“मीठे बच्चे
बेहद के रब
को याद करना - यह है बातिन बात, याद से याद मिलती है, जो याद नहीं करते उन्हें
रब भी कैसे याद करें”
सवाल:-
मिलन पर
तुम बच्चे कौन सी तालीम पढ़ते हो जो तमाम चक्कर नहीं पढ़ाई जाती?
जवाब:-
जीते जी
जिस्म से न्यारा यानि कि मुर्दा होने की तालीम अभी पढ़ते हो क्योंकि तुम्हें
मुकम्मल नशीन बनना है। बाक़ी जब तक जिस्म में हैं तब तक आमाल तो करना ही है।ज़हन
भी अमन तब हो जब जिस्म न हो इसलिए ज़हन जीते जहान फ़तहयाब नहीं, मगर इबलीस जीते
जहान फ़तहयाब।
आमीन।
रब बैठ
बच्चों को समझाते हैं क्योंकि यह तो बच्चे समझते हैं बेसमझ को ही पढ़ाया जाता
है। अब बेहद का रब आला ते आला अल्ल्लाह् ताला आते हैं तो किसको पढ़ाते होंगे?
ज़रूर जो आला ते आला बिल्कुल बेसमझ होंगे इसलिए कहा ही जाता है विनाश काले
विपरीत बुद्धि यानि कि तबाही के अवक़ात उल्टी अक्ल। उल्टी अक्ल कैसे हो गयी
हैं? 84 लाख योनियां लिखा हुआ है ना! तो रब को भी 84 लाख विलादतों में ले आये
हैं। कह देते हैं रब कुत्ते, बिल्ली, चरिन्दे परिन्दे सब में है। बच्चों को
समझाया जाता है, यह तो सेकेण्ड नम्बर प्वाइंट देनी होती है। रब ने समझाया है जब
कोई नया आता है तो पहले-पहले उनको हद के और बेहद के बाप का तारूफ देना चाहिए।
वह बेहद का बड़ा बाबा और वह हद का छोटा बाबा। बेहद का बाप माना ही बेहद रूहों
का बाप। वह हद का बाप जिस्मानी जिस्म का बाप हो गया। वह है तमाम रूहों का बाप।
यह नॉलेज भी तमाम एकरस नहीं इख्तियार कर सकते हैं। कोई 1 परसेन्ट इख्तियार करते
हैं तो कोई 95 परसेन्ट इख्तियार करते हैं। यह तो समझ की बात है। खानदान ए
आफ़ताबी घराना होगा ना! राजा-रानी और अवाम। यह अक्ल में आता है ना। अवाम में
तमाम तरह के इन्सान होते हैं। अवाम माना अवाम। रब समझाते हैं यह तालीम है। अपनी
अक्ल मुताबिक हरेक तालीम हासिल करते हैं। हरेक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है।
जिसने चक्कर पहले जितनी तालीम इख्तियार की है उतनी अब भी इख्तियार करते हैं।
तालीम कब छिपी नहीं रह सकती। तालीम के मुताबिक़ ही मर्तबा मिलता है। रब ने
समझाया है - आगे चल इम्तहान तो होता ही है। बिगर इम्तहान ट्रांसफर तो हो न सके।
पिछाड़ी में तमाम मालूम पड़ेगा। बल्कि अभी भी समझ सकते हैं कि किस मर्तबे के हम
लायक़ हैं। भल लज्जा के मारे सबके साथ-साथ हाथ उठा देते हैं। दिल में समझते भी
हैं हम यह कैसे बन सकेंगे! तो भी हाथ उठा देते हैं। समझते हुए भी फिर हाथ उठा
लेना यह भी बे इल्मी कहेंगे। कितनी बे इल्मी है, रब तो झट समझ जाते हैं। इससे
तो उन स्टूडेन्ट्स में अक्ल होती है। वह समझते हैं हम स्कालरशिप लेने के लायक़
नहीं हैं, पास नहीं होऊंगा। इससे तो वह बे इल्मी अच्छे जो समझते हैं - टीचर जो
पढ़ाते हैं उसमें हम कितने मार्क्स लेंगे! ऐसे थोड़े ही कहेंगे हम पास विद् ऑनर
होंगे। तो साबित होता है यहाँ इतनी भी अक्ल नहीं है। जिस्मानी हवास निहायत है।
जब तुम आये हो यह (आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम) बनने तो चलन बड़ी
अच्छी चाहिए। रब फ़रमाते हैं कोई तो तबाही के वक़्त उल्टी अक्ल हैं क्योंकि
कायदे सिर रब से मोहब्बत नहीं है, तो क्या हाल होगा। आला मर्तबा पा नहीं सकेंगे।
