“मीठे बच्चे
तुम मोमिन
सो हूरैन बनते हो, तुम्हीं हिन्दुस्तान को जन्नत बनाते हो, तो तुम्हें अपने
मोमिन फिरक़े का नशा चाहिए”
सवाल:-
सच्चे
मोमिनों की अहम निशानियां क्या होंगी?
जवाब:-
1.सच्चे
मोमिनों का इस पुरानी दुनिया से लंगर उठी हुई होगी। वह जैसे इस दुनिया का किनारा
छोड़ चुके। 2. सच्चे मोमिन वह जो हाथों से काम करें और अक्ल हमेशा रब की याद
में रहे यानि कि आमाल ए इबादत नशीन हो। 3. मोमिन यानि कि कमल फूल जैसे। 4.
मोमिन यानि कि हमेशा रूहानी हवासी रहने की तजवीज़ करने वाले। 5. मोमिन यानि कि
ज़िनाखोरी अज़ीम दुश्मन पर फ़तह हासिल करने वाले।
आमीन।
रूहानी रब
रूहानी बच्चों को समझाते हैं। बच्चे कौन? यह मोमिन। यह कभी भूलो मत कि हम मोमिन
हैं, हूरैन बनने वाले हैं। फिरक़ों को भी याद करना पड़ता है। यहाँ तुम आपस में
सिर्फ़ मोमिन ही मोमिन हो। मोमिनों को बेहद का रब पढ़ाते हैं। यह जिब्राइल
अलैहिस्सलाम नहीं पढ़ाते हैं। रहमतुल्आल्मीन पढ़ाते हैं जिब्राइल अलैहिस्सलाम
के ज़रिए। मोमिनों को ही पढ़ाते हैं। यज़ीद से मोमिन बनने बिगर हूर-हूरैन बन नहीं
सकेंगे। वर्सा रहमतुल्आल्मीन से मिलता है। वह रहमतुल्आल्मीन तो सबका रब है। इस
आदम अलैहिस्सलाम को ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। जिस्मानी बाप तो सबको
होते हैं। रूहानी बाप को अकीदत मन्दी की राह में याद करते हैं। अब तुम बच्चे
समझते हो यह है मल्क़ूती बाप जिनको कोई नहीं जानते। भल ब्रह्मा का मन्दिर है,
यहाँ भी प्रजापिता ब्रह्मा आदि देव का मन्दिर है। उनको कोई अज़ीम बहादुर कहते
हैं, दिलवाला भी कहते हैं। मगर असल में दिल लेने वाला है रहमतुल्आल्मीन, न कि
बाप ए अवाम अब्दी हूरैन जिब्राइल अलैहिस्सलाम। तमाम रूहों को हमेशा ख़ुशहाल
बनाने वाला, खुश करने वाला एक ही रब है। यह भी सिर्फ़ तुम ही जानते हो। दुनिया
में तो इन्सान कुछ नहीं जानते। कम अक्ल हैं। हम मोमिन ही रहमतुल्आल्मीन से वर्सा
ले रहे हैं। तुम भी यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। याद है बड़ी आसान।राब्ता अल्फ़ाज़
राहिबों ने रखा है। तुम तो रब को याद करते हो। राब्ता कॉमन अल्फ़ाज़ है। इनको
योग आश्रम भी नहीं कहेंगे, बच्चे और बाप बैठे हैं। बच्चों का फर्ज है - बेहद के
बाप को याद करना। हम मोमिन हैं, डाडे से वर्सा ले रहे हैं जिब्राइल अलैहिस्सलाम
के ज़रिए इसलिए रहमतुल्आल्मीन फ़रमाते हैं जितना हो सके याद करते रहो। तस्वीर
भी भल रखो तो याद रहेगी। हम मोमिन हैं, रब से वर्सा लेते हैं। मोमिन कभी अपने
फिरक़े को भूलते हैं क्या? तुम यज़ीदों की सोहबत में आने से मोमिन पना भूल जाते
हो। मोमिन तो हूरैनों से भी आला हैं क्योंकि तुम मोमिन नॉलेजफुल हो। अल्लाह ताला
को जानी जाननहार कहते हैं ना। उसका भी मतलब नहीं जानते। ऐसे नहीं कि सबके दिलों
में क्या है वह बैठ देखते हैं। नहीं, उनको खिल्क़त के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर का
