“मीठे बच्चे
यहाँ
तुम्हारा सब कुछ बातिन है, इसलिए तुम्हें कोई भी ठाठ नहीं करना है, अपनी नई
दारूल हुकूमत के नशे में रहना है”
सवाल:-
अफ़ज़ल दीन और हूरैन आमाल के क़याम के लिए तुम बच्चे कौन सी मेहनत करते हो?
जवाब:-
तुम अभी 5
ख़बासतों को छोड़ने की मेहनत करते हो, क्योंकि इन ख़बासतों ने ही सबको बद
उन्वान बनाया है। तुम जानते हो इस वक़्त तमाम हूरैन दीन और आमाल से बद उन्वान
हैं। रब ही सिरात ए मुस्तकीम देकर अफ़ज़ल दीन और अफ़ज़ल हूरैन आमाल का क़याम
करते हैं। तुम सिरात ए मुस्तकीम पर चल रब की याद से ख़बासतों पर फ़तह पाते हो।
तालीम से अपने आपको राजतिलक देते हो।
नग़मा:-
तुम्हें पाके........
आमीन।
मीठे-मीठे
रूहानी बच्चों ने यह नग़मा सुना। रूहानी बच्चे ही कहते हैं कि रब्बा। बच्चे
जानते हैं यह बेहद का रब, बेहद की ख़ुशी देने वाला है यानि कि वह तमाम का रब
है। उनको तमाम बेहद के बच्चे, रूहें याद करते रहते हैं। किस न किस रूप से याद
करते हैं मगर उनको यह मालूम नहीं है कि हमको कोई उस पाक परवरदिगार से दुनिया की
बादशाही मिलती है। तुम जानते हो हमको रब जो तमाम दुनिया की बादशाही देते हैं,
वह अटल अखण्ड, अडोल है, वह हमारी बादशाही 21 विलादत क़ायम रहती है। तमाम दुनिया
पर हमारी बादशाहत रहती है जिसको कोई छीन नहीं सकता, लूट नहीं सकता। हमारी
बादशाहत है अडोल क्योंकि वहाँ एक ही मज़हब है, दो है नहीं। वह है अद्वैत सल्तनत।
बच्चे जब भी नग़मा सुनते हैं तो अपनी दारूल हुकूमत का नशा आना चाहिए। ऐसे-ऐसे
नग़में घर में रहने चाहिए। तुम्हारा सब कुछ है बातिन और बड़े-बड़े आदमियों का
निहायत ठाठ होता है। तुमको कोई ठाठ नहीं है। तुम देखते हो रब्बा ने जिसमें
दाख़िली किया है वह भी कितना सादा रहते हैं। यह भी बच्चे जानते हैं यहाँ हर एक
इन्सान अनराइटियस छी-छी काम ही करते हैं, इसलिए बेसमझ कहा जाता है। अक्ल को
बिल्कुल ही ताला लगा हुआ है। तुम कितने समझदार थे। दुनिया के मालिक थे। अभी
इबलीस ने इतना बेसमझ बना दिया है जो कोई काम के नहीं रहे हैं। रब के पास जाने
के लिए यज्ञ-तप यानि कि नमाज़-तसबीह वगैरह निहायत करते रहते हैं मगर मिलता कुछ
भी नहीं है। ऐसे ही धक्के खाते रहते हैं। रोज़ ब रोज़ ग़ैर फ़लाह ही होता जाता
है। जितना-जितना इन्सान स्याह रास्त हो जाते हैं, उतना-उतना ग़ैर फ़लाह होना ही
है। औलिया-असफ़ियां जिनका गायन है वह पाकीज़ा रहते थे। नही जानते-नही जानते कहते
थे। अभी बुरी खस्लतों से आरास्ता बन गये हैं तो कहते हैं शिवोहम् ततत्वम्,
सर्वव्यापी है। यानि कि मैं और रहमतुल्आल्मीन एक ही है, तुम्ही थे और तुम्हें
ही बनना हैं, अल्ल्लाह् ताला सब तरफ़ ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद हैं, तेरे-मेरे
में सब में है। वो लोग सिर्फ़ सुप्रीम रूह कह देते हैं। परमपिता यानि कि
सुप्रीम बाप कभी नहीं कहेंगे। सुप्रीम बाप, उनको फिर सब तरफ़ ज़र्रे ज़र्रे में
मौजूद कहना यह तो रांग हो जाता है इसलिए फिर अल्लाह ताला और सुप्रीम रूह कह देते।
बाप अल्फ़ाज़ अक्ल में नहीं आता है। करके कोई कहते भी हैं तो भी कहने बराबर।
अगर सुप्रीम बाप समझें तो अक्ल एकदम चमक उठे। बाप जन्नत का वर्सा देते हैं, वह
है ही हेविनली गॉड फाॅदर। फिर हम जहन्नुम में क्यों पड़े हैं। अब हम
