“मीठे बच्चे
तुम जो भी
आमाल करते हो उसका सिला ज़रूर मिलता है,बे गर्ज खिदमत तो सिर्फ एक रब ही करते
हैं”
सवाल:-
यह क्लास
बड़ा वन्डरफुल है कैसे? यहाँ अहम मेहनत कौन सी करनी होती है?
जवाब:-
यही एक
क्लास है जिसमें छोटे बच्चे भी बैठे हैं तो बुज़ुर्ग भी बैठे हैं। यह क्लास ऐसा
वन्डरफुल है जो इसमें तवाइफै, कुब्जायें, राहिब भी आकर एक दिन यहाँ बैठेंगे। यहाँ
है ही अहम याद की मेहनत। याद से ही रुह और जिस्म की नेचरक्युअर होती है मगर याद
के लिए भी इल्म चाहिए।
नग़मा:-
रात के राही.......
आमीन।
मीठे-मीठे
रूहानी बच्चों ने नग़मा सुना। रूहानी रब बच्चों को इसका मतलब भी समझाते हैं।
वण्डर तो यह है गीता और सहीफें वगैरह बनाने वाले इनका मतलब नहीं जानते। हर एक
बात का बे मतलब ही निकालते हैं। रूहानी रब जो दरिया ए इल्म नापाक से पाक बनाने
वाले है, वह बैठ इनका मतलब बताते हैं। हक़ीक़ी इबादत भी रब ही सिखलाते हैं। तुम
बच्चे जानते हो - अभी फिर से बादशाहों का बादशाह बन रहे हैं और स्कूलों में ऐसे
कोई थोड़े ही कहेंगे कि हम फिर से बैरिस्टर बनते हैं। फिर से, यह अल्फ़ाज़ किसको
कहने नहीं आयेगा। तुम कहते हो हम 5 हज़ार साल पहले मिसल फिर से बेहद के रब से
पढ़ते हैं। यह तबाही भी फिर से होनी है ज़रूर। कितने बड़े-बड़े बॉम्ब्स बनाते
रहते हैं। निहायत पाॅवरफुल बनाते हैं। रखने लिए तो नहीं बनाते हैं ना। यह तबाही
भी मुबारक काम के लिए है ना। तुम बच्चों को डरने की कोई दरकार नहीं है। यह है
फ़लाह नशीन जंग। रब आते ही हैं फ़लाह के लिए। कहते भी हैं रब आकर जिब्राइल
अलैहिस्सलाम के ज़रिए क़याम, इस्राफील अलैहिस्सलाम के ज़रिए तबाही का फ़र्ज़
कराते हैं। सो यह बॉम्ब्स वगैरह हैं ही तबाही के लिए। इनसे जास्ती और तो कोई
चीज़ है नहीं। साथ-साथ नैचुरल कैलेमिटीज़ भी होती है। उनको कोई इलाही कैलेमिटीज
नहीं कहेंगे। यह कुदरती आफ़तें ड्रामा में नूँध हैं। यह कोई नई बात नहीं। कितने
बड़े-बड़े बॉम्ब बनाते रहते हैं। कहते हैं हम शहरों के शहर ख़त्म कर देंगे। अभी
जो जापान की लड़ाई में बॉम्ब्स चलाये - यह तो निहायत छोटे थे। अभी तो बड़े-बड़े
बॉम्ब्स बनाये हैं। जब जास्ती मुसीबत में पड़ते हैं, बर्दाश्त नहीं कर सकते तो
फिर बॉम्ब्स शुरू कर लेते हैं। कितना नुकसान होगा। वह भी ट्रायल कर देख रहे
हैं। अरबों रूपया खर्चा करते हैं। इन बनाने वालों की तनख्वाह भी निहायत होती
है। तो तुम बच्चों को ख़ुशी होनी चाहिए। पुरानी दुनिया की ही तबाही होनी है।
तुम बच्चे नई दुनिया के लिए तजवीज़ कर रहे हो। अक्ल भी कहती है पुरानी दुनिया
ख़त्म होनी है ज़रूर। बच्चे समझते हैं इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में क्या है,
सुनहरे दौर में क्या होगा। तुम अभी मिलन पर खड़े हो। जानते हो सुनहरे दौर में
इतने इन्सान नहीं होंगे, तो इन सबकी तबाही होगी। यह कुदरती आफ़तें चक्कर पहले
भी हुई थी। पुरानी दुनिया ख़त्म होनी ही है। कैलेमिटीज तो ऐसी निहायत होती आई
हैं। मगर वह होती हैं थोड़े अन्दाज में। अभी तो यह पुरानी दुनिया तमाम ख़त्म
होनी है। तुम बच्चों को तो निहायत ख़ुशी होनी चाहिए। हम रूहानी बच्चों को पाक
परवरदिगार रब बैठ समझाते हैं, यह तबाही तुम्हारे लिए हो रही है। यह भी गायन है
