“मीठे बच्चे
यह कयाम़त
का वक्त है, शैतान ने सबको कब्रदाखिल कर दिया है, रब आये हैं हयात की बरसात कर
साथ ले जाने”
सवाल:-
रहमतुल्आल्मीन को भोला भण्डारी भी कहा जाता है - क्यों?
जवाब:-
क्योंकि
रहमतुल्आल्मीन भोलानाथ जब आते हैं तो तवाइफों, अहिल्याओं, कुब्जाओं का भी फलाह
कर उन्हें दुनिया का मालिक बना देते हैं। आते भी देखो नापाक दुनिया और नापाक
जिस्म में हैं तो भोला हुआ ना। भोले रब का डायरेक्शन है - मीठे बच्चे, अब हयात
पियो, खबासतों रूपी ज़हर को छोड़ दो।
नग़मा:-
दूरदेश का रहने वाला........
आमीन।
रूहानी
बच्चों ने नग़मा सुना यानि कि रूहों ने इस जिस्म के कान आज़ाओं के ज़रिए नग़मा
सुना। दूर देश के मुसाफिर आते हैं, तुम भी मुसाफिर हो ना। जो भी इन्सानी रूहे
हैं वह तमाम मुसाफिर हैं। रूहों का कोई भी घर नहीं है। रूह है ग़ैर मुजस्सम।
ग़ैर मुजस्सम दुनिया में रहने वाली ग़ैर मुजस्सम रूहें हैं। उसको कहा जाता है
ग़ैर मुजस्सम रूहों का घर, वतन या आलम, इनको ज़िन्दा रूहों का वतन कहा जाता है।
वह है रूहों का वतन फिर रूहें यहाँ आकर जिस्म में जब दाखिल करती हैं तो ग़ैर
मुजस्सम से जिस्मानी बन जाती हैं। ऐसे नहीं कि रूह का कोई रूप नहीं है। रूप भी
ज़रूर है, नाम भी है। इतनी छोटी रूह कितना पार्ट बजाती है इस जिस्म के ज़रिए।
हर एक रूह में पार्ट बजाने का कितना रिकार्ड भरा हुआ है। रिकार्ड एक बार भर जाता
है फिर कितना बारी भी रिपीट करो, वही चलेगा। वैसे रूह भी इस जिस्म के अन्दर
रिकार्ड है, जिसमें 84 विलादतों का पार्ट भरा हुआ है। जैसे रब ग़ैर मुजस्सम है,
वैसे रूह भी ग़ैर मुजस्सम है, कहाँ-कहाँ सहीफों में लिख दिया है वह नाम रूप से
न्यारी है, मगर नाम रूप से न्यारी कोई चीज़ होती नहीं। आसमां भी पोलार है। नाम
तो है ना “आसमान''। बिगर नाम कोई चीज़ होती नहीं। इन्सान कहते हैं पाक
परवरदिगार। अब दूर वतन में तो तमाम रूहें रहती हैं। यह जिस्मानी वतन है, इसमें
भी दो की सल्तनत चलती है - इलाही सल्तनत और शैतानी सल्तनत। आधा चक्कर है इलाही
सल्तनत, आधा चक्कर है शैतानी सल्तनत। रब कभी बच्चों के लिए दु:ख की सल्तनत थोड़े
ही बनायेंगे। कहते हैं अल्लाह ताला ही दु:ख-सुख देते हैं। रब समझाते हैं मैं कभी
बच्चों को दु:ख नहीं देता हूँ। मेरा नाम ही है दु:ख दूर करने वाला ख़ुशी देने
वाला। यह इन्सानी की भूल है। अल्लाह ताला कभी दु:ख नहीं देंगे। इस वक़्त है ही
दारूल ग़म। आधा चक्कर शैतानी सल्तनत में दु:ख ही दु:ख मिलता है। ख़ुशी की रत्ती
नहीं। दारूल मसर्रत में फिर दु:ख होता ही नहीं। रब जन्नत की तामीर करते हैं। अभी
तुम हो मिलन पर। इनको नई दुनिया तो कोई भी नहीं कहेंगे। नई दुनिया का नाम ही है
सुनहरा दौर। वही फिर पुरानी होती है, तो उनको इख्तिलाफ़ी फ़ितने का दौर कहा जाता
है। नई चीज़ अच्छी और पुरानी चीज़ ख़राब दिखाई देती है तो पुरानी चीज़ को खलास
किया जाता है। इन्सान ज़हर को ही ख़ुशी समझते हैं। गाया भी जाता है - आब ए हयात
छोड़ ज़हर काहे को खाए। फिर कहते तेरे भाने सर्व का भला। आप जो आकर करेंगे उससे
भला ही होगा। नहीं तो शैतानी सल्तनत में इन्सान बुरा काम ही करेंगे। यह तो अब
बच्चों को मालूम पड़ा है कि गुरूनानक को 500 साल हुए फिर कब आयेंगे? तो कहेंगे
