ओम् शान्ति।
बाप और दादा मिल करके बच्चों को समझाते हैं। कभी बाप समझाते हैं, कभी दादा भी समझाते
हैं क्योंकि यह शरीर दादा का भी घर है। परमपिता परमात्मा तो रहते हैं परमधाम में।
जरूर कोई समय में उनका यह भारत ही घर होता है तब तो शिवरात्रि मनाई जाती है। शिव के
बहुत मन्दिर भी हैं। तो सिद्ध होता है कि भारत खण्ड में ही उनका आना होता है, पतित
को पावन बनाने वा सभी मनुष्यों को माया रावण की जंजीरों से छुड़ाने क्योंकि अब रावण
का राज्य है। रावण को जलाते भी भारत में हैं। शिवरात्रि और कृष्ण जयन्ती भी भारत
में ही मनाते हैं। रावण का राज्य भी आधाकल्प चलता है। फिर बाप आते हैं पतितों को
पावन बनाने। बस एक ही बार पावन बना देते हैं फिर आते ही नहीं। बाप का नाम भारत में
प्रसिद्ध है। जरूर कोई दिव्य कर्तव्य किया है तब तो उनका नाम है। मनुष्य, मनुष्य को
तो पावन बना न सकें। पतित-पावन एक ही बाप को कहा जाता है। स्वर्ग नर्क यह नाम भी
भारत पर ही पड़ा है। भारत 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग था, उनको परिस्तान भी कहा जाता
है, तो जरूर बाप से वर्सा मिला है। बाप अक्षर बहुत मीठा लगता है। उनसे ही बेहद सुख
का वर्सा मिलता है जो सुख आधाकल्प चलता है। जिसकी गोल्डन जुबली, सिल्वर जुबली मनाते
हैं। सतयुग को गोल्डन जुबली, त्रेता को सिलवर जुबली कहते हैं। वह सतोप्रधान, वह सतो,
दोनों को मिलाकर सुखधाम कहा जाता है। नम्बरवन हैं सूर्यवंशी, सेकेण्ड नम्बर
चन्द्रवंशी। बाप जब इस भारत खण्ड में आते हैं तो भारत को पावन बनाते हैं फिर जब
भक्ति शुरू होती है तो कलायें कमती होती जाती हैं। झाड़ जड़जड़ीभूत तमोप्रधान बन
जाता है। सब भक्त बन जाते हैं। साधू भी साधना करते हैं बाप को पाने के लिए अर्थात्
मुक्ति जीवनमुक्तिधाम जाने के लिए। आधाकल्प भक्ति करते हैं बाप को पाने के लिए। जब
वह समय पूरा होता है तो फिर बाप आता है भक्तों को सुखी बनाने। सतयुग में तो
सुख-शान्ति, सम्पत्ति सब है। वहाँ कभी अकाले मृत्यु नहीं होती है। कभी रोते, पीटते
नहीं। यह कौन समझाते हैं? बेहद का बाप, उनका नाम भी चाहिए ना। कलियुग में है ही
अन्धियारा। भक्ति मार्ग की ठोकरें खाते रहते हैं। स्वर्ग में तो दु:ख की बात होती
नहीं, सब सुखी रहते हैं इसलिए भगवान को पुकारते नहीं। सतयुग को सुखधाम, कलियुग को
दु:खधाम कहा जाता है। वल्लभाचारी वैष्णव लोग समझते हैं कि सतयुग में लक्ष्मी-नारायण
का राज्य था। यथा राजा रानी तथा प्रजा सुखी थे, उसको गोल्डन एज कहा जाता है। सतयुग
से लेकर जो चक्र में आते हैं उनके ही 84 जन्म होंगे। बच्चों को समझाया है कि यह झाड़
है। सब पत्ते इकट्ठे नहीं आयेंगे। सतयुग में एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था,
उनको हिन्दू नहीं कहेंगे। देवी-देवतायें तो सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण गाये
जाते हैं.. जो उन्हों के पुजारी हैं तो वह जरूर उसी धर्म के होने चाहिए। क्रिश्चियन
क्राइस्ट को याद करते तो उस धर्म के हैं ना। फिर भारतवासियों ने अपने देवी-देवता
धर्म का नाम क्यों गुम कर दिया है?
