“मीठे बच्चे
तुम इलाही
फ़िरक़ा हो, तुम्हें आफ्ताब ए इल्म रब मिला है, अभी तुम जागे हो तो दूसरों को
भी जगाओ”
सवाल:-
कई तरह के
टकराव का सबब और उसका हल क्या है?
जवाब:-
जब जिस्मानी
हवास में आते हो तो कई तरह के टकराव होते हैं। इबलीस की ग्रहचारी बैठती है।
रब्बा फ़रमाते रूहानी हवासी बनो, खिदमत में लग जाओ। याद के सफ़र में रहो तो
ग्रहचारी मिट जायेगी।
आमीन।
रूहानी
बच्चों के पास रब आये हैं सिरात ए मुस्तकीम देने और समझाने। यह तो बच्चे समझ गये
हैं कि ड्रामा प्लैन के मुताबिक तमाम काम होना है। बाक़ी वक़्त थोड़ा रहा है।
इस हिन्दुस्तान को आलम ए शैतान से फिर आलम ए ग़ैर ख़बासत बनाना है। अब रब भी है
बातिन। तालीम भी बातिन है, सेन्टर्स तो निहायत हैं, छोटे-बड़े गांव में छोटे-बड़े
सेन्टर्स हैं और बच्चे भी निहायत हैं। अब बच्चों ने चैलेन्ज तो दी है और लिखना
भी है, जब कोई लिटरेचर बनाना है तो उसमें लिखना है - हम इस अपनी हिन्दुस्तान
सरज़मी को जन्नत बनाकर छोड़ेंगे। तुमको भी अपनी हिन्दुस्तान सरज़मी निहायत
प्यारी है क्योंकि तुम जानते हो यह हिन्दुस्तान ही जन्नत थी, इनको 5 हज़ार साल
हुए हैं। हिन्दुस्तान निहायत शानदार था, इनको जन्नत कहा जाता है। तुम जिब्राइल
अलैहिस्सलाम मुंह निस्बनामा को ही नॉलेज है। इस हिन्दुस्तान को सिरात ए
मुस्तकीम पर हमको जन्नत ज़रूर बनाना है। सबको रास्ता बताना है, और कोई खिटपिट
की बात ही नहीं। आपस में बैठ राय करनी चाहिए कि इन नुमाइश की तस्वीरों के ज़रिए
हम ऐसी क्या एडवरटाइजमेंट करें, जो अख़बार में भी तस्वीर दें, आपस में इस पर
सेमीनार करना चाहिए। जैसे गवर्मेन्ट के लोग आपस में मिलते हैं, राय करते हैं कि
हिन्दुस्तान को हम कैसे सुधारें? यह जो इतने इख्तिलाफ़ हो गये हैं, उनको आपस
में मिलकर दुरूस्त करें और हिन्दुस्तान में सुकून ख़ुशी कैसे क़ायम करें! उस
गवर्मेंन्ट की भी तजवीज़ चलती है। तुम भी पनजतनी गवर्मेन्ट गाई हुई हो। यह बड़ी
इलाही गवर्मेन्ट है, इनको असल में कहा ही जाता है पाकीज़ा इलाही गवर्मेन्ट,
नापाक से पाक बनाने वाला रब ही नापाक बच्चों को बैठ पाकीज़ा दुनिया का मालिक
बनाते हैं। यह बच्चे ही जानते हैं। अहम है ही हिन्दुस्तान का अल्लाह अव्वल
हूर-हूरैन दीन। यह भी बच्चे जानते हैं यह है रूद इल्म यज्ञ। रूद्र कहा ही जाता
है अल्लाह ताला बाप को, रहमतुल्आल्मीन को। गाया हुआ है बरोबर रब ने आकर रूद्र
इल्म यज्ञ तामीर किया था। उन्हों ने तो टाइम लम्बा चौड़ा दे दिया है। बे इल्मी
नींद में सोये हुए हैं। अभी तुमको रब ने जगाया है, तुमको फिर औरों को जगाना है।
ड्रामा प्लैन के मुताबिक तुम जगाते रहते हो। इस वक़्त तक जिसने जैसे-जैसे,
जितनी-जितनी तजवीज़ किया है, उतना ही चक्कर पहले भी किया था। हाँ, जंग के मैदान
में उतराव चढ़ाव तो होता ही है। कभी इबलीस का ज़ोर हो जाता है, कभी इलाही औलाद
का ज़ोर हो जाता है। कभी-कभी खिदमत बड़ी अच्छी तेज़ी से चलती है। कभी कहाँ-कहाँ
बच्चों में इबलीस की मुश्किलात पड़ जाती हैं। इबलीस एकदम बेहोश कर देता है। जंग
का मैदान तो है ना। शैतान इबलीस अल्लाह ताला की औलाद को बेहोश कर देता है।
लक्ष्मण के लिए भी कहानी है ना।
तुम कहते हो तमाम इन्सान कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं। तुम इलाही फ़िरक़ा
ही ऐसे कहते हो, जिनको आफ़ताब ए इल्म मिला है और जाग उठे हैं, वही समझेंगे। इसमें
एक दो को कहने की भी कोई बात नहीं है। तुम जानते हो बरोबर हम इलाही फ़िरके जागे
हैं। बाक़ी दूसरे तमाम सोये हुए हैं। वह यह नहीं जानते कि पाक परवरदिगार आ गया
है, बच्चों को वर्सा देने। यह बिल्कुल भूल गये हैं। रब हिन्दुस्तान में ही आते
