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❍ 14 / 02 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सच्चे दिल की महसूसता से स्वयं को परिवर्तित किया ?*
➢➢ *वृत्ति, वाइब्रेशन और वाणी तीनो से सेवा की ?*
➢➢ *"मैं आत्मा हूँ, बाप मेरा है" - यह भीतर से महसूस किया ?*
➢➢ *अपने विवेक का खून तो नहीं किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अपनी शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना, श्रेष्ठ वृति, श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा किसी भी स्थान पर रहते हुए मन्सा द्वारा अनेक आत्माओं की सेवा कर सकते हो। इसकी विधि है - लाइट हाउस, माइट हाउस बनना।* इसमें स्थूल साधन, चान्स वा समय की प्राब्लम नहीं है। सिर्फ लाइट-माइट से सम्पन्न बनने की आवश्यकता है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्वशक्तिवान बाप के साथ हूँ"*
〰✧ हर कदम में सर्वशक्तिवान बाप का साथ है, ऐसा अनुभव करते हो? *जहाँ सर्वशक्तिवान बाप है वहाँ सर्व प्राप्तियाँ स्वत: होंगी। जैसे बीज है तो झाड़ समाया हुआ है। ऐसे सर्वशक्तिवान बाप का साथ है तो सदा मालामाल, सदा तृप्त, सदा सम्पन्न होंगे। कभी किसी बात में कमजोर नहीं होंगे। कभी कोई कम्पलेन्ट नहीं करेंगे। सदा कम्पलीट।*
〰✧ *क्या करें, कैसे करें...यह कम्पलेन्ट नहीं। साथ हैं तो सदा विजयी हैं। किनारा कर देते तो बहुत लम्बी लाइन है। एक क्यों, क्यू बना देती है। तो कभी क्यों की क्यू न लगे।* भक्तों की, प्रजा की क्यू भले लगे लेकिन क्यों की क्यू नहीं लगानी है।
〰✧ ऐसे सदा साथ रहने वाले चलेंगे भी साथ। सदा साथ हैं, साथ रहेंगे और साथ चलेंगे यही पक्का वायदा है ना! बहुत काल की कमी अन्त में धोखा दे देगी। अगर कोई भी कमी की रस्सी रह जायेगी तो उड़ नहीं सकेंगे। *तो सब रस्सियों को चेक करो। बस बुलावा आये, समय की सीटी बजे और चल पड़ें। हिम्मते बच्चे मददे बाप! जहाँ बाप की मदद है वहाँ कोई मुश्किल कार्य नहीं। हुआ ही पड़ा है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *क्या भी हो, सारे दिन में साक्षीपन की स्टेज का, करावनहार की स्टेज का, अशरीरी-पन की स्टेज का अनुभव बार-बार करो, तब अन्त मते फरिश्ता सो देवता निश्चित है।* बाप समान बनना है तो बाप निराकार और फरिश्ता है, ब्रह्माबाप समान बनना अर्थात फरिश्ता स्टेज में रहना। जैसे फरिश्ता रूप साकार रूप में देखा, बात सुनते, बात करते, कारोबार करते अनुभव किया कि जैसे बाप शरीर में होते न्यारे हैं।
〰✧ *कार्य को छोडकर अशरीरी बनना, यह तो थोडा समय हो सकता है लेकिन कार्य करते, समय निकाल अशरीरी, पॉवरफुल स्टेज का अनुभव करते रहो।* आप सब फरिश्ते हो, बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन का आधार सन्देश लेने के लिए साकार में कार्य कर रहे हो।
〰✧ *फरिश्ता अर्थात देह में रहते देह से न्यारा और यह एक्जैबुल ब्रह्मा बाप को देखा है, असम्भव नहीं है।* देखा अनुभव किया। जो भी निमित हैं, चाहे अभी विस्तार ज्यादा है लेकिन जितनी ब्रह्मा बाप की नई नॉलेज, नई जीवन, नई दुनिया बनाने की जिम्मेवारी थी, उतनी अभी किसकी भी नहीं है। *तो सबका लक्ष्य है ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात फरिश्ता बनना।