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❍ 01 / 06 / 22 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी भी बात में मूंझ्कर निश्चय में ऊपर नीचे तो नहीं हुए ?*
➢➢ *आप समान बनाने की सेवा की ?*
➢➢ *बाबा शब्द की स्मृति से हद के मेरेपन को अर्पित किया ?*
➢➢ *अपनी सेवा को बाप के आगे अर्पित किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *समय प्रमाण अब सर्व ब्राह्मण आत्माओं को समीप लाते हुए ज्वाला स्वरूप का वायुमण्डल बनाने की सेवा करो,* उसके लिए चाहे भट्टियां करो या आपस में सगंठित होकर रूहरिहान करो लेकिन ज्वाला स्वरूप का अनुभव करो और कराओ, *इस सेवा में लग जाओ तो छोटी-छोटी बाते सहज परिवर्तन हो जायेंगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं एकरस स्थिति वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को एकरस स्थिति में अनुभव करते हो? एकरस स्थिति है या और हद के रस आकर्षित करते हैं? निरन्तर योगी बन गये? सदा पावरफुल योग है या फर्क पड़ता है? निरन्तर अर्थात् अन्तर न हो। ऐसे शक्तिशाली बने हो या बन रहे हो? कितने तक बने हो? 75 परसेन्ट तक पहुँचे हो? *क्योंकि सदा एकरस का अर्थ ही है एक के साथ सदा जैसे बाप, वैसे मैं, बाप समान। बनना तो बाप समान है। बाप तो शक्ति भरते ही हैं। रोज की मुरली क्या है? शक्ति भरती है ना! लेकिन भरने वाले भरते हैं।*
〰✧ *सदैव स्मृति रखो कि हम महावीर हैं, शिवशक्तियां हैं तो कभी भी निर्बल नहीं होंगे, कमजोर नहीं होंगे। क्योंकि कोई भी विघ्न तब आता है जब कमजोर बनते हैं। अगर कमजोर नहीं बनो तो विघ्न नहीं आ सकता। महावीर को कहते हैं विघ्न विनाशक।* तो यह किसका टाइटल है? आप सभी विघ्न विनाशक हो या विघ्नों में घबराने वाले हो? कोई भी शक्ति की कमी हुई तो मास्टर सर्व शक्तिवान नहीं कहेंगे। इसलिए सदा याद रखो कि सर्व शक्तियां बाप का वर्सा है। वर्सा तो पूरा मिला है या थोड़ा मिला है? तो एक भी शक्ति कम नहीं होनी चाहिए।
〰✧ इस समय सभी मधुबन निवासी हो ना! अभी मधुबन को साथ ले जाना। क्योंकि मधुबन अर्थात् मधुरता। मधुबन आपके साथ होगा तो सदा ही सम्पूर्ण और सदा ही सन्तुष्ट रहेंगे। ऐसे नहीं कहना कि मधुबन में तो बहुत अच्छा था। अभी बदल गये। मधुबन का बाबा भी साथ है। तो मधुबन की विशेषता भी साथ है। तो सदा अपने को मास्टर सर्व शक्तिवान अनुभव करेंगे। सभी तीव्र पुरुषार्थी हो या पुरुषार्थी हो? तीव्र पुरुषार्थी की निशानी क्या होती है? *तीव्र पुरुषार्थी सदा उड़ती कला वाला होगा, सदा डबल लाइट होगा। कभी ऊपर, कभी नीचे नहीं, सदा उड़ती कला। जितना-जितना विचित्र बाप से प्यार है तो जिससे प्यार होता है वैसा ही बनना होता है। स्वयं भी विचित्र आत्मा रूप में स्थित होंगे तो उड़ती कला में रहेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *वर्तमान समय माया ब्राह्मण बच्चों की बुद्धि पर ही पहला वार करती है।* पहले बुद्धि का कनेक्शन तोड देती है। जैसे जब कोई दुश्मन वार करता है तो पहले टेलिफोन, रेडियों आदि के कनेक्शन तोड देते है।
〰✧ लाइट और पानी का कनेक्शन तोड देते है फिर वार करते हैं, *ऐसे ही माया भी पहले बुद्धि का कनेक्शन तोड देती है जिससे लाइट, माइट शक्तियाँ और ज्ञान का संग आँटोमेटिकली बन्द हो जाता है।* अर्थात मूर्छित बना देती है।
