“मीठे बच्चे
ख़ुशी देने
वाले एक रब को याद करो, इस थोड़े वक़्त में कुव्वत ए इबादत जमा करो तो आख़िर
में निहायत काम आयेगा”
सवाल:-
बेहद के
बेनियाज़ बच्चे, तुम्हें कौन सी याददाश्त हमेशा रहनी चाहिए?
जवाब:-
यह हमारा
छी-छी चोला है, इसे छोड़ वापिस घर जाना है - यह याददाश्त हमेशा रहे। रब और वर्सा
याद रहे, दूसरा कुछ भी याद न आये। यह है बेहद की बेनियाज़ी।आमाल करते याद में
रहने की ऐसी तजवीज़ करनी है जो गुनाहों का बोझा सिर से उतर जाये। रूह स्याह
रास्त से ख़ैर रास्त बन जाये।
आमीन।
रब बच्चों
को रोज़ निहायत आसान बातें समझाते हैं। यह है इलाही दारूल उलूम। बरोबर गीता में
भी कहते हैं भगवानुवाच। अल्लाह ताला बाप सबका एक है। तमाम अल्लाह ताला नहीं हो
सकते। हाँ सब बच्चे हो सकते हैं एक बाप के। यह ज़रूर अक्ल में आना चाहिए कि रब
जन्नत नई दुनिया का क़याम करने वाला है। उस रब से हमको जन्नत का वर्सा ज़रूर
मिला होगा। हिन्दुस्तान में ही शिव जयन्ती गाई जाती है। मगर शिव जयन्ती कैसे
होती है, यह तो रब ही आकर समझाते हैं। रब आते हैं चक्कर के मिलन के दौर पर।
बच्चों को फिर से नापाक से पाक बनाने यानि कि वर्सा देने। इस वक़्त सबको शैतान
की लानत है इसलिए तमाम दु:खी हैं। अभी इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में पुरानी
दुनिया है। यह हमेशा याद रखो कि हम जिब्राइल अलैहिस्सलाम मुंह निस्बनामा मोमिन
हैं। जो भी अपने को आदम ज़ादा ज़ादी समझते हैं, उनको ज़रूर यह समझना चाहिए कि
चक्कर-चक्कर डाडे से जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए वर्सा लेते हैं। इतने
बेइंतहा बच्चे और कोई को हो नहीं सकते। वह है सबका रब। जिब्राइल अलैहिस्सलाम भी
बच्चा है। तमाम बच्चों को वर्सा डाडे से मिलता है। उनका वर्सा है सुनहरे दौर की
दारूल हुकूमत। यह बेहद का रब जब जन्नत का खालिक है तो ज़रूर हमको जन्नत की
बादशाहत होनी चाहिए। मगर यह भूल गये हैं। हमको जन्नत की बादशाही थी। मगर ग़ैर
मुजस्सम रब कैसे देंगे, ज़रूर जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए देंगे।
हिन्दुस्तान में इनकी सल्तनत थी। अभी चक्कर का मिलन है। मिलन पर जिब्राइल
अलैहिस्सलाम है तब तो बी.के. कहलाते हैं। अन्धी अकीदत की कोई बात हो नहीं सकती।
एडाप्शन है। हम आदम ज़ादा ज़ादियां हैं। जिब्राइल अलैहिस्सलाम रहमतुल्आल्मीन का
बच्चा है, हमको रहमतुल्आल्मीन से फिर से जन्नत की बादशाही मिल रही है। पहले भी
मिली थी, जिसको 5 हज़ार साल हुए। हम हूर हूरैन दीन के थे। पिछाड़ी तक इज़ाफ़ा
होता रहता है। जैसे क्राइस्ट आया, क्रिश्चियन दीन अभी तक है। इज़ाफ़ा होता रहता
है। वे जानते हैं कि क्राइस्ट के ज़रिए हम क्रिश्चियन बनें। आज से 2 हज़ार साल
पहले क्राइस्ट आया था। अब इज़ाफ़ा हो रहा है। पहले-पहले सातों फ़ज़ीलतों से
लबरेज़ फिर रजो, तमो में आना है। तुम सुनहरे दौर में सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़
थे फिर रजो, तमो में आये हो। बुरी खस्लतों से आरास्ता खिल्क़त से फिर सातों
