“मीठे बच्चे
तुम्हें नशा
रहना चाहिए कि हम मोमिन सो हूरैन बनते हैं, हम मोमिनों को ही रब की अफ़ज़ल
सिरात मिलती है”
सवाल:-
जिनका न्यु
ब्लड है उन्हें कौन सा शौक और कौन सी मस्ती होनी चाहिए?
जवाब:-
यह दुनिया
जो पुरानी आइरन एजड बन गई है उसे नई गोल्डन एजेड बनाने का, पुराने से नया बनाने
का शौक होना चाहिए। कन्याओं का न्यु ब्लड है तो अपने हमजिन्स को उठाना चाहिए।
नशा क़ायम रखना चाहिए। तकरीर करने में भी बड़ी मस्ती होनी चाहिए।
नग़मा:-
रात के राही.....
आमीन।
बच्चों ने
इस नग़में का मतलब तो समझा। अभी अकीदत मन्दी की घोर अन्धियारी रात तो पूरी हो
रही है। बच्चे समझते हैं हमारे ऊपर अब ताज आने का है। यहाँ बैठे हैं, एम
ऑब्जेक्ट है - इन्सान से हूरैन बनने की। जैसे राहिब समझाते हैं तुम अपने को
भैंस समझो तो वह रूप हो जायेंगे। वह है अकीदत मन्दी की रिवायत। जैसे यह भी
रिवायत है कि राम ने बन्दरों की सेना ली। तुम यहाँ बैठे हो। जानते हो हम सो
हूर-हूरैन डबल सिरताज बनेंगे। जैसे स्कूल में पढ़ते हैं तो कहते हैं मैं यह
पढ़कर डॉक्टर बन जाऊंगा, इन्जीनियर बन जाऊंगा। तुम समझते हो इस तालीम से हम सो
हूर-हूरैन बन रहे हैं। यह जिस्म छोड़ेंगे और हमारे सिर पर ताज होगा। यह तो
निहायत गन्दी छी-छी दुनिया है ना। नई दुनिया है फर्स्टक्लास दुनिया। पुरानी
दुनिया है बिल्कुल थर्डक्लास दुनिया। यह तो खलास होने की है। नयी दुनिया का
मालिक बनाने वाला ज़रूर दुनिया का खालिक ही होगा। दूसरा कोई तालीम दे न सके।
रहमतुल्आल्मीन ही तुमको तालीम दे कर सिखलाते हैं। रब ने समझाया है - रूहानी
हवासी पूरा बन जाएं तो बाक़ी और क्या चाहिए। तुम मोमिन तो हो ही। जानते हो हम
हूरैन बन रहे हैं। हूरैन कितने पाकीज़ा थे। यहाँ कितने नापाक इन्सान हैं। शक्ल
भल इन्सान की है मगर सीरत देखो कैसी है। जो हूरैन के बुतपरस्त हैं वह खुद भी
उन्हों के आगे अज़मत गाते हैं - आप तमाम फ़ज़ीलतों से लबरेज़, 16 फ़नों से
आरास्ता हैं..... हम ख़बासती गुनाहगार हैं। सूरत तो उन्हों की भी इन्सान की है
मगर उनके पास जाकर अज़मत गाते हैं, अपने को गन्दे ख़बासती कहते हैं। हमारे में
कोई फ़ज़ीलत नहीं। हैं तो इन्सान माना मन के बस में। अभी तुम समझते हो हम तो अभी
चेंज होकर जाए हूरैन बनेंगे। कृष्ण की बुतपरस्ती करते ही इसलिए हैं कि कृष्णपुरी
में जायें। मगर यह मालूम नहीं है कि कब जायेंगे। अकीदत करते रहते हैं कि
अल्ल्लाह् ताला आकर अकीदत का सिला देंगे। पहले तो तुमको यह यक़ीन चाहिए कि हमको
पढ़ाते कौन हैं। यह है रहमतुल्आल्मीन की सिरात। रहमतुल्आल्मीन तुम्हें सिरात ए
मुस्तकीम दे रहे हैं। जिनको यह मालूम नहीं वह अफ़जल बन कैसे सकते। इतने तमाम
मोमिन रहमतुल्आल्मीन की सिरात पर चलते हैं। पाक परवरदिगार की राय ही अफ़जल बनाती
है, जिसकी तक़दीर में होगा, उनकी अक्ल में बैठेगा। नहीं तो कुछ भी समझेंगे नहीं।
जब समझेंगे तब ख़ुश हो मदद करने लग पड़ेंगे। कई तो जानते नहीं हैं, उनको क्या
मालूम, यह कौन हैं इसलिए बाबा कोई से मिलते भी नहीं हैं। वह तो और ही अपनी राय
निकालेंगे।सिरात ए मुस्तकीम को न जानने सबब उनको भी अपनी राय देने लग पड़ते
हैं। अब रब आये ही हैं तुम बच्चों को अफ़ज़ल बनाने के लिए। बच्चे जानते हैं 5
हज़ार साल पहले मुआफिक़ रब्बा आपसे आकर मिले हैं। जिनको मालूम नहीं है, ऐसे
रेसपान्ड दे नहीं सकते। बच्चों को तालीम का निहायत नशा रहना चाहिए। यह बड़ी आला
तालीम है मगर इबलीस भी बड़ा अगेन्स्ट है। तुम जानते हो हम वह तालीम हासिल करते
हैं जिससे हमारे सिर पर डबल सिरताज आना है। मुस्तकबिल विलादत दर विलादत डबल
सिरताज बनेंगे। तो इसके लिए फिर ऐसी पूरी तजवीज़ करनी चाहिए ना। इसको कहा जाता
है हक़ीक़ी इबादत। कितना वन्डर है। रब्बा हमेशा समझाते हैं - लक्ष्मी-नारायण के
मन्दिर में जाओ। पुजारियों को भी तुम समझा सकते हो। पुजारी भी किसको बैठ समझाये
कि इन लक्ष्मी-नारायण को भी यह मर्तबा कैसे मिला, यह दुनिया का मालिक कैसे बनें?
