ओम् शान्ति।
बच्चों ने अपने माँ की महिमा सुनी। बच्चे तो बहुत हैं समझा जाता है बरोबर बाप है तो
जरूर माँ भी है। रचना के लिए माता जरूर होती है। भारत में माता के लिए बहुत अच्छी
महिमा गाई जाती है। बड़ा मेला लगता है जगत अम्बा का, कोई न कोई प्रकार से माँ की
पूजा होती है। बाप की भी होती होगी। वह जगत अम्बा है तो वह जगत पिता है। जगत अम्बा
साकार में है तो जगत पिता भी साकार में है। इन दोनों को रचयिता ही कहेंगे। यहाँ तो
साकार है ना। निराकार को ही कहा जाता है गॉड फादर। मदर फादर का राज़ तो समझाया गया
है। छोटी माँ भी है, बड़ी माँ भी है। महिमा छोटी माँ की है, भल एडाप्ट करते हैं,
माँ को भी एडाप्ट किया है, तो यह बड़ी माँ हो गई। परन्तु महिमा सारी छोटी माँ की
है।
यह भी बच्चे जानते हैं हरेक को अपने कर्मभोग का हिसाब-किताब चुक्तू करना है
क्योंकि विकर्माजीत थे फिर रावण ने विकर्मी बना दिया है। विक्रम संवत भी है तो
विकर्माजीत संवत भी है। पहला आधाकल्प विकर्माजीत कहेंगे फिर आधाकल्प विक्रम संवत
शुरू होता है। अभी तुम बच्चे विकर्मों पर जीत पाकर विकर्माजीत बनते हो। पाप जो हैं
उनको योगबल से प्रायश्चित करते हैं। प्राश्चित होता ही है याद से। जो बाप समझाते
हैं कि बच्चे याद करो तो पापों का प्राश्चित हो जायेगा अर्थात् कट उतर जायेगी। सिर
पर पापों का बोझा बहुत है, जन्म-जन्मान्तर का। समझाया गया है कि जो नम्बरवन में
पुण्य आत्मा बनता है वही फिर नम्बरवन पाप आत्मा भी बनता है। उनको बहुत मेहनत करनी
पड़ेगी क्योंकि शिक्षक बनते हैं सिखाने के लिए तो जरूर मेहनत करनी पड़ेगी। बीमारी
आदि होती है तो अपने ही कर्म कहे जाते हैं। अनेक जन्मों के विकर्म किये हैं, इस
कारण भोगना होती है इसलिए कभी भी इससे डरना नहीं है। खुशी से पास करना है क्योंकि
अपना ही किया हुआ हिसाब-किताब है। प्राश्चित होना ही है, एक बाप की याद से। जब तक
जीना है तब तक तुम बच्चों को ज्ञान अमृत पीना है। योग में रहना है, विकर्म हैं तब
तो खांसी आदि होती है। खुशी होती है, यहाँ ही सब हिसाब खत्म हो जाएं, रह जायेंगे तो
पास विद ऑनर नहीं होगे। मोचरा खाकर मानी मिले तो भी बेइज्जती है ना। अनेक प्रकार के
दु:ख की भोगना होती है। यहाँ अनेक प्रकार के दु:ख का पारावार नहीं। वहाँ सुख का
पारावार नहीं रहता। नाम ही है स्वर्ग। क्रिश्चियन लोग कहते हैं हेविन। हेविनली गॉड
फादर, इन बातों को तुम जानते हो। निवृत्ति मार्ग वाले संन्यासी तो कह देते हैं कि
यह सब काग बिष्टा समान सुख है। इस दुनिया में बरोबर ऐसा है। भल कितना भी किसको सुख
हो परन्तु वह है अल्पकाल का सुख। स्थाई सुख तो बिल्कुल नहीं है। बैठे-बैठे आपदायें