नॉलेज है। वह बीजरूप है। दरख़्त के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर को जानते हैं। तो ऐसे
रब को निहायत याद करना है। इनकी रूह भी उस रब को याद करती है। वह रब फ़रमाते
हैं यह जिब्राइल अलैहिस्सलाम भी मुझे याद करेंगे तब यह मर्तबा पायेंगे। तुम भी
याद करेंगे तब मर्तबा पायेंगे। पहले-पहले तुम बे जिस्म आये थे फिर बे जिस्म
बनकर वापिस जाना है। और तमाम तुमको दु:ख देने वाले हैं, उनको क्यों याद करेंगे।
जबकि मैं तुमको मिला हूँ, मैं तुमको नई दुनिया में ले चलने आया हूँ। वहाँ कोई
दु:ख नहीं। वह है हूरैन राब्ता। यहाँ पहले-पहले दु:ख होता है औरत-मर्द के रिश्ते
में क्योंकि ख़बासती बनते हैं। तुमको अब मैं उस दुनिया का लायक़ बनाता हूँ, जहाँ
ख़बासत की बात नहीं रहती। यह ज़िना खोरी अज़ीम दुश्मन गायी हुई है जो
आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर दु:ख देती है। गुस्से के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि यह
आग़ाज़-दरम्यान- आख़िर दु:ख देता है, नहीं। ज़िनाखोरी को जीतना है। वही
आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर दु:ख देता है। नापाक बनाता है। नापाक अल्फ़ाज़ ख़बासत पर
लगता है। इस दुश्मन पर फ़तह पानी है। तुम जानते हो हम जन्नत के हूर-हूरैन बन रहे
हैं। जब तक यह यक़ीन नहीं तो कुछ पा नहीं सकेंगे।
रब समझाते हैं बच्चों को ज़हन-बोल-आमाल एक्यूरेट बनना है। मेहनत है। दुनिया में
यह किसको मालूम नहीं कि तुम हिन्दुस्तान को जन्नत बनाते हो। आगे चलकर समझेंगे।
चाहते भी हैं वन वर्ल्ड, वन सल्तनत, वन रिलीजन, वन ज़ुबां हो। तुम समझा सकते हो
- सुनहरे दौर में आज से 5 हज़ार साल पहले एक सल्तनत, एक दीन था जिसको जन्नत कहा
जाता है। इलाही सल्तनत और शैतानी सल्तनत को भी कोई नहीं जानते। 100 पर्सेंट कम
अक्ल से अब तुम साफ़ अक्ल बनते हो नम्बरवार तजवीज़ के मुताबिक। रब बैठ तुमको
पढ़ाते हैं। सिर्फ़ रब की सलाह पर चलो। रब फ़रमाते हैं कि पुरानी दुनिया में
रहते कमल फूल जैसे पाकीज़ा रहो। मुझे याद करते रहो। रब रूहों को समझाते हैं।
मैं रूहों को ही पढ़ाने आया हूँ इन आरगन्स के ज़रिए। तुम रूहें भी आरगन्स के
ज़रिए सुनती हो। बच्चों को रूहानी हवासी बनना है। यह तो पुराना छी-छी जिस्म है।
तुम मोमिन इबादत के लायक़ नहीं हो। तुम गायन लायक़ हो, इबादत लायक़ हूरैन हैं।
तुम सिरात ए मुस्तकीम पर दुनिया को पाकीज़ा जन्नत बनाते हो इसलिए तुम्हारा गायन
है। तुम्हारी इबादत नहीं हो सकती। गायन सिर्फ़ तुम मोमिनों का है, न कि हूरैनों
का। रब तुमको ही यज़ीद से मोमिन बनाते हैं। जगत अम्बा वा ब्रह्मा वगैरह के
मन्दिर बनाते हैं मगर उनको यह मालूम नहीं है कि यह कौन हैं? जहान का बाप तो
जिब्राइल अलैहिस्सलाम हुआ ना। उनको हूरैन नहीं कहेंगे। हूरैन की रूह और जिस्म
दोनों पाकीज़ा हैं। अब तुम्हारी रूह पाकीज़ा होती जाती है। पाकीज़ा जिस्म नहीं
