11-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम ही
बहुतकाल से बिछुड़े हुए हो, तुमने ही पूरे 84 जन्मों का पार्ट बजाया, अब तुम्हें
दु:ख के बंधन से सुख के सम्बन्ध में जाना है, तो अपार खुशी में रहो''
प्रश्नः-
अपार खुशी किन
बच्चों को सदा रह सकती है?
उत्तर:-
जिन्हें
निश्चय है कि 1- बाबा हमें विश्व का मालिक बनाने आया है। 2- हमारा सच्चा बाबा वही
गीता का सच्चा-सच्चा ज्ञान सुनाने आया है। 3- हम आत्मा अब ईश्वर की गोद में बैठे
हैं। हम आत्मा इस शरीर सहित बाप की बनी हूँ। 4- बाबा हमें भक्ति का फल (सद्गति) देने
आया है। 5- बाबा ने हमें त्रिकालदर्शी बनाया है। 6- भगवान ने हमें माँ बनकर एडाप्ट
किया है। हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं। जो इस स्मृति वा निश्चय में रहते उन्हें अपार खुशी
रहती है।
ओम् शान्ति।
बच्चों को निश्चय है कि हम आत्मा हैं। बाबा भगवान हमको पढ़ा रहा है। तो बच्चों को
बहुत खुशी होनी चाहिए। सम्मुख आने से आत्मा समझती है कि बाबा आया हुआ है - सबकी
सद्गति करने। सर्व के सद्गति दाता जीवन-मुक्ति दाता वही हैं। बच्चे जानते हैं - माया
घड़ी-घड़ी भुला देती है। परन्तु यह तो समझते हैं ना - हम बाबा के सम्मुख बैठे हैं।
निराकार बाबा इस रथ पर सवार हैं। जैसे मुसलमान लोग पटका घोड़े पर रखते हैं। कहेंगे
इस घोड़े पर मुहम्मद की सवारी थी। निशानी रख देते हैं। यहाँ तो है निराकार बाबा की
प्रवेशता। बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। स्वर्ग का मालिक बनाने वाला बाबा वा
विश्व का मालिक बनाने वाला बाबा आ गया है। बाबा है गीता का सच्चा-सच्चा भगवान। आत्मा
की बुद्धि बाप की तरफ चली जाती है। यह है आत्माओं का लव बाप के साथ। यह खुशी किन्हों
को चढ़ती है? जो बहुतकाल से अलग हुए हैं। बाबा खुद भी कहते हैं मैंने तुमको सुख के
सम्बन्ध में भेजा था, अब दु:ख के बंधन में हो। तुम अभी समझते हो सब तो 84 जन्म नहीं
लेते। 84 लाख का चक्र तो कोई की बुद्धि में बैठ न सके। बाबा ने 84 का चक्र बिल्कुल
ठीक बताया है। बाबा के बच्चे 84 जन्म लेते रहते हैं। अभी तो तुम जानते हो हम आत्मा
इन आरगन्स द्वारा सुनते हैं। बाबा इस मुख द्वारा सुना रहे हैं। खुद कहते हैं मुझे
इन आरगन्स का आधार लेना पड़ता है, इनका नाम ब्रह्मा रखना पड़े। प्रजापिता ब्रह्मा
तो मनुष्य चाहिए ना। सूक्ष्मवतन में थोड़ेही कहेंगे प्रजापिता ब्रह्मा। स्थूल वतन
में आकर कहते हैं मैं इस ब्रह्मा तन में प्रवेश कर तुमको एडाप्ट करता हूँ। तुम जानते
हो हम आत्मायें ईश्वर की गोद में जाती हैं। शरीर बिगर तो गोद हो न सके। आत्मा कहती
है मैं शरीर द्वारा उनकी बनती हूँ। यह शरीर उसने लोन लिया है। यह जीव (शरीर) उनका
नहीं है। परमात्मा ने इनमें प्रवेश किया है। तुम आत्मा भी शरीर में प्रवेश हुई हो
ना! यह बाबा भी कहते हैं - मैं भी इसमें हूँ, कभी बच्चा बन जाता हूँ, कभी माँ भी बन
जाता हूँ। जादूगर है ना। कई फिर इस खेलपाल को जादूगरी समझते हैं। दुनिया में झूठी