उनकी रूह तो ज्योति ज्योत समा गई। आयेंगे फिर कैसे। तुम कहेंगे आज से 4500 साल
बाद फिर गुरूनानक आयेंगे। तुम्हारी अक्ल में तमाम वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी
चक्कर लगाती रहती है। इस वक़्त तमाम बुरी खस्लतों से आरास्ता हैं, इनको क़यामत
का वक्त कहा जाता है। तमाम इन्सान जैसे कि मरे पड़े हैं। सबकी रोशनी उझाई हुई
है। रब आते हैं सबको जगाने। बच्चे जो ज़िना की आग पर बैठ ख़ाक हो गये हैं, उन्हों
को आब ए हयात की बरसात से जगाए साथ ले जायेंगे। इबलीस शैतान ने ज़िना की आग पर
बिठाए कब्रदाखिल कर दिया है। तमाम सो गये हैं। अब रब इल्म का आब ए हयात पिलाते
हैं। अब इल्म का आब ए हयात कहाँ और वह पानी कहाँ। सिक्ख लोगों का बड़ा दिन होता
है तो बड़े धूमधाम से तालाब को साफ़ करते हैं, मिट्टी निकालते हैं इसलिए नाम ही
रखा है - अमृतसर। अमृत का तलाब। गुरूनानक ने भी रब की अज़मत की है। खुद कहते
एकोअंकार, सत नाम...... वह हमेशा सच बोलने वाला है। हक़ीक़ी अफ़जल हज़रात की
रिवायत है ना। इन्सान अकीदत मन्दी की राह में कितनी रिवायतें सुनते आये हैं।
अमरकथा, तीजरी की कथा...... कहते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई। वह तो
मल्क़ूतवतन में रहने वाले, वहाँ फिर रिवायत कौनसी सुनाई? यह तमाम बातें रब बैठ
समझाते हैं कि असल में तुमको कहानी ए हयात सुनाए आलम ए हयात में ले जाने मैं आया
हूँ। आलम ए मौत से आलम ए हयात में ले जाता हूँ। बाक़ी मल्क़ूतवतन में पार वतन
में रहने वाला ने क्या कसूर किया उनको रिवायत ए हयात सुनायेंगे। सहीफों में तो
कई रिवायतें लिख दी हैं। हक़ीक़ी अफ़जल हज़रात की सच्ची रिवायत तो है नहीं।
तुमने कितनी हक़ीक़ी अफ़जल हज़रात की रिवायतें सुनी होंगी। फिर हक़ीक़ी अफ़जल
हज़रात कोई बनते हैं क्या और ही गिरते जाते हैं। अभी तुम समझते हो हम हज़रात से
अफ़ज़ल हज़रात, ख्वातीन से अफ़जल ख्वातीन बनते हैं। यह है आलम ए हयात में जाने
के लिए सच्ची हक़ीक़ी अफ़जल हज़रात की रिवायत, तीजरी की रिवायत। तुम रूहों को
इल्म की तीसरी आंख मिली है। रब समझाते हैं तुम ही गुल-गुल काबिल ए एहतराम थे
फिर 84 विलादतों के बाद तुम ही नाकाबिल बने हो इसलिए गाया हुआ है - आपे ही
काबिल ए एहतराम, आपे ही नाकाबिल। रब फ़रमाते हैं - मैं तो हमेशा काबिल ए एहतराम
हूँ। तुमको आकर नाकाबिल से काबिल ए एहतराम बनाता हूँ। यह है नापाक दुनिया।
सुनहरे दौर में काबिल ए एहतराम पाकीज़ा इन्सान, इस वक़्त हैं नापाक इन्सान।
राहिब-वली गाते रहते हैं नापाक से पाक बनाने वाले सीताराम। यह अल्फ़ाज़ हैं
राइट...... तमाम सीतायें ब्राइड्स हैं। कहते हैं हे राम आकर हमको पाकीज़ा बनाओ।
तमाम अकीदत मन्द पुकारते हैं, रूह पुकारती है - हे राम। गांधी जी भी गीता
सुनाकर पूरी करते थे तो कहते थे - हे पतित-पावन सीताराम। अभी तुम जानते हो गीता
कोई कृष्ण ने नहीं सुनाई है। रब्बा फ़रमाते हैं - ओपीनियन लेते रहो कि अल्लाह
ताला सब तरफ़ मौजूद नहीं है। गीता का भगवान शिव है, न कि कृष्ण। पहले तो पूछो
गीता का भगवान किसको कहा जाता है। अल्लाह ताला ग़ैर मुजस्सम को कहेंगे या
जिस्मानी को? कृष्ण तो है जिस्मानी। रहमतुल्आल्मीन है ग़ैर मुजस्सम। वह सिर्फ़
इस जिस्म का लोन लेते हैं। बाक़ी माता के हमल से विलादत नहीं लेते हैं।
