“मीठे बच्चे
तुम्हारे
मुंह से कभी भी या अल्ल्लाह्, ए रब्बा अल्फ़ाज़ नहीं निकलना चाहिए, यह तो अकीदत
मन्दी की राह की प्रैक्टिस है”
सवाल:-
तुम बच्चे
सफेद ड्रेस पसन्द क्यों करते हो? यह किस बात की निशानी है?
जवाब:-
अभी तुम इस
पुरानी दुनिया से जीते जी मर चुके हो इसलिए तुम्हें सफेद ड्रेस पसन्द है। यह
सफेद ड्रेस मौत को साबित करता है। जब कोई मरता है तो उस पर भी सफेद कपड़ा डालते
हैं, तुम बच्चे भी अभी मरजीवा बने हो।
आमीन।
रूहानी रब
बैठ बच्चों को समझाते हैं, रूहानी अल्फ़ाज़ न कह सिर्फ़ बाप कहें तो भी दुरुस्त
है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। तमाम अपने को भाई-भाई तो कहते ही हैं। तो
बाप बैठ समझाते हैं बच्चों को। तमाम को तो नहीं समझाते होंगे। तमाम अपने को
भाई-भाई कहते ही हैं। गीता में लिखा हुआ है - अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते हैं। अब
अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते हैं किसके वास्ते? अल्ल्लाह् ताला के हैं सब बच्चे। वह
बाप है तो अल्ल्लाह् ताला के बच्चे तमाम ब्रदर्स हैं। अल्ल्लाह् ताला ने ही
समझाया होगा, हक़ीक़ी इबादत सिखायी होगी। अभी तुम्हारी अक्ल का ताला खुला हुआ
है। दुनिया में और किसी के भी ऐसे ख्यालात नहीं चल सकते। जिन-जिन को पैगाम मिलता
जायेगा वह स्कूल में आते जायेंगे, पढ़ते जायेंगे। समझेंगे नुमाइश तो देखी, अब
जाकर कुछ ज़्यादा सुने। पहली-पहली अहम बात है दरिया ए इल्म, नापाक से पाक बनाने
वाला गीता इल्म देने वाले रहमतुल्आल्मीन फ़रमाते हैं पहले-पहले उनको यह मालूम
पड़े कि इन्हों को सिखलाने वाला या समझाने वाला कौन है! वह सुप्रीम सोल दरिया ए
इल्म ग़ैर मुजस्सम है। वह तो है ही हक़। (ट्रूथ) वह सच ही बतायेंगे। फिर उसमें
और कोई सवाल उठ नहीं सकता। पहले-पहले तो इस पर समझाना है, हमको पाक परवरदिगार
जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए हक़ीक़ी इबादत सिखलाते हैं। यह बादशाहत मर्तबा
है। जिसको यक़ीन हो जायेगा कि जो सबका रब है, वह रूहानी रब बैठ समझाते हैं, वही
सबसे बड़ी अथॉरिटी है तो फिर दूसरा कोई सवाल उठ ही नहीं सकता। वह है नापाक से
पाक बनाने वाला तो जब वह यहाँ आते हैं तो ज़रूर अपने टाइम पर आते होंगे। तुम
देखते भी हो - यह वही क़यामत की जंग है। तबाही के बाद फिर वाइसलेस दुनिया होनी
है। यह है विशश दुनिया। यह इन्सान नहीं जानते कि हिन्दुस्तान ही वाइसलेस था।
कुछ भी अक्ल चलती नहीं। गाडरेज का ताला लगा हुआ है। उसकी चाबी एक रब के पास ही
है इसलिए उनको ही इल्म देने वाला, इलाही दीदावर कहा जाता है। इल्म की तीसरी आंख
देते हैं। यह किसको मालूम नहीं है कि तुमको पढ़ाने वाला कौन है। दादा समझ लेते
हैं तब टीका करते हैं। कुछ न कुछ बोलते हैं - इसलिए पहली-पहली बात ही यह समझाओ।
इसमें लिखा हुआ भी है - अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते हैं। वह तो है ही ट्रूथ।
रब समझते हैं मैं नापाक से पाक बनाने वाला रहमतुल्आल्मीन हूँ। मैं आलम ए अरवाह
