“मीठे बच्चे - तुम्हें
फूल बन सबको ख़ुशी देनी है, फूल बच्चे मुंह से जवाहिरात निकालेंगे”
सवाल:-
फूल बनने
वाले बच्चों के वास्ते अल्लाह ताला की कौन सी ऐसी तालीम है, जिससे वह हमेशा
खुशबूदार बना रहे?
जवाब:-
ए मेरे फूल बच्चे, तुम अपने अन्दर देखो - कि मेरे
अन्दर कोई शैतानी खस्लत रूपी कांटा तो नहीं है! अगर अन्दर कोई कांटा हो तो जैसे
दूसरे के बुरी खस्लतों से ऩफरत आती है वैसे अपने शैतानी बुरी खस्लतों से ऩफरत
करो तो कांटा निकल जायेगा। अपने को देखते रहो - ज़हनियत-बोल-आमाल ऐसा कोई गुनाह
तो नहीं होता है, जिसकी सज़ा भोगनी पड़े!
आमीन।
रूहानी
बच्चों के वास्ते रूहानी रब बैठ समझाते हैं। इस वक़्त यह शैतानी सल्तनत होने
सबब इन्सान तमाम हैं जिस्मानी हवासी इसलिए उन्हों को जंगल का कांटा कहा जाता
है। यह कौन समझाते हैं? बेहद का रब। जो अब कांटों को फूल बना रहे हैं। कहाँ-कहाँ
इबलीस ऐसा है जो फूल बनते-बनते फट से फिर कांटा बना देता है। इसको कहा ही जाता
है कांटों का जंगल, इसमें कई तरह के जानवर मिसल इन्सान रहते हैं। हैं इन्सान,
मगर एक दो में जानवरों मिसल लड़ते-झगड़ते रहते हैं। घर-घर में झगड़ा लगा हुआ
है। ख़बासती समन्दर में ही तमाम पड़े हैं, यह तमाम दुनिया बड़ा ज़बर्दस्त ज़हर
का समन्दर है, जिसमें इन्सान गोते खा रहे हैं। इसको ही नापाक बद उन्वानी दुनिया
कहा जाता है। अभी तुम कांटों से फूल बन रहे हो। रब को बागवान भी कहा जाता है।
रब बैठ समझाते हैं - गीता में है इल्म की बातें और फिर इन्सानों की चलन कैसी है
- वह भागवत में बयान है। क्या-क्या बातें लिख दी हैं। सुनहरे दौर में ऐसे थोड़े
ही कहेंगे। सुनहरा दौर तो है ही फूलों का बग़ीचा। अभी तुम फूल बन रहे हो। फूल
बनकर फिर कांटे बन जाते हैं। आज बड़ा अच्छा चलते फिर इबलीस के तूफ़ान आ जाते
हैं। बैठे-बैठे इबलीस क्या हाल कर देता है। रब फ़रमाते रहते हैं हम तुमको दुनिया
का मालिक बनाते हैं। हिन्दुस्तान रिहाईश को कहते हैं तुम दुनिया के मालिक थे।
कल की बात है। आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम की सल्तनत थी। हीरे
जवाहरातों के महल थे। उनको कहते ही हैं गार्डन ऑफ अल्लाह। जंगल यहाँ है, फिर
बगीचा भी यहाँ होगा ना। हिन्दुस्तान जन्नत थी, उसमें फूल ही फूल थे। रब ही फूलों
का बगीचा बनाते हैं। फूल बनते-बनते फिर सोहबत के असरात में आकर ख़राब हो जाते
हैं। बस बाबा हम तो शादी करते हैं। इबलीस का भभका देखते हैं ना। यहाँ तो है
बिल्कुल सुकून। यह दुनिया तमाम है जंगल। जंगल को ज़रूर आग लगेगी। तो जंगल में
रहने वाले भी ख़त्म होंगे ना। वही आग लगनी है जो 5 हज़ार साल पहले लगी थी, जिसका
नाम जंग ए क़यामत रखा है। एटॉमिक बॉम्ब्स की लड़ाई तो पहले यूरोपीय की ही लगती