रहमतुल्आल्मीन को जिस्म है नहीं। यहाँ इस इन्सानी आलम में मैकरू जिस्म है। रब
आकर सच्ची हक़ीक़ी अफ़जल हज़रात की रिवायत सुनाते हैं। रब की अज़मत है नापाक से
पाक बनाने वाले, तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला, तमाम का लिबरेटर, दु:ख दूर
करने वाला ख़ुशी हासिल करने वाला। अच्छा, ख़ुशी कहाँ होती है? यहाँ नहीं हो सकती।
ख़ुशी मिलेगी दूसरी विलादत में, जब पुरानी दुनिया ख़त्म हो और जन्नत का क़याम
हो जायेगा। अच्छा, लिबरेट किससे करते हैं? शैतान के दु:ख से। यह तो दारूल ग़म
है ना। अच्छा फिर गाइड भी बनते हैं। यह जिस्म तो यहाँ ख़त्म हो जाते हैं। बाक़ी
रूहों को ले जाते हैं। पहले साजन फिर सजनी जाती है। वह है ला फ़ानी सलोना साजन।
सबको दु:ख से छुड़ाए पाकीज़ा बनाए घर ले जाते हैं। शादी कर जब आते हैं तो पहले
होता है घोट (खाविन्द)। पिछाड़ी में ब्राइड (ख्वातीन) रहती है फिर बरात होती
है। अब तुम्हारी माला भी ऐसी है। ऊपर में रहमतुल्आल्मीन फूल, उसे सलाम करेंगे।
फिर युगल दाना आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम। फिर हो तुम, जो रब्बा के
मददगार बनते हो। फूल रहमतुल्आल्मीन की याद से ही खानदान ए आफ़ताबी, ग़ैर ख़बासती
की माला बने हो। ब्रह्मा-सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण यानि कि आदम अलैहिस्सलाम और
हव्वा अलैहिस्सलाम बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण सो ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं।
इन्होंने मेहनत की है तब काबिल ए एहतराम जाते हैं। कोई को मालूम नहीं है माला
क्या चीज़ है। ऐसे ही माला फेरते रहते हैं। 16108 की भी माला होती है। बड़े-बड़े
मन्दिरों में रखी होती है फिर कोई कहाँ से, कोई कहाँ से खींचेंगे। बाबा बाम्बे
में लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाते थे, माला जाकर फेरते थे, राम-राम जपते
थे क्योंकि फूल एक ही रब है ना। फूल को ही राम-राम कहते हैं। फिर तमाम माला पर
माथा टेकते हैं। इल्म कुछ भी नहीं। पादरी भी हाथ में माला फेरते रहते हैं। पूछो
किसकी माला फेरते हो? उनको तो मालूम नहीं है। कह देंगे क्राइस्ट की याद में
फेरते हैं। उनको यह मालूम नहीं है कि क्राइस्ट की खुद रूह कहाँ है। तुम जानते
हो क्राइस्ट की रूह अब स्याह रास्त है। तुम भी स्याह रास्त बेगर थे। अब बेगर टू
प्रिन्स बनते हो। हिन्दुस्तान प्रिन्स था, अभी बेगर है फिर प्रिन्स बनते हैं।
बनाने वाला है रब। तुम इन्सान से प्रिन्स बनते हो। एक प्रिन्स कॉलेज भी था, जहाँ
प्रिन्स-प्रिन्सेज जाकर पढ़ते थे।
तुम यहाँ पढ़कर 21 विलादत लिए जन्नत में प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हो। यह
श्रीकृष्ण प्रिन्स है ना। उनके 84 विलादतों की कहानी लिखी हुई है। इन्सान क्या
जानें। यह बातें सिर्फ़ तुम जानते हो। “अल्लाह ताला फ़रमाते'' वह सबका फादर है।
तुम गॉड फादर से सुनते हो, जो जन्नत का क़याम करते हैं। उसे कहा ही जाता है
सचखण्ड। यह है झूठ खण्ड। सचखण्ड तो रब क़ायम करेंगे। झूठ खण्ड शैतान क़ायम करते
हैं। शैतान का रूप बनाते हैं, मतलब कुछ नहीं समझते हैं, किसको भी मालूम नहीं है