से आया हूँ, इन मख़लूकों को तालीम देने। रब है ही नॉलेजफुल। खिल्क़त के
आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर का राज़ समझाते हैं। यह तालीम अभी तुमको ही बेहद के रब से
मिल रही है। वही खिल्क़त के तामीर करने वाले हैं। नापाक खिल्क़त को पाकीज़ा
बनाने वाले हैं। बुलाते भी हैं ए नापाक से पाक बनाने वाले आओ तो पहले-पहले उसका
ही तारूफ़ देना है। उस पाक परवरदिगार के साथ आपका क्या रिश्ता है? वह है ही हक़।
हज़रात से अफ़जल हज़रात बनने की सच्ची नॉलेज देते हैं। बच्चे जानते हैं रब हक़
है, रब ही सचखणड यानि कि बहिश्त बनाते हैं। तुम हज़रात से अफ़ज़ल हज़रात बनने
यहाँ आते हो। बैरिस्टर पास जायेंगे तो समझेंगे हम बैरिस्टर बनने आये हैं। अभी
तुमको यक़ीन है कि हमें अल्ल्लाह् ताला पढ़ाते हैं। कई यक़ीन करते भी हैं फिर
शक्की अक्ल हो जाते हैं तो उनको तमाम इन्सान कहते हैं तुम तो कहते थे, अल्ल्लाह्
ताला पढ़ाते हैं फिर अल्ल्लाह् ताला को छोड़ क्यों आये हो? शक आने से ही भागन्ती
हो जाते हैं। कोई न कोई गुनाह करते हैं। अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते हवस अज़ीम
दुश्मन है, इन पर फ़तह पाने से ही तुम जहान फ़तहयाब बनेंगे। जो पाकीज़ा बनेंगे
वही पाकीज़ा दुनिया में चलेंगे। यहाँ है ही हक़ीक़ी इबादत की बात। तुम जाकर वहाँ
बादशाहत करेंगे। बाक़ी जो भी रूहें हैं वह अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस
अपने घर चली जायेंगी। यह क़यामत का वक़्त है। अब यह अक्ल कहती है सुनहरे दौर का
क़याम ज़रूर होना है। पाकीज़ा दुनिया सुनहरे दौर को कहा जाता है। बाक़ी तमाम
आलम ए निजात में चले जायेंगे। उनको फिर अपना पार्ट रिपीट करना है। तुम भी अपनी
तजवीज़ करते रहते हो। पाकीज़ा बन और पाकीज़ा दुनिया का मालिक बनने के लिए।
मालिक तो तमाम अपने को समझेंगे ना। अवाम भी मालिक है। अभी अवाम भी कहती है ना -
हमारा हिन्दुस्तान। बड़े ते बड़े इन्सान राहिब वगैरह भी कहते हमारा हिन्दुस्तान।
तुम समझते हो इस वक़्त हिन्दुस्तान में तमाम जहन्नुम रिहाईश नशीन हैं। अभी हम
जन्नत रिहाईश नशीन बनने के लिए यह हक़ीक़ी इबादत सीख रहे हैं। तमाम तो जन्नत
रिहाईश नशीन नहीं बनेंगे। यह अभी इल्म आया है। वो लोग जो सुनाते हैं, सहीफें
सुनाते हैं। वह हैं सहीफों की अथॉरिटी। रब फ़रमाते हैं यह अकीदत मन्दी के वेद
सहीफें वगैरह तमाम पढ़ने से सीढ़ी नीचे उतरते जाते हैं। यह तमाम है अकीदत मन्दी
की राह। रब फ़रमाते हैं जब अकीदत मन्दी की राह पूरी होगी तब ही मैं आऊंगा। मुझे
ही आकर तमाम अकीदत मन्दों को अकीदत का सिला देना है। मैजॉरटी तो अकीदत मन्दों
की है। तमाम पुकारते रहते हैं ना - ए गाड फादर। अकीदत मन्दों के मुंह से ओ गाड
फादर, या अल्ल्लाह् ज़रूर निकलेगा। अब अकीदत और इल्म में तो फ़र्क है। तुम्हारे
मुंह से कभी या अल्ल्लाह्, ए खुदा यह अल्फ़ाज़ नहीं निकलेंगे। इन्सानों को तो
यह आधा चक्कर की प्रैक्टिस पड़ी हुई है। तुम जानते हो वह तो हमारा बाप है, तुमको
हे बाबा थोड़े ही करना है। बाप से तो तुमको वर्सा लेना है। पहले तो यह यक़ीन है