निजात-ज़िन्दगी ए निजात कैसे पा सकते हैं। यह किसकी भी अक्ल में नहीं आता है।
रूह नापाक बन पड़ी है। रूह पहले सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़, समझदार होती है फिर
सतो रजो तमो में आती है, बेसमझ बन पड़ती है। अभी तुमको समझ आई है। रब्बा ने हमको
यह याददाश्त दिलाई है। जब नई दुनिया हिन्दुस्तान था तो हमारी सल्तनत थी। एक ही
सलाह, एक ही ज़ुबां, एक ही दीन, एक ही मलिक ए आज़म-मल्लिकाए आज़म की सल्तनत थी,
फिर इख्तिलाफ़ी दौर में उल्टी राह शुरू होती है फिर हर एक के आमालों पर मदार हो
जाता है। आमाल के मुताबिक एक जिस्म छोड़ दूसरा लेते हैं। अभी रब फ़रमाते हैं
मैं तुमको ऐसे आमाल सिखाता हूँ जो 21 विलादत तुम बादशाही पाते हो। भल वहाँ भी
हद का बाप तो मिलता है मगर वहाँ यह इल्म नहीं रहता कि यह बादशाहत का वर्सा बेहद
के रब का दिया हुआ है। फिर इख्तिलाफ़ी दौर से शैतानी सल्तनत शुरू होती है,
ख़बासती रिश्ते हो जाते है। फिर आमालों के मुताबिक़ विलादत मिलती है।
हिन्दुस्तान में काबिल ए एहतराम बादशाह भी थे तो नाकाबिल बादशाह भी हैं। आला
जन्नत-अदना जन्नत में तमाम काबिल ए एहतराम होते हैं। वहाँ बुतपरस्ती और अकीदत
मन्दी कोई होती नहीं फिर इख्तिलाफ़ी दौर में जब अकीदत मन्दी की राह शुरू होती
है तो जैसा राजा-रानी वैसी अवाम नाकाबिल, अकीदत मन्द बन जाते हैं। बड़े से बड़ा
राजा जो खानदान ए आफ़ताबी काबिल ए एहतराम था, वही नाकाबिल बन जाते।
अभी तुम जो वाइसलेस बनते हो, उसकी क़िस्मत 21 विलादत लिए है। फिर अकीदत मन्दी
की राह शुरू होती है। हूरैन के मन्दिर बनाकर बुतपरस्ती करते रहते हैं। यह सिर्फ़
हिन्दुस्तान में ही होता है। 84 विलादतों की कहानी जो रब सुनाते हैं, यह भी
हिन्दुस्तान रिहाईश नशीनियों के लिए है। और दीन वाले तो आते ही बाद में हैं।
फिर तो वृद्धि होते-होते ढेर के ढेर हो जाते हैं। वैरायटी अलग-अलग दीन वालों के
फीचर्स, हर एक बात में अलग-अलग हो जाते हैं। रस्म-रिवाज़ भी अलग-अलग होती है।
अकीदत मन्दी की राह के लिए चीज़ भी चाहिए। जैसे बीज छोटा होता है, दरख्त कितना
बड़ा है। दरख़्त के पत्ते वगैरह गिनती नहीं कर सकते। वैसे अकीदत मन्दी की भी
तफ्सील हो जाती है। ढेर के ढेर सहीफें बनाते जाते हैं। अब रब बच्चों को फ़रमाते
हैं - यह अकीदत मन्दी की राह की चीज़ें तमाम ख़त्म हो जाती है। अब मुझ रब को
याद करो। अकीदत मन्दी का असर भी निहायत है ना। कितना खूबसूरत है, नाच, तमाशा,
गायन वगैरह कितना खर्चा करते हैं। अभी रब फ़रमाते हैं मुझ रब को और वर्से को
याद करो। अल्लाह अव्वल अपने दीन को याद करो। कई तरह की अकीदत विलादत दर विलादत
तुम करते आये हो। राहिब भी रूहों के रहने के मुकाम, अनासर को पाक परवर दिगार
समझ लेते हैं। ब्रह्म या अनासर को ही याद करते हैं। असल में राहिब जब सातों
फ़ज़ीलतों से लबरेज़ हैं तो उन्हों को जंगल में जाकर रहना है सुकून में। ऐसे नहीं
कि उन्हों को ब्रह्म में जाकर लीन होना है। वह समझते हैं ब्रह्म की याद में रहने
से, जिस्म छोड़ने से ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। रब फ़रमाते हैं - लीन कोई हो
नहीं सकते। रूह तो ला फ़ानी है ना, वह लीन कैसे हो सकती। अकीदत मन्दी की राह
में कितना माथा कूट करते हैं, फिर कहते हैं अल्लाह ताला कोई न कोई रूप में
