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❍ 12 / 06 / 22 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्वयं को सर्व खजानों से भरपूर अनुभव किया ?*
➢➢ *सिर्फ एक बाबा शब्द में सम्पूरण ज्ञान का अनुभव किया ?*
➢➢ *तन-मन-धन सब बाप के हवाले किया ?*
➢➢ *ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगा सफल किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *कई बच्चे कहते हैं कि जब योग में बैठते हैं तो आत्म-अभिमानी होने के बदले सेवा याद आती है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि लास्ट समय अगर अशरीरी बनने की बजाए सेवा का भी संकल्प चला तो सेकण्ड के पेपर में फेल हो जायेंगे।* उस समय सिवाय बाप के, निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी-और कुछ याद नहीं। सेवा में फिर भी साकार में आ जायेंगे इसलिए *जिस समय जो चाहे वह स्थिति हो नहीं तो धोखा मिल जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा सर्व खजानों से सम्पन्न आत्माएं अनुभव करते हो? कितने खजाने मिले हैं? खजानों को अच्छी तरह से सम्भालना आता है या कभी-कभी अन्दर से निकल जाता है ? *क्योंकि आप आत्माएं भी बाप द्वारा नालेजफुल बनने के कारण बहुत होशियार हो लेकिन माया भी कम नहीं है। वो भी शक्तिशाली बन सामना करती है।*
〰✧ *तो सर्व खजाने सदा भरपूर रहे और दूसरा जिस समय जिस खजाने की आवश्यकता हो उस समय वो खजाना कार्य में लगा सको। खजाना है लेकिन टाइम पर अगर कार्य में नहीं लगा सके तो होते हुए भी क्या करेंगे? जो समय पर हर खजाने को काम में लगाता है उसका खजाना सदा और बढ़ता जाता है।*
〰✧ तो चेक करो कि खजाना बढ़ता जाता है कि सिर्फ यही सोच करके खुश हो कि बहुत खजाने हैं। फिर ऐसे कभी नहीं कहो कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। *ज्ञानी की विशेषता है - पहले सोचे फिर कर्म करे। ज्ञानी-योगी तू आत्मा को समय प्रमाण टच होता है और वह फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाता है। एक सेकेण्ड भी पीछे सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *कमल अर्थात कर्म करते हुए भी विगारी बन्धनों से मुक्त।* देह को देख भी रहे हैं लेकिन देखते हुए भी नयन कमल वाले, देह के आकर्षण के बन्धन में नहीं आयेंगे। जैसे कमल जल में रहते हुए जल से न्यारा अर्थात जल के आकर्षण के बन्धन से न्यारा, अनेक भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से न्यारा रहता है। कमल के सम्बन्ध भी बहुत होते हैं।
〰✧ अकेला नहीं होता है, प्रवृत्ति मार्ग की निशानी का सूचक है। ऐसे ब्राह्मण अर्थात *कमल पुष्प सामान बनने वाली आत्माएँ प्रवृत्ति मार्ग में रहते, चाहे लौकिक चाहे अलौकिक साथ-साथ किचड अर्थात तमोगुणी पतित वातावरण रहते हुए भी न्यारे।* जो गुण रचना में है तो मास्टर रचता में वही गुण है।