फ़ज़ीलतों से लबरेज़ ज़रूर होता है। नई दुनिया में अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन
था।अहम दीन हैं चार। तुम्हारा दीन आधा चक्कर चलता है। यहाँ भी तुम उस दीन के
हो। मगर ख़बासती होने के सबब तुम अपने को हूर-हूरैन नहीं कहलाते हो। तुम थे
अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन के मगर उल्टी राह में जाने के सबब तुम नापाक बने
हो, इसलिए अपने को हिन्दू कह देते हैं। अब तुम मोमिन बने हो। आला ते आला है
रहमतुल्आल्मीन। फिर हो तुम मोमिन। तुम मोमिनों का आला ते आला फ़िरक़ा है।
जिब्राइल अलैहिस्सलाम के बच्चे बने हो। मगर वर्सा जिब्राइल अलैहिस्सलाम से नहीं
मिलता है। रहमतुल्आल्मीन जिब्राइल अलैहिस्सलाम ज़रिए जन्नत की क़याम कर रहे
हैं। तुम्हारी रूह अब रब को जान गई है। रब फ़रमाते हैं कि मेरे ज़रिए मेरे को
जानने से सारे खिल्क़त के चक्कर के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर की नॉलेज समझ लेंगे।
वह इल्म मेरे को ही है। मैं दरिया ए इल्म, दरिया ए निशात, दरिया ए पाकीज़गी
हूँ। 21 विलादत तुम पाकीज़ा बनते हो फिर ख़बासती समन्दर में पड़ जाते हो। अभी
इल्म का समन्दर रब तुमको नापाक से पाक बनाते हैं। कोई गंगा का पानी पाक़ीज़ा नहीं
बना सकता। नहाना करने जाते हैं मगर वह पानी कोई नापाक से पाक बनाने वाला नहीं
है। यह नदियाँ तो सुनहरे दौर में भी हैं, तो इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में भी
हैं। पानी का फ़र्क नहीं रहता। कहते भी हैं “तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला एक
अल्लाह ताला।'' वही दरिया ए इल्म नापाक से पाक बनाने वाला है।
रब्बा आकर इल्म समझाते हैं जिससे तुम जन्नत के मालिक बनते हो। आला जन्नत-अदना
जन्नत में अकीदत सहीफें वगैरह कुछ होते नहीं हैं। तुम रब से वर्सा लेते हो हमेशा
ख़ुशी का। ऐसे नहीं वहाँ तुमको गंगा स्नान करना है या कोई सफ़र करना है।
तुम्हारा यह है रूहानी सफ़र जो कोई इन्सान सिखला नहीं सकते। रब है तमाम रूहों
का बाप, जिस्मानी बाप तो कई हैं। रूहानी बाप एक है। यह पक्का-पक्का याद कर लो।
रब्बा भी पूछते हैं तुमको कितने बाप हैं तो मूँझ जाते हैं कि यह क्या पूछते
हैं? बाप तो सबका एक होता है। दो तीन बाप कैसे होंगे। बाप समझाते हैं उस पाक
परवरदिगार बाप को याद करते हो दु:ख में। दु:ख में हमेशा कहते हो हे पाक
परवरदिगार हमको दु:ख से छुड़ाओ। तो दो बाप हुए ना। एक जिस्मानी बाप, दूसरा
रूहानी बाप। जिसकी अज़मत गाते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे...तुम्हरी कृपा से
सुख घनेरे। जिस्मानी माँ बाप से सुख घनेरे नहीं मिलते हैं। जब दु:ख होता है तो
उस रब को याद करते हैं। यह रब ही ऐसा सवाल पूछते हैं, दूसरा तो कोई पूछ न सके।
अकीदत मन्दी की राह में तुम गाते हो रब्बा आप आयेंगे तो हम आपके सिवाए और कोई
की नहीं सुनेंगे। और तो तमाम दु:ख देते हैं, आप ही ख़ुशी देने वाले हो। तो रब
आकर याद दिलाते हैं कि तुम क्या कहते थे। तुम जानते हो, तुम ही आदम ज़ादा आदम
ज़ादी कहलाते हो। इन्सान की ऐसी पत्थर अक्ल है जो यह भी नहीं समझते कि बी.के.