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ऐसी आत्मायें जरूर कोई पावरफुल होंगी जिनका बहुत समय से अशरीरी बनाने का अभ्यास होगा वह एक सेकण्ड में अशरीरी हो जायेंगे। मानो अभी आप याद में बैठते हो, कैसी भी विघ्नों की अवस्था में बैठते हो, कैसी भी परिस्थितियां सामने होते हुए भी बैठते हो - लेकिन एक सेकण्ड में सोचा और अशरीरी हो जायें। *वैसे तो एक सेकण्ड में अशरीरी होना बहुत सहज है। लेकिन जिस समय कोई बात सामने हो, कोई सर्विस के बहुत झंझट सामने हो - परंतु प्रैक्टिस ऐसी होनी चाइये जो एक सेकंड, सेकण्ड भी बहुत है, सोचना और करना साथ-साथ चले। सोचने के बाद पुरुषार्थ न करना पड़े।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्व परिवर्तन का आधार-‘सच्चे दिल की महसूसता’*
➳ _ ➳ *परमपिता परमात्मा परमधाम से आकर विकारों की अग्नि से धधकते इस दुनिया को स्वाहा कर... नई निर्विकारी सतयुगी दुनिया की स्थापना के लिए रूद्र ज्ञान यज्ञ की ज्वाला प्रज्वलित करते हैं...* कोटो में से चुनकर प्यारे बाबा ने मुझे अपनी गोदी में पालना दी... मुझे ब्राहमण बनाकर इस यज्ञ में अपना राईट हैण्ड बनाया... विचार करते हुए मैं आत्मा उड़ चलती हूँ, अव्यक्त वतन में... मीठे बाबा मेरे सिर पर विश्व परिवर्तन का ताज पहनाते हुए समझानी देते हैं...
❉ *सबकी जिन्दगी की राहों से अँधेरा मिटाकर विश्व को रोशन करने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... बापदादा आज चैतन्य दीपको से मिलन मना रहे है... *हर एक दीपक अपनी रौशनी से विश्व के अंधकार को दूर करने वाला चैतन्य दीपक है... अपनी इस खुबसूरत जिम्मेदारी के ताज को सदा पहने रहो...* विश्व की आत्माये अंधकार के सागर में समायी सी... बेसब्री से आपकी बाट निहार रही है... उनके जीवन का अँधेरा दूर करो...”
➳ _ ➳ *इस जहान की नूर मैं आत्मा सबके दिलों की आश बन दुःख दर्द मिटाकर खुशियों से महकाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में प्रकाश पुंज बन गई हूँ... *सबके दुखो को दूर करने वाली दीपक बन जगमगा रही हूँ... सबके दामन में सुखो के फूल खिला रही हूँ...* और विश्व परिवर्तन की जिम्मेदारी का ताज पहन मुस्करा रही हूँ...”
❉ *प्यारे बाबा अमृत भरा कलश मेरे सिर पर रख विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के निमित्त बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली ब्रह्मा कुमार हो... आपके स्नेह के आकर्षण में बाबा अव्यक्त होते हुए भी....मधुबन में साकार रूप चरित्र की अनुभूति सदा कराते है... *कितने बड़े स्नेह के जादूगर हो... ऐसी विशेषता भरी खुबसूरत मणि हो कि स्नेह के बन्धन में बापदादा को बांध लिया है...”*
➳ _ ➳ *परमात्मा की गले का हार बन अविनाशी सुखों से इस सृष्टि का श्रृंगार करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा खुबसूरत भाग्य की धनी हूँ... भगवान मेरी बाँहों में आ गया है... *मेरे स्नेह की डोरी में खिंच कर सदा साथ रह मुस्करा रहा है... वाह बच्चे वाह के गीत गा रहा है... आपके प्यार में मै आत्मा खुबसूरत चैतन्य दीपक बन गई हूँ...”*
❉ *अपने वरदानी हाथों से अविनाशी भाग्य की लकीर मेरे मस्तक पर खींचते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *बापदादा होलिहंसो का ख़ुशी भरा डांस देख देख मन्त्रमुग्ध है... मनमनाभव के महामन्त्र के वरदानी बन मुस्करा रहे हो...* ईश्वर पिता की सारी दौलत को बाँहों में भरने वाले खबसूरत सौदागर भी हो और जादूगर भी हो... सदा इस अलौकिक नशे में रहो और ज्ञान सूर्य बन चमको...”
