“मीठे बच्चे
तुमने अपनी
ज़िंदगी की डोर एक रब से बांधी है, तुम्हारा कनेक्शन एक से है, एक से ही तोड़
निभाना है”
सवाल:-
मिलन के
दौर पर रूह अपनी डोर पाक परवरदिगार के साथ जोड़ती है, इसकी रस्म बेइल्मी वक़्त
में किस तरह से चलती आ रही है?
जवाब:-
शादी के
वक्त औरत का पल्लव खाविन्द के साथ बांधते हैं। औरत समझती है ज़िन्दगी भर उनका
ही साथी होकर रहना है। तुमने तो अब अपना पल्लव रब के साथ जोड़ा है। तुम जानते
हो हमारी परवरिश आधा चक्कर के लिए रब के ज़रिए होगी।
नग़मा:-
जीवन डोर
तुम्हीं संग बांधी........
आमीन।
देखो, नग़में
में कहते हैं ज़िन्दगी की डोर तुम से बांधी। जैसे कोई कन्या है, वह अपनी ज़िंदगी
की डोर खाविन्द के साथ बांधती है। समझती है कि ज़िन्दगी भर उनका ही साथी होकर
रहना है। उनकी ही परवरिश करनी है। ऐसे नहीं कि कन्या को उनकी परवरिश करनी है।
नहीं, ज़िन्दगी तक उनको परवरिश करनी है। तुम बच्चों ने भी ज़िंदगी की डोर बांधी
है। बेहद का रब कहो, उस्ताद कहो, हादी कहो जो कहो........ यह रूहों की ज़िन्दगी
की डोर पाक परवरदिगार के साथ बांधने की है। वह है हद की मैकरू बात, यह है महीन
बात। कन्या के ज़िन्दगी की डोर खाविन्द के साथ बांधी जाती है। वह उनके घर जाती
है। देखो, हर एक बात समझने की अक्ल चाहिए। इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में हैं
तमाम शैतानी सलाह की बातें। तुम जानते हो हमने ज़िन्दगी की डोर एक से बांधी है।
तुम्हारा कनेक्शन एक से है। एक से ही तोड़ निभाना है क्योंकि उनसे हमको निहायत
अच्छी ख़ुशी मिलती है। वह तो हमको जन्नत का मालिक बनाता है। तो ऐसे रब की सिरात
ए मुस्तकीम पर चलना चाहिए। यह है रूहानी डोर। रूह ही सिरात ए मुस्तकीम लेती है।
शैतानी सलाह लेने से तो नीचे गिरे हैं। अब रूहानी रब की सिरात ए मुस्तकीम पर
चलना चाहिए।
तुम जानते हो हम अपनी रूह की डोर पाक परवरदिगार के साथ बांधते हैं, तो हमें उनसे
21विलादत हमेशा ख़ुशी का वर्सा मिलता है। उस क़लील अरसे की ज़िन्दगी डोर से तो
नीचे गिरते आये हैं। यह 21 विलादतों के लिए गैरन्टी है। तुम्हारी कमाई कितनी
जबरदस्त है, इसमें ग़फलत नहीं करनी चाहिए। इबलीस ग़फलत निहायत कराता है। इन आदम
अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम ने ज़रूर कोई से ज़िन्दगी की डोर बांधी जिससे
21 विलादतों का वर्सा मिला। तुम रूहों की पाक परवरदिगार से ज़िन्दगी की डोर
बांधी जाती है, चक्कर चक्कर। उनकी तो गिनती नहीं। अक्ल में बैठता है - हम
रहमतुल्आल्मीन के बने हैं, उनसे ज़िन्दगी की डोर बांधी है। हर एक बात रब बैठ
समझाते हैं। तुम जानते हो चक्कर पहले भी बांधी थी। अब शब ए बारात मनाते हैं मगर
किसकी मनाते हैं, मालूम नहीं है। रहमतुल्आल्मीन जो नापाक से पाक बनाने वाला है
वह ज़रूर मिलन पर ही आयेगा। यह तुम जानते हो, दुनिया नहीं जानती है इसलिए गाया
हुआ है करोड़ों में कोई। अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन आम तौर पर गायब हो गया है
और तमाम सहीफें कहानियां वगैरह हैं। यह दीन है ही नहीं तो जाने कैसे। अभी तुम
ज़िन्दगी की डोर बांध रहे हो। रूहों की रब के साथ डोर जुटी हुई है, इसमें जिस्म
की कोई बात नहीं है। भल घर में बैठे रहो, अक्ल से याद करना है। तुम रूहों की