है। अब तुम अल्लाह ताला की सलाह पर हिन्दुस्तान को जन्नत बना रहे हो। तुम भी
जन्नत के लायक़ बन रहे हो। सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ ज़रूर बनना है। सिर्फ़
तुम मोमिन ही हो जिनको रब बैठ पढ़ाते हैं। मोमिनों का दरख़्त इज़ाफें को पाता
रहेगा। मोमिन जो पक्के बन जायेंगे वह फिर जाकर हूरैन बनेंगे। यह नया दरख्त है।
इबलीस के तूफ़ान भी लगते हैं। सुनहरे दौर में कोई तूफ़ान नहीं लगता। यहाँ इबलीस
रब्बा की याद में रहने नहीं देता। हम चाहते हैं रब्बा की याद में रहें। बुरी
खस्लतों से आरास्ता से सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बनें। तमाम मदार है याद पर।
हिन्दुस्तान का कदीम योग मशहूर है। विलायत वाले भी चाहते हैं कदीम योग कोई आकर
सिखलाये। अब योग भी दो तरह के हैं - एक हैं हठयोगी, दूसरे हैं राजयोगी। तुम हो
राजयोगी यानि कि हक़ीक़ी इबादत नशीन। यह हिन्दुस्तान का कदीम राजयोग है जो रब
ही सिखलाते हैं। सिर्फ़ गीता में मेरे बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। कितना
फर्क हो गया है। शिवजयन्ती होती है तो तुम्हारी वैकुण्ठ की भी जयन्ती होती है,
जिसमें श्रीकृष्ण का राज्य है। तुम जानते हो शिवबाबा की जयन्ती है तो गीता की
भी जयन्ती है। बैकुण्ठ की भी जयन्ती होती है जिसमें तुम पाकीज़ा बन जायेंगे।
चक्कर पहले मुआफिक क़याम करते हैं। अब रब फ़रमाते हैं मुझे याद करो। याद न करने
से इबलीस कुछ न कुछ गुनाह करा देता है। याद नहीं किया और लगी चमाट। याद में रहने
से चमाट नहीं खायेंगे। यह बॉक्सिंग होती है। तुम जानते हो - हमारा दुश्मन कोई
इन्सान नहीं है। शैतान है दुश्मन।
रब फ़रमाते हैं इस वक़्त की शादी बरबादी है। एक-दो की बरबादी करते हैं। (नापाक
बना देते हैं) अब रूहानी रब ने आर्डीनेन्स निकाला है, बच्चे यह ज़िना खोरी
अज़ीम दुश्मन है। इन पर फ़तह पहनो और पाकीज़गी का अहद करो। कोई भी नापाक न बनें।
विलादत दर विलादत तुम नापाक बने हो इस ख़बासत से इसलिए ज़िना खोरी अज़ीम दुश्मन
कहा जाता है। राहिब-वली तमाम कहते हैं नापाक से पाक बनाने वाले आओ। सुनहरे दौर
में नापाक कोई होता नहीं। रब आकर इल्म से तमाम की ख़ैर निजात करते हैं। अब तमाम
बुरी हालत में हैं।इल्म देने वाला कोई नहीं है। इल्म देने वाला एक ही दरिया ए
इल्म है। इल्म से दिन है। दिन है अल्लाह ताला का, रात है शैतान की। इन अल्फ़ाज़ों
का हक़ीक़ी मतलब भी तुम बच्चे समझते हो। सिर्फ़ तजवीज़ में कमज़ोरी है। रब तो
निहायत अच्छी तरह समझाते हैं। तुमने 84 विलादत पूरे किये हैं, अब पाकीज़ा बनकर
वापस जाना है। तुमको तो खालिस तकब्बुर होना चाहिए। हम रूहें रब्बा की सिरात पर
इस हिन्दुस्तान को जन्नत बना रहे हैं, जिस जन्नत में फिर सल्तनत करेंगे। जितनी
मेहनत करेंगे उतना मर्तबा पायेंगे। चाहे राजा-रानी बनो, चाहे अवाम बनो।