रूद्र इल्म यज्ञ से तबाही की आग रोशन हुई। कई बातें गीता में हैं जिनका मतलब बड़ा
अच्छा है, मगर कोई समझते थोड़े ही हैं। वह सुकून मांगते रहते हैं। तुम कहते हो
जल्दी तबाही हो तो हम जाकर खुशहाल होवें। रब फ़रमाते हैं खुशहाल तब होंगे जब
सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ होंगे। रब कई तरह की प्वाइंट्स देते हैं फिर कोई की
अक्ल में अच्छी तरह बैठता हैं, कोई की अक्ल में कम। बुज़ुर्ग मांए समझती हैं
रहमतुल्आल्मीन को याद करना है, बस। उनके लिए समझाया जाता है - अपने को रूह समझ
रब को याद करो। फिर भी वर्सा तो पा लेती हैं। साथ में रहती हैं। नुमाइश में
तमाम आयेंगे। अजामिल जैसी गुनाहगार रूहों, तवाइफों वगैरह तमाम का फ़लाह होने का
है। मेहतर भी अच्छे कपड़े पहनकर आ जाते हैं। गांधी जी ने अछूतों को फ्री कर दिया।
साथ में खाते भी हैं। बाप तो और भी मना नहीं करते हैं। समझते हैं इन्हों का भी
फ़लाह करना ही है। काम से कोई कनेक्शन नहीं है। इसमें तमाम मदार है रब के साथ
अक्ल का राब्ता लगाने का। रब को याद करना है। रूह कहती है मैं अछूत हूँ। अब हम
समझते हैं हम सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ हूर-हूरैन थे। फिर दोबारा विलादत
लेते-लेते आखिर में आकर नापाक बने हैं। अब फिर मुझ रूह को पाकीज़ा बनना है।
तुमको मालूम है - सिन्ध में एक भीलनी आती थी, ट्रांस में जाती थी। दौड़ कर आए
मिलती थी। समझाया जाता था - इनमें भी रूह तो है ना। रूह का हक़ है, अपने रब से
वर्सा लेना। उनके घर वालों को कहा गया - इनको इल्म उठाने दो। बोले हमारी बिरादरी
में हंगामा होगा। डर के मारे उनको ले गये। तो तुम्हारे पास आते हैं, तुम किसको
मना नहीं कर सकते हो। गाया हुआ है अबलायें, तवाइफें, भीलनियां, राहिब वगैरह
तमाम का फ़लाह करते हैं। राहिब लोगों से लेकर भीलनी तक।
तुम बच्चे अभी यज्ञ की खिदमत करते हो तो इस खिदमत से निहायत दस्तयाबी होती है।
निहायतों का फ़लाह हो जाता है। रोज़ ब रोज़ नुमाइश खिदमत की निहायत इज़ाफ़ा होगी।
रब्बा बैजेस भी बनवाते रहते हैं। कहाँ भी जाओ तो इस पर समझाना है। यह बाप, यह
दादा, यह बाप का वर्सा। अब रब फ़रमाते हैं - मुझे याद करो तो तुम पाकीज़ा बन
जायेंगे। गीता में भी है - दिल से मुझे याद करो। सिर्फ़ उनमें मेरा नाम उड़ाए
बच्चे का नाम दे दिया है। हिन्दुस्तान रिहाईश नशीनियों को भी यह मालूम नहीं है
कि राधे-कृष्ण का आपस में क्या रिश्ता है। उनकी शादी वगैरह की हिस्ट्री कुछ भी
नहीं बताते हैं। दोनों अलग-अलग दारूल हुकूमत के हैं। यह बातें रब बैठ समझाते
हैं। यह अगर समझ जाएं और कह दें कि रहमतुल्आल्मीन फ़रमाते हैं, तो तमाम उनको भगा
दें। कहें तुम यह फिर कहाँ से सीखे हो? वह कौन-सा हादी है? कहे बी.के. हैं तो
तमाम बिगड़ जाएं। इन हादियों की बादशाहत ही चट हो जाए। ऐसे निहायत आते हैं।
लिखकर भी देते हैं, फिर गुम हो जाते हैं।
रब बच्चों को कोई भी तक़लीफ नहीं देते हैं। निहायत आसान तरीका बतलाते हैं। कोई
को बच्चा नहीं होता है तो अल्ल्लाह् ताला को कहते हैं बच्चा दो। फिर मिलता है
तो उनकी बड़ी अच्छी परवरिश करते हैं। पढ़ाते हैं। फिर जब बड़ा होगा तो कहेंगे