〰✧ अर्थात स्वयं के स्वरूप की स्मृति से वंचित कर देती है व बेहोश कर देती है। उसके लिए *सदैव बुद्धि पर अटेन्शन का पहरा चाहिए। तब ही निरंतर कर्मयोगी सहज बन पायेंगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आप पद्मापद्म भाग्यशाली सिकीलधे बच्चों का भी बुद्धि रूपी पाँव सदा देहभान या देह की दुनिया की स्मृति से ऊपर रहना चाहिए। जब बाप-दादा ने मिट्टी से ऊपर कर तख्तनशीन बना दिया तो तख्त छोड़कर मिटी में क्यों जाते। *देहभान में आना माना मिट्टी में खेलना। संगमयुग चढ़ती कला का युग है, अब गिरने का समय पूरा हुआ, अब थोड़ा सा समय ऊपर चढ़ने का है इसलिए नीचे क्यों आते, सदा ऊपर रहो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा ईश्वरीय सेवा में बिजी रहना"*
➳ _ ➳ मै तेजस्वी आत्मा *फ़रिश्ते स्वरूप में, सूक्ष्मवतन पहुंच...* जब मीठे बाबा दादा से दिल के जज्बात बयान करती हूँ... प्यारे बाबा दादा... मुझे असीम खुशियो का पता, ईश्वरीय सेवा में छुपा हुआ दिखाते है... महज सेवाओ में छुपे खुशियो के अनन्त खजाने को देख, मै आत्मा अति रोमांचित हो उठती हूँ... एक तरफ *ईश्वरीय साथ और सेवाओ में अथाह खुशियो को बाँहों में समेटे... और दूसरी और अपने भविष्य राज्य भाग्य को स्पष्ट देख, आनन्दित हो झूम रही हूँ...*"
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को, अपनी स्नेहिल तरंगों में डुबोते हुए कहते है...* “मेरे लाडले प्यारे बच्चे... ईश्वरीय सेवाओ में दीवानो सा दिल अर्पण करके, प्रेम और खुशियो की अनन्त ऊंचाइयों को सहज ही पा सकते हो... यह दिल सदा मनुष्यो को सौंप, जो दुखो को दामन में संजोया है... वह काफूर हो, गुलाबी खुशियो के फूलो से महक उठेगा... और *सदा बाबा के मखमली हाथो में खिलता रहेगा.*.."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा को भीगी पलको से निहार रही हूँ...* इतना प्यार, इतनी खुशियो को सहज सामने देख... प्रेम के असुंवन में भीग रही हूँ... प्रेम भावो में दीवानी हो कह रही हूँ... “ओ मेरे प्यारे बाबा... यह कौनसे पुण्य ने मेरा सोया भाग्य जगाया है... और यूँ आपके हाथो में जीवन थमाया है... *ईश्वरीय सेवाओ में लगाकर, मुझे खुशियो में महाअमीर बनाया है.*.."
❉ *मीठे बाबा मुझ दीवानी आत्मा को बाँहों में भरकर... प्रेम में भीगी मेरी पलको को अपनी मुस्कान से पोंछ रहे है... और कह रहे,* “मीठे बच्चे... मै विश्व पिता तो सब कुछ चुटकियो में कर सकता हूँ... पल भर में खुशियो भरे सतयुग सजा सकता हूँ... पर मेरे मीठे लाल... *तेरे नन्हे हाथो से करवाकर, अपने से ऊँचा देखने की चाहत लिये.*.. मै पिता तेरे दर पर बड़ी उम्मीद लिए खड़ा हूँ..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की स्नेह भरे जज्बात सुनकर... मै आत्मा ईश्वर पिता को, स्वयं को, और अपने सुनहरे भाग्य को देख, गर्वित हो रही... और कह उठी* “हाँ मेरे लाडले बाबा... आपकी सेवा ही जीवन का एकमात्र ध्येय है.. और इन सेवाओ में छिपे खुशियो के अगाध खजाने ही मेरा खुबसूरत लक्ष्य है... मुझ अति भाग्यशाली आत्मा ने, *भगवान की सेवा में ऊँगली मात्र क्या लगाई, कि खुशियां मेरी परछाई हो गई है.*.."
❉ *प्यारे बाबा मेरी खुशनुमा मुस्कराहटों पर... दिल से कुर्बान हो गए और कहने लगे...* “फूल बच्चे, सच्ची खुशियां ही ईश्वर पुत्रो का खुबसूरत गहना है... और मेरे सिकीलधे बच्चे इन गहनों में सदा सजे रहे... यही आश एक पिता का दिल सदा करता है... जिन खुशियो से जनमो महरूम रहे... वह एक कदम मात्र सेवा में कदमो तले बिछ जायेगी... जरा इन राहो पर कदम उठाकर तो देखो... *जीवन खुशियो का अम्बार न बना दूँ तो फिर कहना.*.."