ऐसे-ऐसे बैठ सुनायें तो पुजारी की भी इज़्ज़त हो जाए। तुम कह सकते हो हम आपको
समझाते हैं इन लक्ष्मी-नारायण को यह सल्तनत कैसे मिली? गीता में भी भगवानुवाच
है ना। मैं तुमको राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। जन्नत रिहाईश नशीन
तो तुम बनते हो ना। तो बच्चों को कितना नशा रहना चाहिए - हम यह बनते हैं! भल
अपनी तस्वीर और बादशाहत की तस्वीर भी यहाँ साथ में निकालो। नीचे तुम्हारी
तस्वीर, ऊपर में बादशाहत की तस्वीर हो। इसमें खर्चा तो नहीं है ना। बादशाही
पोशाक तो झट बन सकती है। तो घड़ी-घड़ी याद रहेगा - हम सो हूरैन बन रहे हैं। ऊपर
में भल रहमतुल्आल्मीन भी हो। यह भी तस्वीर निकालनी होंगी। तुम इन्सान से हूरैन
बनते हो। यह जिस्म छोड़ हम जाए हूरैन बनेंगे क्योंकि अभी हम यह हक़ीक़ी इबादत
सीख रहे हैं। तो यह फोटो भी मदद करेंगा। ऊपर में रहमतुल्आल्मीन फिर बादशाहत
तस्वीर। नीचे तुम्हारा सादी तस्वीर। रहमतुल्आल्मीन से हक़ीक़ी इबादत सीख हम सो
हूरैन डबल सिरताज बन रहे हैं। तस्वीर रखी होगी, कोई भी पूछेंगे तो हम बतला
सकेंगे - हमको सिखलाने वाला यह रहमतुल्आल्मीन है। तस्वीर देखने से बच्चों को नशा
चढ़ेगा। भल दुकान में भी यह तस्वीर रख दो। अकीदत मन्दी की राह में बाबा नारायण
की तस्वीर रखता था। पॉकेट में भी रहती थी। तुम भी अपना फोटो रख दो तो याद रहेगा
- हम सो हूर-हूरैन बन रहे हैं। रब को याद करने का तरीक़ा तलाशना चाहिए। रब को
भूल जाने से ही गिरते हैं। ख़बासत में गिरेगा तो फिर शर्म आयेगी। अभी तो हम ये
हूरैन बन नहीं सकेंगे। हार्ट फेल हो जायेगा। अभी हम हूरैन कैसे बनेंगे? रब्बा
फ़रमाते हैं ख़बासत में गिरने वाले का फोटो निकाल दो। बोलो, तुम जन्नत में चलने
लायक़ नहीं हो, तुम्हारा पासपोर्ट खलास। खुद भी फील करेंगे हम तो गिर गये। अब
हम जन्नत में कैसे जायेंगे। जैसे नारद का मिसाल देते हैं। उनको कहा तुम अपनी
शक्ल तो देखो। लक्ष्मी को वरने लायक़ हो? तो शक्ल बन्दर की दिखाई पड़ी। तो
इन्सान को भी शर्म आयेगी - हमारे में तो यह ख़बासत हैं, फिर हम श्री नारायण को
और श्री लक्ष्मी को कैसे वरेंगे। रब्बा तरीक़त तो तमाम बतलाते हैं। मगर कोई
यक़ीन भी रखे ना। ख़बासत का नशा आता है तो समझते हैं इस हिसाब से हम बादशाहों
का बादशाह डबल सिरताज कैसे बनेंगे। तजवीज़ तो करनी चाहिए ना। रब्बा समझाते रहते
हैं - ऐसी-ऐसी तरीक़त करो और सबको समझाते रहो। यह हक़ीक़ी इबादत का क़याम हो रहा
है। अब तबाही सामने खड़ी है। रोज़ ब रोज़ तूफान का ज़ोर होता जाता है। बॉम्ब्स
वगैरह भी तैयार हो रहे हैं। तुम यह तालीम हासिल करते ही हो मुस्तकबिल आला मर्तबा
पाने के लिए। तुम एक ही बार नापाक से पाक बनते हो। इन्सान समझते थोड़े ही हैं
कि हम जहन्नुम रिहाईश नशीन हैं क्योंकि पत्थर अक्ल हैं। अभी तुम पत्थर अक्ल से
पारस अक्ल बन रहे हो। तक़दीर में होगा तो झट समझेगा। नहीं तो तुम कितना भी माथा