रब बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं - तबाही के वक़्त उल्टी अक्ल का मतलब क्या है
- बच्चे ही पूरा नहीं समझ सकते तो फिर और क्या समझेंगे! जो बच्चे समझते हैं हम
रहमतुल्आल्मीन के बच्चे हैं वही पूरा मतलब को नहीं समझते। रब को याद करना - यह
तो है बातिन बात। तालीम तो बातिन नहीं है ना। तालीम में नम्बरवार हैं। तमाम एक
जैसा थोड़े ही पढ़ेंगे। रब तो समझते हैं यह अभी बेबीज़ हैं। ऐसे बेहद के रब को
तीन-तीन, चार-चार महीने याद भी नहीं करते हैं। मालूम कैसे पड़े कि याद करते
हैं? जबकि उनकी चिट्ठी आये। फिर उस चिट्ठी में खिदमत की ख़बर भी हो कि यह-यह
रूहानी खिदमत करते हैं। सबूत चाहिए ना। ऐसे तो जिस्मानी हवास होते हैं जो न तो
कभी याद करते हैं, न खिदमत का सबूत दिखाते हैं। कोई तो ख़बर लिखते हैं रब्बा
फलाने-फलाने आये उनको यह समझाया, तो रब भी समझते हैं बच्चा जिन्दा है। खिदमत की
ख़बर दुरुस्त देते हैं। कोई तो 3-4 महीने ख़त नहीं लिखते। कोई ख़बर नहीं तो
समझेंगे मर गया या बीमार है! बीमार इन्सान लिख नहीं सकते हैं। यह भी कोई लिखते
हैं हमारी तबियत दुरुस्त नहीं थी इसलिए ख़त नहीं लिखा। कोई तो ख़बर ही नहीं देते,
न बीमार हैं। जिस्मानी हवास है। फिर रब भी याद किसको करे। याद से याद मिलती है,
मगर जिस्मानी हवास है। रब आकर समझाते हैं मुझे सब तरफ मौजूद कह 84 लाख से भी
जास्ती योनियों में ले जाते हैं। इन्सानों को कहा जाता है पत्थर अक्ल हैं।
अल्ल्लाह् ताला के लिए तो फिर कह देते पत्थर भित्तर के अन्दर मौजूद है। तो यह
बेहद की गालियां हुई ना! इसलिए रब फ़रमाते हैं मेरी कितनी तौहीन करते हैं। अभी
तुम तो नम्बरवार समझ गये हो। अकीदत मन्दी में गाते भी हैं - आप आयेंगे तो हम
वारी जायेंगे। आपको वारिस बनायेंगे। यह वारिस बनाते हैं जो कहते हैं
पत्थर-ठिक्कर में हो! कितनी तौहीन करते हैं, तब रब फ़रमाते हैं यदा यदाहि......
अभी तुम बच्चे रब को जानते हो तो रब की कितनी अज़मत करते हो। कोई अज़मत तो क्या,
कभी याद कर दो अल्फ़ाज़ लिखते भी नहीं। जिस्मानी हवासी बन पड़ते हैं। तुम बच्चे
समझते हो हमको रब मिला है, हमारा रब हमको पढ़ाते हैं। अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते
है ना! मैं तुमको हक़ीक़ी इबादत सिखाता हूँ। दुनिया की बादशाहत कैसे हासिल हो
उसके लिए हक़ीक़ी इबादत सिखाता हूँ। हम दुनिया की बादशाही लेने लिए बेहद के रब
से पढ़ते हैं - यह नशा हो तो अपार ख़ुशी आ जाए। भल गीता भी पढ़ते हैं मगर जैसे
आर्डिनरी क़िताब पढ़ते हैं। कृष्ण भगवानुवाच - राजयोग सिखाता हूँ, बस। इतनी
अक्ल का राब्ता और ख़ुशी नहीं रहती। गीता पढ़ने और सुनाने वालों में इतनी ख़ुशी
नहीं रहती। गीता पढ़कर पूरी की और गया धन्धे में। तुमको तो अभी अक्ल में है -
बेहद का रब हमको पढ़ाते हैं। और कोई की अक्ल में यह नहीं आयेगा कि हमको अल्लाह
ताला तालीम देते हैं। तो पहले-पहले कोई भी आवे तो उनको दो बाप की थ्योरी समझानी
है। बोलो हिन्दुस्तान जन्नत था ना, अभी जहन्नुम है। ऐसे तो कोई कह न सके कि हम
सुनहरे दौर में भी हैं,इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में भी हैं। किसको दु:ख मिला
तो वह जहन्नुम में है, किसको ख़ुशी मिली तो जन्नत में है। ऐसे निहायत कहते हैं
