ओम् शान्ति।
प्यार का सागर अपने बच्चों को भी ऐसा प्यार का सागर बनाते हैं। बच्चों की एम
ऑब्जेक्ट ही है कि हम ऐसे लक्ष्मी-नारायण बनें। इनको सब कितना प्यार करते हैं। बच्चे
जानते हैं बाबा हमको इन जैसा मीठा बनाते हैं। मीठा यहाँ ही बनना है और बनेंगे याद
से। भारत का योग गाया हुआ है, यह है याद। इस याद से ही तुम इन जैसे विश्व के मालिक
बनते हो। यही बच्चों को मेहनत करनी है। तुम इस घमण्ड में मत आओ कि हमको ज्ञान बहुत
है। मूल बात है याद। याद ही प्यार देती है। बहुत मीठे, बहुत प्यारे बनने चाहते हो,
ऊंच पद पाना चाहते हो तो मेहनत करो। नहीं तो बहुत पछतायेंगे क्योंकि बहुत बच्चे हैं
जिनसे याद में रहना पहुँचता नहीं है, थक जाते हैं तो छोड़ देते हैं। एक तो
देही-अभिमानी बनने के लिए बहुत प्रयत्न करो। नहीं तो बहुत कम पद पा लेंगे। इतना
स्वीट कभी नहीं होंगे। बहुत थोड़े बच्चे हैं जो खींचते हैं क्योंकि याद में रहते
हैं। सिर्फ बाप की याद चाहिए। जितना याद करेंगे उतना बहुत स्वीट बनेंगे। इन
लक्ष्मी-नारायण ने भी अगले जन्म में बहुत याद किया है। याद से स्वीट बने हैं। सतयुग
के सूर्यवंशी पहले नम्बर में हैं, चन्द्रवंशी सेकण्ड नम्बर हो गये। यह
लक्ष्मी-नारायण बहुत प्रिय लगते हैं। इन लक्ष्मी-नारायण के फीचर्स और राम-सीता के
फीचर्स में बहुत फ़र्क है। इन लक्ष्मी-नारायण पर कभी कोई कलंक नहीं लगाया है।
श्रीकृष्ण पर भूल से कलंक लगाये हैं, राम-सीता पर भी लगाये हैं।
बाप कहते हैं बहुत मीठा तब बनेंगे जब समझेंगे कि हम आत्मा हैं। आत्मा समझ बाप को
याद करने में बहुत मज़ा है। जितना याद करेंगे उतना सतोप्रधान, 16 कला सम्पूर्ण
बनेंगे। 14 कला फिर भी डिफेक्टेड हुआ फिर और डिफेक्ट होती जाती है। 16 कला परफेक्ट
बनना है। ज्ञान तो बिल्कुल सहज है। कोई भी सीख जायेंगे। 84 जन्म कल्प-कल्प लेते आये
हैं। अब वापिस तो कोई नहीं जा सकते, जब तक पूरा पवित्र न बनें। नहीं तो सज़ायें खानी
पड़े। बाबा बार-बार समझाते हैं, जितना हो सके पहले-पहले यह एक बात पक्की करो कि मैं
आत्मा हूँ। हम आत्मा अपने घर में रहती हैं तो हम सतोप्रधान हैं फिर यहाँ जन्म लेते
हैं। कोई कितने जन्म, कोई कितने जन्म लेते हैं। पिछाड़ी में तमोप्रधान बनते हैं।
दुनिया की वह इज्जत कम होती जाती है। नया मकान होता है तो उसमें कितनी आराम आती है।
फिर डिफेक्टेड हो जाता है, कलायें कम होती जाती हैं। अगर तुम बच्चे चाहते हो
परफेक्ट दुनिया में जायें तो परफेक्ट बनना है। सिर्फ नॉलेज को परफेक्ट नहीं कहा जाता।
आत्मा को परफेक्ट बनना है। जितना हो सके कोशिश करो - मैं आत्मा हूँ, बाबा का बच्चा
हूँ। अन्दर में बहुत खुशी रहनी चाहिए। मनुष्य अपने को देहधारी समझ खुश होते हैं। हम
फलाने का बच्चा हूँ ....... वह है अल्पकाल का नशा। अब तुम बच्चों को बाप के साथ पूरा
बुद्धियोग लगाना है, इसमें मूँझना नहीं है। भल विलायत में कहाँ भी जाओ सिर्फ एक बात