तुम जानते हो हम सो देवता थे। हम ही जन्म-मरण में आते हैं। हम सो देवता,
क्षत्रिय बनते हैं। 84 जन्म लेते-लेते अन्त में आकर शूद्र बनते हैं। शूद्र से फिर
ब्राह्मण बनना पड़े। ब्राह्मण बनते हैं ब्रह्मा की औलाद। सभी आत्मायें वास्तव में
शिव की औलाद तो हैं ही। वह है बेहद का बाप। उनको परमपिता परमात्मा, ओ गॉड फादर अथवा
हेविनली गॉड फादर कहा जाता है। वह है स्वर्ग का रचयिता। अब बुद्धि से बच्चों को काम
लेना है। जबकि बाप स्वर्ग स्थापन करते हैं तो हम क्यों न नई दुनिया का वारिस बनें।
अब वह नई दुनिया पुरानी हो गई है फिर नई दुनिया कैसे बनेंगी? गांधी भी गाते थे ना
कि नया राम-राज्य, नया भारत हो। हम जानते हैं कि अब वह स्थापन हो रहा है। अभी तुम
ब्राह्मणों को ईश्वरीय गोद मिली है, बेहद के बाप को अपना बनाया है - प्रैक्टिकल
में। ऐसे तो सब कहते रहते हैं ओ गॉड फादर रहम करो, परन्तु इस समय बाप ने आकर इस तन
द्वारा तुमको अपना बनाया है। वह कलियुगी ब्राह्मण हैं कुख की सन्तान, हम हैं ब्रह्मा
मुख वंशावली। प्रजापिता ब्रह्मा ठहरा तब तो इतने बच्चे पैदा करेंगे ना। तो यह है
मुख वंशावली। परमपिता परमात्मा ने एडाप्ट किया है - ब्रह्मा मुख द्वारा, तो गोया
माता भी हो गई। तुम मात-पिता... ओ बाबा आपने हमको ब्रह्मा मुख द्वारा अपना बनाया
है। यह भी समझने की बातें हैं। ज्ञान सागर एक ही बाप है। ज्ञान से ही सद्गति अर्थात्
दिन होता है। अज्ञान से रात होती है। कलियुग तो रात है ना, इनको भक्तिमार्ग कहा जाता
है। शास्त्र सब भक्तिमार्ग के हैं। उनसे कोई बाप के पास पहुंचने का रास्ता नहीं
मिलता है। बाप आते ही हैं कल्प-कल्प। शिवरात्रि मनाते हैं तो जरूर वह आते हैं। उनको
अपना शरीर नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी देवता कहा जाता है। ब्रह्मा देवता
नम:, विष्णु देवता नम: फिर शिव परमात्मा नम:। ब्रह्मा है इस साकार सिज़रे का बड़ा।
अभी प्रैक्टिकल में है। बाप आते ही हैं संगमयुग पर। अभी यादव भी हैं, कौरव भी हैं
और पाण्डव तो हैं योगबल वाले शक्ति सेना। तो अभी तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा
प्रैक्टिकल में ब्रह्मा तन में पधारा है। उस निराकार शिव का मन्दिर भी है।
शिव-रात्रि मनाई जाती है, परन्तु गवर्मेन्ट ने शिव जयन्ती की छुट्टी भी निकाल दी
है। औरों की जयन्तियां मनाते रहते हैं। धर्म की ताकत तो है नहीं इसलिए अनराइटियस,
अनलॉफुल, इनसालवेन्ट बन पड़े हैं। नो प्योरिटी, नो पीस, नो प्रासपर्टी। इस ही भारत
में 5 हजार वर्ष पहले जब गोल्डन जुबली थी तो प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी थी। कभी
अकाले मृत्यु नहीं होता था। भारत जैसा ऊंच सम्पतिवान और कोई हो नहीं सकता। भारत
खण्ड है सबसे ऊंच। उनकी हिस्ट्री भी बनी हुई है। पावन भी यह भारत तो पतित भी यह
भारत बनता है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले ही यह चक्कर लगाकर शूद्र वर्ण में आये।
फिर शूद्र वर्ण से अब ब्राह्मण वर्ण में आये हो। देवताओं से भी ब्राह्मण वर्ण ऊंच
चोटी पर है। सतयुगी देवताओं की जो महिमा है, वह बाप की महिमा से अलग है। बाप को कहते
हैं ज्ञान का सागर, आनंद का सागर, फिर देवताओं को कहेंगे सर्वगुण सम्पन्न.. वहाँ
विकार की बात नहीं। शास्त्रों में तो बहुत गपोड़े लगा दिये हैं कि कृष्णपुरी में भी
कंस, रावण आदि थे। वास्तव में तो इस समय कंसपुरी है। फिर सतयुग में होगी कृष्णपुरी।
यह है संगम इसलिए ही उन्होंने कंस, जरासन्धी, रावण आदि को सतयुगी देवताओं से मिला
दिया है। यह है ही आसुरी रावण सम्प्रदाय। अभी तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय बने हो।
ईश्वरीय गोद में आकर पवित्र बन फिर 21जन्मों के लिए दैवी गोद में जाते हो। 8 जन्म