रिद्धि सिद्धि का काम बहुत चलता है। कृष्ण भी बन जाते हैं, जिनका भाव कृष्ण में होगा
तो उनको झट कृष्ण दिखाई पड़ेगा। उनको मान लेंगे फिर उनके फालोअर्स भी बन जायेंगे।
यहाँ तो सारी ज्ञान की बात है। पहले यह पक्का निश्चय चाहिए कि मैं आत्मा हूँ और बाबा
तो कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ, तुम बच्चों को त्रिकालदर्शी बनाता हूँ। ऐसी
नॉलेज कोई दे न सके। भक्ति मार्ग का जब अन्त होता है तब बाप को आना पड़ता है। भल
बहुतों को शिव के लिंग का, अखण्ड ज्योति स्वरूप का साक्षात्कार होता है। जैसी जिसकी
भावना होती है तो वह मैं पूरी करता हूँ। परन्तु मेरे से कोई मिलता ही नहीं। मेरे को
तो पहचानते ही नहीं हैं। अभी तो तुम समझते हो बाबा भी बिन्दी है, हम भी बिन्दी हैं।
हमारी आत्मा में यह नॉलेज है, तुम्हारी आत्मा में भी नॉलेज है। यह किसको मालूम नहीं
है कि हम आत्मा परमधाम में रहने वाली हैं। जब तुम बाबा के सामने आकर बैठ जाते हो तो
रोमांच खड़े हो जाते हैं। ओहो! शिवबाबा जो ज्ञान का सागर है वह इसमें बैठ हमको
पढ़ाते हैं। बाकी कृष्ण वा गोपियों की तो बात ही नहीं है। न यहाँ, न सतयुग में होंगे।
वहाँ तो हर एक प्रिन्स अपने महलों में रहते हैं। इन सब बातों को वही समझेंगे जो आकर
बाप से वर्सा लेंगे। तो यह खुशी भी अन्दर रहनी चाहिए। कहते भी हैं तुम मात पिता..
परन्तु इसका भी अर्थ नहीं समझते हैं। पिता तो ठीक है फिर माता किसको कहा जाता है।
माता तो जरूर चाहिए। इस माता की कोई माता हो न सके। यह राज़ बड़ा समझने का है और
बाप को याद करना है। बाप कहते हैं तुम्हारे में भी कोई अवगुण नहीं होना चाहिए। गाते
भी हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। अब बच्चों को गुणवान बनना पड़े। कोई काम
नहीं, कोई क्रोध नहीं। देह का अहंकार भी नहीं चाहिए।
इस समय तुम यहाँ बैठे हो, जानते हो हम यहाँ हैं फिर मुरझाइस आदि क्यों आनी चाहिए।
परन्तु यह परिपक्व अवस्था अन्त में ही होगी। गाया भी हुआ है अतीन्द्रिय सुख पूछना
हो तो गोप गोपियों से पूछो। यह अन्त में होगा, ऐसे कोई कह नहीं सकता कि हम 75
प्रतिशत अतीन्द्रिय सुख में रहते हैं। इस समय पापों का बोझा बहुत है। गुरू कृपा से
वा गंगा स्नान से पाप नहीं कट सकते हैं। बाप अन्त में ही आकर नॉलेज देते हैं। दिखाते
हैं कन्या द्वारा बाण मरवाये और मर गये। फिर मरने के समय गंगा जल पिलाया। तुम यहाँ
जब बेहोश हो जाते हो तो तुमको बाबा की याद दिलाई जाती है। मामेकम्, यह बच्चों को
आदत पड़ जानी चाहिए। ऐसे नही कोई याद कराये। शरीर छोड़ने के समय आपेही याद आवे,
बिगर किसकी मदद के बाप को याद करना है। वे लोग तो मंत्र देते हैं। वह तो कॉमन बात
है। उस समय बहुत मारामारी आदि होती है। तुम भिन्न-भिन्न स्थान पर रहते हो। उस समय
ऐसे नहीं कहेंगे शिव-शिव कहो। उस समय पूरी याद चाहिए, लव चाहिए, तब ही नम्बरवन पद
प्राप्त कर सकेंगे। तुम बच्चे जानते हो मैं तुम्हारा बाप हूँ, कल्प पहले भी तुम
बच्चों को गुल-गुल बनाया था। सतयुग में योगबल से फूल बच्चे पैदा होंगे। दु:ख देने