〰✧ सदा इस आसन पर स्थित रहते हो वा कभी-कभी स्थित होते हो? *सदा अपने इस आसन को धारण करने वाले ही सर्व बन्धन मुक्त और सदा योगयुक्त बन सकते हैं।* अपने आप को देखो - पाँच विकार, पाँच प्रकृति के तत्वों के बन्धन से कितने परसेन्ट में मुक्त हुए हैं। लिप्त आत्मा वा मुक्त आत्मा हो?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जितना अपने को महान अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझेंगे उतना हर कर्म स्वत:ही श्रेष्ठ होगा। क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: ही होती है। जैसे अनुभवी हो कि आधा कल्प देह की स्मृति में रहे तो स्थिति क्या रही?* अल्पकाल का सुख और अल्पकाल का दुख। तो सदा आत्मिक स्वरूप की जब स्मृति रहेगी तो सदाकाल के सुख और शान्ति की स्थिति बन जायेगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बेहद के वैरागी बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा हद की दुनिया, वस्तु, वैभव, हद के संबंधों से न्यारी होती हुई बेहद बाबा के पास बेहद की दुनिया में पहुँच जाती हूँ... वतन में बेहद बाबा के सम्मुख बैठ उनको निहारती हुई उनकी आँखों में खो जाती हूँ... मैं आत्मा इस देह की भी सुध-बुध खो बैठी हूँ... कई जन्मों से मैं आत्मा इस देह, देह के सम्बन्धी, देह के पदार्थों के वश होकर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकारों को अपना संस्कार बना ली थी... और अपने निज स्वरुप और निज गुणों को भूल गई थी... *मैं आत्मा बेहद की सन्यासी बनने वतन में आकारी शरीर धारण कर आकारी बाबा की शिक्षाओं को धारण कर रही हूँ...*
❉ *नई दुनिया का निर्माण करते हुए इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बनाने प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *इस पुरानी दुखदायी विकारी दुनिया से दिल जो लगाओगे तो उन्ही दुखो में अपना दामन उलझाओगे... तो अब समझदार बन अपना भला करो...* अपनी कमाई अपने फायदे के बारे में निरन्तर सोचो... और दिल उस मीठी सुखदायी दुनिया से लगाओ जो पिता से तोहफा मिल रहा...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पुरानी दुनिया से सन्यास लेकर निज स्वरुप में चमकते हुए, गुणों की खुशबू से महकते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब नये घर नयी दुनिया के सपनो में खोयी हूँ यह दुखदायी दुनिया मेरे काम की नही है... *मै आत्मा बाबा के बसाये सुखभरे स्वर्ग को यादो में बसाकर मुस्कराती ही जा रही हूँ...”*
❉ *दुखों का साया मिटाकर स्वर्ग के नजारों को दिखाते हुए मेरे प्रीतम प्यारे मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *इस दुःख धाम से अब बेहद के वैरागी बनो... इस दुनिया में अब ऐसा कुछ नही है जिससे दिल लगाया जाय...* अब तो ईश्वर पिता सम्मुख है... उससे उसकी सारी सम्पत्ति खजानो को बाँहों में भरने का खबसूरत समय है... तो यादो में डूबकर ईश्वर पिता को पूरा लूट लो...”
➳ _ ➳ *सुखों के दीप जलाकर सद्गुणों का श्रृंगार कर दिव्य जीवन बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मीठे बाबा की सारी सम्पत्ति की हकदार बन रही हूँ... *सिर्फ यादो मात्र से सच्चे स्वर्ग को घर रूप में पाने वाली महान भाग्यशाली बन रही हूँ... और इस पतित दुनिया को सदा का भूल गई हूँ... और नयी दुनिया में खो गयी हूँ...”*
❉ *अंतर्मन की प्यास बुझाकर जीवन को ज्योतिर्मय बनाते हुए मेरे ज्योतिर्बिन्दु बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितने महान भाग्यशाली हो ईश्वर स्वयं धरती पर उतर आया है और पत्थरो की दुनिया से निकाल कर सोने की दुनिया स्वर्ग में स्थापित कर रहा है... *इस महान भाग्य के नशे से रोम रोम को भिगो दो... और इस पुरानी दुनिया से उपराम होकर ईश्वरीय सौगात के स्वर्ग में विचरण करो...”*
