्मा है वैसे ही आत्माओं का बाप है। कोई फर्क नहीं है।
बुद्धि से जाना जाता है, यह बाप है, यह बच्चा है। सभी आत्मायें उस बाप को याद करती
हैं। इन ऑखों से तो न अपनी आत्मा को, न बाप की आत्मा को देख सकते हैं। वह है परम
आत्मा परमधाम में रहने वाला सुप्रीम परमात्मा। भक्ति मार्ग में भी नौधा भक्ति करते
हैं तो उनको साक्षात्कार होता है। ऐसे नहीं कि उनकी आत्मा इस शरीर में इस समय है।
नहीं, उनकी आत्मा तो पुनर्जन्म में चली गई। भक्ति मार्ग में जो-जो, जिस-जिस भावना
से जिसको पूजते हैं उनका साक्षात्कार होता है। ढेर चित्र बैठ बनाये हैं, जिसको
गुड़ियों की पूजा कहा जाता है। भावना रखने से अल्पकाल सुख का भाड़ा थोड़ा मिल जाता
है। तुम्हारी बेहद सुख की बात ही निराली है। तुम जानते हो हम स्वर्ग की बादशाही लेते
हैं। भक्ति से कोई स्वर्ग में नहीं जाते। जब भक्ति मार्ग पूरा होता है अर्थात्
दुनिया पुरानी होती है तब ही फिर कलियुग के बाद सतयुग नई दुनिया आयेगी। कोई की
बुद्धि में नहीं बैठता। संन्यासी भी कहते हैं फलाना ज्योति ज्योत समाया, परन्तु ऐसे
है नहीं। तुमको अब ईश्वरीय बुद्धि मिली है, जिसको श्रीमत कहते हैं। अक्षर कितने
अच्छे हैं। श्री श्री भगवानुवाच। वही स्वर्ग का मालिक अर्थात् नर से नारायण बनाते
हैं। तुम श्रीमत से विश्व का राज्य पाते हो। श्री श्री 108 के माला की बहुत महिमा
है। 8 रत्नों की माला होती है। संन्यासी लोग भी जपते हैं। एक कपड़ा बनाते हैं उसको
गऊमुख कहते हैं। अन्दर हाथ डाल माला फेरते हैं। बाबा कहते हैं निरन्तर याद करो तो
उन्होंने फिर माला फेरने का अर्थ उठा लिया है। बच्चे जानते हैं अब पारलौकिक बाप ने
आकर हमको अपना बनाया है, ब्रह्मा द्वारा। प्रजापिता ब्रह्मा है तो प्रजा माता भी
है। जगत अम्बा को जगत की माता और लक्ष्मी को विश्व की महारानी कहा जाता है। विश्व
अम्बा कहो वा जगत अम्बा कहो बात एक ही है। तुम बच्चे हो, तो यह कुटुम्ब हो गया। तुम
बच्चे भी सबकी मनोकामनायें पूरी करने वाले हो। जगत अम्बा के तुम हो बच्चे और बच्चियां।
बुद्धि में यह नशा रहता है - हम अपने बहन भाईयों को रास्ता बतावें। बहुत सहज है।
भक्ति मार्ग में तो तकलीफ बहुत है। कितने हठयोग, प्राणायाम आदि करते हैं। नदी में
जाकर स्नान करते हैं। बहुत तकलीफ लेते हैं। अभी बाप कहते हैं तुम थक गये हो।
ब्राह्मणों को ही समझाया जाता है, जो समझते हैं निराकार परमपिता परमात्मा से हमारा
क्या सम्बन्ध है। शिवबाबा अक्षर शोभा देता है, रूद्र बाबा भी नहीं कहेंगे। कहते ही
हैं शिवबाबा। यह बहुत इज़ी है। नाम तो और भी ढेर हैं। परन्तु यह एक्यूरेट है “शिवबाबा''।
शिव माना बिन्दी। रूद्र माना बिन्दी नहीं। भल कहते भी हैं शिवबाबा परन्तु समझते कुछ
भी नहीं। शिवबाबा और तुम सालिग्राम हो, अभी तुम बच्चों के सिर पर रेसपान्सिबिल्टी
है। जैसे गांधी आदि समझते थे भारत को इन फारेनर्स से मुक्त करना है। वह तो हुई हद
की बातें। बाप तुम बच्चों को रेसपान्सिबुल बनाते हैं। खास भारत और आम सारी दुनिया
को माया रावण दुश्मन से छुड़ाना है। इन दुश्मनों ने सबको बहुत दु:ख दिया है, उस पर
जीत पानी है। जैसे गांधी ने फारेनर्स को भगाया, यह रावण भी बड़ा फारेनर है। द्वापर
में यह रावण घुस आता है, किसको पता भी नहीं पड़ता, रावण आकर सारा राज्य छीन लेता
है। यह सबसे पुराना फारेनर है, जिसने भारत को ऐसा कंगाल बनाया है। उनकी मत से भारत