राजा-रानी कैसे बनते हैं, वह भी देख रहे हो। फालो फादर गाया जाता है, अब की बात
है। जिस्मानी रिश्ते के लिए नहीं कहा जाता। यह रब सिरात देते हैं - दिल से मुझे
याद करो तो गुनाहों का ख़ात्मा होंगा। तुम समझते हो हम अभी श्रीमत पर चलते हैं।
बहुतों की सेवा करते हैं। बच्चे, रब के पास आते हैं तो रहमतुल्आल्मीन भी इल्म
से बहलाते हैं। यह भी तो सीखते हैं ना। रहमतुल्आल्मीन फ़रमाते हैं मैं आता हूँ
सवेरे को। अच्छा फिर कोई मिलने के लिए आते हैं तो क्या यह नहीं समझायेंगे। ऐसे
कहेंगे क्या कि रब्बा आप आकर समझाओ, मैं नहीं समझाऊंगा। यह बड़ी बातिन गहरी बातें
हैं ना। मैं तो सबसे अच्छा समझा सकता हूँ। तुम ऐसे क्यों समझते हो कि
रहमतुल्आल्मीन ही समझाते हैं, यह नहीं समझाते होंगे। यह भी जानते हो चक्कर पहले
इसने समझाया है, तब तो यह मर्तबा पाया है। मम्मा भी समझाती थी ना। वह भी आला
मर्तबा पाती है। मम्मा-बाबा को मल्क़ूतीवतन में देखते हैं तो बच्चों को फालो
फादर करना है। सरेन्डर होते भी ग़रीब हैं, दौलत मन्द हो न सकें। ग़रीब ही कहते
हैं - रब्बा यह सब कुछ आपका है। रहमतुल्आल्मीन तो दाता है। वह कभी लेता नहीं
है। बच्चों को कहते हैं - यह सब कुछ तुम्हारा है। मैं अपने लिए महल न यहाँ, न
वहाँ बनाता हूँ। तुमको जन्नत का मालिक बनाता हूँ। अब इन जवाहिरात ए इल्म से झोली
भरनी है। मन्दिर में जाकर कहते हैं मेरी झोली भरो। मगर किस की, किस चीज़ की झोली
भर दो... झोली भरने वाली तो लक्ष्मी है, जो पैसा देती है। शिव के पास तो जाते
नहीं, शंकर के पास जाकर कहते हैं। समझते हैं शिव और शंकर एक हैं मगर ऐसे थोड़े
ही है।
रब आकर सच बात बताते हैं। रब है ही दु:ख दूर करने वाले ख़ुशी देने वाले। तुम
बच्चों को घरेलू राब्ते में भी रहना है। धंधा भी करना है। हर एक अपने लिए राय
पूछते हैं - रब्बा हमको इस बात में झूठ बोलना पड़ता है। रब हर एक की नब्ज़ देख
राय देते हैं क्योंकि रब समझते हैं मैं कहूँ और कर न सकें ऐसी राय ही क्यों
दूँ। नब्ज़ देख राय ही ऐसी दी जाती है जो कर भी सके। कहूँ और करे नहीं तो
नाफरमानबरदार की लाइन में आ जाए। हर एक का अपना-अपना हिसाब-किताब है। सर्जन तो
एक ही है, उनके पास आना पड़े। वह पूरी राय देंगे। सबको पूछना चाहिए,रब्बा इस
हालत में हमको कैसे चलना चाहिए? अब क्या करें? रब जन्नत में तो ले जाते हैं।
तुम जानते हो हम जन्नत रिहाईश नशीन तो बनने वाले हैं। अब हम मिलन के दौर प्लग
हैं। तुम अब न जहन्नुम में हो, न जन्नत में हो। जो-जो मोमिन बनते हैं उनका लंगर
इस छी-छी दुनिया से उठ चुका है। तुमने इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में दुनिया का
किनारा छोड़ दिया है। कोई मोमिन तीखा जा रहा है याद के सफ़र में, कोई कम। कोई
हाथ छोड़ देते हैं यानि कि फिर इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में चले जाते हैं। तुम
जानते हो खिवैया हमको अब ले जा रहा है। वह सफ़र तो कई तरह की है। तुम्हारी एक
