“मीठे बच्चे
खुदा
तुम्हारा दोस्त है, शैतान दुश्मन है, इसलिए तुम खुदा को प्यार करते और शैतान को
जलाते हो”
सवाल:-
किन बच्चों
को कईयों की बरक़ात अपने आप मिलती जाती है?
जवाब:-
जो बच्चे
याद में रह खुद को भी पाकीज़ा बनाते और दूसरों को भी अपने जैसा बनाते हैं। उन्हें
कइयों की बरक़ात मिल जाती है, वे निहायत आला मर्तबा पाते हैं। रब तुम बच्चों को
अफ़ज़ल बनने की एक ही सिरात ए मुस्तकीम देते हैं - बच्चे किसी भी जिस्म नशीन को
याद न कर मुझे याद करो
नग़मा:-
आखिर वह दिन आया आज........
आमीन।
ओम् शान्ति
का मतलब तो रूहानी रब ने रूहानी बच्चों को समझाया है। ओम् माना मैं रूह हूँ और
यह मेरा जिस्म है। रूह तो देखने में नहीं आती है। रूह में ही अच्छी और बुरी आदत
रहती हैं। रूह में ही ज़हन-अक्ल है। जिस्म में अक्ल नहीं है। अहम है रूह। जिस्म
तो मेरा है। रूह को कोई देख नहीं सकते। जिस्म को रूह देखती है। रूह को जिस्म नहीं
देख सकता। रूह निकल जाती है तो जिस्म जड़ बन जाता है। रूह देखी नहीं जा सकती।
जिस्म देखा जाता है। वैसे ही रूह का जो रब है, जिसको ओ गॉड फादर कहते हैं वह भी
देखने में नहीं आते हैं, उनको समझा जाता है, जाना जाता है। हम रूहें तमाम
ब्रदर्स हैं। जिस्म में आते हैं तो कहेंगे यह भाई-भाई हैं, यह बहन-भाई हैं। रूहें
तो तमाम भाई-भाई ही हैं। रूहों का रब है - पाक परवरदिगार। जिस्मानी भाई-बहिन एक-दो
को देख सकते हैं। रूहों का रब एक है, उनको देख नहीं सकते। तो अब रब आये हैं,
पुरानी दुनिया को नया बनाने। नई दुनिया सुनहरा दौर था। अब पुरानी दुनिया
इख्तिलाफ़ी फ़ितने का दौर है, इनको अब बदलना है। पुरानी दुनिया तो ख़त्म होनी
चाहिए ना। पुराना घर ख़त्म हो, नया घर बनता है ना, वैसे यह पुरानी दुनिया भी
खलास होनी है। सुनहरा दौर के बाद फिर रूपहला दौर,तांबे का दौर, लोहे का दौर फिर
सुनहरा दौर आना ज़रूर है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होनी है। सुनहरे
दौर में होती है हूर-हूरैन की सल्तनत। खानदान ए आफ्ताबी और खानदान ए महताबी,
उनको कहा जाता है आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम की डिनायस्टी, नूह
अलैहिस्सलाम और आबर अलैहिस्सलाम की डिनायस्टी। यह तो आसान है ना। फिर तांबे के
दौर- लोहे के दौर में और दीन आते हैं। फिर हूरैन जो पाक थे वह नापाक बन जाते,
इनको कहा जाता है शैतानी सल्तनत। शैतान को साल-साल जलाते आते हैं मगर जलता ही
नहीं फिर-फिर जलाते रहते हैं। यह है सबका बड़ा दुश्मन इसलिए उनको जलाने की रसम
पड़ गई है। हिन्दुस्तान का नम्बरवन दुश्मन कौन है? और फिर नम्बरवन दोस्त, हमेशा
ख़ुशी देने वाला है खुदा। खुदा को दोस्त कहते हैं ना। इस पर एक कहानी भी है। तो
खुदा है दोस्त, शैतान है दुश्मन। खुदा जो दोस्त है, उनको कभी जलायेंगे नहीं। वह
है दुश्मन इसलिए 10 सिर वाला शैतान बनाए उनको साल-साल जलाते हैं। गांधी जी भी
कहते थे हमको रामराज्य चाहिए। रामराज्य में खुशी है, रावणराज्य में दु:ख है। अब