वाली चीज़ कोई वहाँ होती नहीं। नाम ही है स्वर्ग। परन्तु वहाँ कौन निवास करते हैं -
यह भारत-वासी जानते ही नहीं। शास्त्रों में ऐसी बहुत बातें लिख दी हैं कि वहाँ भी
हिरण्यकश्यप आदि थे - यह सब है भक्ति की सामग्री। भक्ति भी पहले सतोप्रधान होती है,
पीछे धीरे-धीरे तमोप्रधान होती जाती है।
बाप कहते हैं मैं तुमको आसमान पर चढ़ाता हूँ। तुम धीरे-धीरे नीचे आ जाते हो।
मनुष्य कोई की महिमा है ही नहीं। सर्व का सद्गति दाता एक ही बाप है। बाकी गुरू लोग
अनेक प्रकार की तीर्थ यात्रा आदि सिखलाते हैं, फिर भी नीचे गिरते रहते हैं। भक्ति
मार्ग में मीरा को भल साक्षात्कार हुआ। परन्तु वह कोई विश्व की मालिक थोड़ेही बनी।
तुमको तो बाबा कहते हैं जिन्न बनो। तुमको काम देता हूँ सिर्फ अल्फ, बे को याद करते
रहो। अगर थक जायेंगे, याद नहीं करेंगे तो माया कच्चा खा जायेगी। एक कहानी भी है
जिन्न खा गया। बाबा भी कहते हैं तुम याद नहीं करेंगे तो माया कच्चा खा जायेगी। याद
में बैठने से खुशी चढ़ती है। बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। बाबा सामने बैठे
हैं। तुम आत्मायें सुनती हो। मीठे लाड़ले बच्चे मैं तुमको मुक्तिधाम में ले चलने आया
हूँ। भल वापिस जाने की कोशिश बहुत करते हैं, परन्तु कोई जा नहीं सकते। कलियुग के
बाद सतयुग, रात के बाद दिन आना ही है। तुम जानते हो सतयुग में हम ही होंगे। बाबा
फिर से हमको राज्य भाग्य देते हैं। खुशी का पारा चढ़ेगा अन्त में। जब फाइनल होंगे,
विनाश हो जायेगा। तुम साक्षी होकर देखते रहेंगे। खूने नाहेक खेल है ना। क्या गुनाह
किया है, जो मारने लिए बाम्ब्स आदि बनाये हैं। मरेंगे तो सही। वह भी समझते हैं हमको
कोई प्रेर रहे हैं। जो नहीं चाहते भी हम यह बाम्ब्स आदि बनाते हैं। खर्चा तो बहुत
होता है। ड्रामा में नूँध है, इनसे विनाश होना ही है। अनेक धर्म बीच एक धर्म राज्य
कर न सके। अब अनेक धर्मों का विनाश हो एक धर्म की स्थापना होनी है।
तुम जानते हो हम बाबा की श्रीमत पर राज्य स्थापन कर रहे हैं। वह फिर चले जाते
हैं मैदान पर ड्रिल आदि सीखने के लिए। समझते हैं मरना और मारना है। यहाँ तो वह बात
नहीं। बहुत खुशी रहनी चाहिए कि बाबा आया है। प्राचीन भारत का राजयोग निराकार भगवान
ने ही सिखाया था। नाम बदलकर कृष्ण रख दिया है। संन्यासी लोग समझते हैं हमारा ही
प्राचीन योग है। तुमको कितना अच्छी रीति समझाते हैं। बच्चे मुझे पहचानते हो - मैं
तुम्हारा बाप हूँ। मुझे ही पतित-पावन, ज्ञान का सागर कहते हो। कृष्ण तो पतित दुनिया
में आ न सके। कृष्ण को फिर द्वापर में ले गये हैं। कितनी गलत-फहमी है, बिल्कुल
तमोप्रधान बन गये हैं। मैं आता ही तब हूँ - जब सबको मुक्तिधाम में ले जाना है।
तुम जानते हो हम पढ़ रहे हैं। हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं। यह सिमरण करते रहो तो
रोमांच खड़े हो जायेंगे। बाबा तुम बच्चों को ज्ञान का गर्भ धारण करा रहे हैं। फिर
तुम यह भूल क्यों जाते हो। बच्चा पैदा हुआ और बाबा कहने लग पड़ा। समझ जाते हैं हम