ऐसा भ्रष्टाचारी बन पड़ा है। इस दुश्मन को भगाना है। श्रीमत मिलती है, यह कैसे
भागेगा। तुमको बाप का मददगार बनना है। मेरे बनकर और फिर परमत पर चले तो गिर पड़ेंगे।
ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। गाया भी जाता है - हिम्मते बच्चे...। तुम हो खुदाई खिदमदगार।
खुदा आकर तुम्हारी खिदमत करते हैं। उनको याद करते हैं कि हे पतित-पावन आओ। खिदमत
करने वाले को सर्वेन्ट कहा जाता है। बाबा कितने निरहंकारी, निराकार हैं। निरहंकारी,
निर्विकारी बनना सिखलाते हैं। आपसमान बनाकर कांटों को फूल बनाना है। गैरन्टी की जाती
है हम विकारों में नहीं जायेंगे। यह है सबसे पुराना दुश्मन। इन पर ही जीत पानी है।
कोई-कोई तो लिखते हैं बाबा हमने हार खाई, कोई तो बतलाते भी नहीं। एक तो नाम बदनाम
करते हैं, सतगुरू की निंदा कराते हैं तो वह अपना ही नुकसान करते हैं।
तुम बच्चे जानते हो - अभी हम शिवबाबा के पोत्रे पोत्रियां हैं। प्रजापिता ब्रह्मा
के बच्चे हैं। ब्रह्मा भी वर्सा शिवबाबा से लेते हैं। तुम भी उनसे लेते हो। बच्चे
जानते हैं बाबा से कल्प पहले वर्सा लिया था। आत्मा समझती है। आत्मा ही एक शरीर छोड़
दूसरा लेती है। शरीर का नाम पड़ता है। शिवबाबा तो सिर्फ नॉलेज देने लिए लोन लेते
हैं। शिव भगवानुवाच - ब्रह्मा के तन द्वारा। बाकी जास्ती बातों में जाने की दरकार
नहीं है। आत्मा निकल जाती है, फिर क्या होता है? कैसे आती है, इन बातों में भी जाने
से कोई फायदा नहीं। यह तो साक्षात्कार है। जो कुछ भी होता है, साक्षात्कार है।
सूक्ष्मवतन का रास्ता अभी खुला हुआ है। बहुत जाते आते हैं। इसमें ज्ञान योग की कोई
बात नहीं है। भोग लगाते हैं आत्मा आती है, खिलाते पिलाते हैं - यह सब है चिटचैट।
बाप का बच्चों पर बहुत लव है। तुम बच्चे कहते हो बापदादा हम आये हैं, शिव और
प्रजापिता ब्रह्मा है। ब्रह्मा को कहते ही हैं ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर। कितना बड़ा
सिजरा है, इनको शिवबाबा तो नहीं कहेंगे। यहाँ यह मनुष्यों का सिजरा है। यह
कारपोरियल की बात है। सभी बिरादरियों से यह पहला नम्बर मुख्य बिरादरी गाई जाती है।
बड़ा नाटक है ना। अब बच्चे अच्छी रीति समझते हैं। कोई नहीं भी समझते होंगे। इतना तो
समझते होंगे बरोबर शिवबाबा सबका बाप है। वर्सा मिलना है दादे से, इनको भी उनसे मिलता
है। अच्छा ब्रह्मा को भी भूल जाओ। सगाई हो गई, बाकी क्या? फिर दलाल को याद नहीं किया
जाता। यह दलाल है, सगाई कराते हैं। कहते हैं हे बच्चे... आत्माओं से बात करते हैं।
आत्मा याद करती है - बाबा आकर हमको पावन बनाओ। बाबा कहते हैं मुझे याद करो तो तुम
पावन बनते जायेंगे और कोई उपाय नहीं है। शान्तिधाम से फिर तुमको स्वर्ग में भेज
देंगे। यह है पियरघर, वह है ससुरघर। पियरघर में जेवर आदि नहीं पहनते हैं, कायदा नहीं
है। यह तो आजकल फैशन हो गया है। इस समय तुम जानते हो हम ससुरघर जाकर यह सब पहनेंगे।
शादी के समय कन्या का पहले सब उतार देते हैं। पुराने कपड़े पहनते हैं। तुम जानते हो
बाबा हमको श्रृंगार रहे हैं, ससुरघर ले जाने लिए। ससुरघर में 21 जन्म हम सदा के लिए
रहेंगे। हाँ, उसके लिए पुरूषार्थ करना पड़े, पवित्र रहना पड़े। गृहस्थ व्यवहार में
रहते कमल फूल समान रहना है। यह अन्तिम जन्म है। बाप समझाते हैं पहले अव्यभिचारी