हम बाप से वर्सा लेते हैं। बाप बच्चों को वर्सा लेने का हक़दार बनाते हैं। यह
तो सच्चा बाप है ना। बाप जानते हैं - यह हमारे बच्चे हैं, जिन्हों को हम इल्म ए
हयात पिलाए, इल्म की आग पर बिठाए घोर नींद से जगाए जन्नत में ले जाता हूँ। रब
ने समझाया है - रूहें वहाँ दारूल सुकून और दारूल मसर्रत में रहती हैं। दारूल
मसर्रत को कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड। मुकम्मल ग़ैर ख़बासती हूरैन हैं ना। और
वह है स्वीट होम। तुम जान गये हो कि हमारा होम वह है, हम एक्टर्स उस दारूल
सुकून से आते हैं - यहाँ पार्ट बजाने। हम रूहें यहाँ के रहवासी नहीं हैं। वह
एक्टर्स यहाँ के रहवासी होते हैं। सिर्फ़ घर से आकर ड्रेस बदलकर पार्ट बजाते
हैं। तुम तो समझते हो हमारा घर दारूल सुकून है, वहाँ हम फिर वापिस जाते हैं। जब
तमाम एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं तब फिर रब आकर तमाम को ले जायेंगे, इसलिए उनको
लिब्रेटर, गाइड भी कहा जाता है। दु:ख दूर करने वाले मसर्रत देने वाले है तो इतने
तमाम इन्सान कहाँ जायेंगे। ख्याल करो - नापाक से पाक बनाने वाले को बुलाते हैं।
किसलिए? अपनी मौत के लिए, ग़म की दुनिया में रहने नहीं चाहते हैं, इसलिए कहते
हैं घर चलो। यह तमाम निजात को ही मानने वाले हैं। हिन्दुस्तान की कदीम हक़ीक़ी
इबादत भी कितनी मशहूर है। विलायत में भी जाते हैं। कदीम हक़ीक़ी इबादत सिखलाने।
असल में हठयोगी तो राजयोग जानते ही नहीं। उन्हों का योग ही रांग है इसलिए तुम्हें
जाकर सच्चा राजयोग सिखाना है। इन्सान को राहिबों की कफनी देख उन्हों को कितनी
इज़्ज़त देते हैं। बौद्ध मज़हब में भी राहिबों को, कफनी पहनी हुई देख उनको मानते
हैं। राहिब तो बाद में होते हैं। बौद्ध मज़हब में भी शुरू में कोई राहिब नहीं
होते हैं। जब गुनाह बढ़ता है, बौद्ध मज़हब में तब राहिब मज़हब क़ायम होता है।
शुरू में तो वह रूहें ऊपर से आती हैं। उनकी तादाद आती है। शुरू में राहिबी
सिखलाकर क्या करेंगे, बेनियाज़ी होती है बाद में। यह भी यहाँ से काॅपी करते
हैं। क्रिश्चियन में भी निहायत हैं जो राहिबों की इज़्ज़त रखते हैं। कफनी की जो
पहरवाइस है, वह हठयोगियों की है। तुमको तो घरबार छोड़ना नहीं है। न कोई सफेद
कपड़े का बंदिश है मगर सफेद अच्छा है। तुम भट्ठी में रहे हो तो ड्रेस भी यह हो
गई है। आजकल सफेद निहायत पसन्द करते हैं। इन्सान मरते हैं तो भी सफेद चादर डालते
हैं। तुम भी अभी मरजीवा बने हो तो सफेद ड्रेस अच्छी है।
तो पहले कोई को भी रब का तारूफ देना है। दो बाप हैं, यह बातें समझने में टाइम
लेते हैं। नुमाइश में इतना समझा नहीं सकेंगे। सुनहरे दौर में होता है एक बाप।
इस वक़्त तुमको 3 बाप हैं क्योंकि अल्ल्लाह् ताला आते हैं बाप ए अवाम जिब्राइल
अलैहिस्सलाम के जिस्म में, वह भी तो बाप है सबका। जिस्मानी बाप भी है। अच्छा अब
तीनों बाप से आला वर्सा किसका? ग़ैर मुजस्सम बाप वर्सा कैसे दे। वह फिर देते
हैं जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए। इस तस्वीर पर तुम निहायत अच्छी तरह समझा