➳ _ ➳ *प्यारे बागबान बाबा के गुलदस्ते में सजकर मन उपवन में मयूरी बन नाचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा को पाकर निहाल हूँ अपने अदभुत से भाग्य पर चकित सी हूँ... *इस दुनिया में खपकर एक कण सच्चा प्यार न मिला और बाबा की यादो भर में सुखो का स्वर्ग घर रूप में मिला... तो क्यों न इस सच्चे रिश्ते में भीगूँ और रोम रोम से मीठे बाबा को याद करूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वयं को सर्व खजानो से भरपूर अनुभव करना*"
➳ _ ➳ ज्ञान के अविनाशी रत्नों की थालियां भर - भर कर लुटाने वाले अपने रत्नागर शिव पिता का दिल से शुक्रिया अदा करते हुए अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे मे मैं विचार करती हूँ कि कितनी महान पदमापदम सौभागशाली हूँ मैं आत्मा जो मुझे सृष्टि के सबसे बड़े, व्यापारी स्वयं भगवान के साथ व्यापार करने का गोल्डन चान्स मिला! *दुनिया वाले तो विनाशी रत्नों का व्यापार करके खुश होते है और समझते हैं कि ये विनाशी रत्न उन्हें सुख, शांति देंगे। किन्तु बेचारे इस बात से कितने अनजान है कि जिन रत्नों का धंधा करके वो खुश हो रहें है वो अल्प काल का सुख देने वाला धन तो विनाशी है जो यही समाप्त हो जाएगा*। लेकिन जिस अविनाशी ज्ञान रत्नों का धंधा मैं कर रही हूँ, वो ना तो कभी खुटेगा और ना कभी विनाश होगा। बल्कि जितना उसे यूज़ करेंगे, दूसरों को बाँटेंगे उतना बढ़ता जायेगा।
➳ _ ➳ इन्ही विचारों के साथ, परमात्मा बाप द्वारा मिले ज्ञान रत्नों के अविनाशी ख़ज़ाने को सबमें बांटने और सारे दिन में बाबा के साथ रत्नों का धंधा कर, भविष्य 21 जन्मो के लिए अखुट कमाई जमा करने का दृढ़ संकल्प लेकर अपने ज्ञान सागर, रत्नागर शिव बाबा की याद में मैं अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करके बैठ जाती हूँ। *विनाशी देह, और देह से जुड़ी हर बात से किनारा करके अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करके, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, अपने मन और बुद्धि का कनेक्शन परमधाम निवासी ज्ञान सागर अपने निराकार शिव पिता से जोड़ती हूँ*। बुद्धि की तार अपने प्यारे पिता के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान की शीतल फ़ुहारों की बरसात मुझ पर हो रही है, जो अज्ञान अंधकार का विनाश कर मेरे चारों और ज्ञान का सुखद प्रकाश फैला रही है।
➳ _ ➳ ज्ञान की शक्ति से परिपूर्ण हल्के नीले रंग का प्रकाश मुझे अपने चारों और दिखाई दे रहा है जो सारे वायुमण्डल में एक अलौकिक दिव्यता का संचार कर रहा है। इस प्रकाश में व्याप्त शीतलता से मेरा अंग - अंग शीतल हो गया है। *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मेरा सारा शरीर प्रकाश की काया में परिवर्तित होकर, एक दिव्य आभा से चमकने लगा है। मेरी प्रकाश की उस काया से भी वही हल्के नीले रंग का प्रकाश निकल कर अब दूर - दूर तक फैल रहा है*। मेरे चारों और प्रकाश के हल्के नीले रंग का एक खूबसूरत औरा निर्मित हो गया है। इस नीले प्रकाश के कार्ब को धारण कर अब मैं फ़रिश्ता ज्ञान के अखुट खजानो से स्वयं को भरपूर करने के लिए अपने रत्नागर बाबा के पास जा रहा हूँ। *ज्ञान की हल्की नीली रश्मियाँ चारों और फैलाता हुआ मैं फ़रिश्ता अति शीघ्र आकाश को पार करके, उससे ऊपर अब सूक्ष्म वतन में प्रवेश करता हूँ*।