आ जाती हैं, हार्टफेल हो जाती है। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरे में जाकर प्रवेश करती
है तो शरीर आपेही मिट्टी हो जाता। जानवरों के शरीर फिर भी काम में आते हैं, मनुष्य
का काम नहीं आता है। तमोप्रधान पतित शरीर कोई काम का नहीं, कौड़ियों मिसल है।
देवताओं के शरीर हीरे मिसल हैं। तो देखो उन्हों की कितनी पूजा होती है। यह समझ अभी
तुम बच्चों को मिली है।
यह है बेहद का बाप, जो मोस्ट बिलवेड है, जिसको फिर आधाकल्प याद किया है। जो
ब्राह्मण बनते हैं - वही बाप से वर्सा लेने के हकदार होते हैं। सच्चे ब्राह्मण बहुत
प्युअर होने चाहिए। सच्चे गीता पाठी को पवित्र तो रहना ही है। वह झूठे गीता पाठी
पवित्र नहीं रहते। अब गीता में तो लिखा हुआ है काम महाशत्रु है। फिर खुद गीता सुनाने
वाले पवित्र कहाँ रहते हैं। गीता है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी, जिससे बाप ने कौड़ी से
हीरे तुल्य बनाया है। यह भी तुम समझते हो, गीतापाठी नहीं समझ सकते। वह तो तोते
मुआफिक पढ़ते रहते हैं। महिमा सारी है ही एक की और किसी चीज़ की महिमा है नहीं।
ब्रह्मा विष्णु शंकर की भी नहीं। तुम उनके आगे कितना भी माथा टेको, उनके आगे बलि चढ़ो
तो भी वर्सा नहीं मिलेगा। काशी में काशी कलवट खाते हैं ना। अभी गवर्मेन्ट ने बन्द
करा दिया है। नहीं तो बहुत काशी कलवट खाते थे। कुएं में जाकर कूदते थे। कोई देवी पर
बलि चढ़ते थे, कोई शिव पर। देवताओं पर बलि चढ़ने का कोई फायदा नहीं। काली पर बलि
चढ़ते, काली को कितना काला-काला बना दिया है। अभी तो हैं सभी आयरन एजड, जो पहले
गोल्डन एजड थे। अम्बा एक को ही कहा जाता है। पिता को कभी अम्बा नहीं कहेंगे। अब यह
कोई भी नहीं जानते। जगत अम्बा सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है। ब्रह्मा जरूर प्रजापिता
ही होगा। सूक्ष्मवतन में तो नहीं होगा। समझते भी हैं सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है।
ब्रह्मा की स्त्री तो बताते नहीं। बाप समझाते हैं, मैंने इस ब्रह्मा द्वारा बेटी
सरस्वती को एडाप्ट किया है। बेटी भी समझती है, बाप एडाप्ट करते हैं। ब्रह्मा को भी
एडाप्ट किया है। यह बहुत गुह्य बात है, जो कोई की भी बुद्धि में नहीं है। बाप तुमको
अपना भी अन्त बैठकर देते हैं, सो तो जरूर सम्मुख ही देंगे ना। प्रेरणा से थोड़ेही
देंगे। भगवानुवाच हे बच्चे... सो जरूर साकार में आवे तब तो कहेंगे ना, निराकार बाप
इन द्वारा बैठ पढ़ाते हैं, ब्रह्मा नहीं पढ़ाते। ब्रह्मा को ज्ञान सागर नहीं कहा
जाता है, एक ही बाप को कहा जाता है। आत्मा समझती है यह लौकिक बाप नहीं पढ़ाते,
पारलौकिक बाप बैठ पढ़ाते हैं, जिससे वर्सा ले रहे हैं। वैकुण्ठ को परलोक नहीं कहा
जाता। वह है अमरलोक, यह है मृत्युलोक। परलोक अर्थात् जहाँ हम आत्मायें रहती हैं, यह