सतोप्रधान भक्ति थी, अब तमोप्रधान हो गई है। बाम्बे में गणेश की पूजा होती है लाखों
खर्च करते हैं। देवताओं को क्रियेट कर उनकी पालना कर फिर डुबो देते, विनाश कर देते।
अभी तुम बच्चों को वन्डर लगता है। तुम समझा सकते हो यह क्या रसम-रिवाज है। देवी को
जन्म दे, पूजा कर खिला-पिलाकर, शादमाना कर फिर डुबो देते हैं। वन्डर है। तुलसी की
शादी कृष्ण से दिखाते हैं। बड़े धूमधाम से शादी करते हैं। फारेनर्स ऐसी बातें सुनते
तो समझते हैं शायद ऐसा होता होगा। क्या-क्या बैठ बातें बनाई हैं। यहाँ तो जुआ आदि
की कोई बात नहीं है। वह तो कह देते हैं पाण्डवों ने जुआ खेला, द्रोपदी को दांव पर
रखा। क्या-क्या बातें बनाई हैं, इससे राजयोग की बात तो बिल्कुल गुम हो जाती है। अब
बाप कहते हैं मुझे याद करो, यह तो बिल्कुल सहज है। बुद्धि में आना चाहिए हम 21 जन्मों
के लिए स्वर्ग, क्षीरसागर में जाते हैं। अभी यह है विषय सागर। विषय सागर से निकल
फिर क्षीरसागर में तुम जा रहे हो। तुम्हारी हैं नई बातें। मनुष्य सुनकर वन्डर
खायेंगे। तुम बच्चे समझते हो बरोबर स्वर्ग में हम बहुत सुखी रहेंगे। हम विश्व का
मालिक बनते हैं। वहाँ हमारी राजधानी कोई छीन न सके। अब तो कितनी पार्टीशन है, लड़ते
रहते हैं। तुम बच्चों को समझाना है - तुम्हारा असुल दुश्मन है रावण, इन पर तुम
कल्प-कल्प जीत पाते हो। माया-जीते जगत-जीत बनते हो। यह है हार-जीत का खेल। तुम जानते
हो हम विजय जरूर पहनेंगे। फेल नहीं हो सकते, विनाश सामने खड़ा है। रक्त की नदियां
बहेंगी। कितने नाहेक मरते हैं। इनको नर्क अथवा भ्रष्टाचारी पतित दुनिया कहा जाता
है। गाते तो हैं - पतित-पावन आओ।
बाप कहते हैं जैसे तुम आत्मा स्टार हो, मैं भी स्टार हूँ। हम भी ड्रामा के बन्धन
में बांधे हुए हैं, इनसे कोई भी छूट नहीं सकते। नहीं तो मुझे क्या पड़ी है जो इस
पतित दुनिया में आऊं। मैं तो परमधाम में रहने वाला हूँ ना! इस ड्रामा में हरेक
अपना-अपना पार्ट बजाते हैं। कोई फिकर की बात नहीं। यहाँ तुम फखुर (नशे) में बेफिकर
रहते हो, बिल्कुल सिम्पुल। बाप कोई तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ याद करना और कराना
है। बेहद का बाप बेहद का सुख देने आये हैं। घर-घर में तुमको निमंत्रण देना है, इतना
काम करना है। तुम बच्चों पर भारी रेसपान्सिबिल्टी है। माया भी देखो एकदम सत्यानाश
कर देती है। भारत कितना दु:खी हो गया है। दु:ख माया ने दिया है। अब तुम बच्चों को
बाप की मदद कर कांटों को फूल बनाना है। तुम जानते हो हमारे इस ब्राह्मण कुल में
किस-किस प्रकार के फूल हैं। सर्विस करेंगे तो पद भी पायेंगे, नहीं तो प्रजा में चले
जायेंगे। मेहनत है ना। बहुत बच्चे हैं, सर्विस में लगे हुए हैं। कोई बच्चियों को
छुट्टी नहीं मिलती है, बहुत मार खाती हैं, इसमें हिम्मत चाहिए। डरना नहीं चाहिए।
बहादुरी चाहिए। नष्टोमोहा भी चाहिए। मोह भी कम नहीं है, बड़ा प्रबल है। साहूकार घर
की होगी तो बाबा पहले देह-अभिमान तोड़ने लिए कहेंगे झाड़ू लगाओ, बर्तन मांजो।
परीक्षा तो लेंगे ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रीमत पर बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है, परमत वा मनमत पर नहीं
चलना है। नष्टोमोहा बन, हिम्मत रख सर्विस में लगना है।
2) अभी हम पियरघर में हैं, यहाँ किसी भी प्रकार का फैशन नहीं करना है। स्वयं को
ज्ञान रत्नों से श्रृंगारना है। पवित्र रहना है।