पक्की रखो, कि बाबा को याद करना है। बाबा प्यार का सागर है। यह महिमा कोई मनुष्य की
नहीं। आत्मा अपने बाप की महिमा करती है। आत्मायें सब आपस में भाई-भाई हैं। सभी का
बाप एक है। बाप सबको कहते हैं - बच्चे, तुम सतोप्रधान थे सो अब तमोप्रधान बने।
तमोप्रधान बनने से तुम दु:खी बने हो। अब मुझ आत्मा को परमात्मा बाप कहते हैं तुम
पहले परफेक्ट थे। सब आत्मायें वहाँ परफेक्ट ही हैं। भल पार्ट अलग-अलग है, परन्तु
परफेक्ट तो हैं ना। प्योरिटी बिगर तो वहाँ कोई जा न सके। सुखधाम में तुमको सुख भी
है तो शान्ति भी है, इसलिए तुम्हारा ऊंच ते ऊंच धर्म है। अथाह सुख रहता है। विचार
करो हम क्या बनते हैं। स्वर्ग के मालिक बनते हैं। वह है हीरे जैसा जन्म। अभी तो कौड़ी
जैसा जन्म है। अब बाप इशारा देते हैं याद में रहने का। तुम बुलाते ही हो कि हमको
आकर पतित से पावन बनाओ। सतयुग में हैं सम्पूर्ण निर्विकारी। राम-सीता को भी
सम्पूर्ण नहीं कहेंगे। वह सेकण्ड ग्रेड में चले गये। याद की यात्रा में पास नहीं
हुए। नॉलेज में भल कितना भी तीखा हो, कभी भी बाप को मीठा नहीं लगेंगे। याद में
रहेंगे तब ही मीठे बनेंगे। फिर बाप भी तुमको मीठा लगेगा। पढ़ाई तो बिल्कुल कॉमन है,
पवित्र बनना है, याद में रहना है। यह अच्छी रीति नोट कर दो फिर यह जो कहाँ-कहाँ
खिट-खिट होती है, अहंकार आ जाता है, वह कभी नहीं होगा - याद की यात्रा में रहने से।
मूल बात अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। दुनिया में मनुष्य कितना लड़ते झगड़ते
हैं। जीवन ही जैसे ज़हर मिसल कर देते हैं। यह अक्षर सतयुग में नहीं होंगे। आगे चल
यहाँ तो मनुष्यों की जीवन और ही ज़हर होती जायेगी। यह है ही विषय सागर। रौरव नर्क
में सब पड़े हैं, बहुत गन्द है। दिन-प्रतिदिन गन्द वृद्धि को पाता रहता है। इनको कहा
जाता है डर्टी वर्ल्ड। एक-दो को दु:ख ही देते रहते क्योंकि देह-अभिमान का भूत है।
काम का भूत है। बाप कहते हैं इन भूतों को भगाओ। यह भूत ही तुम्हारा काला मुँह करते
हैं। काम चिता पर बैठ काले बन जाते हैं तब बाप कहते हैं फिर हम आकर ज्ञान अमृत की
वर्षा करते हैं। अभी तुम क्या बनते हो! वहाँ तो हीरों के महल होते हैं, सब प्रकार
के वैभव होते हैं। यहाँ तो सब मिलावटी चीजें हैं। गऊओं का खाना देखो, सबसे तन्त (सार)
निकाल बाकी दे देते हैं। गाय को खाना भी ठीक नहीं मिलता। श्रीकृष्ण की गायें देखो
कैसी फर्स्टक्लास दिखाते हैं। सतयुग में गायें ऐसी होती हैं, बात मत पूछो। देखने से
ही फरहत आ जाती है। यहाँ तो हर चीज़ से इसेन्स निकाल देते हैं। यह बहुत छी-छी गन्दी
दुनिया है। तुम्हें इससे दिल नहीं लगानी है। बाप कहते हैं तुम कितने विकारी बन गये
हो। लड़ाई में कैसे एक-दो को मारते रहते हैं। एटॉमिक बॉम्ब्स बनाने वालों का भी मान
कितना है, इनसे सबका विनाश हो जाता है। बाप बैठ बताते हैं - आज के मनुष्य क्या हैं,
कल के क्या होंगे। अभी तुम हो बीच में। संग तारे कुसंग बोरे। तुम पुरुषोत्तम बनने