परलोक नहीं है। हम आत्मायें आती हैं इस लोक में। परलोक है हम आत्माओं का लोक। तुमने
राज्य इस भारत में किया है, परलोक पर नहीं। परलोक का राजा नहीं कहेंगे। कहते हैं
लोक परलोक सुहाले हो। यह है स्थूल लोक और फिर परलोक सुहाले बन जाते हैं। वही भारत
वैकुण्ठ था फिर बनेगा। यह है मृत्यु-लोक, लोक में मनुष्य रहते हैं। कहते हैं
वैकुण्ठ लोक में जावें। दिलवाला मन्दिर में भी नीचे तपस्या में बैठे हैं। ऊपर में
वैकुण्ठ के चित्र बनाये हैं। समझते हैं फलाना वैकुण्ठ पधारा। परन्तु वैकुण्ठ तो यहाँ
ही होता है, ऊपर में नहीं। आज जो यह पतित लोक है, वह फिर पावन लोक हो जायेगा। पावन
लोक था अभी पास्ट हो गया है, इसलिए कहा जाता है परलोक। परे हो गया ना। भारत स्वर्ग
था, अभी नर्क है तो स्वर्ग अभी परे हो गया ना। फिर ड्रामा अनुसार वाम मार्ग में जाते
हैं तो स्वर्ग परे हो जाता है इसलिए परलोक कहते हैं।
अभी तुम कहते हो हम यहाँ आकर नई दुनिया में फिर से अपना राज्य भाग्य करेंगे। हर
एक अपने लिए पुरूषार्थ करते हैं। जो करेगा सो पायेगा। सब तो नहीं करेंगे। जो पढ़ेगा
लिखेगा वह होगा वैकुण्ठ का नवाब अर्थात् मालिक बनेंगे। तुम इस सृष्टि को सोने का
बनाते हो। कहते हैं ना - द्वारिका सोने की थी फिर समुद्र के नीचे चली गई। कोई बैठी
तो नहीं है जो निकालेंगे। भारत स्वर्ग था, देवतायें राज्य करते थे। अभी तो कुछ नहीं
है। फिर सब कुछ सोने का बनाना पड़ेगा। ऐसे नहीं वहाँ सोने के महल निकालने से निकल
आयेंगे, सब कुछ बनाने पड़ेंगे। नशा होना चाहिए हम प्रिन्स प्रिन्सेज बन रहे हैं। यह
प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने की कॉलेज है। वह है प्रिन्स प्रिन्सेज के पढ़ने की कॉलेज।
तुम राजाई लेने के लिए पढ़ रहे हो। वह पास्ट जन्म में दान पुण्य करने से राजा के घर
में जन्म ले प्रिन्स बने हैं। वह कॉलेज कितनी अच्छी होगी। कितने अच्छे कोच आदि होंगे।
टीचर के लिए भी अच्छा कोच होगा। सतयुग त्रेता में जो प्रिन्स प्रिन्सेज होंगे उन्हों
का कॉलेज कितना अच्छा होगा। कॉलेज में तो जाते होंगे ना। भाषा तो सीखेंगे ना। उन
सतयुगी प्रिन्स प्रिन्सेज का कॉलेज और द्वापर के विकारी प्रिन्स प्रिन्सेज का कॉलेज
देखो और तुम प्रिन्स प्रिन्सेज बनने वालों का कॉलेज देखो, कैसा साधारण है। तीन पैर
पृथ्वी भी नहीं मिलती है। तुम जानते हो वहाँ प्रिन्स कैसे जाते हैं, कॉलेजेज़ में।
वहाँ पैदल भी नहीं करना पड़ता। महल से निकले और यह एरोप्लैन उड़ा। वहाँ की कैसी
अच्छी कॉलेजेज़ होंगी। कैसे सुन्दर बगीचे महल आदि होंगे। वहाँ की हर चीज नई सबसे
ऊंच नम्बरवन होती है। 5 तत्व ही सतोप्रधान हो जाते हैं। तुम्हारी सेवा कौन करेंगे?
