━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 13 / 02 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सर्व विकारों का संन्यास कर राजऋषि बनकर रहे ?*
➢➢ *सुनी सुनाई बातों को छोड़ श्रीमत पर चले ?*
➢➢ *स्वमान में रह निर्मान स्थिति द्वारा सर्व को सम्मान दिया ?*
➢➢ *करनहार बन असमर्थ आत्माओं को अनुभूति का प्रसाद बांटा ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *कोई भी यह नहीं कह सकता कि हमको तो सेवा का चान्स नहीं है।* कोई बोल नहीं सकते तो मन्सा वायुमण्डल से सुख की वृत्ति, सुखमय स्थिति से सेवा करो। *तबियत ठीक नहीं है तो घर बैठे भी सहयोगी बनो, सिर्फ मन्सा में शुद्ध संकल्पों का स्टाक जमा करो, शुभ भावनाओं से सम्पन्न बनो।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं आत्मिक स्मृति द्वारा कर्म करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सदा श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? *श्रेष्ठ आत्मा अर्थात् हर संकल्प, बोल और कर्म सदा श्रेष्ठ हो। क्योंकि साधारण जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये। कलियुग से निकल संगमयुग पर आ गये। जब युग बदल गया, जीवन बदल गई, तो जीवन बदला अर्थात् सब कुछ बदल गया।* ऐसा परिवर्तन अपने जीवन में देखते हो? कोई भी कर्म, चलन, साधारण लोगों के माफिक न हो। वे हैं लौकिक और आप - अलौकिक। तो अलौकिक जीवन वाले लौकिक आत्माओंसे न्यारे होंगे। संकल्प को भी चेक करो कि साधारण है वा अलौकिक है? साधारण है तो साधारण को चेक करके चेन्ज कर लो।
〰✧ जैसे कोई चीज सामने आती है तो चेक करते हो यह खाने योग्य है, लेने योग्य है, अगर नहीं होती तो नहीं लेते, छोड़ देते हो ना। ऐसे कर्म करने के पहले कर्म को चेक करो। साधारण कर्म करते-करते साधारण जीवन बन जायेगी फिर तो जैसे दुनिया वाले वैसे आप लोग भी उसमें मिक्स हो जायेंगे। न्यारे नहीं लगेंगे। अगर न्यारापन नहीं तो बाप का प्यारा भी नहीं। *अगर कभी कभी समझते हो कि हमको बाप का प्यार अनुभव नहीं हो रहा है तो समझो कहाँ न्यारेपन में कमी है, कहाँ लगाव है। न्यारे नहीं बने हो तब बाप का प्यार अनुभव नहीं होता। चाहे अपनी देह से, चाहे सम्बन्ध से, चाहे किसी वस्तु से...स्थूल वस्तु भी योग को तोड़ने के निमित बन जाती है।* सम्बन्ध में लगाव नहीं होगा लेकिन खाने की वस्तु में, पहनने की वस्तु में लगाव होगा, कोई छोटी चीज भी नुकसान बहुत बड़ा कर देती है।
〰✧ तो सदा न्यारापन अर्थात् अलौकिक जीवन। जैसे वह बोलते, चलते, गृहस्थी में रहते ऐसे आप भी रहो तो अन्तर क्या हुआ! तो अपने आपको देखो कि परिवर्तन कितना किया है चाहे लौकिक सम्बन्ध में बहू हो, सासू हो, लेकिन आत्मा को देखो। बहू नहीं है लेकिन आत्मा है। आत्मा देखने से या तो खुशी होगी या रहम आयेगा। यह आत्मा बेचारी परवश है, अज्ञान में है, अंजान में है। मैं ज्ञानवान आत्मा हूँ तो उस अंजान आत्मा पर रहम कर अपनी शुभ भावना से बदलकर दिखाऊँगी। *अपनी वृत्ति, दृष्टि चेन्ज चाहिए। नहीं तो परिवार में प्रभाव नहीं पड़ता। तो वृत्ति और दृष्टि बदलना ही अलौकिक जीवन है। जो काम अज्ञानी करते वह आप नहीं कर सकते हो। संग का रंग आपका लगना चाहिए, न कि उन्हों के संग का रंग आपको लग जाए।* अपने को देखो मैं ज्ञानी आत्मा हूँ, मेरा प्रभाव अज्ञानी पर पड़ता है, अगर नहीं पड़ता तो शुभ भावना नहीं है। बोलने से प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन सूक्ष्म भावना जो होगी उसका फल मिलेगा।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ आपको मालूम पडा कि ब्रह्मा बाप अव्यक्त हो रहा है, नहीं मालूम पडा ना! *तो इतना न्यारा, साक्षी, अशरीरी अर्थात कर्मातीत स्टेज बहुतकाल से अभ्यास की तब अन्त में भी वही स्वरूप अनुभव हुआ।* यह बहुतकाल का अभ्यास काम में आता है।