- दु:खी इन्सान जहन्नुम में हैं, हम तो निहायत ख़ुशी में बैठे हैं, महल माड़ियां
वगैरह सब कुछ हैं। बाहर की निहायत ख़ुशी देखते हैं ना। यह भी तुम अभी समझते हो
जन्नती ख़ुशी तो यहाँ हो नहीं सकता। ऐसे भी नहीं, गोल्डन एज को आइरन एज कहो या
आइरन एज को गोल्डन एज कहो एक ही बात है। ऐसे समझने वाले को भी बे इल्मी कहेंगे।
तो पहले-पहले रब की थ्योरी बतानी है।रब ही अपनी पहचान देते हैं। और तो कोई जानते
नहीं। कह देते पाक परवरदिगार सब तरफ़ मौजूद है। अभी तुम तस्वीर में दिखाते हो -
रूह और रब का रूप तो एक ही है। वह भी रूह है मगर उनको सुप्रीम रूह कहा जाता है।
रब बैठ समझाते हैं - मैं कैसे आता हूँ! तमाम रूहें वहाँ आलम ए अरवाह में रहती
हैं। यह बातें बाहर वाला तो कोई समझ नहीं सकता। ज़ुबां भी निहायत आसान है। गीता
में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। अब कृष्ण तो गीता सुनाते नहीं हैं। वह तो
सबको कह न सके कि दिल से मुझे याद करो। जिस्म नशीन की याद से तो गुनाह कटते नहीं
हैं। कृष्ण भगवानुवाच - जिस्म के तमाम रिश्ते छोड़ दिल से मुझे याद करो मगर
जिस्म के रिश्ते तो कृष्ण को भी हैं और फिर वह तो छोटा-सा बच्चा है ना। यह भी
कितनी बड़ी भूल है। कितना फ़र्क पड़ जाता है एक भूल के सबब। पाक परवरदिगार तो
सब तरफ़ मौजूद हो नहीं सकता। जिसके लिए कहते हैं तमाम का खैर निजात दिलाने वाला
है तो क्या वह भी दुर्गति को पाते हैं! पाक परवरदिगार कब दुर्गति को पाता है
क्या? यह सब इरादा ए ग़ौरतलब करने की बातें हैं। टाइम वेस्ट करने की बात नहीं
है। इन्सान तो कह देते कि हमको फुर्सत नहीं है। तुम समझाते हो कि आकर कोर्स लो
तो कहते फुर्सत नहीं। दो दिन आयेंगे फिर चार दिन नहीं आयेंगे.....। पढ़ेंगे नहीं
तो यह आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम कैसे बन सकेंगे? इबलीस का कितना
फोर्स है। रब समझाते हैं जो सेकेण्ड, जो मिनट पास होता है वह हूबहू रिपीट होता
है। अनगिनत बार रिपीट होते रहेंगे। अभी तो रब के ज़रिए सुन रहे हो। रब्बा तो
विलादत-मौत में आते नहीं। मुकाबिल कहा जाता है पूरा विलादत-मौत में कौन आता है
और न आने वाला कौन? सिर्फ़ एक ही रब है जो विलादत-मौत में नहीं आता है। बाक़ी
तो सब आते हैं इसलिए तस्वीर भी दिखायी है। जिब्राइल अलैहिस्सलाम और मीकाइल
अलैहिस्सलाम दोनों विलादत मौत में आते हैं। जिब्राइल अलैहिस्सलाम सो मीकाइल
अलैहिस्सलाम, मीकाइल अलैहिस्सलाम सो जिब्राइल अलैहिस्सलाम पार्ट में आते-जाते
हैं। एन्ड हो न सके। यह तस्वीर फिर भी आकर सब देखेंगे और समझेंगे। निहायत आसान
समझ की बात है। अक्ल में आना चाहिए हम सो मोमिन हैं फिर हम सो हूरैन, जंग जू,
कारोबारी, यज़ीद बनेंगे। फिर रब आयेंगे तो हम सो मोमिन बन जायेंगे। यह याद करो
तो भी दीदार ए नफ़्स चक्कर नशीन ठहरे। निहायत हैं जिनको याद ठहरती नहीं। तुम
मोमिन ही दीदार ए नफ़्स चक्कर नशीन बनते हो। हूरैन नहीं बनते हैं। यह नॉलेज, कि
चक्कर कैसे फिरता है, इस नॉलेज को पाने से वह यह हूरैन बने हैं। असल में कोई भी
इन्सान दीदार ए नफ़्स चक्कर नशीन कहलाने के लायक़ नहीं है। इन्सानों की खिल्क़त
आलम ए मौत ही अलग है। जैसे हिन्दुस्तान रिहाईश नशीनियों की रस्म-रिवाज़ अलग है,