सकते हो। रहमतुल्आल्मीन ग़ैर मुजस्सम है और यह है बाप ए अवाम आदम अलैहिस्सलाम
आदि देव, ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर। बाप फ़रमाते हैं मुझ रहमतुल्आल्मीन को तुम
ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर नहीं कहेंगे। मैं तमाम का बाप हूँ। यह है बाप ए अवाम
आदम अलैहिस्सलाम। तुम हो गये तमाम बहन भाई। भल औरत मर्द हैं मगर अक्ल से जानते
हैं हम भाई-बहिन हैं। बाप से वर्सा लेते हैं। भाई-बहन आपस में क्रिमिनल एसाल्ट
कर न सकें। अगर दोनों की आपस में ख़बासती नज़र खींचती है तो फिर गिर पड़ते हैं।
बाप को भूल जाते हैं। बाप फ़रमाते हैं तुम हमारा बच्चा बन फिर मुँह काला करते
हो। बेहद का बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं। तुमको यह नशा चढ़ा हुआ है। जानते हो
घरेलू राब्ते में भी रहना है। जिस्मानी रिश्तेदारों को भी मुँह देना है, तोड़
निभाना है। जिस्मानी बाप को तो तुम बाप कहेंगे ना। उनको तो तुम भाई नहीं कह सकते
हो। आर्डनरी वे में बाप को बाप ही कहेंगे। अक्ल में है यह हमारा जिस्मानी बाप
है। इल्म तो है ना। यह इल्म बड़ा अजीब है। आजकल करके नाम भी ले लेते हैं मगर
कोई विजीटर वगैरह बाहर के आदमी के सामने भाई कह दो तो वह समझेंगे इनका माथा
ख़राब हुआ है। इसमें बड़ी तरीक़त चाहिए। तुम्हारा बातिन इल्म है, बातिन रिश्ता
है। इसमें बड़ी तरीक़े से चलना है। मगर एक दो को रिगार्ड देना अच्छा है।
जिस्मानी से भी तोड़ निभाना है। अक्ल चली जानी चाहिए ऊपर। हम रब्बा से वर्सा ले
रहे हैं। बाक़ी चाचे को चाचा, बाप को बाप कहना पड़ेगा। जो बी.के. नहीं बने हैं
तो वह भाई-बहन नहीं समझेंगे। जो आदम ज़ादा आदम ज़रियां बने हैं वही इन बातों को
समझेंगे। बाहर वाले तो पहले सुनकर चमकेंगे। इसमें समझने की बड़ी अच्छी अक्ल
चाहिए। रब तुम बच्चों की बेहद अक्ल बनाते हैं। तुम पहले हद की अक्ल में थे। अब
अक्ल चली जाती है बेहद में। हमारा वह बेहद का बाप है। यह तमाम हमारे भाई बहन
हैं। बाक़ी रिश्ते में तो बहू को बहू, सासू को सासू ही कहेंगे, बहन थोड़े ही
कहेंगे। आते तो दोनों हैं। घर में रहते भी बड़ी तरीक़त से चलना होगा। जिस्मानी
कुनबे को भी देखना पड़ता है। नहीं तो वह लोग कहेंगे यह खाविन्द को भाई, सासू को
बहन कह देते, यह क्या सीखते हैं। यह इल्म की बातें तो तुम ही जानो और न जाने
कोई। कहते हैं ना - तुम्हारी गति मति तुम ही जानो। अब तुम उसके बच्चे बने हो तो
तुम्हारी गति मत तुम ही जानो। बड़ा सम्भलकर चलना पड़ता है। कहाँ कोई मूँझे नहीं।
तो नुमाइश में भी तुम बच्चों को पहले-पहले यह समझाना है कि हमको पढ़ाने वाला
अल्ल्लाह् ताला है। अब बताओ वह कौन है? ग़ैर मुजस्सम रहमतुल्आल्मीन या आदम
अलैहिस्सलाम। शब ए बारात के बाद फिर आती है आदम अलैहिस्सलाम की सालगिरह क्योंकि
रब हक़ीक़ी इबादत सिखलाते हैं। बच्चों की अक्ल में आया ना। जब तक रहमतुल्आल्मीन
पाक परवरदिगार न आये, शब ए बारात मना न सकें। जब तक रहमतुल्आल्मीन आकर जन्नत
क़ायम न करे तो आदम अलैहिस्सलाम की सालगिरह भी कैसे मनाई जाए। आदम अलैहिस्सलाम