यह कौन बैठ समझाते हैं? नापाक से पाक बनाने वाले बाप। रहमतुल्आल्मीन, जिब्राइल
अलैहिस्सलाम है दादा। बाबा हमेशा सही भी करते हैं बापदादा। बाप ए अवाम जिब्राइल
अलैहिस्सलाम भी तो सबका हो गया। जिसको एडम भी कहा जाता है। उनको ग्रेट-ग्रेट
ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। इन्सानी खिल्क़त में बाप ए अवाम हुआ। बाप ए अवाम
जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए मोमिन तामीर होते हैं फिर मोमिन सो हूरैन बनते
हैं। हूरैन फिर जंग जू, कारोबारी, यज़ीद बन जाते हैं। इनको कहा जाता है बाप ए
अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम, इन्सानी खिल्क़त का बड़ा। बाप ए अवाम जिब्राइल
अलैहिस्सलाम के कितने बेहिसाब बच्चे हैं। बाबा-बाबा कहते रहते हैं। यह है
जिस्मानी बाबा। रहमतुल्आल्मीन है ग़ैर मुजस्सम बाबा। गाया भी जाता है बाप ए
अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए नई इन्सानी खिल्क़त तामीर करते हैं। अब
तुम्हारी यह पुरानी खाल है। यह है ही नापाक दुनिया, शैतानी सल्तनत। अब शैतान की
शैतानी दुनिया ख़त्म हो जायेगी। उसके लिए ही यह क़यामत जंग है। फिर जन्नत में
इस शैतान दुश्मन को कोई जलायेंगे ही नहीं। शैतान होगा ही नहीं। शैतान ने ही
दु:ख की दुनिया बनाई है। ऐसे नहीं जिनके पास पैसे निहायत हैं, बड़े-बड़े महल
हैं, वह जन्नत में हैं।
रब समझाते हैं, भल किसके
पास करोड़ हैं, मगर यह तो तमाम ख़ाक में मिल जाने वाले हैं। नई दुनिया में फिर
नई खानियां निकलती हैं, जिससे नई दुनिया के महल वगैरह तमाम बनाये जाते हैं। यह
पुरानी दुनिया अब ख़त्म होनी है। इन्सान अकीदत करते ही हैं ख़ैर निजात के लिए,
हमको पाकीज़ा बनाओ, हम विशश बन गये हैं। विशश को नापाक कहा जाता है। सुनहरे दौर
में है ही वाइसलेस, मुकम्मल ग़ैर ख़बासती हैं। वहाँ बच्चे कुव्वत ए इबादत से
पैदा होते हैं, ख़बासत वहाँ होती ही नहीं। न जिस्मानी हवास, न ज़िनाखोरी, गुस्सा......
5 ख़बासत होते नहीं इसलिए वहाँ कभी शैतान को जलाते ही नहीं। यहाँ तो शैतानी
सल्तनत है। अब रब फ़रमाते हैं तुम पाकीज़ा बनो। यह नापाक दुनिया ख़त्म होनी है
जो सिरात ए मुस्तकीम पर पाक रहते हैं वही रब की सिरात पर चल दुनिया की बादशाही
का वर्सा पाते हैं। इन आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम की सल्तनत थी ना।
अभी तो शैतानी सल्तनत है जो ख़त्म होनी है। सुनहरे दौर की इलाही सल्तनत क़ायम
होनी है। सुनहरे दौर में निहायत थोड़े इन्सान रहते हैं। कैपीटल देहली ही रहती
है। जहाँ आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम की सल्तनत होती है। देहली सुनहरे
दौर में परिस्तान थी। देहली ही गद्दी थी। शैतानी सल्तनत में भी देहली कैपीटल
है, इलाही सल्तनत में भी देहली कैपीटल रहती है। मगर इलाही सल्तनत में तो हीरों
जवाहरातों के महल थे। बेपनाह ख़ुशी थी। अभी रब फ़रमाते हैं तुमने दुनिया की
सल्तनत गॅवायी है, मैं फिर तुमको देता हूँ। तुम मेरी सिरात पर चलो। अफ़ज़ल बनना
