10-05-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - ज्ञान की
प्वाइंट्स को स्मृति में रखो तो खुशी रहेगी, तुम अभी स्वर्ग के गेट पर खड़े हो, बाबा
मुक्ति-जीवनमुक्ति की राह दिखा रहे हैं''
प्रश्नः-
अपने रजिस्टर
को ठीक रखने के लिए कौन-सा अटेन्शन जरूर रखना है?
उत्तर:-
अटेन्शन रहे
कि मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख तो नहीं दिया? अपना स्वभाव बड़ा फर्स्टक्लास,
मीठा हो। माया नाक-कान पकड़कर ऐसा कोई कर्तव्य न करा दे जिससे किसी को दु:ख मिले।
अगर दु:ख देंगे तो बहुत पश्चाताप् करना पड़ेगा। रजिस्टर खराब हो जायेगा।
गीत:-
नयन हीन को
राह दिखाओ.......
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। रास्ता बहुत सहज समझाया जाता है फिर भी बच्चे ठोकरे
खाते रहते हैं। यहाँ बैठे हैं तो समझते हैं हमको बाप पढ़ाते हैं, शान्तिधाम जाने का
रास्ता बताते हैं। बहुत सहज है। बाप कहते हैं दिन-रात जितना हो सके याद में रहो। वह
भक्ति मार्ग की यात्रा टांगों की होती है। बहुत धक्के खाने पड़ते हैं। यहाँ तुम बैठे
हुए भी याद की यात्रा पर हो। यह भी बाप ने समझाया है - दैवीगुण धारण करने हैं।
शैतानी अवगुणों को खत्म करते जाओ। कोई भी शैतानी काम नहीं करो, इससे विकर्म बन जाता
है। बाप आये ही हैं तुम बच्चों को सदा सुखी बनाने। कोई बादशाह का बच्चा हो तो वह
बाप को और राजाई को देख खुश होगा ना। भल राजाई है परन्तु फिर भी शरीर के रोग आदि तो
होते ही हैं। यहाँ तुम बच्चों को निश्चय है कि शिवबाबा आया हुआ है, वह हमको पढ़ा रहे
हैं। फिर हम स्वर्ग में जाकर राजाई करेंगे। वहाँ किसी प्रकार का दु:ख नहीं होगा।
तुम्हारी बुद्धि में रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है। यह ज्ञान और कोई
मनुष्य मात्र की बुद्धि में नहीं है। तुम बच्चे भी अभी समझते हो कि आगे हमारे में
ज्ञान नहीं था। बाप को हम नहीं जानते थे। मनुष्य भक्ति को बहुत उत्तम समझते हैं,
अनेक प्रकार की भक्ति करते हैं। उनमें सब हैं स्थूल बातें। सूक्ष्म बात कोई भी है
नहीं। अभी अमरनाथ की यात्रा पर स्थूल में जायेंगे ना। वहाँ भी है वह लिंग। किसके
पास जाते हैं, मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। अभी तुम बच्चे कहाँ भी धक्के खाने नहीं
जायेंगे। तुम जानते हो हम पढ़ते ही हैं नई दुनिया के लिए। जहाँ यह वेद-शास्त्र आदि
होते ही नहीं। सतयुग में भक्ति होती नहीं। वहाँ है ही सुख। जहाँ भक्ति है वहाँ दु:ख
है। यह गोले का चित्र बड़ा अच्छा है। स्वर्ग का गेट इसमें बड़ा क्लीयर है। यह बुद्धि
में रहना चाहिए। अभी हम स्वर्ग के गेट पर बैठे हैं। बहुत खुशी होनी चाहिए। ज्ञान की
प्वाइंट्स को याद करते तुम बच्चे बहुत खुशी में रह सकते हो। जानते हो अभी हम स्वर्ग
के गेट में जा रहे हैं। वहाँ बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। यहाँ कितने ढेर मनुष्य
हैं। कितने धक्के खाते रहते हैं। दान-पुण्य करना, साधुओं के पिछाड़ी भटकना कितना है
फिर भी पुकारते रहते हैं - हे प्रभू नैन हीन को राह दिखाओ...राह हमेशा
मुक्ति-जीवनमुक्ति की चाहते हैं। यह पुरानी दु:ख की दुनिया है, सो भी तुम जानते हो।