के लिए बाप का हाथ पकड़ते हो। कोई तैरना सीखते हैं तो सिखलाने वाले का हाथ पकड़ना
होता है। नहीं तो घुटका आ जाए, इसमें भी हाथ पकड़ना है। नहीं तो माया खींच लेती है।
तुम इस सारे विश्व को स्वर्ग बनाते हो। अपने को नशे में लाना चाहिए। हम श्रीमत से
अपनी राजाई स्थापन कर रहे हैं। सभी मनुष्य मात्र दान तो करते ही हैं। फकीरों को देते
हैं। तीर्थ यात्रा पर पण्डों को दान देते हैं, चावल मुट्ठी भी दान जरूर करेंगे। वह
सब भक्ति मार्ग में चला आता है। अभी बाबा हमको डबल दानी बनाते हैं। बाप कहते हैं
तीन पैर पृथ्वी पर तुम यह ईश्वरीय युनिवर्सिटी, ईश्वरीय हॉस्पिटल खोलो जिसमें
मनुष्य 21 जन्मों के लिए आकर शफा पायेंगे। यहाँ तो कैसी-कैसी बीमारियां होती हैं।
बीमारी में कितनी बांस हो जाती है। हॉस्पिटल में देखो तो ऩफरत आती है। कर्मभोग
कितना है। इन सब दु:खों से छूटने के लिए बाप कहते हैं - सिर्फ याद करो और कोई तकलीफ
तुमको नहीं देता हूँ। बाबा जानते हैं बच्चों ने बहुत तकलीफ देखी है। विकारी मनुष्यों
की शक्ल ही बदल जाती है। एकदम जैसे मुर्दे बन जाते हैं। जैसे शराबी शराब बिगर रह नहीं
सकते। शराब से बहुत नशा चढ़ता है परन्तु अल्पकाल के लिए। इससे विकारी मनुष्यों की
आयु भी कितनी छोटी हो जाती है। निर्विकारी देवताओं की आयु एवरेज 125-150 वर्ष होती
है। एवरहेल्दी बनेंगे तो आयु भी तो बढ़ेगी ना। निरोगी काया हो जाती है। बाप को
अविनाशी सर्जन भी कहा जाता है। ज्ञान इन्जेक्शन सतगुरू दिया अज्ञान अन्धेर विनाश।
बाप को जानते नहीं हैं इसलिए अज्ञान अंधेरा कहा जाता है, भारतवासियों की ही बात है।
क्राइस्ट को तो जानते हैं फलाने संवत में आया। उन्हों की सारी लिस्ट है। कैसे
नम्बरवार पोप गद्दी पर बैठते हैं। एक ही भारत है जो कोई की बॉयोग्राफी नहीं जानते।
बुलाते भी हैं हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता परमात्मा, हे मात-पिता....... अच्छा,
मात-पिता की बॉयोग्राफी तो बताओ। कुछ भी पता नहीं।
तुम जानते हो - यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। हम अभी पुरुषोत्तम बन रहे हैं तो पूरा
पढ़ना चाहिए। लोक-लाज कुल की मर्यादा में भी बहुत फँसे रहते हैं। इस बाबा ने तो कोई
की भी परवाह नहीं की। कितनी गालियाँ आदि खाई, न मन न चित। रास्ते चलते-चलते
ब्राह्मण फँस गया। बाबा ने ब्राह्मण बनाया तो गाली खाने लगे। सारी पंचायत थी एक तरफ,
दादा दूसरी तरफ। सारी सिन्धी पंचायत कहे कि यह क्या करते हो! अरे गीता में
भगवानुवाच है ना - काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से विश्व के मालिक बनोगे। यह तो
गीता के अक्षर हैं। मुझ से भी कोई कहलाते हैं कि काम विकार को जीतने से तुम जगतजीत
बनेंगे। इन लक्ष्मी-नारायण ने भी जीत पाई है ना। इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं।
तुमको स्वर्ग की बादशाही देने आया हूँ। अब पवित्र बनो और बाप को याद करो। स्त्री कहे