है तो सिर्फ़ मुझे याद करो और किसी जिस्म नशीन को याद न करो। अपने को रूह समझ
मुझ रब को याद करो तो स्याह रास्त से ख़ैर रास्त बन जायेंगे। तुम मेरे पास चले
आयेंगे। मेरे गले की माला बनकर फिर ग़ैर ख़बासती की माला बन जायेंगे। माला में
ऊपर में मैं हूँ फिर दो हैं आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम। वही जन्नत
के मालिक ए आज़म-मल्लिकाएं आज़म बनते हैं। उन्हों की फिर तमाम माला है जो
नम्बरवार गद्दी पर बैठते हैं। मैं इस हिन्दुस्तान को इन आदम अलैहिस्सलाम और
हव्वा अलैहिस्सलाम और मोमिनों के ज़रिए जन्नत बनाता हूँ। जो मेहनत करते हैं
उन्हों के ही फिर यादगार बनते हैं। वह है इलाही माला और वह ग़ैर खबासती की माला।
इलाही माला है - रूहों की और ग़ैर खबासती की माला है इन्सानों की। रूहों के रहने
का मुकाम वह ग़ैर मुजस्सम आलम ए अरवाह है, जिसको कायनात भी कहते हैं। रूह कोई
अण्डे मिसल नहीं है, रूह तो नुक्ते मिसल है। हम तमाम रूहें वहाँ स्वीट होम में
रहने वाली हैं। रब के साथ हम रूहें रहती हैं। वह है दारूल निजात। इन्सान तमाम
चाहते हैं दारूल निजात में जायें मगर वापिस कोई एक भी जा नहीं सकते। सबको पार्ट
में आना ही है, तब तक रब तुमको तैयार कराते रहते हैं। तुम तैयार हो जायेंगे तो
फिर जो भी रूहें हैं, वह तमाम आ जायेंगी। फिर खलास। तुम जाकर नई दुनिया में
सल्तनत करेंगे फिर नम्बरवार चक्कर चलेगा। नग़में में सुना ना - आखिर वह दिन आया
आज..... तुम जानते हो जो हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन अब जहन्नुम रिहाईश नशीन हैं,
वह फिर जन्नत रिहाईश नशीन बनेंगे। बाक़ी तमाम रूहें दारूल सुकून में चली जायेंगी।
समझाना निहायत थोड़ा है। अल्फ रब्बा, बे बादशाही। अल्फ को बादशाही मिल जाती है।
अभी रब फ़रमाते हैं - मैं वही सल्तनत फिर से क़ायम करता हूँ। तुम 84 विलादत
लेकर अब नापाक बन गये हो। नापाक बनाया है शैतान ने। फिर पाक कौन बनाते हैं?
अल्लाह ताला जिसको नापाक से पाक बनाने वाला कहते हैं, तुम कैसे नापाक से पाक,
पाक से नापाक बनते हो, वह तमाम हिस्ट्री जॉग्राफी रिपीट होगी। यह तबाही है ही
इसके लिए। कहते हैं जिब्राइल अलैहिस्सलाम की उम्र सहीफों में 100 साल है। यह जो
जिब्राइल अलैहिस्सलाम है, जिसमें रब बैठ वर्सा दिलाते हैं, उनका भी जिस्म छूट
जायेगा। रूहों को बैठ, रूहों का जो रब है वह समझाते हैं। इन्सान, इन्सान को
पाकीज़ा बना न सकें। हूरैन कभी ख़बासत से नहीं पैदा होते हैं। दोबारा विलादत तो
तमाम लेते आते हैं ना। रब कितनी अच्छी तरह से समझाते हैं कि कहाँ तक़दीर जग जाए।
रब आते ही हैं इन्सान की तक़दीर जगाने। तमाम नापाक दु:खी हैं ना। त्राहि-त्राहि
कर तबाह हो जायेंगे इसलिए रब फ़रमाते हैं त्राहि-त्राहि करने के पहले मुझ बेहद
के रब से वर्सा ले लो। यह जो कुछ दुनिया में देखते हो, यह तमाम ख़त्म हो जाना
है। फॉल ऑफ हिन्दुस्तान, राइज़ ऑफ हिन्दुस्तान, इसका ही खेल है। राइज़ ऑफ
वर्ल्ड। जन्नत में कौन-कौन सल्तनत करते हैं, यह रब ही बैठ समझाते हैं। राइज़ ऑफ