➳ _ ➳ ज्ञान रत्नों का व्यापार कर, नम्बर वन पद पाने वाले अपने अव्यक्त ब्रह्मा बाप के इस अव्यक्त वतन में आकर, अब मैं उनके सम्मुख पहुँचता हूँ और ज्ञान के सागर अपने शिव पिता का आह्वान कर, ब्रह्मा बाबा के सामने जाकर बैठ जाता हूँ। *सेकण्ड में ज्ञान सागर अपने निराकार शिव पिता को ब्रह्मा बाबा की भृकुटि के बीच आकर विराजमान होते हुए मैं देखता हूँ। ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से ज्ञान के नीले रंग के प्रकाश की एक बहुत तेज धारा निकल कर सीधी मेरे मस्तक पर पड़ने लगती है और ज्ञान की शक्ति से मैं फ़रिश्ता भरपूर होने लगता हूँ*। अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर जैसे ही रखते है मैं अनुभव करता हूँ जैसे बाबा अपनी हजारों भुजायें मेरे ऊपर फैला कर ज्ञान के अखुट खजाने मुझ पर लुटा रहें हैं और मैं फ़रिश्ता इन खजानो को अपने अंदर समाता जा रहा हूँ।
➳ _ ➳ ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर और अविनाशी ज्ञान रत्नों के अखुट खजाने अपनी बुद्धि रूपी झोली में भरकर, इन अविनाशी ज्ञान रत्नों का धंधा कर, अखुट कमाई जमा करने के लिए अपने प्यारे बापदादा से विदाई लेकर अब मैं सूक्ष्म वतन से नीचे आ जाता हूँ और आकर विश्व ग्लोब के ऊपर बैठ जाता हूँ। *ज्ञान सागर, अपने रत्नागर बाबा का आह्वान करके, उनके साथ कम्बाइंड होकर अब मैं सारे विश्व की आत्माओं पर ज्ञान के इस खजाने को लुटा रहा हूँ*। ज्ञान की शीतल छींटे विश्व की सर्व आत्माओं पर डाल कर, विकारों की अग्नि में जल रही आत्माओं को शीतलता का अनुभव करवा रहा हूँ। सारे विश्व पर ज्ञान की रिमझिम फुहारें बरसाता हुआ मैं फरिश्ता अब स्थूल वतन में आ जाता हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, ज्ञान सागर अपने रत्नागर बाबा से ज्ञान रत्नों की थालियां भर - भर कर, अब मैं सारा दिन बाबा के साथ ज्ञान रत्नों का धन्धा कर रही हूँ। *सवेरे अमृतवेले आँख खोलते ही बाबा से मिलन मनाते, ज्ञान रत्नों से खेलते हुए अपने दिन की मैं शुरआत करती हूँ और दिन भर बुद्धि में ज्ञान की प्वाइंटस गिनते हुए अविनाशी ज्ञान रत्नों से मैं खेलती रहती हूँ*। सारा दिन बाबा के साथ ज्ञान रत्नों के व्यापार में बिजी रहने से माया भी मुझे बिजी देख वापिस लौट जाती है। *माया को बार - बार भगाने की मेहनत से मुक्त होकर, बिना किसी रुकावट के ज्ञान रत्नों का धन्धा करते हुए, 21 जन्मो के लिए मैं मालामाल बन रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं श्रेष्ठ कर्म द्वारा दुआओं का स्टॉक जमा करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं चैतन्य दर्शनीय मूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा उमंग-उल्लास में रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा आलस्य खत्म होते अनुभव करती हूँ ।*
✺ *मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ आज बापदादा अपने महादानी वरदानी विशेष आत्माओं को देख रहे हैं। महादानी
वरदानी बनने का आधार है - ‘महात्यागी' बनने के बिगर महादानी वरदानी नहीं बन सकते।
*महादानी अर्थात् मिले हुए खजाने बिना स्वार्थ के सर्व आत्माओं प्रति देने वाले
-‘नि:स्वार्थी’। स्व के स्वार्थ से परे आत्मा ही महादानी बन सकती है। वरदानी,