➳ _ ➳ *इस धरा पर स्वर्ग लाने के कार्य में मैं आत्मा अपना तन, मन, धन सफल करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर किस कदर गुणो और शक्तियो की जादूगर सी बन गयी हूँ... *जीवन कितना मीठा प्यारा और खुशनुमा इस प्यार की जादूगरी से हो गया है... मै आत्मा ज्ञान सूर्य बन अपनी रूहानियत से सबके दिल रोशन कर रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- "मैं आत्मा हूँ, बाप मेरा है"- यह भीतर से महसूस करना*"
➳ _ ➳ जिस भगवान को दुनिया ढूंढ रही है इस आश के साथ कि कभी तो भगवान उनकी पुकार सुनेंगे, उन्हें दर्शन देकर उनके नयनों की प्यास बुझायेंगे वो भगवान हर रोज़ मेरे पास आते हैं आकर अपना असीम प्यार मुझ पर बरसाते हैं और मुझे अपनी शक्तियों, अपने गुणों अपने खजानों से मालामाल कर देते हैं। "वाह मैं आत्मा", "वाह मेरा भाग्य' जो स्वयं भगवान मेरा हो गया। *हर सम्बन्ध का मुझे सुख देने वाला भगवान मेरा बाबा मेरा साथी हर पल मेरे साथ रहता है। किसी को दिखाई नही देता लेकिन फिर भी खाते - पीते, चलते - फिरते, सोते - उठते हर पल मुझे मेरे आस - पास होने का एहसास दिलाता है। ऐसा असीम प्यार करने वाले अपनेे बाबा के साथ मैं पूरा लव रखूँगी। उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण करूँगी और उनकी श्रीमत पर चल श्रेष्ठ कर्म करके, उनका मातेला बच्चा बनूँगी*। मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे पिता के प्यार के मीठे मधुर एहसास का अनुभव करने के लिए मैं आत्मा अब उनके पास जाने का संकल्प करती हूँ।
➳ _ ➳ अपने पिता से मिलने का संकल्प, बाकि सभी संकल्पो विकल्पों के जाल से मुझे मुक्त कर देता है और अपने प्यारे पिता के साथ मंगल मिलन मनाने के इस संकल्प में मैं आत्मा स्थित होकर जल्दी ही अपने मनबुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ। *शरीर के विभिन्न अंगों में फैली चेतना को समेट कर, अपने सम्पूर्ण ध्यान को भृकुटि के बीच मे स्थित करते ही देह के भान से मैं मुक्त होने लगी हूँ और देह में होते हुए भी विदेही स्थिति का अनुभव करने लगी हूँ*। देह और देही दोनों को मैं अलग - अलग देख रही हूँ। यह डिफरेंस मुझे देह के आकर्षण से पूरी तरह मुक्त स्थिति का अनुभव करवा रहा है। *देह के आकर्षण से मुक्त होकर अब मैं पूरी तन्मयता के साथ अपने अति सुन्दर चमकते हुए सूक्ष्म बिंदु स्वरुप को देख रही हूँ*। मुझ चैतन्य सितारे से निकल रही रंग बिरंगी किरणों का प्रकाश मेरे चारो और फैल कर, इंद्रधनुष के खूबसूरत रंगों के समान एक आभामण्डल का निर्माण कर रहा है।
➳ _ ➳ बड़ी सहजता के साथ अपनी देह का त्याग कर, मैं आत्मा देह से बाहर निकलती हूँ और प्रकाश के इस खूबसूरत कार्ब के साथ ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ। *सुख, शांति, पवित्रता, प्रेम, आनन्द, ज्ञान और शक्ति इन सातों गुणों की सतरंगी किरणों को चारों और बिखेरते हुए मैं आत्मा सारे विश्व का चक्कर लगाकर आकाश मार्ग से होती हुई, सूक्ष्म लोक में प्रवेश करके, उसे भी पार करके अपने मूल वतन परमधाम घर मे पहुँच जाती हूँ*। देह और देह की दुनिया के संकल्प मात्र से भी मुक्त अपने इस परमधाम घर में मैं चारों और फैले दिव्य लाल प्रकाश को देख रही हूँ। चारों और चमकती हुई जगमग करती मणियों का आगार है। *शन्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स अपने चारों और मैं महसूस कर रही हूँ जो मुझे गहन शांति की अनुभूति करवा रहें हैं।