हैं। आकर हिन्दुस्तान को जन्नत का मालिक बनाते हैं। हिन्दुस्तान जन्नत का मालिक
था, इसमें कोई शक नहीं। पाक परवरदिगार की विलादत भी यहाँ ही होती है। शिवजयन्ती
मनाते हैं ना। ज़रूर उसने आकर कुछ तो किया होगा ना। अक्ल कहती है ज़रूर आकर
जन्नत का क़याम किया होगा। इल्हाम से थोड़े ही क़याम होगा। यहाँ तो तुम बच्चों
को हक़ीक़ी इबादत सिखायी जाती है। याद का सफ़र समझया जाता है। इल्हाम से कोई
आवाज़ होता ही नहीं। समझते हैं इस्राफील अलैहिस्सलाम का भी इल्हाम होता है तब
वह यूरोप रिहाईश नशीन मिज़ाइल्स वगैरह बनाते हैं। मगर इसमें इल्हाम की तो कोई
बात ही नहीं है। तुम समझ गये हो उन्हों का पार्ट है ड्रामा में यह मिज़ाइल
वगैरह बनाने का। इल्हाम की बात नहीं है। ड्रामा के मुताबिक़ तबाही तो ज़रूर होनी
ही है। गाया हुआ है - क़यामत जंग में मिज़ाइल काम आये। तो जो पास्ट हो गया है
वह फिर रिपीट होगा। तुम गैरन्टी करते हो हम हिन्दुस्तान में जन्नत क़ायम करेंगे,
जहाँ एक दीन होगा। तुम ऐसे नहीं लिखते कि कई दीन तबाह होंगे। वह तो तस्वीर में
लिखा हुआ है - जन्नत का क़याम होता है तो दूसरा कोई दीन नहीं होता। अभी तुमको
समझ में आता है। सबसे बड़ा पार्ट है रहमतुल्आल्मीन का, जिब्राइल अलैहिस्सलाम का
और इस्राफील अलैहिस्सलाम का। जिब्राइल अलैहिस्सलाम सो मीकाइल अलैहिस्सलाम,
मीकाइल अलैहिस्सलाम सो जिब्राइल अलैहिस्सलाम - यह तो बड़ी गहरी बातें हैं।
मीकाइल अलैहिस्सलाम से जिब्राइल अलैहिस्सलाम कैसे बनते हैं, जिब्राइल
अलैहिस्सलाम से फिर मीकाइल अलैहिस्सलाम कैसे बनते हैं, यह सेन्सीबुल बच्चों की
अक्ल में झट आ जाता है। हूरैन फ़िरक़े तो बनते ही हैं। एक की बात नहीं है। इन
बातों को तुम बच्चे समझते हो। दुनिया में एक भी इन्सान नहीं समझता। भल लक्ष्मी
नारायण और विष्णु की बुतपरस्ती भी करते हैं मगर उनको यह मालूम नहीं है कि विष्णु
के ही दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं, जो नई दुनिया में सल्तनत करते हैं। बाक़ी 4
बाज़ू वाला कोई इन्सान नहीं होता। यह मल्क़ूतवतन में एम ऑबजेक्ट दिखलाते हैं
कुनबाई राह का। यह तमाम वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे चक्कर लगाती है, यह
कोई नहीं जानते। रब को ही नहीं जानते तो रब की मख़लूक़ को कैसे जान सकते। रब ही
मख़लूक़ के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर की नॉलेज बताते हैं, औलिया अफसियां भी कहते थे
हम नहीं जानते हैं। रब को जान जाएं तो मख़लूक़ के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर को भी
जान जायें। रब फ़रमाते हैं मैं एक ही बार आकर तुम बच्चों को भी तमाम नॉलेज
समझाता हूँ फिर आता ही नहीं हूँ। तो खालिक और मख़लूक़ के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर
को जानें ही कैसे? रब खुद फ़रमाते हैं - मैं सिवाए मिलन के दौर के कभी आता ही
नहीं हूँ। मुझे बुलाते भी मिलन पर हैं। पाकीज़ा सुनहरे दौर को कहा जाता है,
नापाक इख्तिलाफ़ी फ़ितने का दौर को कहा जाता है। तो ज़रूर मैं आऊंगा नापाक
दुनिया के अाख़िर में ना। इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर के आखिर में आकर नापाक से
पाक बनाते हैं। सुनहरे दौर आग़ाज़ में पाकीज़ा हैं, यह तो आसान बात है ना।
इन्सान कुछ भी समझ नहीं सकते कि नापाक से पाक बनाने वाला रब कब आयेंगे। अभी तो
इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर का आखिर कहेंगे। अगर कहते हैं इख्तिलाफ़ी फ़ितने के
दौर में अजुन 40 हज़ार साल पड़े हैं तो और कितना नापाक बनेंगे! कितना दु:ख होगा!