सबका अलग-अलग होता है। हूरैनों की रस्म-रिवाज अलग है। आलम ए मौत के इन्सानों की
रस्म-रिवाज़ अलग। रात-दिन का फ़र्क है इसलिए तमाम कहते हैं - हम नापाक हैं। या
अल्ल्लाह्, हम तमाम नापाक दुनिया के रहने वालों को पाकीज़ा बनाओ। तुम्हारी अक्ल
में है पाकीज़ा दुनिया आज से 5 हज़ार साल पहले थी, जिसको आला जन्नत कहा जाता
है। अदना जन्नत को नहीं कहेंगे। रब ने समझाया है - वह है फर्स्टक्लास, यह है
सेकेण्ड क्लास। तो एक-एक बात अच्छी तरह इख्तियार करनी चाहिए। जो कोई भी आये तो
सुनकर वन्डर खावे। कोई तो वन्डर खाते हैं। मगर फिर उनको फुर्सत नहीं रहती, जो
तजवीज़ करे। फिर सुनते हैं पाकीज़ा ज़रूर रहना है। यह हवस ख़बासत ही है जो
इन्सान को नापाक बनाती है। इनको जीतने से ही तुम जहान फ़तहयाब बनेंगे। रब ने कहा
भी है - हवस ख़बासत फ़तहयाब जहान फ़तहयाब बनो। इन्सान फिर कह देते मन जीते
जगतजीत बनो। ज़हन को बस में करो। अब ज़हन अमन तो तब हो जब जिस्म न हो। बाक़ी
ज़हन अमन तो कभी होता ही नहीं। जिस्म मिलता ही है आमाल करने के लिए तो फिर
मुकम्मल नशीनी हालत में कैसे रहेंगे? मुकम्मल नशीनी हालत कहा जाता है मुर्दे
को। जीते जी मुर्दा, जिस्म से न्यारा। तुमको भी जिस्म से न्यारा बनने की तालीम
पढ़ाते हैं। जिस्म से रूह अलग है। रूह आलम ए अरवाह की रहने वाली है।रूह जिस्म
में आती है तो उनको इन्सान कहा जाता है। जिस्म मिलता ही है आमाल करने लिए। एक
जिस्म छूट जायेगा फिर दूसरा जिस्म रूह को लेना है आमाल करने लिए। सुकून तो तब
रहेंगे जब आमाल नहीं करना होगा। बुनियादीवतन में आमाल होता नहीं। खिल्क़त का
चक्कर यहाँ फिरता है। रब को और खिल्क़त के चक्कर को जानना है, इसको ही नॉलेज कहा
जाता है। यह आंखें जब तक नापाक क्रिमिनल हैं, तो इन आंखों से पाकीज़ा चीज़ देखने
में आ नहीं सकती इसलिए इल्म का तीसरी आंख चाहिए। जब तुम मुकम्मल नशीनी हालत को
पायेंगे यानि कि हूरैन बनेंगे फिर तो इन आंखों से हूरैनों को देखते रहेंगे। बाक़ी
इस जिस्म में इन आंखों से आदम अलैहिस्सलाम को देख नहीं सकते। बाक़ी दीदार ए जलवा
किया तो उससे कुछ मिलता थोड़े ही है। क़लील अरसे के लिए ख़ुशी रहती है,
ख़ुवाहिशात पूरी हो जाती है। ड्रामा में दीदार ए जलवा की भी नूँध है, इससे
दस्तयाबी कुछ नहीं होती। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1. जिस्म से न्यारी रूह हूँ, जीते जी इस जिस्म में रहते जैसे मुर्दा - इस सूरत
ए हाल की प्रेक्टिस से मुकम्मल नशीनी हालत बनानी है।
2. खिदमत का सबूत देना है। जिस्मानी हवास को छोड़ अपनी सच्ची-सच्ची ख़बर देनी
है। पास विद् ऑनर होने की तजवीज़ करनी है।
बरक़ात:-
तमाम खाते
और रिश्ते एक रब से रखने वाले डबल लाइट फरिश्ता बनो।
डबल लाइट फरिश्ता बनने के
लिए जिस्म के हवास से भी बालातर रहो क्योंकि जिस्मानी हवास मिट्टी है, अगर इसका
भी बोझ है तो भारीपन है। फरिश्ता यानि कि अपनी जिस्म के साथ भी रिश्ता नहीं। रब
का दिया हुआ जिस्म भी रब को दे दिया। अपनी चीज़ दूसरे को दे दी तो अपना रिश्ता
ख़त्म हुआ। सब हिसाब-किताब, सब लेन-देन रब से बाक़ी तमाम पिछले खाते और रिश्ते
ख़त्म - ऐसे मुकम्मल बेगर ही डबल लाइट फरिश्ते हैं।
स्लोगन:-
अपनी खासियतों को
प्रयोग में लाओ तो हर कदम में तरक्की का एहसास करेंगे।
आमीन