अब अपना धन्धा करो। बाप बच्चे को परवरिश कर उनको लायक़ बनाते हैं तो बच्चों का
सर्वेन्ट ठहरा ना। यह बाप तो बच्चों की खिदमत कर साथ ले जाते हैं। वो जिस्मानी
बाप समझेगा बच्चा बड़ा हो अपने धन्धे में लग जाए फिर हम बुज़ुर्ग होंगे तो हमारी
खिदमत करेगा। यह बाप तो खिदमत नहीं मांगते हैं। यह है ही बे गर्ज। जिस्मानी बाप
समझते हैं - जब तक जीता हूँ तब तक बच्चों का फ़र्ज़ है हमारी सम्भाल करना। यह
खुवाहिशात रखते हैं। यह बाप तो कहते हैं मैं बे गर्ज खिदमत करता हूँ। हम
बादशाहत नहीं करते हैं। मैं कितना बे गर्ज हूँ। और जो कुछ भी करते हैं तो उसका
सिला उनको ज़रूर मिलता है। यह तो है सबका बाप। कहते हैं मैं तुम बच्चों को
जन्नत की बादशाहत देता हूँ। तुम कितना आला मर्तबा हासिल करते हो। मैं तो सिर्फ़
आलम ए अरवाह का मालिक हूँ, सो तो तुम भी हो मगर तुम बादशाहत लेते हो और गॅवाते
हो। हम बादशाहत नहीं लेते हैं, न गॅवाते हैं। हमारा ड्रामा में यह पार्ट है।
तुम बच्चे ख़ुशी का वर्सा पाने की तजवीज़ करते हो। बाक़ी तमाम सिर्फ़ सुकून
मांगते हैं। वो हादी लोग कहते हैं ख़ुशी काग विष्टा जैसी है इसलिए वह सुकून ही
चाहते हैं। वह यह नॉलेज उठा न सके। उनको ख़ुशी का मालूम ही नहीं है। रब समझाते
हैं सुकून और ख़ुशी का वर्सा देने वाला एक मैं ही हूँ। आला जन्नत-अदना जन्नत
में हादी होता नहीं, वहाँ शैतान ही नहीं। वह है ही इलाही सल्तनत। यह ड्रामा बना
हुआ है। यह बातें और किसकी अक्ल में बैठेंगी नहीं। तो बच्चों को अच्छी तरह
इख्तियार कर और आला मर्तबा पाना है। अभी तुम हो मिलन पर। जानते हो नई दुनिया की
दारूल हुकूमत क़ायम हो रही है। तो तुम हो ही मिलन के दौर पर। बाक़ी सब हैं
इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में। वह तो चक्कर की उम्र ही लाखों साल कह देते हैं।
घोर अन्धियारे में हैं ना। गाया भी हुआ है कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं।
फ़तह तो पन्जतनों की गाई हुई है।
तुम हो मोमिन। यज्ञ मोमिन ही तामीर करते हैं। यह तो है सबसे बड़ा बेहद का भारी
इलाही अल्ल्लाह् ताला का यज्ञ। वह हद के यज्ञ कई तरह के होते हैं। यह इलाही
यज्ञ एक ही बार होता है। आला जन्नत-अदना जन्नत में फिर कोई यज्ञ होता नहीं
क्योंकि वहाँ कोई आफ़तें वगैरह की बात नहीं। वह है सब हद के यज्ञ। यह है बेहद
का। यह बेहद रब का तामीर किया हुआ यज्ञ है, जिसमें बेहद की कुर्बानी पड़नी है।
फिर आधा चक्कर कोई यज्ञ नहीं होगा। वहाँ शैतानी सल्तनत ही नहीं। शैतानी सल्तनत
शुरू होने से फिर यह तमाम शुरू होते हैं। बेहद का यज्ञ एक ही बार होता है, इनमें
यह तमाम पुरानी खिल्क़त खत्म हो जाती है। यह है बेहद का रूद्र इल्म यज्ञ। इसमें
अहम है इल्म और इबादत की बात। राब्ता यानि कि याद। याद अल्फ़ाज़ निहायत मीठा
है। इबादत अल्फ़ाज़ कॉमन हो गया है। इबादत का मतलब कोई नहीं समझते हैं। तुम समझा
सकते हो - इबादत यानि रब को याद करना है। रब्बा आप तो हमको वर्सा देते हैं बेहद
का। रूह बात करती है - रब्बा, आप फिर से आये हो। हम तो आपको भूल गये थे। आपने
हमको बादशाही दी थी। अब फिर आकर मिले हो। आपकी सिरात ए मुस्तकीम पर हम ज़रूर
चलेंगे। ऐसे-ऐसे अन्दर में अपने साथ बातें करनी होती हैं। रब्बा, आप तो हमें