ख़ुशी तो होगी ही नहीं। कुछ भी मालूम न होने सबब बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में
हैं। तुम समझ सकते हो। तो बच्चों को आपस में मिलना है। तस्वीरों पर अच्छी तरह
समझाना होता है। यह भी ड्रामा के मुताबिक तस्वीर वगैरह तमाम निकाले हैं। बच्चे
समझते हैं जो वक़्त पास होता है, हूबहू ड्रामा चलता रहता है। बच्चों की हालतें
भी कभी नीचे, कभी ऊपर होती रहेंगी। बड़ी समझने की बातें हैं। कभी-कभी ग्रहचारी
आकर बैठती है तो उनको मिटाने के लिए कितनी कोशिश करते हैं। रब्बा घड़ी-घड़ी
फ़रमाते हैं - बच्चे, तुम जिस्मानी हवास में आते हो इसलिए टक्कर होती है। इसमें
रूहानी हवासी बनना पड़े। बच्चों मे जिस्मानी हवास निहायत है। तुम रूहानी हवासी
बनो तो रब की याद रहेगी और खिदमत में तरक्की करते रहेंगे। आला मर्तबा जिनको पाना
है वह हमेशा खिदमत में लगे रहेंगे। तक़दीर में नहीं है तो फिर तदबीर भी नहीं
होगी। खुद फ़रमाते हैं रब्बा हमको इख्तियारात नहीं होती। अक्ल में नहीं बैठता,
जिनको इख्तियारात होती है तो ख़ुशी भी निहायत होती है। समझते हैं रहमतुल्आल्मीन
आया हुआ है, अब रब फ़रमाते हैं बच्चे तुम अच्छी तरह समझकर फिर औरों को समझाओ।
कोई तो खिदमत में ही लगे रहते हैं। तजवीज़ करते रहते हैं। यह भी बच्चे जानते
हैं जो सेकेण्ड गुज़रता है, वह ड्रामा में नूंध है फिर ऐसे ही रिपीट होगा। बच्चों
को समझाया जाता है, बाहर तकरीर वगैरह पर तो कई तरह के नये आते हैं, सुनने के
लिए। तुम समझते हो गीता वेद सहीफें वगैरह पर कितनी इन्सान तकरीर करते हैं, उनको
कोई यह थोड़े ही मालूम है कि यहाँ अल्लाह ताला अपना और अपनी मख़लूक़ के
आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर का राज़ समझाते हैं। खालिक ही आकर तमाम इल्म सुनाते हैं।
तीनों ज़माने को जानने वाला बनाना, यह रब का ही काम है। सहीफों में यह बातें
हैं नहीं। यह नई बातें हैं। रब्बा बार-बार समझाते हैं कहाँ भी पहले-पहले यह
समझाओ कि गीता का भगवान कौन है - श्रीकृष्ण या निराकार शिव? यह बातें
प्रोजेक्टर पर तुम समझा नहीं सकेंगे। नुमाइश में तस्वीर सामने रखा है, उस पर
समझाकर तुम पूछ सकते हो। अब बताओ गीता का भगवान कौन? दरिया ए इल्म कौन है?