ज़िन्दगी की डोर बांधी हुई है। पल्लव बांधते हैं ना। वह मैकरू पल्लव, यह है रूहों
का रब के साथ राब्ता। हिन्दुस्तान में शिव रात्रि भी मनाते हैं मगर वह कब आये
थे, यह किसको भी मालूम नहीं है। कृष्ण की जयन्ति कब, राम की जयन्ति कब है, यह
नहीं जानते। बच्चे तुम त्रिमूर्ति शिव जयन्ती अल्फ़ाज़ लिखते हो मगर इस वक़्त
तीन बुत तो हैं नहीं। तुम कहेंगे रहमतुल्आल्मीन जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए
खिल्क़त तामीर करते हैं तो जिब्राइल अलैहिस्सलाम जिस्मानी में ज़रूर चाहिए ना।
बाक़ी मीकाइल अलैहिस्सलाम और इस्राफील अलैहिस्सलाम इस वक़्त कहाँ हैं, जो तुम
तीन मुजस्सम कहते हो। यह निहायत समझने की बातें हैं। तीन मुजस्सम का मतलब ही
ब्रह्मा-विष्णु-शंकर यानि कि जिब्राइल अलैहिस्सलाम-मीकाईल अलैहिस्सलाम-इस्राफील
अलैहिस्सलाम है। जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए क़याम वह तो इस वक़्त होता है।
मीकाइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए सुनहरे दौर में परवरिश होगी। तबाही का काम अाख़िर
में होना है। यह अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन हिन्दुस्तान का एक ही है। वह तो
तमाम आते हैं दीन क़याम करने। हर एक जानता है यह दीन क़याम किया और उनका संवत
यह है। फलाने टाइम, फलाना दीन क़ायम किया। हिन्दुस्तान का किसको मालूम नहीं है।
गीता जयन्ती, शिव जयन्ती कब हुई, किसको मालूम नहीं है। आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा
अलैहिस्सलाम की उम्र में 2-3 साल का फ़र्क होगा। जन्नत में ज़रूर पहले आदम
अलैहिस्सलाम ने विलादत लिया होगा फिर हव्वा अलैहिस्सलाम ने। मगर जन्नत कब थी,
यह किसको मालूम नहीं है। तुमको भी समझने में निहायत साल लगे हैं, तो दो दिन में
कोई कहाँ तक समझेंगे। रब तो निहायत आसानी से बताते हैं, वह है बेहद का रब,
ज़रूर उनसे सबको वर्सा मिलना चाहिए ना। ओ गॉड फाॅदर कह याद करते हैं। लक्ष्मी
नारायण का मन्दिर है। यह जन्नत में सल्तनत करते थे मगर उनको यह वर्सा किसने दिया?
ज़रूर जन्नत के खालिक ने दिया होगा। मगर कब कैसे दिया, वह कोई नहीं जानते हैं।
तुम बच्चे जानते हो जब जन्नत था और कोई दीन नहीं था। जन्नत में हम पाकीज़ा थे,
इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में हम नापाक हैं। तो मिलन पर इल्म दिया होगा, जन्नत
में नहीं। वहाँ तो उजूरा है। ज़रूर अगली विलादत में इल्म लिया होगा। तुम भी अब
ले रहे हो। तुम जानते हो अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन का क़याम रब ही करेगा। आदम
अलैहिस्सलाम तो सुनहरे दौर में थे, उसको यह उजूरा कहाँ से मिला? लक्ष्मी नारायण
ही राधे-कृष्ण थे, यह कोई नहीं जानते हैं। रब फ़रमाते हैं जिन्होंने चक्कर पहले
समझा था वही समझेंगे। यह सैपलिंग लगता है। मोस्ट स्वीटेस्ट दरख्त का कलम लगता
है। तुम जानते हो आज से 5 हज़ार साल पहले भी रब ने आकर इन्सान से हूरैन बनाया
था। अभी तुम ट्रांसफर हो रहे हो। पहले मोमिन बनना है। बाजोली खेलते हैं तो चोटी
ज़रूर आयेगा। बरोबर हम अभी मोमिन बने हैं। यज्ञ में तो ज़रूर मोमिन चाहिए। यह
रहमतुल्आल्मीन और रूद्र का यज्ञ है। रूद्र इल्म यज्ञ ही कहा जाता है। आदम
अलैहिस्सलाम ने यज्ञ नहीं तामीर किया। इस रूद्र इल्म यज्ञ से तबाही शोला रोशन