〰✧ *ऐसे नहीं सोचो कि अन्त मे देहभान छोड देंगे, नहीं। बहुतकाल का अशरीरीपन का, देह से न्यारा करावनहार स्थिति का अनुभव चाहिए।* अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बूढा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी आ सकता है।
〰✧ इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो। *चाहे कितनी भी प्रकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी। इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ इसलिए जैसे कोई भी बन्धन से मुक्त होते, वैसे ही सहज रीति शरीर के बन्धन से मुक्त हो सकें। नहीं तो शरीर के बन्धन से भी बड़ा मुश्किल मुक्त होंगे। *फाइनल पेपर है - अन्त मती सो गति। अन्त में सहज रीति शरीर के भान से मुक्त हो जायें - यह है 'पास विद ऑनर' की निशानी। लेकिन वह तब हो सकेगी जब अपना चोला टाइट नहीं होगा।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सोई हुई तकदीर जगाकर विश्व का मालिक बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्योति परमज्योति से मिलने पहुँच जाती हूँ परमधाम... परमज्योति से निकलती दिव्य किरणों को मैं आत्मा ज्योति अपने में समा रही हूँ... ज्ञान सूर्य बाबा ने मेरी बुझी हुई ज्योति को ज्ञान घृत डालकर जगा दिया है...* और मेरी तकदीर में चार चाँद लगा दिया है... सुन्दर नई सृष्टि रचकर मुझे विश्व का मालिक बना दिया है... दिव्य किरणों से दिव्यता को ग्रहण कर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में बापदादा के पास...
❉ *मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर त्रिनेत्री बनाकर ज्ञानसागर प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... ज्ञानसागर पिता सारे खजाने हथेली पर लेकर धरती की ओर रुख कर दिया... *बच्चों के जीवन में सुख के फूल खिलाने बागबाँ बन गया... आत्मा की मन्द हुई ज्योति को ज्ञान के प्रकाश से रौशन कर दिया...”*
➳ _ ➳ *देह के झूठे आवरण से निकल आत्मदर्शन करते हुए मैं आत्मा मणि कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा शक्तिहीन होकर मद्धम हो गई थी... *देह की मिटटी में धस कर उर्जाहीन हो गई थी... आपने आकर मेरी चेतना को जागृत किया है... मेरी ज्योति को जगा दिया है...”*
❉ *अज्ञानता के अंधकार से निकाल मेरे ज्ञान चक्षुओं को खोलकर ज्ञान सूर्य प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे बच्चे... विकारो में फस कर देहभान में घिर कर फूल से खिलते महकते बच्चे कुम्हला रहे... *धीमे से प्रकाश में धुंधला रहे हो... मै पिता ज्ञान का उजला धवल प्रकाश ले आया हूँ... अपने बुझते चिराग बच्चों को प्रज्जवलित कर सदा का रौशन करने आया हूँ...”*
➳ _ ➳ *ज्ञान के प्रकाश में अपने चमकते हुए अविनाशी सत्य स्वरुप को देख मैं आत्मा बिंदु कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान के तीसरे नेत्र को पाकर अपने ही खूबसूरत रूप को देख मोहित हो गई हूँ... *अपनी ज्योति को प्रकाशित देख सदा की खूबसूरती से सज रही हूँ...”*
❉ *राहू के ग्रहण की कालिमा को धोकर बृहस्पति की दशा बिठाकर मेरे जीवन को उज्जवल करते हुए वृक्षपति बाबा कहते हैं:-* “प्यारे बच्चे... मिटटी के नेत्रो से दुनिया देखते देखते मटमैले हो गए हो... *अब मीठा बाबा ज्ञान प्रकाश से निखार रहा... ज्ञान के खूबसूरत नेत्र से जीवन खूबसूरत बहारो से रंग रहा... बच्चों को ज्ञान खजाना देकर विश्वमालिक बना रहा...”*
➳ _ ➳ *पवित्र किरणों की तरंगो से सजधजकर महाभाग्यवान बन मुस्कराते हुए मैं ज्योतिर्मय आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ज्ञान के रत्नों से लबालब हो गई हूँ... *अपनी रौशनी को पाकर निहाल हो उठी हूँ... गुणो और शक्तियो से महक उठी हूँ... आपके प्यार में चमक रही हूँ...”*
