14-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - शरीर
निर्वाह अर्थ कर्म भल करो लेकिन कम से कम 8 घण्टा बाप को याद कर सारे विश्व को
शान्ति का दान दो, आपसमान बनाने की सेवा करो''
प्रश्नः-
सूर्यवंशी
घराने में ऊंच पद पाने का पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:-
सूर्यवंशी घराने में ऊंच पद पाना है तो बाप को याद करो और दूसरों को कराओ।
जितना-जितना स्वदर्शन चक्रधारी बनेंगे और बनायेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। 2-
पुरुषार्थ कर पास विद् ऑनर बनो। ऐसा कोई कर्म न हो जो सजा खानी पड़े। सजा खाने वालों
का पद भ्रष्ट हो जाता है।
गीत:-
इस पाप की
दुनिया से....
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान सर्वगुणों में फुल बनना है। आपस में बहुत प्यार से रहना है।
कभी किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
2) चलते-फिरते बाप को याद करने का अभ्यास करना है। याद में रह सारे विश्व को
शान्ति का दान देना है।
वरदान:-
ज्ञान के राज़ों को समझ सदा अचल रहने वाले
निश्चयबुद्धि, विघ्न-विनाशक भव
विघ्न-विनाशक स्थिति में
स्थित रहने से कितना भी बड़ा विघ्न खेल अनुभव होगा। खेल समझने के कारण विघ्नों से
कभी घबरायेंगे नहीं लेकिन खुशी-खुशी से विजयी बनेंगे और डबल लाइट रहेंगे। ड्रामा के
ज्ञान की स्मृति से हर विघ्न नथिंगन्यु लगता है। नई बात नहीं लगेगी, बहुत पुरानी
बात है। अनेक बार विजयी बनें हैं - ऐसे निश्चयबुद्धि, ज्ञान के राज़ को समझने वाले
बच्चों का ही यादगार अचलघर है।
स्लोगन:-
दृढ़ता की शक्ति साथ हो तो सफलता गले का हार बन जायेगी।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
हम जो भी अच्छे व
बुरे कर्म करते हैं उनका फल अवश्य मिलता है। जैसे कोई दान पुण्य करते हैं, यज्ञ हवन
करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं तो वह समझते हैं कि हमने ईश्वर के अर्थ जो भी दान किया
वो परमात्मा के दरबार में दाखिल हो जाता है। जब हम मरेंगे तो वो फल अवश्य मिलेगा और
हमारी मुक्ति हो जायेगी, परन्तु यह तो हम जान चुके हैं कि इस करने से कोई सदाकाल के
लिये फायदा नहीं होता। यह तो जैसे कर्म हम करेंगे उससे अल्पकाल क्षणभंगुर सुख की
प्राप्ति अवश्य होती है। मगर जब तक यह प्रैक्टिकल जीवन सदा सुखी नहीं बनी है तब तक
उसका रिटर्न नहीं मिल सकता। भल हम किससे भी पूछेंगे यह जो भी तुम करते आये हो, वह
करने से तुम्हें पूरा लाभ मिला है? तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं होता। अब
परमात्मा के पास दाखिल हुआ या नहीं हुआ, वो हमें क्या मालूम? जब तक अपनी प्रैक्टिकल
जीवन में कर्म श्रेष्ठ नहीं बने हैं तब तक कितनी भी मेहनत करेंगे तो भी मुक्ति
जीवनमुक्ति प्राप्त नहीं होगी। अच्छा, दान पुण्य किया लेकिन उस करने से कोई विकर्म
तो भस्म नहीं हुए, फिर मुक्ति जीवनमुक्ति कैसे प्राप्त होगी। भले इतने संत महात्मायें
हैं, जब तक उन्हों को कर्मों की नॉलेज नहीं है तब तक वो कर्म अकर्म नहीं हो सकते, न
वह मुक्ति जीवनमुक्ति को प्राप्त करेंगे। उन्हों को भी यह मालूम नहीं है कि सत-धर्म
क्या है और सत-कर्म क्या है, सिर्फ मुख से राम राम कहना, इससे कोई मुक्ति नहीं होगी।
बाकी ऐसे समझ बैठना कि मरने के बाद हमारी मुक्ति होगी। उन्हों को यह पता ही नहीं कि
मरने के बाद क्या फायदा मिलेगा? कुछ भी नहीं। बाकी तो मनुष्य अपने जीवन में चाहे
बुरे कर्म करे, चाहे अच्छे कर्म करे वो भी इस ही जीवन में भोगना है। अब यह सारी
नॉलेज हमें परमात्मा टीचर द्वारा मिल रही है कि कैसे शुद्ध कर्म करके अपनी
प्रैक्टिकल जीवन बनानी है। अच्छा। ओम् शान्ति।