➳ _ ➳ *मै आत्मा अपने प्यारे बापदादा को और कभी अपने खुबसूरत भाग्य को टुकुर टुकुर सी निहार रही हूँ...* जादूगर बाबा की जादू भरी नजर, कैसे मेरा जीवन संवार रही....इस मीठी सोच में, मै बावरी सी हो, ईश्वरीय प्रेम में झूम उठी.. और कहने लगी “मीठे बाबा, यह जीवन आपको अर्पित है, आपकी अमानत है *सर्वस्व बापदादा की सेवाओ में न्यौछावर कर...* सच्ची खुशियो की अधिकारी हो... मै आत्मा मुस्कराती हुई, साकारी तन में लौट आती हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- घरबार सम्भालते कर्मयोगी होकर रहना है*"
➳ _ ➳ अपने रूहानी पिता द्वारा सिखाई रूहानी यात्रा पर चलने के लिए मैं स्वयं को आत्मिक स्मृति में स्थित करती हूँ और रूह बन चल पड़ती हूँ अपने रूहानी बाप के पास उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिये। *अपने रूहानी शिव पिता के अनन्त प्रकाशमय स्वरूप को अपने सामने लाकर, मन बुद्धि रूपी नेत्रों से उनके अनुपम स्वरूप को निहारती, उनके प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा जल्दी से जल्दी उनके पास पहुँच जाना चाहती हूँ* और जाकर उनके प्रेम की गहराई में डूब जाना चाहती हूँ। मेरे रूहानी पिता का प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और मैं अति तीव्र गति से ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ सांसारिक दुनिया की हर वस्तु के आकर्षण से मुक्त, एक की लगन में मग्न, एक असीम आनन्दमयी स्थिति में स्थित मैं आत्मा *अब ऊपर की और उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और उससे भी ऊपर अंतरिक्ष से परें सूक्ष्म लोक को भी पार कर उससे और ऊपर, अपनी मंजिल अर्थात अपने रूहानी शिव पिता की निराकारी दुनिया मे प्रवेश कर अपनी रूहानी यात्रा को समाप्त करती हूँ*। लाल प्रकाश से प्रकाशित, चैतन्य सितारों की जगमग से सजी, रूहों की इस निराकारी दुनिया स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन मीठी शांति का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने रूहानी बाप से रूहानी मिलन मनाकर मैं आत्मा असीम तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ। बड़े प्यार से अपने पिता के अति सुंदर मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप जा रही हूँ। *स्वयं को मैं अब अपने पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के आगोश में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे मैं बाबा में समाकर बाबा का ही रूप बन गई हूँ। यह समीपता मेरे अंदर मेरे रूहानी पिता की सर्वशक्तियों का बल भरकर मुझे असीम शक्तिशाली बना रही है। *स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी रूहानी यात्रा का प्रतिफल अथाह शक्ति और असीम आनन्द के रूप में प्राप्त कर अब *मैं इस रूहानी यात्रा का मुख वापिस साकारी दुनिया की और मोड़ती हूँ और शक्तिशाली रूह बन, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए वापिस अपने साकार शरीर मे लौट आती हूँ*। किन्तु अपने रूहानी पिता के साथ मनाये रूहानी मिलन का सुखद अहसास अब भी मुझे उसी सुखमय स्थिति की अनुभूति करवा रहा है। *बाबा के निस्वार्थ प्रेम और स्नेह का माधुर्य मुझे बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने की शक्ति दे रहा है*।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन में हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए, बुद्धि से सम्पूर्ण समर्पण भाव को धारण कर, कर्मेन्द्रियों से हर कर्म करते बुद्धि को अब मैं केवल अपने शिव पिता पर ही एकाग्र रखती हूँ। *साकार सृष्टि पर, ड्रामा अनुसार अपना पार्ट बजाते, शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म करते, साकारी सो आकारी सो निराकारी इन तीन स्वरूपो की ड्रिल हर समय करते हुए, अब मैं मन को अथाह सुख और शांति का अनुभव करवाने वाली मन बुद्धि की इसी रूहानी यात्रा पर ही सदैव रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाबा शब्द की स्मृति से हद के मेरेपन को अर्पण करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं बेहद की वैरागी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा अपनी सेवा को सदा बाप के आगे अर्पण कर देती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव सेवा का फल प्राप्त करती रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव बाप से सेवा का बल प्राप्त करती रहती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ रोब को त्याग, रूहाब को धारण करने वाले सच्चे सेवाधारी बनोः- सभी कुमार