क्या हैं! मम्मा बाबा कौन हैं! यह कोई राहिब-वली नहीं हैं। राहिब वली को हादी
कहेंगे, मात-पिता नहीं कहेंगे। यह रब तो आकर हूरैन दीन की सल्तनत क़ायम करते
हैं। जहाँ यह आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम राजा रानी सल्तनत करते थे।
पहले पाकीज़ा थे फिर नापाक बनते हैं। जो काबिल ए एहतराम थे, वे फिर 84 विलादत
लेते हैं। पहले बेहद के रब का 21 विलादत ख़ुशी का वर्सा मिलता है। कुमारी वह जो
21 खानदान का फ़लाह करे। यह तुम्हारा गायन है। तुम कुमारियाँ हो, घरेलू राब्ते
वाले नहीं हो। भल बड़े हैं मगर मरजीवा बन, तमाम रब के बच्चे बच्चियाँ बने हो।
बाप ए अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम के बेइंतहा बच्चे हैं और इज़ाफें को पाते
रहेंगे। फिर यह तमाम हूरैन बनेंगे। यह रहमतुल्आल्मीन का यज्ञ है। इसको कहा जाता
है राजस्व यज्ञ, सल्तनत ए नफ़्स पाने का यज्ञ। रूहों को रब से जन्नत की सल्तनत
का वर्सा मिलता है। इस राजस्व अश्वमेध ज्ञान यज्ञ में क्या करना है? जिस्म के
साथ जो कुछ है, वह कुर्बान करना है या फ़ना करना है। इस यज्ञ से तो तुम फिर
सल्तनत पायेंगे। रब याद दिलाते हैं कि अकीदत मन्दी की राह में तुम गाते थे कि ए
रब्बा, आप जब आयेंगे तो हम कुर्बान जायेंगे, वारी जायेंगे। अब तुम अपने को तमाम
ब्र.कु. कुमारियाँ तो समझते हो। भल रहो अपने घरेलू राब्ते में मगर पाक रहना होगा,
कमल फूल जैसा । अपने को रूह समझो। हम रब्बा के बच्चे हैं। तुम रूहें हो आशिक।
रब फ़रमाते हैं मैं हूँ एक माशूक। तुम मुझ माशूक को पुकारते रहते हो। तुम आधा
चक्कर के आशिक हो जिसको पाक परवरदिगार कहा जाता है, वह ग़ैर मुजस्सम है। रूह भी
ग़ैर मुजस्सम है जो इस जिस्म के ज़रिए पार्ट बजाती है। अकीदत मन्दी की राह में
भी तुमको पार्ट बजाना है। अकीदत है ही रात, अन्धियारे में इन्सान ठोकरें खाते
हैं। इख्तिलाफ़ी दौर से लेकर तुमने ठोकरें खाई हैं। इस वक़्त अज़ीम दु:खी हो गये
हो। अब पुरानी दुनिया का आख़िर है। यह पैसा वगैरह तमाम मिट्टी में मिल जाना है।
भल कोई करोड़पति हैं, राजा हैं, बच्चे पैदा होंगे तो समझेगा यह दौलत हमारे बच्चों
के लिए है। हमारे बेटे, पोते खायेंगे। रब फ़रमाते हैं कुछ भी खायेंगे नहीं। यह
दुनिया ही ख़त्म होने वाली है। बाक़ी थोड़ा वक़्त है। मुश्किलात निहायत पड़ेंगे।
आपस में लड़ेंगे। पिछाड़ी में ऐसे लड़ेंगे जो खून की नदियाँ बहेंगी। तुम्हारी
तो कोई से लड़ाई नहीं है। तुम कुव्वत ए इबादत में रहते हो। तुम याद में रहेंगे
तो कोई भी तुम्हारे सामने बुरे इरादे से आयेंगे तो उनको खौफनाक दीदार ए जलवा हो
जायेगा और झट भाग जायेंगे। तुम रहमतुल्आल्मीन को याद करेंगे और वे भाग जायेंगे।