दैवी गोद फिर 12 जन्म क्षत्रिय गोद। भारत में ही यह गाया हुआ है कि कन्या वह जो 21
कुल का उद्धार करे। सो तुम ही वह कुमारियां हो।
अभी तुम हो ईश्वरीय कुल के। दादा है शिवबाबा, बाप है ब्रह्मा। तुम हो
ब्रह्माकुमार कुमारियां। वर्सा उस बेहद के बाप से मिलता है। देने वाला वह है। वह तो
निराकार है। वह राजयोग अब कैसे सिखलावे। नर से नारायण बनाने लिए जरूर साकार शरीर
चाहिए। तो इस पतित तन में आते हैं जिसने 84 जन्म लिए हैं। यह बड़े से बड़ी
युनिवर्सिटी है। जहाँ स्वयं गॉड बैठ राजयोग सिखलाते हैं, राजाओं का राजा बनाने। गीता
का रचयिता कृष्ण नहीं। गीता माता ने कृष्ण को जन्म दिया। जो देवता बनें उन्हों को
जन्म मिला शिवबाबा से। क्रिश्चियन को जन्म मिला बाइबिल से क्राइस्ट द्वारा। तुमको
भी ब्राह्मण से देवता किसने बनाया? शिवबाबा ने ब्रह्मा मुख द्वारा। यह तुम्हारा है
बेहद का संन्यास। वह है हद का रजोगुणी संन्यास। वह निवृत्तिमार्ग का संन्यास। तुमको
वैराग्य आया है इस पुरानी छी-छी दुनिया से। तुम जानते हो कि यह तो अब खत्म होने वाली
है। इससे तो क्यों न हम स्वर्ग के रचयिता बाप को याद करें। बाप कहते हैं लाडले बच्चे,
तुम बहुत जन्मों के बाद आकर मिले हो। तुमने 84 जन्म पूरे लिए हैं। अब तुमको फिर
देवता वर्ण में जाना है। इसमें परहेज भी बहुत है, अशुद्ध चीज़ खा न सकें। बाप कहते
हैं मैं संगम पर आता ही हूँ मूत पलीती कपड़ों को पावन बनाने। अब मौत सामने खड़ा है।
यादव, कौरव और पाण्डव भी हैं तो जरूर पाण्डवपति भी होगा। पाण्डव-पति/पिता परमात्मा
को कहेंगे। तुम फिर हो पण्डे। राह बताते हो सुखधाम, शान्ति-धाम की, इसलिए तुमको
पाण्डव शिव शक्ति सेना कहा जाता है। यादव यूरोपवासी तो अपने ही कुल का नाश करते
हैं। भारत में हैं पाण्डव और कौरव - जिनके लिए कहते हैं कि असुर और देवताओं की
युद्ध चली। तुम अभी तो देवता नहीं हो, बनना है। श्रीमत से तुम स्वर्ग के मालिक बनते
हो। बाकी सबकी है आसुरी रावण मत। आधाकल्प रावण की मत चलती है। अभी तो सारी दुनिया
तमोप्रधान है। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ, जहाँ बाप बैठ राजयोग सिखलाते हैं। जब राजाई
स्थापन हो जाती है तो यह विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होती है, यह ज्ञान प्राय: लोप हो
जाता है। फिर ड्रामा अनुसार जो भी शास्त्र हैं भक्ति मार्ग के, वही निकलेंगे।
संन्यासियों के फालोअर्स बहुत होंगे। सभी पाप धोने गंगा पर जाते हैं। अब गंगा नदी
तो किसी को पावन कर नहीं सकती। वह तो पानी के सागर से निकली हुई है। ज्ञान गंगायें
तुम हो, जो ज्ञान सागर से निकली हो। बाकी गंगा कोई पतित-पावनी होती नहीं है। बच्चों
को फिर से भक्ति का फल बेहद सुख का वर्सा देने आया हूँ। जो बाप से आकर पढ़ेंगे वही
स्वर्ग में आयेंगे, बाकी सब अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे। इस ड्रामा-चक्र को
भी समझना है। चक्र को जानने से तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो। गवर्मेन्ट ने भी चक्र
निकाला है। 3 शेर दिखाकर फिर नीचे लिखते हैं सत्यमेव जयते।
अब शिवबाबा तुम सब पार्वतियों को आकर अमर कथा सुना रहे हैं - अमरपुरी का मालिक
बनाने। इसको ही सत्य नारायण की कथा वा अमर कथा कहा जाता है। यह कथा एक ही बार सुनकर
तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। बाकी सब हैं दन्त कथायें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देवता वर्ण में जाने के लिए भोजन की बहुत परहेज रखनी है। कोई भी
अशुद्ध चीज़ नहीं खानी है।
2) इस पुरानी छी-छी दुनिया, जो कि अब खत्म होने वाली है, इससे बेहद का वैराग्य
रख स्वर्ग के रचयिता बाप को याद करना है।