सदा रूहानियत में रहते हो? रोब में तो नहीं आते? यूथ को रोब जल्दी आ जाता है।
यह समझते हैं हम सब कुछ जानते हैं, सब कर सकते हैं। जवानी का जोश रहता है।
लेकिन *रूहानी यूथ अर्थात् सदा रूहाब में रहने वाले। सदा नम्रचित्त।* क्योंकि
जितना नम्रचित्त होंगे उतना निर्माण करेंगे। *जहाँ निर्मान होंगे वहाँ रोब नहीं
होगा, रूहानियत होगी। जैसे बाप कितना नम्रचित्त बनकर आते हैं, ऐसे फालो फादर।
अगर जरा भी सेवा में रोब आता तो वह सेवा समाप्त हो जाती है।*
✺ *"ड्रिल :- रोब को त्याग, रुहाब को धारण करने वाले सच्चे सेवाधारी स्थिति का
अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सुहाने मौसम में, प्रकृति के बीच बहते हुए झरने के नीचे नहा रही
हूँ... अपने लंबे केश खोले, बालों को हवा में उछाल रही हूँ... और मैं एक जगह से
दूसरी जगह उछल-उछल कर अपनी खुशी का इजहार कर रही हूँ... तभी वहाँ मैं एक दृश्य
को देखती हूँ... *एक माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार से नहला रही है... और बच्चा
बार बार माँ से हाथ छुडा रहा है... और माँ बार बार उस बालक को पकड़कर नहलाने लगती
है... मैं उनके इस दृश्य को और माँ के प्रयास को बड़े ध्यान से देख रही हूँ...*
➳ _ ➳ कुछ देर बाद मेरे मन में ये विचार आता है कि *माँ कितनी विनम्र और
नम्रचित्त होती है बिना किसी रोब के अपना सारा जीवन बच्चे और परिवार की सेवा
में गुजार देती है...* और बिना थके, बिना कुछ कहे बच्चे की हर तमन्ना पूरी करती
है... और बच्चे का सुंदर भविष्य का निर्माण करती है... ये सोचते-सोचते मेरा मन
अचानक एक बिंदु रूप लिए आकाश में उड़ जाता है... और मैं उड़ते-उड़ते मधुबन पहुँच
जाती हूँ... जहाँ सभी सेवाधारियों को बिना किसी रोब के रूहानियत से सेवा करते
हुए देखती हूँ... कुछ दूर जाने के बाद मैं बाबा के कमरे के पास आकर बैठ जाती
हूँ... और बाहर से ही बाबा के कमरे को निहारती हूँ...
➳ _ ➳ कुछ समय बाद मेरे पास बाबा आते हैं और बाबा मुझे छूते हैं... बाबा के छूते
ही मैं फ़रिश्ता रूप में आ जाती हूँ... बाबा मुझे अपने साथ हाथ पकड़कर अपने कमरे
में ले जाते है... मैं बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... और बाबा की आँखों को
निहारती हूँ... देखते देखते मैं अनुभव करती हूँ कि बाबा मुझे समझा रहे हैं...
बाबा मुझसे कहते हैं... *बच्चे अगर सेवा में निरन्तर आगे जाना है और सच्चा
सेवाधारी स्थिति का अनुभव करना है तो हमेशा याद रहे... किसी भी प्रकार की सेवा
करते समय हमेशा रूहानियत में रहो... सेवा में कभी भी रोब नहीं आना चाहिए...*
➳ _ ➳ और बाबा मुझसे कहते है... बच्चे आजकल के युवा जल्दी ही सेवा करते रोब में
आ जाते है... और अपने आपको सेवाधारी कहते है... नहीं, अगर सेवा में हर छोटी बात
पर रोब दिखाओगे तो ये सेवा नहीं मानी जायेगी... सेवा में सदा नम्रचित्त रहो...
विनम्रता से हम पत्थर रूपी कड़े संस्कारों वाली आत्मा को भी फूल के समान कोमल बना
सकते हैं... अगर सेवा में जरा भी रोब आया तो वो सेवा उसी समय समाप्त हो जायेगी...
बाबा की ये बातें सुनकर और अपने आपसे वा बाबा से ये वादा करके *कि मैं आज से
हमेशा सभी प्रकार की सेवा सिर्फ और सिर्फ रूहानियत से करूँगी... हर आत्मा से
नम्रचित्त रहकर उन्हें रूहानियत का अनुभव कराउंगी...* मैं वापिस झरने के नीचे आ
जाती हूँ... और सच्ची सेवाधारी की स्थिति के लिए तैयार हो जाती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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