जो पक्के बच्चे हैं, तजवीज़ में रहते हैं कि मेरा तो एक रहमतुल्आल्मीन, दूसरा न
कोई। रब समझाते हैं कि हथ कार डे...बच्चों को घर को भी सम्भालना है। मगर तुम
रूहें रब को याद करो तो गुनाहों का बोझा भी उतर जायेगा। सिर्फ़ मुझे याद करो तो
तुम बुरी खस्लतों से आरास्ता से सातो फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बन जायेंगे, मगर
नम्बरवार तजवीज़ के मुताबिक। फिर तुम तमाम यह जिस्म छोड़ेंगे, रब्बा तमाम रूहों
को मच्छरों के मुआफ़िक ले जायेंगे। बाक़ी तमाम दुनिया को सज़ाए खानी हैं।
हिन्दुस्तान में बाक़ी थोड़े जाकर रहेंगे। उसके लिए यह क़यामत जंग है। यहाँ तो
निहायत इज़ाफ़ा होगा। नुमाइश, प्रोजेक्टर वगैरह के ज़रिए कितने सुनते हैं। वह
अवाम बनती जाती है। राजा तो एक होता है बाक़ी होती है अवाम। वज़ीर भी अवाम की
लाइन में आ जाती है। बे इन्तिहा अवाम होती है। एक राजा की लाखों के अन्दाज में
अवाम होती है। तो राजा रानी को मेहनत करनी पड़े ना।
रब फ़रमाते - सब कुछ करते मुसलसल मुझे याद करो। जैसे आशिक-माशूक होते हैं, उन्हों
का जिस्मानी लव रहता है। तुम बच्चे इस वक़्त आशिक हो। तुम्हारा माशूक आया हुआ
है। तुमको पढ़ा रहा है। पढ़ते-पढ़ते तुम हूरैन बन जायेंगे। याद से गुनाहों का
ख़ात्मा होंगा और तुम हमेशा सेहतमंद भी बनेंगे। फिर 84 के चक्कर को भी याद रखना
है। आला जन्नत में इतनी विलादत, अदना जन्नत में इतनी विलादत। हम हूर-हूरैन दीन
वालों ने पूरे 84 का चक्कर लगाया है। आगे चलकर तुम निहायत इज़ाफ़ें को पायेंगे।
तुम्हारे सेन्टर्स हज़ारों की अन्दाज में हो जायेंगे। गली-गली में समझाते रहेंगे
कि सिर्फ़ रब को और वर्से को याद करो। अब चलो घर वापिस। यह तो छी-छी चोला है।
यह है बेहद की बेनियाज़ी। राहिब तो सिर्फ़ हद का घरबार छोड़ देते हैं। वह हैं
हठयोगी। वह राजयोग सिखला नहीं सकते। कहते हैं - यह अकीदत मन्दी भी अबदी है। रब
फ़रमाते हैं यह अकीदत मन्दी तो इख्तिलाफ़ी दौर से शुरू होती है। 84 पौढ़ियाँ
उतरी अब तुम बुरी खस्लतों से आरास्ता बने हो। तुम सो हूर-हूरैन थे। क्रिश्चियन
कहेंगे हम सो क्रिश्चियन थे। तुम जानते हो हम सुनहरे दौर में थे। रब ने
हूर-हूरैन दीन क़ायम किया। यह जो आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम थे वह
अब मोमिन बने हैं। सुनहरे दौर में एक राजा रानी थे, एक ज़ुबां थी। यह भी बच्चों
ने दीदार ए जलवा किया है। तुम हो तमाम अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन के। तुम ही
84 विलादत लेते हो। वह जो कहते रूह निर्लेप है और अल्लाह ताला सब तरफ मौजूद है,
यह रांग है। सबमें रूह है, फिर कैसे कहते हो हमारे में पाक परवरदिगार है। फिर