है। वह भी गायन है। साइन्स से मिसाइल्स बनाये हैं।सहीफों में तो निहायत रिवायत
हैं। रब बच्चों को समझाते हैं - ऐसे कोई पेट से थोड़े ही मूसल वगैरह निकल सकते
हैं। अभी तुम देखते हो साइंस के ज़रिए कितने बॉम्ब्स वगैरह बनाते हैं। सिर्फ़ 2
बॉम ही लगाये तो कितने शहर ख़त्म हो गये। कितने आदमी मरे। लाखों मरे होंगे। अब
इस इतने बड़े जंगल में करोड़ों इन्सान रहते हैं, इनको आग लगनी है।
रहमतुल्आल्मीन समझाते हैं, रब तो फिर भी रहमदिल है। रब को तो सबका फ़लाह करना
है। फिर भी जायेंगे कहाँ। देखेंगे बरोबर आग लगती है तो फिर भी रब की पनाह लेंगे।
रब है तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला सादिक़, दोबारा विलादत से बालातर। उनको
फिर सब तरफ मौजूद कह देते। अभी तुम हो मिलन के दौर नशीन। तुम्हारी अक्ल में
तमाम इल्म है। दोस्त रिश्तेदारों वगैरह के साथ भी तोड़ निभाना है। उनमें हैं
शैतानी बुरी खस्लत, तुम्हारे में हैं हूरैन फ़ज़ीलत। तुम्हारा काम है औरों को
भी यही सिखलाना। दुआ देते रहो। नुमाइश के ज़रिए तुम कितना समझाते हो।
हिन्दुस्तान रिहाईश नशीनियों के 84 विलादत पूरे हुए हैं। अब रब आये हैं -
इन्सान से हूरैन बनाने यानि कि जहन्नुम रिहाईश नशीन इन्सानों को जन्नत रिहाईश
नशीन बनाते हैं। हूरैन जन्नत में रहते हैं। अभी अपने को शैतानी खस्लतों से
ऩफरत आती है। अपने को देखा जाता है, हम हूरैन फ़ज़ीलत वाले बने हैं? हमारे में
कोई बुरी खस्लत तो नहीं हैं? ज़हनियत-बोल-आमाल हमने कोई ऐसा आमाल तो नहीं किया
जो शैतानी काम हो? हम कांटों को फूल बनाने का कारोबार करते हैं वा नहीं? रब्बा
है बागवान और तुम जिब्राइल ज़ादा ज़ादियाँ हो माली। किसम-किसम के माली भी होते
हैं। कोई तो अनाड़ी हैं जो किसको अपने जैसा नहीं बना सकते। नुमाइश में बागवान
तो नहीं जायेंगे। माली जायेंगे। यह माली भी रहमतुल्आल्मीन के साथ है, इसलिए यह
भी नहीं जा सकता। तुम माली जाते हो खिदमत करने के लिए। अच्छे-अच्छे मालियों को
ही बुलाते हैं। बाबा भी कहते हैं अनाड़ियों को न बुलाओ। बाबा नाम नहीं बतलाते
हैं। थर्डक्लास माली भी हैं ना। बागवान प्यार उनको करेंगे जो अच्छे-अच्छे फूल
बनाकर दिखायेंगे। उस पर बागवान ख़ुश भी होगा। मुंह से हमेशा जवाहिरात ही निकालते
रहते हैं। कोई जवाहिरात के बदले पत्थर निकालेंगे तो रब्बा क्या कहेंगे।
रहमतुल्आल्मीन पर अक के फूल भी चढ़ाते हैं ना। तो कोई ऐसे भी चढ़ते हैं ना। चलन
तो देखो कैसी है। कांटे भी चढ़ते हैं, चढ़कर फिर जंगल में चले जाते हैं। सातों
फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बनने बदले और ही बुरी खस्लतों से आरास्ता बनते जाते हैं।
उनकी फिर क्या हालत होती है!