➳ _ ➳ शांति के गहरे अनुभवों में खोई मास्टर बीज रूप स्थिति में अपने बीज रूप प्यारे पिता के पास मैं पहुँचती हूँ और जाकर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। *इस कम्बाइंड बीज रूप स्थिति में मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मैं आत्मा सर्वशक्तियों के फव्वारे के नीचे बैठी हूँ और बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा हैं। असीम परम आनन्द की मैं अनुभूति कर रही हूँ*। प्यार के सागर मेरे प्यारे पिता अपने प्रेम की शीतल किरणों को मेरे ऊपर बिखेरते हुए अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं। *मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित होकर, गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करके और स्वयं को ईश्वरीय स्नेह से भरपूर करके, फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए मैं वापिस लौट आती हूँ साकारी लोक में और अपनी साकारी देह में आ कर फिर से भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो जाती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा के सच्चे निस्वार्थ प्यार के अनुभव की मीठी - मीठी यादे अपने आँचल में सँजोये, उनके प्यार की गहराई में खो कर, उनसे पूरा - पूरा लव रख, मातेला बन उनके हर फरमान पर चलते हुए, उनके प्यार के झूले में मैं अब हर पल झूल रही हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, देह के सम्बन्धों से ममत्व निकाल, सर्व सम्बन्धों का सुख अपने मीठे बाबा से लेते हुए, मैं अब कदम - कदम उनकी श्रीमत को फ़ॉलो करके, उनके प्रति अपने सच्चे प्यार का सबूत दे रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सेवा की स्टेज पर समाने की शक्ति द्वारा सफलता मूर्त बननें वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं मास्टर सागर आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा विस्तार को न देख सदा सार को देखती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा विस्तार को सदा स्वयं में समा लेती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थी हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ड्रामा अनुसार हर ब्राह्मण आत्मा को कोई न कोई विशेषता प्राप्त है... ऐसा कोई नहीं है जिसमें कोई विशेषता नहीं हो... तो अपनी विशेषता को सदा स्मृति में रखो और उसको सेवा में लगाओ... हरेक की विशेषता, उड़ती कला की बहुत तीव्र विधि बन जायेगी... सेवा में लगना, अभिमान में नहीं आना क्योंकि संगम पर हर विशेषता ड्रामा अनुसार परमात्म देन हे... परमात्म देन में अभिमान नहीं आयेगा... *जैसे प्रसाद होता है ना उसको कोई अपना नहीं कहेगा कि मेरा प्रसाद है, प्रभु प्रसाद है... ये विशेषतायें भी प्रभु प्रसाद हैं... प्रसाद सिर्फ अपने प्रति नहीं यूज किया जाता है, बाँटा जाता है...* बाँटते हो, महादानी हो, वरदानी भी हो... पाण्डव भी वरदानी है, महादानी है, शक्तियाँ भी महादानी हैं? एक घण्टे के महादानी नहीं, खुला भण्डार... इसीलिए बाप को भोला भण्डारी कहते हैं, खुला भण्डार है ना, आत्माओं को अंचली देते जाओ, कितनी बड़ी लाइन हैं भिखारियों की... और आपके पास कितना भरपूर भण्डार है? अखुट भण्डार है, खुटने वाला है क्या? बाँटने में एकानामी तो नहीं करते? इसमें फ्रॉख दिली से बाँटो... *व्यर्थ गँवाने में एकानामी करो लेकिन बाँटने में खुली दिल से बाँटो...*
✺ *ड्रिल :- "अपनी विशेषता को सदा स्मृति में रख, उसको सेवा में लगाने का अनुभव"*