हम पावन बनेंगी, पति कहे मैं नहीं बनूँगा। एक हंस एक बगुला हो जाता। बाप आकर ज्ञान
रत्न चुगने वाला हंस बनाते हैं। परन्तु एक बनता, दूसरा नहीं बनता तो झगड़ा होता है।
शुरूआत में तो बहुत ताकत थी। अभी इतनी हिम्मत कोई में नहीं है। भल कहते हैं हम
वारिस हैं, परन्तु वारिस बनने की बात और है। शुरू में तो कमाल थी। बड़े-बड़े घर वाले
फट से छोड़ आये वर्सा पाने। तो वह लायक बन गये। पहले-पहले आने वालों ने तो कमाल की।
अभी ऐसे कोई विरले निकलेंगे। लोक-लाज बहुत है। पहले जो आये उन्हों ने बहुत हिम्मत
दिखाई। अभी कोई इतना साहस रखें - बहुत मुश्किल है। हाँ, गरीब रख सकते हैं। माला का
दाना बनना है तो पुरुषार्थ करना पड़े। माला तो बहुत बड़ी है। 8 की भी है, 108 की भी
है, फिर 16108 की भी है। बाप खुद कहते हैं बहुत-बहुत मेहनत करो। अपने को आत्मा समझो।
सच बतलाते नहीं हैं। अच्छे-अच्छे जो अपने को समझते हैं, उनसे भी विकर्म हो जाते
हैं। भल ज्ञानी तू आत्मा हैं। समझानी अच्छी है परन्तु योग है नहीं, दिल पर नहीं
चढ़ते। याद में ही नहीं रहते तो दिल पर भी नहीं चढ़ते। याद से ही याद मिलेगी ना।
शुरू में फट से वारी गये। अब वारी जाना मासी का घर नहीं। मूल बात है याद, तब ही खुशी
का पारा चढ़ेगा। जितनी कलायें कम होती गई हैं उतना दु:ख बढ़ता गया है। अब फिर जितनी
कलायें बढ़ेगी उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। पिछाड़ी में तुमको सब साक्षात्कार होंगे।
जास्ती याद करने वालों को क्या पद मिलता है। बहुत पिछाड़ी में साक्षात्कार होगा। जब
विनाश होगा तब तुम स्वर्ग के साक्षात्कार के हलवे खायेंगे। बाबा बार-बार समझाते हैं
- याद को बढ़ाओ। किसको थोड़ा समझाया - इसमें बाबा खुश नहीं होते। एक पण्डित की भी
कथा है ना। बोला राम-राम कहने से सागर पार हो जायेंगे। यह दिखाते हैं - निश्चय में
ही विजय है। बाप में संशय आने से विनशन्ती हो जाते हैं। बाप की याद से ही पाप कटते
हैं, रात-दिन कोशिश करनी चाहिए। फिर कर्मेन्द्रियों की चंचलता बन्द हो जायेगी। इसमें
बहुत मेहनत है। बहुत हैं जिनकी याद का चार्ट है नहीं। गोया फाउन्डेशन है नहीं। जितना
हो सके कैसे भी याद करना है तब ही सतोप्रधान, 16 कला बनेंगे। पवित्रता के साथ याद
की यात्रा भी चाहिए। पवित्र रहने से ही याद में रह सकेंगे। यह प्वाइंट अच्छी रीति
धारण करो। बाप कितना निरहंकारी है। आगे चल तुम्हारे चरणों में सब झुकेंगे। कहेंगे
बरोबर यह मातायें स्वर्ग का द्वार खोलती हैं। याद का जौहर अभी कम है। कोई भी देहधारी
को याद नहीं करना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में ही मेहनत है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पतित छी-छी दु:खदाई दुनिया से दिल नहीं लगानी है। एक बाप का हाथ
पकड़ इससे पार जाना है।
2) माला का दाना बनने के लिए बहुत साहस रख पुरुषार्थ करना है। ज्ञान रत्न चुगने
वाला हंस बनना है। कोई भी विकर्म नहीं करने हैं।