रब फ़रमाते हैं - मैं एक तो बे गर्ज हूँ और दूसरा दूसरो पर रहमत नशीन हूँ। दूसरों
पर रहमत करता हूँ हिन्दुस्तान रिहाईश नशीनियों पर, जो हमारी तौहीन करते हैं। रब
फ़रमाते हैं - मैं इस वक़्त ही आकर जन्नत का क़याम करता हूँ। किसको कहो जन्नत
चलो। तो कहते जन्नत में तो हम यहाँ हैं ना। अरे जन्नत होती है सुनहरे दौर में।
इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में फिर जन्नत कहाँ से आयी। इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर
को कहा ही जाता है जहन्नुम। पुरानी बुरी खस्लतों से आरास्ता दुनिया है। इन्सानों
को मालूम ही नहीं है कि जन्नत कहाँ होती है। जन्नत आसमान में समझते हैं। देलवाड़ा
मन्दिर में भी जन्नत ऊपर में दिखायी है। नीचे इबादत कर रहे हैं। तो इन्सान भी
इसलिए कह देते - फलाना जन्नत पधारा। जन्नत कहाँ है? सबके लिए कह देते जन्नत
रिहाईश नशीन हुआ। यह है ही ख़बासती समन्दर। फ़ज़ीलत समन्दर ग़ैर ख़बासती दुनिया
को कहा जाता है। उन्होंने फिर पूजा के लिए एक बड़ा तलाब बनाया है। उसमें विष्णु
को बिठाया है। अभी तुम बच्चे जन्नत में जाने की तैयारी कर रहे हो। जहाँ दूध की
नदियाँ होंगी। अभी तुम बच्चे फूल बनते जाओ। ऐसी कोई चलन कभी नहीं चलनी है जो
कोई कहे, यह तो कांटा है। हमेशा फूल बनने के लिए तजवीज़ करते रहो। इबलीस कांटा
बना देता है, इसलिए अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है।
रब फ़रमाते हैं - घरेलू राब्ते में रहते कमल फूल जैसा पाकीज़ा बनना है। बागवान
रब्बा कांटों से फूल बनाने आये हैं। देखना है हम फूल बने हैं। फूलों को ही
खिदमत के लिए जहाँ-तहाँ बुलाते हैं। रब्बा गुलाब का फूल भेजो। दिखाई तो पड़ता
है ना - कौन, कौन सा फूल है। रब फ़रमाते हैं - मैं आता ही हूँ तुमको सल्तनत ए
इबादत सिखलाने। यह है ही हक़ीक़ी अफ़ज़ल हज़रात की रिवायत। हक़ीक़ी अवाम की नहीं
है। राजा रानी बनेंगे तो अवाम भी अन्डरस्टुड बनेंगी। अभी तुम समझते हो राजा रानी
और अवाम कैसे नम्बरवार बनती है। ग़रीब जिनके पास दो पाँच रूपया भी नहीं बचता
है, वह क्या देंगे। उनको भी उतना मिलता है, जितना हज़ार देने वाले को मिलता है।
सबसे ज़्यादा हिन्दुस्तान ग़रीब है। किसको भी याद नहीं है कि हम हिन्दुस्तान
रिहाईश नशीन जन्नत रिहाईश नशीन थे। हूरैन की अज़मत भी गाते हैं मगर समझ नहीं
सकते। जैसे मेंढक ट्रां-ट्रां करते हैं। बुलबुल आवाज़ कितना मीठा करती है, मतलब
कुछ नहीं। आजकल गीता सुनाने वाले कितने हैं। मातायें भी निकली हैं। गीता से कौन
सा दीन क़याम हुआ? यह कुछ भी नहीं जानते हैं। थोड़ी रिद्धि-सिद्धि कोई ने दिखाई
तो बस, समझेंगे यह भगवान है। गाते हैं नापाक से पाक बनाने वाला। तो नापाक हैं
ना। रब फ़रमाते हैं - ख़बासत में जाना यह नम्बरवन नापाकपना है। यह तमाम दुनिया
नापाक है। तमाम पुकारते हैं - ए नापाक से पाक बनाने वाले आओ। अब उनको आना है और
गंगा स्नान करने से पाक़ीज़ा बनना है? रब को इन्सान से हूरैन बनाने के लिए कितनी
मेहनत करनी पड़ती है। रब फ़रमाते हैं मुझे याद करो तो तुम कांटे से फूल बन
जायेंगे। मुंह से कभी पत्थर नहीं निकालो। फूल बनो। यह भी तालीम है ना। चलते-चलते