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप से ही सुनना है*"
➳ _ ➳ "मेरे तो शिवबाबा एक, दूसरा ना कोई" इस गीत को गुनगुनाते हुए मैं अपने घर के आंगन में टहल रही हूँ और सोच रही हूँ कि जब से मुझे बाबा मिले हैं मेरा जीवन कितना सुंदर हो गया है। जिस जीवन मे दुःख, निराशा के सिवाय कुछ नही था वो जीवन मेरे भगवान बाबा ने आ कर कितना सुखदाई बना दिया है। *बाबा के साथ ने जीवन को ऐसा हरा भरा कर दिया है जैसे बारिश की बूंदे मुरझाये हुए पेड़ पौधों को हरा भरा कर देती हैं*। मेरे दिलाराम बाबा का प्यार ही तो मेरे इस जीवन की बहार है और अब मुझे अपने इस जीवन को बहार को पूरा संगमयुग ऐसे ही बरकरार रखना है इसलिए अपने दिलाराम शिव बाबा के फ़रमान पर चलना और केवल उनसे ही अब मुझे सुनना है।
➳ _ ➳ स्वयं से बातें करते, अपने शिव पिता परमात्मा के प्यार के सुखद एहसास में मैं खो जाती हूँ और उनके प्यार का वो सुखद एहसास मुझे अपनी ओर खींचने लगता है। *ऐसा अनुभव होता है जैसे मैं एक पतंग हूँ और मेरी डोर मेरे शिव पिता के हाथ में है जो मुझे धीरे धीरे ऊपर खींच रहें हैं*। उनके प्रेम की डोर में बंधी मैं देह और देह की दुनिया को भूल ऊपर की और उड़ रही हूँ। नीले गगन में उन्मुक्त हो कर उड़ने का मैं आनन्द लेती हुई उस गगन को भी पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक से भी परे मैं पहुंच जाती हूँ लाल प्रकाश से प्रकाशित निराकारी आत्माओं की दुनिया में जो मेरे शिव पिता परमात्मा का घर है। शान्ति की इस दुनिया मे पहुंचते ही गहन शांति की अनुभूति में मैं खो जाती हूँ।
➳ _ ➳ यह गहन शांति का अनुभव मुझे हर संकल्प, विकल्प से मुक्त कर रहा है। मुझे केवल मेरा चमकता हुआ ज्योति बिंदु स्वरूप और अपने शिव पिता का अनन्त प्रकाशमय महाज्योति स्वरूप दिखाई दे रहा है। *महाज्योति शिव बाबा से आ रही अनन्त शक्तियों की किरणें मुझ ज्योति बिंदु आत्मा पर पड़ रही है और मुझमे अनन्त शक्ति भर रही है*। मेरे शिव पिता परमात्मा से आ रही सतरंगी किरणे मुझ आत्मा में निहित सातों गुणों को विकसित कर रही हैं। देह अभिमान में आ कर, अपने सतोगुणी स्वरूप को भूल चुकी मैं आत्मा अपने एक - एक गुण को पुनः प्राप्त कर फिर से अपने सतोगुणी स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ। *हर गुण, हर शक्ति से मैं स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ बाबा से आ रही सर्वगुणों, सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणों का प्रवाह निरन्तर बढ़ता जा रहा है। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा अपने इन सर्वगुणों और सर्वशक्तियों को मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान बना रहे हैं। *इन शक्तिशाली किरणों की तपन से विकारों की कट जल कर भस्म हो रही है और मेरा स्वरूप अति उज्ज्वल बनता जा रहा हैं*। सातों गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर, अति उज्ज्वल, स्वरूप ले कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। साकारी तन में विराजमान हो कर भी अब मुझ आत्मा के गुण और शक्तियां सदा इमर्ज रूप में रहते हैं।
➳ _ ➳ "एक बाप के ही फरमान पर चलना और बाप से ही सुनना" इसे अपने जीवन का मंत्र बना कर अपने शिव पिता परमात्मा के स्नेह में मैं सदा समाई रहती हूँ। सिवाय शिव बाबा की मधुर वाणी के अब और किसी के बोल मेरे कानों को अच्छे नही लगते। *सिवाय श्रीमत के अब किसी की मत पर चलना मुझे ग्वारा नही*। सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ जोड़, अब मैं देह और देह की दुनिया से किनारा कर चुकी हूँ। चलते - फिरते, उठते - बैठते हर कर्म करते बाबा की छत्रछाया के नीचे मैं स्वयं को अनुभव करती हूँ। *कदम - कदम पर बाबा की श्रीमत ढाल बन कर मेरे साथ रहती है और मुझे माया के हर वार से सदा सेफ रखती है*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सदा स्वमान में स्थित रह निर्मान स्थिति द्वारा सर्व को सम्मान देने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं माननीय आत्मा हूँ।*