होता है। यह रहमतुल्आल्मीन का यज्ञ नापाकों को पाक बनाने के लिए है। रूद्र
रहमतुल्आल्मीन ग़ैर मुजस्सम है, वह यज्ञ कैसे तामीर करे। जब तक इन्सानी जिस्म
में न आये। इन्सान ही यज्ञ तामीर करते हैं। महीन और बुनियादी वतन में यह बातें
नहीं होती। रब समझाते हैं यह मिलन का दौर है। जब आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा
अलैहिस्सलाम की सल्तनत थी तो सुनहरा दौर था। अब फिर तुम यह बन रहे हो। यह
ज़िन्दगी की डोर रूहों की रब के साथ है। यह डोर क्यों बांधी है? हमेशा ख़ुशी का
वर्सा पाने के लिए। तुम जानते हो बेहद के रब के ज़रिए हम यह आदम अलैहिस्सलाम और
हव्वा अलैहिस्सलाम बनते हैं। रब ने समझाया है तुम सो हूर-हूरैन दीन के थे।
तुम्हारी सल्तनत थी। पीछे तुम दोबारा विलादत लेते-लेते जंग जू दीन में आये।
खानदान ए आफ़ताबी बादशाहत चली गई फिर खानदान ए महताबी आये। तुमको मालूम है हम
यह चक्कर कैसे लगाते हैं। इतने-इतने विलादत लिए। अल्लाह ताला फ़रमाते - ए बच्चे,
तुम अपने विलादतों को नहीं जानते हो, मैं जानता हूँ। अब इस वक़्त इस जिस्म में
दो बुत हैं। जिब्राइल अलैहिस्सलाम की रूह और रहमतुल्आल्मीन पाक परवरदिगार। इस
वक़्त दो बुत इकट्ठा हैं - जिब्राइल अलैहिस्सलाम और रहमतुल्आल्मीन। इस्राफील
अलैहिस्सलाम तो कभी पार्ट में आता नहीं। बाक़ी मीकाइल अलैहिस्सलाम जन्नत में
है। अभी तुम मोमिन सो हूरैन बनेंगे। हम सो का मतलब असल में यह है। उन्होंने कह
दिया है - रूह सो रब। रब सो रूह। कितना फ़र्क है। शैतान के आने से ही शैतान की
सलाह शुरू हो गई। सुनहरे दौर में तो यह इल्म ही आमतौर पर ग़ायब हो जायेगा। यह
तमाम होना ड्रामा में नूँध है ना तब तो रब आकर क़याम करे। अभी है मिलन। रब
फ़रमाते हैं मैं चक्कर-चक्कर, चक्कर के मिलन के दौर पर आकर तुमको इन्सान से
हूरैन बनाता हूँ। इल्म यज्ञ तामीर करता हूँ। बाक़ी जो हैं वह इस यज्ञ में फ़ना
हो जाने हैं। यह तबाही शोला इस यज्ञ से रोशन होना है। नापाक दुनिया की तो तबाही
होनी है। नहीं तो पाक दुनिया कैसे हो। तुम कहते भी हो ए नापाक से पाक बनाने वाले
आओ तो नापाक दुनिया पाकीज़ा दुनिया इकट्ठी रहेगी क्या? नापाक दुनिया की तबाही
होगी, इसमें तो ख़ुश होना चाहिए। क़यामत की जंग लगी थी, जिससे जन्नत के गेट खुले।
कहते हैं यह वही क़यामत जंग है। यह तो अच्छा है, नापाक दुनिया ख़त्म हो जायेगी।
पीस के लिए माथा मारने की दरकार क्या है। तुमको जो अब तीसरी आंख मिली है वह कोई
को नहीं है। तुम बच्चों को ख़ुशी होनी चाहिए - हम बेहद के रब से फिर से वर्सा
ले रहे हैं। रब्बा हमने कई बार आपसे वर्सा लिया है। शैतान ने फिर लानत दी। यह
बातें याद करना आसान है। बाक़ी तमाम रिवायतें हैं। तुमको इतना दौलत मन्द बनाया
फिर ग़रीब क्यों बनें? यह तमाम ड्रामा में नूँध है। गाया भी जाता है इल्म,
अकीदत मन्दी, बेनियाज़ी। अकीदत मन्दी से बेनियाज़ी तब हो जब इल्म मिले। तुमको
इल्म मिला तब अकीदत मन्दी से बेनियाज़ी हुई। तमाम पुरानी दुनिया से बेनियाज़ी।
यह तो कब्रिस्तान है। 84 विलादत का चक्कर लगाया है। अभी घर चलना है। मुझे याद
करो तो मेरे पास चले आयेंगे। गुनाहों का ख़ात्मा हो जायेंगा और कोई तरीक़ा नहीं।
आग ए इबादत से गुनाह ख़ाक होंगे। गंगा में नहाने से नहीं होंगे।