कि आखरीन भी शैतान है कौन, जिसको मारते हैं फिर जिंदा हो जाता है। असल में 5
ख़बासत औरत के, 5 ख़बासत मर्द के..... इनको कहा जाता है शैतान। उनको मारते हैं।
शैतान को मारकर फिर सोना लूटते हैं।
तुम बच्चे जानते हो - यह है कांटों का जंगल। बाम्बे में बबुलनाथ का भी मन्दिर
है। रब आकर कांटों को फूल बनाते हैं। सब एक-दो को कांटा लगाते हैं यानि कि ज़िना
कटारी चलाते रहते हैं, इसलिए इनको कांटों का जंगल कहा जाता है। सुनहरा दौर को
गॉर्डन ऑफ अल्लाह कहा जाता है, वही फ्लावर्स कांटे बनते हैं फिर कांटों से फूल
बनते हैं। अभी तुम 5 ख़बासतों पर फ़तह पाते हो। इस शैतानी सल्तनत की तबाही तो
होनी ही है। आखरीन बड़ी लड़ाई भी होगी। सच्चा-सच्चा दशहरा भी होना है।
रावणराज्य ही खलास हो जायेगा फिर तुम लंका लूटेंगे। तुमको सोने के महल मिल
जायेंगे। अभी तुम शैतान पर फ़तह दस्तयाब कर जन्नत के मालिक बनते हो। रब्बा तमाम
दुनिया की सल्तनत-क़िस्मत देते हैं इसलिए इनको रहमतुल्आल्मीन भोला भण्डारी कहते
हैं। तवाइफें, अहिल्यायें, कुब्जायें.. सबको रब दुनिया का मालिक बनाते हैं।
कितना भोला है। आते भी हैं नापाक दुनिया, नापाक जिस्म में। बाक़ी जो जन्नत के
लायक़ नहीं हैं, वह ज़हर पीना छोड़ते ही नहीं। रब फ़रमाते हैं - बच्चे, अभी यह
अाखिरी विलादत पाकीज़ा बनो। यह ख़बासत तुमको आग़ाज़ दरम्यान आख़िर दु:खी बनाते
हैं। क्या तुम इस एक विलादत के लिए ज़हर पीना नहीं छोड़ सकते हो? मैं तुमको आब
ए हयात पिलाकर हयाती बनाता हूँ फिर भी तुम पाकीज़ा नहीं बनते हो। ज़हर बिगर,
सिगरेट शराब बिगर रह नहीं सकते हो। मैं बेहद का रब तुमको कहता हूँ - बच्चे, इस
एक विलादत के लिए पाकीज़ा बनो तो तुमको जन्नत का मालिक बनाऊंगा। पुरानी दुनिया
की तबाही और नई दुनिया का क़याम करना - यह रब का ही काम है। रब आया हुआ है तमाम
दुनिया को दु:ख से लिबरेट कर दारूल मसर्रत- दारूल सुकून में ले जाने। अभी तमाम
मज़हब खलास हो जायेंगे। एक अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन का फिर से क़याम होता
है। सहीफों में भी पाक परवरदिगार को हयात याफ़्ता कहते हैं। रब है महाकाल, कालों
का काल। वह मौत तो एक-दो को ले जायेंगे। मैं तो तमाम रूहों को ले जाऊंगा इसलिए
महाकाल कहते हैं। रब आकर तुम बच्चों को कितना समझदार बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) इस आख़िरी विलादत में ज़हर को छोड़ आब ए हयात पीना और पिलाना है। पाकीज़ा
बनना है। कांटों को फूल बनाने की खिदमत करनी है।
2) ग़ैर ख़बासती के गले की माला का दाना बनने के लिए रब की याद में रहना है,
पूरा-पूरा मददगार बन रब जैसा दु:ख दूर करने वाला बनना है।
बरक़ात:-
ड्रामा की
ढाल को सामने रख ख़ुशी की खुराक खाने वाले हमेशा कुव्वत नशीन बनों।
खुशी रूपी खाना रूह को
कुव्वत नशीन बना देता है, कहते भी हैं - ख़ुशी जैसी ख़ुराक़ नहीं। इसके लिए
ड्रामा की ढाल को अच्छी तरह से काम में लगाओ। अगर हमेशा ड्रामा की याददाश्त रहे
तो कभी भी मुरझा नहीं सकते, ख़ुशी गायब हो नहीं सकती क्योंकि यह ड्रामा फ़लाह
नशीन है इसलिए ग़ैर फ़लाह नशीन नज़ारे में भी फ़लाह समाया हुआ है, ऐसा समझ हमेशा
ख़ुश रहेंगे।
स्लोगन:-
ग़ीबत और दूसरों
को देखने की धूल से दूर रहने वाले ही सच्चे बेशकीमती हीरे हैं।
आमीन