की सालगिरह तो मनाते हैं मगर समझते थोड़े ही हैं। आदम अलैहिस्सलाम प्रिन्स था
तो ज़रूर सुनहरे दौर में प्रिन्स होगा ना। हूर-हूरैन की दारूल हुकूमत होगी।
सिर्फ़ एक आदम अलैहिस्सलाम को तो बादशाही नहीं मिली होगी। ज़रूर आदम
अलैहिस्सलाम की डिनाइस्टी होगी ना। कहते भी हैं कृष्ण पुरी यानि कि आलम ए आदम
अलैहिस्सलाम और यह है कंस पुरी यानि कि आलम ए शैतान। आलम ए शैतान ख़त्म हुआ फिर
आलम ए आदम अलैहिस्सलाम क़ायम हुआ ना। होता हिन्दुस्तान में ही है। नई दुनिया
में थोड़े ही यह शैतान लोग हो सकते हैं। आलम ए शैतान कहा जाता है इख्तिलाफ़ी
फ़ितने के दौर को। यहाँ तो देखो कितने इन्सान हैं। सुनहरे दौर में थोड़े होते
हैं। हूरैनों ने कोई लड़ाई नहीं की। आलम ए आदम अलैहिस्सलाम कहो या जन्नत कहो,
हूरैन फिरका कहो, शैतानी फिरका यहाँ है। बाक़ी न हूरैनों और शैतानों की लड़ाई
हुई, न कौरवौं पाण्डवों की हुई है। तुम शैतान पर फ़तह पाते हो। रब फ़रमाते हैं
इन 5 ख़बासतों पर फ़तह पहनो तो तुम जहान फ़तहयाब बन जायेंगे, इसमें कोई लड़ना
नहीं है। लड़ने का नाम ले तो तशदिद हो जाए। शैतान पर फ़तह पाना है,मगर नान
वायोलेंस से। सिर्फ़ रब को याद करने से हमारे गुनाह ख़ाक होते हैं। लड़ाई वगैरह
की कोई बात नहीं। रब फ़रमाते हैं तुम स्याह रास्त बन गये हो अब फिर तुमको ख़ैर
रास्त बनना है। हिन्दुस्तान की कदीम हक़ीक़ी इबादत मशहूर है। रब फ़रमाते हैं -
मेरे साथ अक्ल का राब्ता लगाओ तो तुम्हारे गुनाह ख़ाक होंगे। रब नापाक से पाक
बनाने वाला है तो उनसे अक्ल का राब्ता लगाना है तब तुम नापाक से पाक बन जायेंगे।
अब प्रैक्टिकल में तुम उनके साथ राब्ता लगा रहे हो, इसमें जंग की कोई बात नहीं
है। जो अच्छी तरह पढ़ेंगे और रब के साथ राब्ता लगायेंगे वही रब से वर्सा पायेंगे।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का यादप्यार और
गुडमार्निग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) भाई-भाई की नज़र की प्रेक्टिस करते हुए जिस्मानी बन्दिशों से तोड़ निभाना
है। बड़ी तरीक़त से चलना है। ख़बासती नज़र बिल्कुल नहीं जानी चाहिए। क़यामत के
वक़्त मुकम्मल पाकीज़ा बनना है।
2) रब से पूरा वर्सा लेने के लिए अच्छी तरह तालीम लेनी है और नापाक से पाक बनाने
वाले रब से राब्ता लगाकर पाकीज़ा बनना है।
बरक़ात:-
कमज़ोरियों
को फुलस्टाप देकर अपने मुकम्मल खुद के रूप को मशहूर करने वाले दीदार ए जलवा
नशीन बनो।
दुनिया आपके चक्कर पहले
वाले मुकम्मल याफ़्ता, काबिल ए एहतराम याफ़्ता को याद कर रही है इसलिए अब अपने
मुकम्मल याफ़्ता को प्रैक्टिकल में मशहूर करो। बीती हुई कमज़ोरियों को फुलस्टाप
लगाओ, मज़बूत इरादे के ज़रिए पुरानी आदत-रवैये को ख़त्म करो, दूसरों की कमज़ोरी
की नकल मत करो, बुरी खस्लत इख्तियार करने वाली अक्ल का खात्मा करो, इलाही अक्ल
इख्तियार करने वाली सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ अक्ल इख्तियार करो तब दीदार ए
जलवा नशीन बनेंगे।
स्लोगन:-
अपने अबदी और कदीम
फ़ज़ीलतों को याददाश्त में रख उन्हें खुद के रूप में लाओ।
आमीन