रब्बा फ़रमाते हैं इबलीस ने तुमको फूल (बेवकूफ) बना दिया है, अप्रैल फूल कहते
हैं ना। अभी मैं तुमको आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम जैसा बनाने आया
हूँ। तस्वीर तो निहायत अच्छे हैं - आज हम क्या हैं, कल हम क्या होंगे? मगर
इबलीस कम नहीं। इबलीस डोर बांधने नहीं देता। खींचातान होता है। हम रब्बा को याद
करते हैं फिर मालूम नहीं क्या होता है? भूल जाते हैं। इसमें मेहनत है इसलिए
हिन्दुस्तान का कदीम योग मशहूर है। उन्हों को वर्सा किसने दिया, यह कोई समझते
नहीं हैं। रब फ़रमाते हैं बच्चों, मैं तुमको फिर से वर्सा देने आया हूँ। यह तो
रब का काम है। इस वक़्त तमाम जहन्नुम रिहाईश नशीन हैं। तुम ख़ुश हो रहे हो। यहाँ
कोई आते हैं समझते हैं तो ख़ुशी होती है, बरोबर दुरुस्त है। 84 विलादतों का
हिसाब है। रब से वर्सा लेना है। रब जानते हैं आधा चक्कर अक़ीदत मन्दी करके तुम
थक गये हो। मीठे बच्चे - रब तुम्हारी तमाम थक दूर करेंगे। अब अकीदत मन्दी का
अन्धियारी राह पूरी होती है। कहाँ यह दारूल ग़म, कहाँ वह दारूल मसर्रत। मैं
दारूल ग़म को दारुल मसर्रत बनाने चक्कर के मिलन पर आता हूँ। रब का तारूफ देना
है। रब बेहद का वर्सा देने वाला है। एक की ही अज़मत है। रहमतुल्आल्मीन नहीं होते
तो तुमको पाकीज़ा कौन बनाता। ड्रामा में तमाम नूँध है। चक्कर-चक्कर तुम मुझे
पुकारते हो कि ए नापाक से पाक बनाने वाले आओ। शब ए बारात है। कहते हैं जिब्राइल
अलैहिस्सलाम ने जन्नत का क़याम किया, फिर रहमतुल्आल्मीन ने क्या किया जो शब ए
बारात मनाते हैं। कुछ भी समझते नहीं हैं। तुम्हारी अक्ल में इल्म एकदम बैठ जाना
चाहिए। डोर एक के साथ बांधी है तो फिर और कोई के साथ नहीं बांधो। नहीं तो गिर
पड़ेंगे। पाक परवरदिगार बाप मोस्ट सिम्पल हैं। कोई ठाठ-बाठ नहीं। वह बाप तो
मोटरों में, एरोप्लेन में घूमते हैं। यह बेहद का बाप फ़रमाते हैं मैं नापाक
दुनिया, नापाक जिस्म में बच्चों की खिदमत के लिए आया हूँ। तुमने बुलाया है हे
ला फ़ानी सर्जन आओ, आकर हमें इन्जेक्शन लगाओ। इन्जेक्शन लग रहा है। रब फ़रमाते
हैं राब्ता लगाओ तो तुम्हारे गुनाह ख़ाक होंगे। रब है ही 63 विलादतों का दु:ख
दूर करने वाला। 21 विलादतों की ख़ुशी देने वाले। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) अपनी अक्ल की रूहानी डोर एक रब के साथ बांधनी है। एक की ही सिरात ए मुस्तकीम
पर चलना है।
2) हम मोस्ट स्वीटेस्ट दरख्त का कलम लगा रहे हैं इसलिए पहले खुद को बहुत-बहुत
स्वीट बनाना है। याद की सफ़र में तैयार रह गुनाहों का ख़ात्मा करना हैं।
बरक़ात:-
तमाम खज़ानों
को दुनिया फ़लाह के वास्ते यूज़ करने वाले सिद्धि याफ़्ता बनो।
जैसे अपने हद की रवादारी
में, अपने हद के रवैए- आदतों की रवादारी में निहायत वक़्त लगा देते हो, मगर
अपनी-अपनी रवादारी से बालातर यानि कि बेनियाज़ रहो और हर इरादे, बोल, आमाल और
रिश्ते-राब्ते में बैलेन्स रखो तो तमाम खज़ानों की इकॉनामी के ज़रिए कम खर्च
बाला नशीन बन जायेंगे। अभी वक्त रूपी खज़ाना, एनर्जी का खज़ाना और मैकरू ख़ज़ाने
में कम खर्च बाला नशीन बनो, इन्हें खुद के बजाए दुनिया फ़लाह के वास्ते यूज़ करो
तो सिद्धि याफ़्ता बन जायेंगे।
स्लोगन:-
एक की लगन में
हमेशा मगन रहो तो बे मुश्किल बन जायेंगे।
आमीन