वारिस हैं। तो निरन्तर दादे को याद करो। बाबा मत देते हैं बच्चे काम महाशत्रु है,
इसने तुमको आदि-मध्य-अन्त बहुत दु:ख दिया है। यह है मृत्युलोक, वैश्यालय। राम
शिवालय बनाते हैं, जिसमें देवी-देवता धर्म का राज्य होता है। परन्तु उन्होंने कैसे
राज्य लिया, कब लिया, यह तुम अब जान गये हो। वह समझते गॉड गॉडेज कभी पुनर्जन्म नहीं
लेते हैं। किस एक बड़े को समझ में आ जाये तो आवाज फैल जायेगा। गरीब की तो कोई बात
नहीं सुनते। तुम्हारे में भी नम्बरवार धारणा वाले हैं। स्कूल एक ही है। टीचर एक ही
है। बाकी पढ़ने वाले सब नम्बरवार हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) माया के वार से बचने के लिए जिन्न बन अल्फ और बे को याद करते रहना
है। सिर पर जो पापों का बोझा है उसे योगबल से उतारना है। अतीन्द्रिय सुख में रहना
है।
2) मुख से सिर्फ शिव-शिव नहीं करना है। बाप से सच्चा लव रखना है। कांटों से फूल
बनाने की सेवा में तत्पर रहना है।
वरदान:-
निश्चिंत स्थिति द्वारा यथार्थ जजमेंट देने वाले
निश्चयबुद्धि विजयी-रत्न भव
सदा विजयी बनने का सहज
साधन है - एक बल, एक भरोसा। एक में भरोसा है तो बल मिलता है। निश्चय सदा निश्चिंत
बनाता है और जिसकी स्थिति निश्चिंत है, वह हर कार्य में सफल होता है क्योंकि
निश्चिंत रहने से बुद्धि जजमेंट यथार्थ करती है। तो यथार्थ निर्णय का आधार है-निश्चयबुद्धि,
निश्चिंत। सोचने की भी आवश्यकता नहीं क्योंकि फालो फादर करना है, कदम पर कदम रखना
है, जो श्रीमत मिलती है उसी प्रमाण चलना है। सिर्फ श्रीमत के कदम पर कदम रखते चलो
तो विजयी रत्न बन जायेंगे।
स्लोगन:-
मन में सर्व के प्रति कल्याण की भावना रखना ही विश्व कल्याणकारी बनना है।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
इस संगम समय पर
ईश्वरीय नॉलेज जो हमें मिल रही है क्या यही नॉलेज फिर से सतयुग में मिलेगी? अब इस
पर समझाया जाता है कि सतयुग में तो हम स्वयं ज्ञान स्वरूप हैं। देवताई प्रालब्ध भोग
रहे हैं, वहाँ ज्ञान की लेन देन नहीं चलती, ज्ञान की जरुरत है अज्ञानियों को। सतयुग
में तो सब ज्ञान स्वरूप हैं, वहाँ कोई अज्ञानी रहता ही नहीं है, जो ज्ञान देने की
जरुरत रहे। इस समय हम सारे विराट ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानते हैं। आदि में हम
कौन थे, कहाँ से आये और मध्य में कर्मबन्धन में फंसे फिर कैसे गिरे, अन्त में हमको
कर्मबन्धन से अतीत हो कर्मातीत देवता बनना है। अभी जो पुरुषार्थ चल रहा है, इससे हम
भविष्य प्रालब्ध सतयुगी देवता बनते हैं। अगर वहाँ हमको यह मालूम होता कि हम देवतायें
गिरेंगे तो यह ख्याल आने से खुशी गायब हो जाती, तो वहाँ गिरने की नॉलेज नहीं है। यह
ख्यालात वहाँ नहीं रहती, हमको इस नॉलेज द्वारा अब मालूम पड़ा है कि हमको चढ़ना है
और सुख की जीवन बनानी है। आधाकल्प अपनी प्रालब्ध भोग फिर अपने आपको विस्मृत कर माया
के वश होकर गिर जाते हैं। यह चढ़ना और गिरना अनादि बना बनाया खेल है। यह सारी नॉलेज
अभी बुद्धि में है, यह सतयुग में नहीं रहती। अच्छा - ओम् शान्ति।