ही सफ़र है। यह बिल्कुल न्यारा सफ़र है। हाँ तूफ़ान आते हैं जो याद को तोड़ देते
हैं। इस याद के सफ़र को अच्छी तरह पक्का करो। मेहनत करो। तुम आमाल ए इबादत नशीन
हो। जितना हो सके हथ कार डे दिल यार डे... आधा चक्कर तुम आशिक माशूक को याद करते
आये हो। रब्बा यहाँ निहायत दु:ख है, अब हमको दारूल मसर्रत का मालिक बनाओ। याद
के सफ़र में रहेंगे तो तुम्हारे गुनाह खलास हो जायेंगे। तुमने ही जन्नत का वर्सा
पाया था, अब गँवाया है। हिन्दुस्तान जन्नत था तब कहते हैं कदीम हिन्दुस्तान।
हिन्दुस्तान को ही निहायत इज़्ज़त देते हैं। सबसे बड़ा भी है, सबसे पुराना भी
है। अब तो भारत कितना ग़रीब है इसलिए तमाम उनको मदद करते हैं। वो लोग समझते
हैं, हमारे पास निहायत अनाज हो जायेगा। कहाँ से मंगाना नहीं पड़ेगा मगर यह तो
तुम जानते हो - तबाही सामने खड़ी है जो अच्छी तरह से समझते हैं उन्हों को अन्दर
निहायत ख़ुशी रहती है। नुमाइश में कितने आते हैं। कहते हैं तुम सच कहते हो मगर
यह समझें कि हमको रब से वर्सा लेना है, यह थोड़े ही अक्ल में बैठता है। यहाँ से
बाहर निकले खलास। तुम जानते हो रब्बा हमको जन्नत में ले जाता है। वहाँ न गर्भ
जेल में, न उस जेल में जायेंगे। अभी जेल का सफ़र भी कितनी आसान हो गया है। फिर
सुनहरे दौर में कभी जेल का मुंह देखने को नहीं मिलेगा। दोनों जेल नहीं रहेंगी।
यहाँ तमाम यह इबलीस का पाम्प है। बड़ों-बड़ों को जैसे खलास कर देता हैं। आज
निहायत इज़्ज़त दे रहे हैं, कल इज़्ज़त ही खलास। आज हर एक बात क्वीक होती है।
मौत भी क्वीक होते रहेंगे। सुनहरे दौर में ऐसे कोई हंगामा होता नहीं। आगे चल
देखना क्या होता है। निहायत खौफनाक सीन है। तुम बच्चों ने दीदार ए जलवा भी किया
है। बच्चों के लिए अहम है याद का सफ़र। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1. 1.ज़हनियत-अल्फ़ाज़-आमाल बहुत-बहुत एक्यूरेट बनना है। मोमिन बनकर कोई भी
यज़ीदी आमाल नहीं करने हैं।
2. रब्बा से जो राय मिलती है उस पर पूरा-पूरा चलकर फरमानबरदार बनना है। आमाल ए
इबादत नशीन बन हर काम करना है। तमाम की झोली जवाहिरात ए इल्म से भरनी है।
बरक़ात:-
वक्त ए शफ़ा
की अहमियत को समझकर हक़ीक़ी तौर यूज़ करने वाले हमेशा कुव्वत से लबरेज़ बनो।
खुद को कुव्वत से लबरेज़
बनाने के लिए रोज़ वक़्त ए शफ़ा जिस्म की और ज़हन की सैर करो। जैसे वक़्त ए शफ़ा
वक़्त की भी मदद है, अक्ल सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ स्टेज की भी इमदाद है, तो
ऐसे बरक़ाती वक्त पर ज़हन की सूरत ए हाल भी सबसे पाॅवरफुल स्टेज की चाहिए।
पाॅवरफुल स्टेज यानि कि रब जैसे बीजरूप सूरत ए हाल। सादा सूरत ए हाल में तो
आमाल करते भी रह सकते हो मगर बरक़ात के वक्त को हक़ीक़ी तौर यूज़ करो तो कमज़ोरी
खत्म हो जायेगी।
स्लोगन:-
अपनी कुव्वतों के
ख़ज़ाने से कमज़ोर, दूसरों के बस रूह को कुव्वत नशीन बनाओ।
आमीन