मनुष्यों को पता ही नहीं। कलियुग की आयु हज़ारों वर्ष कह देते हैं तो बिचारे अंधकार
में हैं ना। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जो जानते हैं बरोबर हमारा बाबा हमको
राजयोग सिखला रहे हैं। जैसे बैरिस्टरी योग, इन्जीनियरी योग होता है ना। पढ़ने वाले
को टीचर की ही याद रहती है। बैरिस्टरी के ज्ञान से मनुष्य बैरिस्टर बन जायेगा। यह
है राजयोग। हमारी बुद्धि का योग है परमपिता परमात्मा के साथ। इसमें तो खुशी का एकदम
पारा चढ़ जाना चाहिए। बहुत मीठा बनना है। स्वभाव बड़ा फर्स्टक्लास होना चाहिए। कोई
को भी दु:ख न मिले। चाहते भी हैं किसको दु:ख न देवें। परन्तु फिर भी माया नाक-कान
से पकड़ भूल करा देती है। फिर अन्दर पछताते हैं - हमने नाहेक उनको दु:ख दिया। परन्तु
रजिस्टर में तो खराबी आ गई ना। ऐसी कोशिश करनी चाहिए - किसको भी मन्सा, वाचा, कर्मणा
दु:ख न देवें। बाप आते ही हैं - हमको ऐसा देवता बनाने। यह कभी किसको दु:ख देते हैं
क्या! लौकिक टीचर पढ़ाते हैं, दु:ख तो नहीं देते हैं ना। हाँ, बच्चे नहीं पढ़ते हैं
तो कोई सज़ा आदि देते हैं। आजकल मारने का भी कायदा निकाल दिया है। तुम रूहानी टीचर
हो, तुम्हारा काम है पढ़ाना और साथ-साथ मैनर्स सिखलाना। फिर पढ़ेंगे-लिखेंगे तो ऊंच
पद पायेंगे। नहीं पढ़ेंगे तो फेल खुद होंगे। यह बाप भी रोज़ आकर पढ़ाते हैं, मैनर्स
सिखलाते हैं। सिखलाने के लिए प्रदर्शनी आदि का प्रबन्ध रचते हैं। सब प्रदर्शनी और
प्रोजेक्टर मांगते हैं। प्रोजेक्टर्स भी हज़ारों लेंगे। हर एक बात बाप बहुत ही सहज
कर बतलाते हैं। अमरनाथ की भी सर्विस सहज है। चित्रों पर तुम समझा सकते हो। ज्ञान और
भक्ति क्या है? ज्ञान इस तरफ, भक्ति उस तरफ। उनसे स्वर्ग, उनसे नर्क - बिल्कुल
क्लीयर है। तुम बच्चे अभी जो पढ़ते हो यह बहुत सहज है, अच्छा पढ़ा भी लेते हो,
परन्तु याद की यात्रा कहाँ। यह है सारी बुद्धि की बात। हमको बाप को याद करना है,
इसमें ही माया फथकाती है। एकदम योग तोड़ देती है। बाप कहते हैं तुम सब योग में बहुत
कमज़ोर हो। अच्छे-अच्छे महारथी भी बहुत कमज़ोर हैं। समझते हैं इनमें यह ज्ञान बड़ा
अच्छा है इसलिए महारथी हैं। बाबा कहते हैं घोड़ेसवार प्यादे हैं। महारथी वह जो याद
में रहते हैं। उठते-बैठते याद में रहें तो विकर्म विनाश होंगे, पावन होंगे। नहीं तो
सज़ा भी खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा इसलिए अपना चार्ट रखो तो तुमको
मालूम पड़ेगा, बाबा खुद बतलाते हैं मैं भी पुरुषार्थ करता हूँ। घड़ी-घड़ी बुद्धि और
तरफ चली जाती है। बाबा के ऊपर तो बहुत फिकरात रहती है ना। तुम तीखे जा सकते हो। फिर
साथ में अपनी चलन भी सुधारनी है। पवित्र बनकर और फिर विकार में गिरा तो की कमाई चट
हो जायेगी। कोई पर क्रोध किया, लून-पानी हुआ तो गोया असुर बन जाते हैं। अनेक प्रकार
की माया आती है। सम्पूर्ण तो कोई बना नहीं है। बाबा पुरुषार्थ कराते रहते हैं।
कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है, इसमें अपनी मजबूती चाहिए। अन्दर की सच्चाई चाहिए।
अगर अन्दर कोई के साथ दिल लगी हुई होगी तो फिर चल न सकें। कुमारियों, माताओं को तो