➳ _ ➳ ब्राह्मण बनते ही, परमात्म वर्से के रूप में प्राप्त हुई अपनी विशेषताओं को स्मृति में लाकर मैं स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि इस परमात्म देन अर्थात अपनी विशेषता को, अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल, ईश्वरीय सेवा में लगा कर बाबा के स्नेह का रिटर्न मुझे अवश्य देना है... *विशेषताओं की जो गिफ्ट बाबा ने मुझे दी है, निमित बन उस गिफ्ट को अनेको आत्माओं के कल्याणार्थ यूज़ करके, उनकी दुआओं की लिफ्ट प्राप्त कर विश्व कल्याण के कार्य मे बाबा का मददगार बनना ही मेरे ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है...*
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन के लक्ष्य को स्मृति में रख, अपनी विशेषताओं को सेवा में लगाकर, उसमे सफ़लतामूर्त बनने के लिए, अपने मीठे बापदादा से विजय का तिलक लेने के लिए मैं अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी स्वरूप को धारण करती हूँ और अपने साकारी शरीर से बाहर आ जाती हूँ... *अब मैं फ़रिशता अपनी श्वेत रश्मियों को चारों और फैलाता हुआ ऊपर आकाश की ओर बढ़ रहा हूँ... प्रकृति के सुंदर नजारों का आनन्द लेता, अपने प्यारे मीठे बापदादा से मिलने की लगन में मग्न मैं फ़रिशता अब आकाश को पार करता हुआ सूक्ष्म लोक में पहुँच गया हूँ...*
➳ _ ➳ बापदादा अपनी दोनों बाहों को पसारे मेरे ही इंतजार में खड़े मुझे अपने सामने दिखाई दे रहें हैं... बिना एक पल भी व्यर्थ गंवाये, मैं दौड़ कर बापदादा की बाहों में समा जाता हूँ... *बापदादा के असीम स्नेह और प्यार को मैं बापदादा की बाहों में स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ...* माँ समान बापदादा की ममतामयी गोद मे मैं बैठा हुआ हूँ... उनके ममतामयी आँचल का सुख मुझे अनेक दिव्य अलौकिक अनुभूतियां करवा रहा है... *बापदादा की स्नेह भरी दृष्टि मुझमे असीम स्नेह का संचार कर रही है... ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे स्नेह की धारा बाबा मुझमें प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर स्नेह का सागर बना रहे हैं...*
➳ _ ➳ अपनी स्नेह भरी दृष्टि से मुझे भरपूर करके अब बापदादा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने बिलुकल सामने बिठा कर, *अपने हाथ मे विशेषताओं के अनेक प्रकार के मोती लेकर, एक - एक मोती मेरे हाथ पर रखते जा रहें हैं...* एक - एक मोती पर अपनी शक्तिशाली दृष्टि डाल कर बाबा उसमे परमात्म बल और परमात्म शक्तियां भर रहें हैं... *मेरे दोनों हाथ विशेषताओं के रंग बिरंगे मोतियों से भर गए हैं...* अब बाबा मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा कर, अपना वरदानी हाथ मेरे मस्तक पर रख, मुझे "सदा विजयी भव", सदा "सफ़लतामूर्त भव" का वरदान दे रहें हैं...
➳ _ ➳ बापदादा के वरदानो और विशेषताओं से अपनी झोली भर कर अब मैं फ़रिशता, बापदादा से मिली विशेषताओं को ईश्वरीय सेवा में लगाने के लिए वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ... *अपने साकारी ब्राह्मण तन में अब मैं विराजमान हूँ और बाबा द्वारा मिली विशेषताओं को अनेकों आत्माओं के कल्याणार्थ सेवा में लगा रही हूँ...* अपनी हर विशेषता को परमात्म देन मानकर, मैं उड़ती कला के अनुभव द्वारा अनेकों आत्माओं को भी उड़ती कला का अनुभव करवा रही हूँ... अपनी विशेषताओं को प्रभु प्रसाद के रूप में स्वीकार कर, मैं इस प्रसाद को अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को बांट कर उन्हें भी आप समान विशेष बना रही हूँ...
➳ _ ➳ अखुट खजानों के दाता अपने शिव पिता परमात्मा के अखुट भंडारे से स्वयं को भरपूर कर अब मैं महादानी, वरदानी बन, फ्रॉख दिली से सर्व खजानों को सर्व आत्माओ पर लुटा रही हूँ और *अपनी विशेषताओं को सदा स्मृति में रख, उनको सेवा में लगा कर सर्व आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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