✺ *मैं पूजनीय आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा जाननहार के साथ करनहार बन जाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा असमर्थ आत्माओं को अनुभूति का प्रसाद बांटती हूँ ।*
✺ *मैं अनुभवी मूर्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सबसे विशेष बात है कि बाप को सारे विश्व में से कौन पसन्द आया? आप पसन्द आये ना! कितनी आत्मायें हैं लेकिन आप पसन्द आये। जिसको भगवान ने पसन्द कर लिया, उससे ज्यादा क्या होगा! तो *सदा बाप के साथ अपना भाग्य भी याद रखो। भगवान और भाग्य। सारे कल्प में ऐसी कोई आत्मा होगी जिसको रोज याद प्यार मिले, प्रभु प्यार मिले। रोज यादप्यार मिलता है ना।* सबसे ज्यादा लाडले कौन हैं? *आप ही लाडले हो ना। तो सदा अपने भाग्य को याद करने से व्यर्थ बातें भाग जायेंगी। भगाना नहीं पड़ेगा, सहज ही भाग जायेंगी।*
✺ *ड्रिल :- "भगवान और भाग्य को सदा याद रखना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने देह से न्यारी होकर मन-बुद्धि द्वारा एक सुंदर से बड़े दरबार में पहुँचती हूँ... वहाँ का नज़ारा मन को लुभाने वाला हैं... सामने शिव बाबा एक गद्दी पर विराजमान हैं... वहाँ बाबा का स्वयंवर हो रहा हैं...* स्वयंवर के लिए करोड़ो मनुष्यात्माएं रूपी कुमारियाँ आयीं हुईं हैं... सभी बहुत सुंदर-सुंदर लाल रंग के जोड़े में दुल्हन बनी हुई हैं...
➳ _ ➳ सभी बड़े ही उत्साह में हैं कि कब शिव बाबा हमें मिल जायें और हमारा साजन बन जायें... *मुझ आत्मा को बिल्कुल उम्मीद नहीं हैं कि शिव बाबा मुझे चुनेंगे क्योंकि वह गुणों के भण्डार हैं, आनंद के सागर हैं, ब्रह्मलोक के वासी हैं, सुख-दुःख से न्यारे हैं, सदगति दाता हैं, ज्ञानामृत के सागर हैं, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी रचयिता त्रिमूर्ति हैं...*
➳ _ ➳ उनमें से कुछ मनुष्यात्माएं रूपी कुमारियों का ध्यान देह की दुनिया रूपी दरबार की सजावटों में हैं, कुछ का ध्यान एक दूसरे के वस्त्रो में हैं, कुछ एक दूसरे को देखकर मन ही मन जल रही हैं... *स्वयंवर शुरू होते ही मेरी आँखों से खुशी के आँसू बह रहें हैं... बाबा धीरे-धीरे चलकर मेरी ओर आ रहें हैं और मुझे गुलाबों से बनी हुईं सुगंधित माला मेरे गले में डाल रहें हैं...* मुझे यकीन ही नहीं हो रहा हैं कि स्वयं शिव बाबा ने करोड़ो कुमारियों में से सिर्फ मुझ आत्मा को पसन्द किया...
➳ _ ➳ अब वह मेरे साजन हैं... कितना बड़ा भाग्य हैं मेरा जो शिव साजन ने मुझे अपनी सजनी बनाया... *अपने साजन के साथ मैं हवन कुण्ड की अग्नि में रावण के विकारों और व्यर्थ संकल्पों को स्वाहा कर रहीं हूँ... मेरे साजन अब मुझें बहुत सारी शिक्षाएं दे रहे हैं कि कैसे इस संगमयुग में रहना हैं, कैसे श्रीमत अनुसार चलना हैं... कैसे संकल्प चलाने हैं... अब शिव साजन मुझे हीरों का बना हुआ ताज तोहफ़े में भेंट कर रहें हैं...*
➳ _ ➳ *अब शिव साजन और मैं सूक्ष्मवतन पहुँचते हैं... वह मुझपर शांति और पवित्रता की किरणें डाल रहे हैं... मैं एकदम रिफ्रेश हो रही हूँ... अब मुझे बहन, भाई, माँ, बाप या अन्य किसी भी सम्बन्ध की कमी महसूस होती हैं तो शिव साजन तुरन्त उसी रूप में प्रकट हो जाते हैं...* कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हूँ मैं... अब मैं किसी हद के बंधनों में नहीं फँसती हूँ... अब अपने भाग्य को याद करते ही व्यर्थ संकल्प अपने आप ही भाग जाते हैं...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━