यह 5 तत्व अच्छे ते अच्छी चीज़ तुम्हारे लिए पैदा करेंगे। जब कोई फल बहुत अच्छा कहाँ
से निकलता है तो वह राजा रानी को सौगात भेजते हैं। यहाँ तो तुम्हारा बाप शिवबाबा है
सबसे ऊंच, उनको तुम क्या खिलायेंगे! यह कोई भी चीज़ की इच्छा नहीं रखते, यह पहनूँ,
यह खाऊं, यह करूँ,... तुम बच्चों को भी यह इच्छायें नहीं होनी चाहिए। यहाँ यह सब
किया तो वहाँ वह कम हो जायेगा। अभी तो सारी दुनिया का त्याग करना है। देह सहित सब
कुछ त्याग। वैराग्य आता है तो त्याग हो जाता है।
बाबा कहते हैं मैं तुम बच्चों को हथेली पर बहिश्त देने आया हूँ। तुम जानते हो
बाबा हमारा है, तो जरूर उनको याद करना पड़े। जैसे कन्या की सगाई होती या लगन जुटती
है तो कभी नहीं कहेगी कि हम पति को याद नहीं करती, क्योंकि वह लाईफ का मेल हो जाता
है। वैसे ही बाप और बच्चों का मेल होता है। परन्तु माया भुला देती है। बाप कहते हैं
मुझे याद करो और वर्से को याद करो। इसमें मुक्ति जीवन-मुक्ति आ जाती है। फिर तुमसे
यह भूल क्यों जाता है! इसमें है बुद्धि का काम, जबान से भी कुछ बोलना नहीं होता है
और निश्चय करना है। हम जानते हैं, पवित्र रह पवित्र दुनिया का वर्सा लेंगे। इसमें
समझने की बात है, बोलने की बात नहीं। हम बाबा के बने हैं। शिवबाबा पतितों को पावन
बनाने वाला है। कहते हैं मुझे याद करते रहो। इसका अर्थ ही है मनमनाभव। उन्होंने फिर
कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है। पतित-पावन तो एक ही है। सर्व का सद्गति दाता एक, एक
को ही याद करना है। कहते हैं मुझ एक बाप को भूलने के कारण कितनों को याद करते रहते
हो। अभी तुम मुझे याद करो तो विकर्माजीत राजा बन जायेंगे। विकर्माजीत राजा और
विक्रमी राजा का फ़र्क भी बताया ना। पूज्य से पुजारी बन जाते। नीचे आना ही है।
वैश्य वंश, फिर शूद्र वंश। वैश्य वंशी बनना माना वाम मार्ग में आना।
हिस्ट्री-जॉग्राफी तो सारी बुद्धि में है, इस पर कहानियां भी बहुत हैं। वहाँ मोह की
भी बात नहीं रहती। बच्चे आदि बहुत मौज में रहते हैं, आटोमेटिक अच्छी रीति पलते हैं।
दास दासियां तो आगे रहते ही हैं। तो अपनी तकदीर को देखो कि हम ऐसी कॉलेज में बैठे
हैं जहाँ से हम भविष्य में प्रिन्स प्रिन्सेज बनते हैं। फ़र्क तो जानते हो ना। वह
कलियुगी प्रिन्स प्रिन्सेज, वह सतयुगी प्रिन्स प्रिन्सेज... वह महारानी महाराजा, वह
राजा-रानी। बहुतों के नाम भी हैं लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण। फिर उन
लक्ष्मी-नारायण और राधे-कृष्ण की पूजा क्यों करते हैं! नाम तो एक ही है ना। हाँ वह
स्वर्ग के मालिक थे। अभी तुम जानते हो कि यह नॉलेज, शास्त्रों में नहीं है। अभी तुम
समझ गये हो यज्ञ तप दान पुण्य आदि में कोई सार नहीं है। ड्रामा अनुसार दुनिया को
पुराना होना ही है। मनुष्य मात्र को तमोप्रधान बनना ही है। हर बात में तमोप्रधान,
क्रोध, लोभ सबमें तमोप्रधान। हमारे टुकड़े पर इनका दखल क्यों, मारो गोली। कितनी
मारामारी करते हैं, आपस में कितना लड़ते हैं। एक दो का खून करने में भी देरी नहीं
करते हैं। बच्चा समझता कहाँ बाप मरे वर्सा मिले... ऐसी तमोप्रधान दुनिया का अब
विनाश होना ही है। फिर सतोप्रधान दुनिया आयेगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद प्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पुण्य आत्मा बनने के लिए याद की मेहनत करनी है। सब हिसाब-किताब
समाप्त कर पास विद ऑनर हो इज्जत से जाना है इसलिए कर्मभोग से डरना नहीं है,
खुशी-खुशी चुक्तू करना है।
2) सदा इसी नशे में रहना है कि हम भविष्य प्रिन्स-प्रिन्सेज बन रहे हैं। यह है
प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने की कॉलेज।