मारो, अक्ल में बैठेगा नहीं। रब को ही नहीं जानते तो नास्तिक हैं यानि कि न धनी
के। तो धणका बनाना चाहिए ना। जबकि रहमतुल्आल्मीन के बच्चे हैं। यहाँ जिनको इल्म
है वह अपने बच्चों को ख़बासतों से बचाते रहेंगे। बे इल्मी लोग तो अपने मुआफिक़
बच्चों को भी फँसाते रहेंगे। तुम जानते हो यहाँ ख़बासत से बचाया जाता है।
कन्याओं को तो पहले बचाना चाहिए। माँ-बाप जैसे कि बच्चे को ख़बासत में धक्का
देते हैं। तुम जानते हो यह बद उनवानी दुनिया है। अफ़ज़ल नशीनी दुनिया चाहते
हैं। अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते हैं - मैं जब आता हूँ अफ़जल नशीन बनाने के लिए तो
तमाम बद उनवानी हैं। मैं तमाम का फ़लाह करता हूँ। गीता में भी लिखा हुआ है
अल्ल्लाह् ताला को ही राहिब-वली वगैरह तमाम का फ़लाह करने आना है। एक ही
अल्ल्लाह् ताला बाप आकर सबका फ़लाह करते हैं। अभी तुम वन्डर खाते हो - इन्सान
कितने पत्थर अक्ल हो जाते हैं। इस वक़्त अगर मालूम हो बड़ों-बड़ों को कि गीता
का भगवान शिव है तो मालूम नहीं क्या हो जाए। हाहाकार मच जाए। मगर अभी देरी है।
नहीं तो सबके अड्डे एकदम हिलने लग जाएं। बहुतों के तख्त हिलते हैं ना। लड़ाई जब
होती है तो मालूम पड़ता है, इनका तख्त हिलने लगा है, अभी गिर पड़ेंगे। अभी यह
हिलें तो बहुत हलचल मच जाए। आगे चल होने का है। नापाक से पाक बनाने वाला तमाम
का खैर निजात दिलाने वाला खुद फ़रमाते हैं - बरोबर जिब्राइल अलैहिस्सलाम के
जिस्म के ज़रिए क़याम कर रहे हैं। तमाम की ख़ैर निजात यानि कि फ़लाह कर रहे
हैं। अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते - यह नापाक दुनिया है, इन सबका फ़लाह मुझे करना
है। अभी तमाम नापाक हैं। नापाक फिर किसको पाकीज़ा कैसे बनायेंगे? पहले तो खुद
पाकीज़ा बनें फिर फालोअर्स को बनायें। तकरीर करने में बड़ी मस्ती चाहिए। कन्याओं
का न्यू ब्लड है। तुम पुराने से नया बना रहे हो। तुम्हारी रूह जो पुरानी आइरन
एजेड बन गई है, अब नई गोल्डन एजेड बनती है। खाद निकलती जाती है। तो बच्चों को
बड़ा शौक चाहिए। नशा क़ायम रखना चाहिए। अपने हमजिन्स को उठाना चाहिए। गाया भी
जाता है, हादी माता। माता हादी कब होती है सो अभी तुम जानते हो। जगत अम्बा ही
फिर राज-राजेश्वरी बनती है। फिर वहाँ कोई हादी रहता ही नहीं। हादी का सिलसिला
अभी चलता है। माताओं पर रब आकर इल्म के आब ए हयात का कलष रखते हैं। शुरू से ऐसे
होता है। सेन्टर्स के लिए भी कहते हैं आदम ज़ादियां चाहिए। रब्बा तो फ़रमाते
हैं आपे ही चलाओ। हिम्मत नहीं है? कहते नहीं रब्बा टीचर चाहिए। यह भी दुरुस्त
है, इज़्ज़त देते हैं।
आजकल दुनिया में एक-दो को इज़्ज़त भी लंगड़ा देते हैं। आज प्राइम मिनिस्टर है,
कल उनको उड़ा देते हैं।मुस्तकल ख़ुशी किसको मिलती नहीं। इस वक़्त तुम बच्चों को
मुस्तक़ल सल्तनत-क़िस्मत मिल रही है। तुमको रब्बा कितने तरह से समझाते हैं। अपने