आयेंगे। अब कौन राइट? वह कहते हम ब्रह्म से राब्ता लगाए ब्रह्म में लीन हो
जायेंगे। घरेलू राब्ते वाले कहते अल्लाह ताला किसी न किसी रूप में नापाक को पाक
बनाने आयेंगे। ऐसे नहीं कि ऊपर से इल्हाम के ज़रिए ही सिखलायेंगे। टीचर घर बैठे
इल्हाम करेंगे क्या! इल्हाम अल्फ़ाज़ है नहीं। इल्हाम से कोई काम नहीं होता। भल
इस्राफील अलैहिस्सलाम के इल्हाम के ज़रिए तबाही कही जाती है मगर है यह ड्रामा
की नूँध। उन्हों को यह मूसल वगैरह तो बनाने ही हैं। यह सिर्फ़ अज़मत गाई जाती
है। कोई भी अपने बड़ों की अज़मत नहीं जानते। पैगम्बर को भी हादी कह देते हैं
मगर वे तो सिर्फ़ मज़हब क़याम करते हैं। हादी उनको कहा जाता जो ख़ैर निजात करें।
वह तो मज़हब क़याम करने आते हैं, उनके पिछाड़ी उनकी निस्ब नामा आती रहती है।
खैर निजात तो किसकी करते ही नहीं। तो उनको हादी कैसे कहेंगे। हादी तो एक ही है
जिसको तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला कहा जाता है। अल्लाह ताला रब ही आकर सबकी
सद्गति करते हैं। मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं। उनकी याद कभी किससे छूट नहीं सकती।
भल खाविन्द से कितना भी प्यार हो फिर भी या अल्लाह, ए खुदा ज़रूर कहेंगे क्योंकि
वही तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला है। रब बैठ समझाते हैं, यह तमाम तामीर है।
खालिक बाप मैं हूँ। सबको ख़ुशी देने वाला एक ही रब ठहरा। भाई, भाई को वर्सा नहीं
दे सकते। वर्सा हमेशा रब से मिलता है। तुम तमाम बेहद के बच्चों को बेहद का वर्सा
देता हूँ इसलिए ही मुझे याद करते हैं - ए पाक परवरदिगार, माफ करो, रहम करो।
समझते कुछ भी नहीं। अकीदत मन्दी की राह में कई तरह की अज़मत करते हैं, यह भी
ड्रामा के मुताबिक अपना पार्ट बजाते रहते हैं। रब फ़रमाते हैं मैं कोई इन्हों
के पुकारने पर नहीं आता हूँ। यह तो ड्रामा बना हुआ है। ड्रामा में मेरे आने का
पार्ट नूँधा हुआ है। कई मज़हब तबाह, एक मज़हब की क़याम और इख्तिलाफ़ी फ़ितने के
दौर की तबाही, सुनहरे दौर की क़याम करना होता है। मैं अपने वक़्त पर आपे ही आता
हूँ। इस अकीदत मन्दी की राह का भी ड्रामा में पार्ट है। अभी जब अकीदत मन्दी का
पार्ट पूरा हुआ तब आया हुआ हूँ। बच्चे भी कहते हैं, अभी हम जान गये, 5 हज़ार
साल के बाद फिर से आपके साथ मिले हैं। चक्कर पहले भी रब्बा आप जिब्राइल
अलैहिस्सलाम जिस्म में ही आये थे। यह इल्म तुमको अभी मिलता है फिर कभी नहीं
मिलेगा। यह है इल्म, वह है अकीदत। इल्म का है उजूरा, चढ़ते फ़न। सेकेण्ड में
ज़िन्दगी ए निजात कहा जाता है। कहते हैं जनक ने सेकेण्ड में ज़िन्दगी ए निजात
पाई। क्या सिर्फ़ एक जनक ने जीवनमुक्ति पाई? जीवनमुक्ति यानि कि ज़िन्दगी ए
निजात यानि कि ज़िन्दगी में रहते आज़ाद हैं, इस शैतानी सल्तनत से।
रब जानते हैं तमाम बच्चों की कितनी बुरी हालत हो गई है। उन्हों की फिर ख़ैर
निजात होनी है।बुरी हालत से फिर आला हालत, निजात ज़िन्दगी ए निजात को पाते हैं।
पहले निजात में जाकर फिर ज़िन्दगी ए निजात में आयेंगे। सुकून से फिर दारूल
मसर्रत में आयेंगे। यह चक्कर का तमाम राज़ रब ने समझाया है। तुम्हारे साथ और भी
मज़हब आते जाते हैं, इन्सानी खिल्क़त इज़ाफें को पाते जाते है। रब फ़रमाते हैं