हिन्दुस्तान, हूरैन की सल्तनत, फॉल ऑफ हिन्दुस्तान शैतानी सल्तनत। अभी नई दुनिया
बन रही है। रब से तालीम हासिल कर रहे हो नई दुनिया का वर्सा लेने। कितना आसान
है। यह है इन्सान से हूरैन बनने की तालीम। यह भी अच्छी तरह समझना है। कौन-कौन
से मज़हब कब आते हैं, इख्तिलाफ़ी दौर के बाद ही और-और मज़हब आते हैं। पहले ख़ुशी
हासिल करते हैं फिर ग़म। यह तमाम चक्कर अक्ल में बिठाना होता है। जिससे तुम
चक्कर नशीन मलिक ए आज़म-मल्लिकाए आज़म बनते हो। सिर्फ़ अल्फ और बे को समझना है।
अब तबाही तो होनी ही है। हंगामा इतना हो जायेगा जो विलायत से फिर आ भी नहीं
सकेंगे इसलिए रब समझाते हैं-हिन्दुस्तान सरज़मी सबसे आला है। जबरदस्त जंग लगेगी
फिर वहाँ के वहाँ ही रह जायेंगे। 50-60 लाख भी देंगे तो भी मुश्किल आ सकेंगे।
हिन्दुस्तान सरज़मी सबसे आला है। जहाँ रब आकर नुज़ूल होते हैं। शिव जयन्ती भी
यहाँ मनाई जाती है। सिर्फ कृष्ण का नाम डालने से तमाम अज़मत ही ख़त्म हो गई है।
तमाम इन्सान का लिबरेटर यहाँ ही आकर नुज़ूल लेते हैं। शिव जयन्ती भी यहाँ मनाते
हैं। गॉड फादर ही हैं जो आकर लिबरेट करते हैं। तो ऐसे रब को ही सज़दा करना
चाहिए, उनकी ही सालगिरह मनानी चाहिए। वह रब यहाँ हिन्दुस्तान में आकर तमाम को
पाकीज़ा बनाते हैं। तो यह सबसे बड़ी ज़ियारती मुकाम ठहरा। सबको बुरी हालत से
छुड़ाए ख़ैर हालत देते हैं, यह ड्रामा बना हुआ है। अभी तुम रूहें जानती हो,
हमारा रब्बा हमको इस जिस्म के ज़रिए यह राज़ समझा रहे हैं, हम रूह इस जिस्म के
ज़रिए सुनती हैं। रूहानी हवासी बनना है। अपने को रूह समझ रब को याद करो तो कट
निकलती जायेगी और प्योर बन तुम रब के पास आ जायेंगे। जितना याद करेंगे उतना
पाकीज़ा बनेंगे। औरों को भी अपने जैसा बनायेंगे तो निहायतों की बरक़ात मिलेगी।
आला मर्तबा पा लेंगे इसलिए गाया जाता है सेकेण्ड में ज़िन्दगी ए निजात। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों
के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी
बच्चों का सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1. सिरात ए मुस्तकीम पर पाकीज़ा बन, हर कदम रब की सिरात पर चल दुनिया की बादशाही
लेनी है। रब के जैसा दु:ख दूर करने वाला ख़ुशी देने वाला बनना है।
2. इन्सान से हूरैन बनने की यह तालीम हमेशा पढ़ते रहना है। सबको आप जैसा बनाने
की खिदमत करके बरक़ात हासिल करनी है।
बरक़ात:-
हक़दार पन
की सूरत ए हाल के ज़रिए रब को अपना साथी बनाने वाले हमेशा फ़तहयाब बनो।
रब को साथी बनाने का आसान
तरीक़ा है - हक़दार पन की सूरत ए हाल। जब हक़दार पन की सूरत ए हाल में वाकेअ
रहते हो तब फ़ालतू इरादे और नजासती इरादों की हलचल में और कई रसों में अक्ल
डगमग नहीं होती। अक्ल की तवज्जों नशीनी के ज़रिए सामना करने, परखने और फैसला
करने की कुव्वत आ जाती है, जो आसानी से ही इबलीस के कई तरह के वार से फ़तहयाब
बना देती है।
स्लोगन:-
हक़ीक़ी इबादत
नशीन वह हैं जो सेकण्ड में खुलासे से तफ्सील और तफ्सील से खुलासे में जाने के
प्रेक्टिश्नर हैं।
आमीन