निहायत अच्छा रास्ता बताते हो। हम चक्कर- चक्कर भूल जाते हैं। अभी रब फिर अभुल
बनाते हैं इसलिए अब रब को ही याद करना है। याद से ही वर्सा मिलेगा। मैं जब सामने
आता हूँ तब तुमको समझाता हूँ। तब तक गाते रहते हैं - तुम ग़म दूर करने वाले
ख़ुशी देने वाले हो। अज़मत गाते हैं मगर न रूह को, न पाक परवरदिगार को जानते
हैं। अभी तुम समझते हो - इतनी छोटे नुक्ते में ला फ़ानी पार्ट नूँधा हुआ है। यह
भी रब समझाते हैं। उनको कहा जाता है पाक परवरदिगार यानि कि सुप्रीम रूह। बाक़ी
कोई बड़ा हज़ारों सूरज मिसल नहीं हूँ। हम तो उस्ताद मिसल पढ़ाते रहते हैं। कितने
बेहिसाब बच्चे हैं। यह क्लास तो देखो कितना वण्डरफुल है। कौन-कौन इसमें पढ़ते
हैं? अबलायें, कुब्जाए, राहिब भी एक दिन आकर बैठेंगे। बुज़ुर्ग मांए, छोटे बच्चे
वगैरह तमाम बैठे हैं। ऐसा स्कूल कभी देखा। यहाँ है याद की मेहनत। यह याद ही
टाइम लेती है। याद की तजवीज़ करनी यह भी इल्म है ना। याद के लिए भी इल्म। चक्कर
समझाने के लिए भी इल्म। नेचुरल सच्चा-सच्चा नेचरक्युअर इसको कहा जाता है।
तुम्हारी रूह बिल्कुल प्योर हो जाती है। वह होती है जिस्म की क्युअर। यह है रूह
की क्युअर। रूह में ही खाद पड़ती है। सच्चे सोने का सच्चा ज़ेवर होता है। अभी
यहाँ बच्चे जानते हैं रहमतुल्आल्मीन सामने आया हुआ है। बच्चों को रब को ज़रूर
याद करना है। हमको अब वापिस जाना है। इस पार से उस पार जाना है। बाप को, वर्से
को और घर को भी याद करो। वह है स्वीट साइलेन्स होम। दु:ख होता है बेसुकूनियत
से, ख़ुशी होती है सुकून से। सुनहरे दौर में ख़ुशी-सुकून-दौलत सब कुछ है। वहाँ
लड़ाई-झगड़े की बात ही नहीं। बच्चों को यही फुरना होना चाहिए - हमको सातों
फ़ज़ीलतों से लबरेज़, सच्चा सोना बनना है तब ही आला मर्तबा पायेंगे। यह रूहानी
खाना मिलता है, उसको फिर उगारना चाहिए। आज कौनसी, कौनसी अहम प्वाइंट्स सुनी! यह
भी समझाया सफरें दो होती हैं - रूहानी और जिस्मानी। यह रूहानी सफ़र ही काम आयेगी।
अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते हैं - दिल से मुझे याद करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) यह तबाही भी मुबारक काम के लिए है इसलिए डरना नहीं है, फ़लाह नशीन रब फ़लाह
का ही काम कराते हैं, इस याददाश्त से हमेशा ख़ुशी में रहना है।
2) हमेशा एक ही फुरना रखना है कि सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ सच्चा सोना बन आला
मर्तबा पाना है। जो रूहानी खाना मिलता है उसे उगारना है।
बरक़ात:-
हक़ीक़ी
सोहबत के ज़रिए रूहानी रंग लगाने वाले हमेशा ख़ुशग्वार और डबल लाइट बनो।
जो बच्चे रब को दिल का
सच्चा साथी बना लेते हैं उन्हें सोहबत का रूहानी रंग हमेशा लगा रहता है।अक्ल के
ज़रिए हक़ीक़ी बाप, हक़ीक़ी उस्ताद और हक़ीक़ी हादी की सोहबत करनी है - यही
हक़ीक़ी सोहबत है। जो इस हक़ीक़ी सोहबत में रहते हैं वो हमेशा खुशगवार और डबल
लाइट रहते हैं। उन्हें किसी भी तरह के बोझ का एहसास नहीं होता। वे ऐसा एहसास
करते जैसे भरपूर हैं, खुशियों की खान मेरे साथ है, जो भी रब का है वह सब अपना
हो गया।
स्लोगन:-
अपने मीठे बोल और
जोश-हुल्लास की इमदाद से दिलशिकस्त को कुव्वत नशीन बनाओ।
आमीन