इस वक़्त यह इन्सान खिल्क़त का दरख्त बुरी खस्लतों से आरास्ता जड़ जड़ीभूत हो
गया है। अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन का फाउन्डेशन तमाम दरख्त सड़ गया है। बाक़ी
तमाम दीन खड़े हैं। हिन्दुस्तान में एक भी अपने को अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन
का समझता नहीं है। ए हूरैन दीन के मगर इस वक़्त यह समझते नहीं हैं - हम अल्लाह
अव्वल हूर-हूरैन दीन के थे क्योंकि हूरैन तो पाकीज़ा थे। समझते हैं हम तो पाकीज़ा
हैं नहीं। हम नापाक अपने को हूरैन कैसे कहलायें? यह भी ड्रामा के प्लैन के
मुताबिक रसम पड़ जाती है हिन्दू कहलाने की। आदमशुमारी में भी हिन्दू दीन लिख
देते हैं। भल गुजराती होंगे तो भी हिन्दू गुजराती कह देंगे। उन्हों से पूछो तो
सही कि हिन्दू दीन कहाँ से आया? तो कोई को मालूम नहीं हैं सिर्फ़ कह देते -
हमारा मज़हब कृष्ण ने क़ायम किया। कब? द्वापर में। द्वापर से ही यह लोग अपने
मज़हब को भूल हिन्दू कहलाने लगे हैं इसलिए उन्हों को हूरैन दीन बद उनवान कहा
जाता है। वहाँ सब अच्छा आमाल करते हैं। यहाँ तमाम छी-छी आमाल करते हैं इसलिए
हूर हूरैन दीन बद उनवान,आमाल बद उन्वान कहा जाता है। अब फिर अफ़ज़ल दीन, अफ़ज़ल
हुरैनी आमाल का क़याम हो रहा है इसलिए कहा जाता है अब इन 5 ख़बासतों को छोड़ते
जाओ। यह ख़बासत आधा चक्कर से रहे हैं। अब एक विलादत में इनको छोड़ना - इसमें ही
मेहनत लगती है। मेहनत बिगर थोड़े ही दुनिया की बादशाही मिलेगी। रब को याद करेंगे
तब ही अपने को तुम बादशाहत का तिलक देते हो यानि कि बादशाहत के हक़दार बनते हो।
जितना अच्छी तरह याद में रहेंगे, सिरात ए मुस्तकीम पर चलेंगे तो तुम राजाओं का
राजा बनेंगे। पढ़ाने वाला उस्ताद तो आया है पढ़ाने। यह दारुल उलूम है ही इन्सान
से हूरैन बनने की। हज़रात से अफ़ज़ल हज़रात बनाने की कहानी सुनाते हैं। यह कहानी
कितनी नामीग्रामी है। इनको कहानी ए हयात, हक़ीक़ी हज़रात की कहानी, तीजरी की
कहानी भी कहते हैं। तीनों का मतलब भी रब समझाते हैं। अकीदत मन्दी की राह की तो
निहायत कहानियां हैं। तो देखो नग़मा कितना अच्छा है। रब्बा हमको तमाम दुनिया का
मालिक बनाते हैं, जो मालिकपना कोई लूट न सके। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1. हमेशा यह याददाश्त रखनी है कि हम एक राय, एक सल्तनत, एक दीन की क़याम के
ज़रिया हैं इसलिए एक राय होकर रहना है।
2. अपने को बादशाहत का तिलक देने के लिए खबासतों को छोड़ने की मेहनत करनी है।
तालीम पर पूरा अटेंशन देना है।
बरक़ात:-
तीनों
ज़माने को जानने वाली सूरत ए हाल के ज़रिए इबलीस के वार से सेफ रहने वाले हवास
ए बालातर के हक़दार बनो।
मिलन के दौर की ख़ास
बरक़ात और मोमिन ज़िन्दगी की खासियत है - हवास ए बालातर ख़ुशी। यह एहसास और किसी
भी दौर में नहीं होता। मगर इस ख़ुशी के एहसास के लिए तीनों ज़माने को जानने वाली
सूरत ए हाल के ज़रिए इबलीस के वार से सेफ रहो। अगर बार-बार इबलीस का वार होता
रहेगा तो चाहते हुए भी हवास ए बालातर ख़ुशी का एहसास कर नहीं पायेंगे। जो हवास
ए बालातर ख़ुशी का एहसास कर लेते हैं उन्हें आज़ाओं की ख़ुशी कशिश कर नहीं सकती,
नॉलेजफुल होने के सबब उनके सामने वह कमतर दिखाई देगा।
स्लोगन:-
आमाल और ज़हनियत
दोनों खिदमत का बैलेन्स हो तो कुव्वत नशीन माहौल बना सकेंगे।
आमीन