को हमेशा खुशगवार रखने के लिए निहायत अच्छी-अच्छी तरीक़त बतलाते हैं। नेक
जज़्बात रखना है ना। ओहो! हम यह आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम बनते हैं
फिर अगर किसकी तक़दीर में नहीं है तो तदबीर क्या करें। रब्बा तदबीर तो बतलाते
हैं ना। तदबीर ख़ारिज नहीं जाती है। यह तो हमेशा कामयाब होती है। दारूल हुकूमत
क़ायम हो ही जायेगी। तबाही भी क़यामत जंग के ज़रिए होनी ही है। आगे चल तुम ज़ोर
भरो तो यह सब आयेंगे। अभी नहीं समझेंगे फिर तो उन्हों की बादशाहत ही उड़ जाए।
कितने बेहिसाब हादी लोग हैं, ऐसा कोई इन्सान नहीं जो किसी हादी का फालोअर न हो।
यहाँ तुम्हें एक हक़ीक़ी हादी मिला है ख़ैर निजात देने वाला। तस्वीर बड़े अच्छे
हैं। यह है ख़ैर निजात यानि कि दारूल मसर्रत, यह है दारूल निजात। अक्ल भी कहती
है हम सब रूहें दारूल निजात में रहती हैं। जहाँ से फिर टॉकी में आते हैं। वहाँ
के रहवासी हैं। यह खेल ही हिन्दुस्तान पर बना हुआ है। शिवजयन्ती भी यहाँ मनाते
हैं। रब फ़रमाते हैं मैं आया हूँ, चक्कर के बाद फिर आऊंगा। हर 5 हज़ार साल बाद
रब के आते ही पैराडाइज़ बन जाता है। कहते भी हैं क्राइस्ट से इतने साल पहले
पैराडाइज़ थी, जन्नत थी। अभी नहीं है फिर होनी है। तो ज़रूर जहन्नुम रिहाईश
नशीनियों की तबाही, जन्नत रिहाईश नशीनियों का क़याम चाहिए। सो तुम जन्नत रिहाईश
नशीन बन रहे हो। जहन्नुम रिहाईश नशीन तमाम तबाह हो जायेंगे। वह तो समझते हैं
अजुन इतने लाखों साल पड़े हैं। बच्चे बड़े हो शादी करायें... तुम थोड़े ही ऐसा
कहेंगे। अगर बच्चा राय पर नहीं चलता है तो फिर सिरात ए मुस्तकीम लेनी पड़े कि
जन्नत रिहाईश नशीन नहीं बनते हैं तो क्या करें। रब फ़रमाएंगे अगर फरमाबरदार नहीं
है तो जाने दो। इसमें पक्की खात्मा ए लगाव हालत चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1. रहमतुल्आल्मीन की अफ़ज़ल राय पर चलकर खुद को अफ़ज़ल बनाना है। सिरात ए
मुस्तकीम में अपनी राय मिक्स नहीं करनी है। इलाही तालीम के नशे में रहना है।
2. अपने हमजिन्स के फ़लाह के तरीके निकालने हैं। सब के वास्ते नेक जज़्बात रखते
हुए एक-दो को सच्ची इज़्ज़त देनी है। लंगड़ी इज़्ज़त नहीं।
बरक़ात:-
रूहानी
एक्सरसाइज़ और सेल्फ कन्ट्रोल के ज़रिए महीनता का एहसास करने वाले फरिश्ता बनो।
अक्ल की महीनता और
हल्कापन मोमिन ज़िन्दगी की पर्सनेलिटी है। महीनता ही अज़ीमियत है। मगर इसके लिए
रोज़ वक़्त ए शफ़ा बेजिस्मीपन की रूहानी एक्सरसाइज़ करो और फ़ालतू इरादों के
खाने का परहेज़ रखो। परहेज़ के लिए सेल्फ कन्ट्रोल हो। जिस वक़्त जो इरादा रूपी
खाना कबूल करना हो उस वक़्त वही करो। फ़ालतू इरादे का एकस्ट्रा खाना नहीं करो
तब महीन अक्ल बन फरिश्ता रुप के मकसद को हासिल कर सकेंगे।
स्लोगन:-
अज़ीम रुह वह हैं
जो हर सेकण्ड, हर कदम सिरात ए मुस्तकीम पर एक्यूरेट चलती हैं।
आमीन