कृष्ण को तो कह नहीं सकेंगे। पाकीज़गी, ख़ुशी सुकून का समन्दर, लिबरेटर, गाइड
कौन है? पहले-पहले तो लिखाना चाहिए, फॉर्म भराना चाहिए फिर सबसे सही लेनी चाहिए।
(चिड़ियाओं का आवाज़ हुआ) देखो कितना झगड़ती हैं। इस वक़्त तमाम दुनिया में
लड़ाई-झगड़ा ही है। इन्सान भी आपस में लड़ते रहते हैं। इन्सान में ही समझने की
अक्ल है। 5 ख़बासत भी इन्सान में गाये जाते हैं। जानवरों की तो बात ही नहीं। यह
है विशश वर्ल्ड। वर्ल्ड इन्सानों के लिए ही कहा जाता है। इख्तिलाफ़ी फ़ितने के
दौर में हैं शैतानी फिरक़ा, सुनहरे दौर में हैं हूरैन फिरक़ा। अभी तुमको इस
तमाम कान्ट्रास्ट का मालूम है। तुम साबित कर बता सकते हो। सीढ़ी में भी बड़ा
क्लीयर दिखाया हुआ है। नीचे हैं नापाक, ऊपर में हैं पाक़ीज़ा। इनमें बड़ा
क्लीयर है। सीढ़ी ही अहम है - उतरता फ़न और चढ़ता फ़न। ये सीढ़ी बड़ी अच्छी है,
इनमें ऐसा क्या डालें जो इन्सान बिल्कुल अच्छी तरह समझ जाएं कि बरोबर यह नापाक
दुनिया है, पाक दुनिया जन्नत थी। यहाँ तमाम नापाक हैं, पाकीज़ा एक भी हो नहीं
सकता। रात-दिन यह ख्यालात चलना चाहिए। आत्म प्रकाश बच्चा लिखता है - रब्बा यह
तस्वीर बनायें, रब्बा फ़रमाते हैं भल इरादा ए ग़ौरतलब कर कोई भी तस्वीर बनाओ,
मगर सीढ़ी बड़ी अच्छी बननी चाहिए। इस पर निहायत समझा सकते हैं। 84 विलादत पूरे
कर फिर पहला नम्बर विलादत लिया है फिर उतरता फ़न से चढ़ते फ़न में जाना पड़े,
इसमें हर एक का ख्याल चलना चाहिए। नहीं तो खिदमत कैसे कर सकेंगे। तस्वीरों पर
समझाना निहायत आसान होता है। सुनहरे दौर के बाद सीढ़ी उतरनी होती है। यह भी
बच्चे जानते हैं - हम पार्ट नशीन एक्टर्स हैं। यहाँ से ट्रांसफर हो सीधा सुनहरे
दौर में नहीं जाते, पहले दारूल सुकून में जाना है। हाँ तुम्हारे में भी
नम्बरवार हैं जो अपने को पार्ट नशीन समझते हैं इस ड्रामा में। दुनिया में ऐसा
कोई कह न सके कि हम पार्ट नशीन हैं। हम लिखते भी हैं कि पार्ट नशीन एक्टर्स होते
हुए भी ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर, आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर को नहीं जान सकते
तो वह फर्स्टक्लास बेसमझ हैं। यह तो अल्ल्लाह् ताला फ़रमाते है। रहमतुल्आल्मीन
फ़रमाते हैं जिब्राइल अलैहिस्सलाम के जिस्म के ज़रिए । दरिया ए इल्म वह ग़ैर
मुजस्सम है, उनको अपना जिस्म है नहीं। बड़ी समझने का तरीका हैं। तुम बच्चों को
बड़ा नशा रहना चाहिए, हम किसकी ग़ीबत थोड़े ही करते हैं। यह तो राइट बात है ना।
जो भी बड़े-बड़े हैं उन सबकी तस्वीर तुम डाल सकते हो। सीढ़ी कोई को भी दिखला
सकते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1. हिन्दुस्तान में ख़ुशी सुकून का क़याम करने और हिन्दुस्तान को जन्नत बनाने
के लिए आपस में सेमीनार करना है, सिरात ए मुस्तकीम पर हिन्दुस्तान की ऐसी खिदमत
करनी है।
2. खिदमत में तरक्की करने और खिदमत से आला मर्तबा पाने के लिए रूहानी हवासी रहने
की मेहनत करनी है। इल्म का इरादा ए ग़ौरतलब करना है।
बरक़ात:-
अपनी
अफ़ज़ल इख्तियारात के वास्ते कुर्बानी में क़िस्मत का एहसास करने वाले सच्चे
कुर्बान नशीन बनो
मोमिनों की अफ़ज़ल
इख्तियारात है मुकम्मल पाकीज़गी। इसी इख्तियारात के लिए गायन है “जान जाएं पर
दीन न जाये।'' किसी भी तरह की हालात में अपनी इस इख्तियारात के वास्ते कुछ भी
कुर्बान करना पड़े, बर्दाश्त करना पड़े, सामना करना पड़े, हिम्मत रखना पड़े तो
खुशी-खुशी से करो - इसमें कुर्बानी को कुर्बानी न समझ क़िस्मत का एहसास करो तब
कहेंगे सच्चे कुर्बान नशीन। ऐसी इख्तियारात वाले ही सच्चे मोमिन कहे जाते हैं।
स्लोगन:-
तमाम कुव्वतों को
अपने ऑर्डर में रखने वाले ही मास्टर तमाम कुव्वत नशीन हैं।
आमीन