तो सब फादर्स हो गये। कितने स्याह रास्त बन गये हैं। आगे जो सुनते थे वह मान
लेते थे। अब रब आकर सच सुनाते हैं। तुमको इल्म की तीसरी आंख देते हैं जिससे तुम
खिल्क़त के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर को जानते हो। कहानी ए हयात भी यह है। बाक़ी
मल्क़ूतवतन में कहानी वगैरह है नहीं। यह तमाम अकीदत मन्दी की राह का सैपलिंग
है। तुम कहानी ए हयात सुन रहे हो, हयाती बनने के लिए। वहाँ तुम ख़ुशी से एक
जिस्म छोड़ दूसरा जाकर लेंगे। यहाँ तो कोई मरता है तो रोते पीटते हैं। वहाँ
बीमारी वगैरह होती नहीं। हमेशा एवर हेल्दी रहते हैं। उम्र भी बड़ी होती है। वहाँ
नापाकपना होता नहीं। अब यह पक्का कर लेना है कि हमने 84 का चक्कर पूरा किया है।
अब रब्बा हमको लेने आया है। पाकीज़ा बनने का तरीक़ा भी तुमको बताते हैं। सिर्फ़
मुझ रब को और वर्से को याद करो। सुनहरे दौर में 16 फ़नों से आरास्ता फिर फ़न कम
होते जाते है। अब तुम्हारे में कोई फ़न नहीं रहा है। रब ही दु:ख से छुड़ाकर
ख़ुशी में ले जाते हैं इसलिए लिबरेटर कहा जाता है। सबको अपने साथ ले जाते हैं।
तुम्हारे हादी तुमको साथ थोड़े ही ले जाते हैं। वो हादी चला जाता है तो चेला
गद्दी पर बैठता है फिर चेलों में निहायत गड़बड़ हो जाती है। आपस में गद्दी के
लिए लड़ पड़ते हैं। रब फ़रमाते हैं मैं तुम रूहों को साथ ले जाऊंगा। तुम
मुकम्मल नहीं बनेंगे तो सजायें खायेंगे और मर्तबा बद उन्वान होगा। यहाँ दारूल
हुकूमत क़ायम हो रही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमार्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) याद की ऐसी प्रेक्टिस करनी है जो बुरे इरादे वाले सामने आते ही तब्दील हो
जाएं। मेरा तो एक रहमतुल्आल्मीन, दूसरा न कोई... इस तजवीज़ में रहना है।
2) सल्तनत ए नफ़्स पाने के लिए जिस्म के साथ जो कुछ भी है, वह कुर्बान जाना है।
जब इस रूद्र यज्ञ में सब कुछ निसार करेंगे तब मर्तबा ए सल्तनत मिलेगा।
बरक़ात:-
इल्मी तू
रूह बन दरिया ए इल्म और इल्म में समाने वाले तमाम दस्तयाबी याफ़्ता बनो।
जो इल्मी तू रूहें हैं वह
हमेशा दरिया ए इल्म और इल्म में समाई रहती हैं, तमाम दस्तयाबी याफ़्ता होने के
सबब इच्छा मात्रम् अविद्या यानि कि खुवाहिश की बे इल्मी की स्टेज अपने आप रहती
है। जो ज़र्रा बराबर भी किसी रवैया आदत के गुलाम हैं, नाम-मान-शान के मंगता
हैं। क्या, क्यों के क्वेश्चन में चिल्लाने वाले, पुकारने वाले, अन्दर एक बाहर
दूसरा रूप है - उन्हें इल्मी तू रूह नहीं कहा जा सकता।
स्लोगन:-
इस ज़िन्दगी में
हवास ए बालातर ख़ुशी और निशात की एहसास करने वाले ही आसान इबादत नशीन हैं।
आमीन