ग्रहचारी बैठ जाती है तो फेल हो जाते हैं। होपफुल से होपलेस हो जाते हैं। फिर
कहते हैं हम रब्बा के पास जायें। इन्द्र की मजलिस में गन्दे थोड़े ही आ सकते
हैं। यह इन्द्र मजलिस है ना। मोमिना जो ले आती है उस पर भी बड़ी जवाबदारी है।
ख़बासत में गया तो मोमिना पर भी बोझ पड़ेगा, इसलिए सम्भाल कर किसको ले आना
चाहिए। आगे चल तुम देखेंगे राहिब-वली वगैरह तमाम क्यु में खड़े हो जायेंगे।
भीष्म पितामह वगैरह का नाम तो है ना। बच्चों की बड़ी बेहद अक्ल होनी चाहिए। तुम
किसी को भी बता सकते हो - हिन्दुस्तान गार्डन ऑफ फ्लावर था। हूरैन रहते थे। अभी
तो कांटे बन गये हैं। तुम्हारे में 5 ख़बासत हैं ना। शैतानी सल्तनत माना ही
जंगल। रब आकर कांटों को फूल बनाते हैं। ख्याल करना चाहिए - अभी हम गुलाब के फूल
नहीं बने तो विलादत दर विलादत अक के फूल ही बनेंगे। हर एक को अपना फ़लाह करना
है। रहमतुल्आल्मीन पर थोड़े ही मेहरबानी करते हैं। मेहरबानी तो अपने ऊपर करनी
है। अब सिरात ए मुस्तकीम पर चलना है। बगीचे में कोई जायेंगे तो खुशबूदार फूलों
को ही देखेंगे। अक को थोड़े ही देखेंगे। फ्लावर शो होता है ना। यह भी फ्लावर शो
है। बड़ा ज़बर्दस्त इनाम मिलता है। निहायत फर्स्टक्लास फूल बनना है। बड़ी मीठी
चलन चाहिए। गुस्सैल के साथ बड़ा नरम हो जाना चाहिए। हम सिरात ए मुस्तकीम पर
पाकीज़ा बन पाकीज़ा दुनिया जन्नत का मालिक बनने चाहते हैं। युक्तियां तो निहायत
होती हैं ना। माताओं में तीन अखलाक़ याफ़्ता निहायत होते हैं। चतुराई से
पाकीज़गी में रहने के लिए तजवीज़ करनी है। तुम कह सकती हो कि अल्लाह ताला
फ़रमाते ज़िना अज़ीम दुश्मन है, पाकीज़ा बनो तो सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बन
जायेंगे। तो क्या हम अल्लाह ताला की नहीं मानें! तरीक़े से अपने को बचाना चाहिए।
दुनिया का मालिक बनने के लिए थोड़ा बर्दाश्त किया तो क्या हुआ। अपने लिए तुम
करते हो ना। वह बादशाहत के लिए लड़ते हैं तुम अपने लिए तमाम कुछ करते हो। तजवीज़
करनी चाहिए। रब को भूल जाने से ही गिरते हैं। फिर शर्म आती है। हूरैन कैसे
बनेंगे। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमार्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1. इबलीस की ग्रहचारी से बचने के लिए मुंह से हमेशा जवाहिरात ए इल्म निकालने
हैं। बुरी सोहबत से अपनी सम्भाल रखनी है।
2. खुशबूदार फूल बनने के लिए बुरी खस्लतों को निकालते जाना है। सिरात ए
मुस्तकीम पर बहुत-बहुत नरम बनना है। ज़िना अज़ीम दुश्मन से कभी भी हार नहीं खानी
है। तरीक़े से खुद को बचाना है।
बरक़ात:-
हमेशा
पावरफुल कैफियत के ज़रिए बेहद की खिदमत में तैयार रहने वाले हद की बातों से
आज़ाद बनो।
जैसे जिब्राइल बाप को
खिदमत के सिवाए कुछ भी दिखाई नहीं देता था, ऐसे आप बच्चे भी अपने पाॅवरफुल
कैफियत ज़रिए बेहद की खिदमत पर हमेशा तैयार रहो तो हद की बातें अपने आप ख़त्म
हो जायेंगी। हद की बातों में वक़्त देना - यह भी गुड़ियों का खेल है जिसमें
वक़्त और एनर्जी वेस्ट जाती है, इसलिए छोटी-छोटी बातों में वक़्त और जमा की हुई
कुव्वतें फ़ालतू नहीं गंवाओ।
स्लोगन:-
खिदमत में कामयाबी
दस्तयाब करनी है तो बोल और चाल-चलन असरदार हो।
आमीन