सदा स्वयं में गुणों, शक्तियों और ज्ञान के खजाने से सम्पन्न आत्मा सदा सर्व
आत्माओं प्रति श्रेष्ठ और शुभ भावना तथा सर्व का कल्याण हो, ऐसी श्रेष्ठ कामना
रखने वाली सदा रूहानी रहमदिल, फराखदिल, ऐसी आत्मा ‘वरदानी' बन सकती है।* इसके
लिए‘महात्यागी' बनना आवश्यक है।
➳ _ ➳ *त्याग की परिभाषा भी सुनाई है कि पहला त्याग है - अपने देह की स्मृति का
त्याग। दूसरा देह के सम्बन्ध का त्याग। देह के सम्बन्ध में पहली बात
कर्मेंन्द्रियों के सम्बन्ध की सुनाई - क्योंकि 24 घण्टे का सम्बन्ध इन
कर्मेन्द्रियों के साथ है।* इन्द्रियजीत बनना, अधिकारी आत्मा बनना यह दूसरा कदम।
इसका स्पष्टीकरण भी सुना। अब तीसरी बात यह है - देह के साथ व्यक्तियों के
सम्बन्ध की। इसमें लौकिक तथा अलौकिक सम्बन्ध आ जाता है। इन दोनों सम्बन्ध में
महात्यागी अर्थात् ‘नष्टोमोहा'।
✺ *"ड्रिल :- महात्यागी बन महादानी वरदानी स्थिति का अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस वरदानी संगम युग में बाबा से वरदान लेकर स्वयं को वरदानों
से भरपूर करने वरदाता बाबा को अपने पास बुलाती हूं...* बाबा अपने साथ मुझे बादलों
की पहाड़ी पर बिठाकर सैर करने ले जाते हैं... मैं आत्मा बाबा के साथ प्रकृति के
सौंदर्य को देखते हुए उड़ रही हूं... एक तरफ बाबा का मखमली कोमल स्पर्श का
अनुभव करती हुई, एक तरफ मुलायम रुई समान बादलों को छूकर मैं आत्मा भी हलकी होती
जा रही हूँ... नदी, तालाब, समुंदर, पहाड़ों, चांद, सितारों को पार करते हुए
सफेद बादलों की दुनिया में बाबा मुझे ले जाते हैं...
➳ _ ➳ *बादलों की दुनिया में बाबा मुझे वरदानों से भरे बादलों के नीचे बिठाते
हैं... बादलों से वरदानों की बारिश हो रही है...* मैं आत्मा इस बारिश में नहा
रही हूं... देखते देखते मुझ आत्मा का स्थूल शरीर पूरी तरह गायब होता जा रहा
है... मैं आत्मा इस देह और कर्मेंन्द्रियों के संबंध से न्यारी होती जा रही हूं
और इन्द्रियजीत बन रही हूं... मैं आत्मा आकारी प्रकाश का शरीर धारण करती हूँ...
मेरा ये लाइट का शरीर हजारों लाइट्स के समान जगमगा रहा है...
➳ _ ➳ आकारी शरीर धारण करते ही मैं आत्मा देह की स्मृति से न्यारी होती जा रही
हूं... *देह की स्मृति का त्याग करते ही... मुझ आत्मा का देह के संबंधों से
ममत्व मिट रहा है... मैं आत्मा बुद्धि से लौकिक अलौकिक संबंधों का त्याग कर रही
हूं...* लौकिक अलौकिक संबंधों के मोह को नष्ट कर नष्टमोहा बन गई हूं...
महात्यागी बन गई हूं... मैं आत्मा गुण शक्तियों और ज्ञान के खजानों से संपन्न
बन रही हूं... गुण स्वरुप, धारणा स्वरूप बन रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख सर्व वरदानों से मुझे भरपूर कर रहे
हैं... मैं आत्मा वरदानी मूर्त होने का अनुभव कर रही हूं... अब मैं आत्मा स्व
के स्वार्थ से परे निस्वार्थ भाव से, बाबा से मिले खजानों को सर्व आत्माओं को
दान कर रही हूं... सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ और शुभ भावना तथा शुभकामना रख
सबका कल्याण कर रही हूं... मैं आत्मा हद की कामनाओं से परे निष्काम सेवा कर रही
हूँ... *मैं आत्मा रूहानी रहमदिल फराख दिल बन सर्व आत्माओं का उद्धार कर रही
हूं... मैं आत्मा महात्यागी बन महादानी वरदानी स्थिति का अनुभव कर रही हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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