भारत को स्वर्ग बनाने की सर्विस में लग जाना चाहिए। इसमें है मेहनत। मेहनत बिगर कुछ
भी मिलता नहीं। तुमको 21 जन्म के लिए राजाई मिलती है तो कितनी मेहनत करनी चाहिए। वो
पढ़ाई भी बाबा इसलिए पढ़ने देते हैं - कहते हैं जब तक इसमें पक्के हो जाएं। ऐसा न
हो फिर दोनों जहान से चला जाए। कोई के नाम-रूप में लटक मरते तो खत्म हो जाते हैं।
तकदीरवान बच्चे ही शरीर का भान भूल अपने को अशरीरी समझ बाप को याद करने का
पुरुषार्थ कर सकते हैं। बाप रोज़-रोज़ समझाते हैं - बच्चे, तुम शरीर का भान छोड़
दो। हम अशरीरी आत्मा अब घर जाते हैं, यह शरीर यहाँ छोड़ देना है, वो तब छोड़ेंगे जब
निरन्तर बाप की याद में रह कर्मातीत हो जाए। इसमें बुद्धि की बात है परन्तु किसकी
तकदीर में नहीं है तो तदबीर क्या करें। बुद्धि में यह रहना चाहिए कि हम अशरीरी आये
थे, फिर सुख के कर्म सम्बन्ध में बंधे फिर रावण राज्य में विकारी बंधन में फँसें।
अब फिर बाप कहते हैं अशरीरी होकर जाना है। अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। आत्मा
ही पतित बनी है। आत्मा कहती है हे पतित-पावन आओ। अभी तुमको पतित से पावन होने की
युक्ति भी बतलाते रहते हैं। आत्मा है ही अविनाशी। तुम आत्मा यहाँ शरीर में आई हो
पार्ट बजाने। यह भी अब बाप ने समझाया है, जिनको कल्प पहले समझाया है वही आते रहेंगे।
अब बाप कहते हैं कलियुगी संबंध भूल जाओ। अब तो वापिस जाना है, यह दुनिया ही खत्म
होनी है। इनमें कोई सार नहीं है तब तो धक्के खाते रहते हैं। भक्ति करते हैं भगवान
से मिलने। समझते हैं भक्ति बड़ी अच्छी है। बहुत भक्ति करेंगे तो भगवान मिलेगा और
सद्गति में ले जायेंगे। अभी तुम्हारी भक्ति पूरी होती है। तुम्हारे मुख से ‘हे राम',
‘हे भगवान' यह भक्ति के अक्षर भी न निकलें। यह बंद हो जाना चाहिए। बाप सिर्फ कहते
हैं मुझे याद करो। यह दुनिया ही तमोप्रधान है। सतोप्रधान सतयुग में रहते हैं। सतयुग
है चढ़ती कला फिर उतरती कला होती है। त्रेता को भी वास्तव में स्वर्ग नहीं कहा जाता।
स्वर्ग सिर्फ सतयुग को ही कहा जाता है। तुम बच्चों की बुद्धि में आदि-मध्य-अन्त का
ज्ञान है। आदि अर्थात् शुरू, मध्य हाफ फिर अन्त। मध्य में रावण राज्य शुरू होता है।
बाप भारत में ही आते हैं। भारत ही पतित और पावन बनता है। 84 जन्म भी भारतवासी लेते
हैं। बाकी तो नम्बरवार धर्म वाले आते हैं। झाड़ वृद्धि को पाता है फिर उस समय ही
आयेंगे। यह बातें और किसकी बुद्धि में नहीं होगी। तुम्हारे में भी सब धारण नहीं कर
सकते हैं। यह 84 का चक्र बुद्धि में रहे तो भी खुशी में रहें। अब बाबा आया हुआ है,
हमको ले जाने के लिए। सच्चा-सच्चा माशूक आया हुआ है, जिसको हम भक्ति मार्ग में बहुत
याद करते थे वह आये हैं हम आत्माओं को वापिस ले जाने। मनुष्य मात्र यह नहीं जानते
कि शान्ति भी किसको कहा जाता है। आत्मा तो है ही शान्त स्वरूप। यह आरगन्स मिलते हैं
तब कर्म करना पड़ता है। बाप जो शान्ति का सागर है, वह सबको ले जाते हैं। तब सबको
शान्ति मिलेगी। सतयुग में तुमको शान्ति भी है, सुख भी है। बाकी सब आत्मायें चली
जायेंगी शान्तिधाम। बाप को ही शान्ति का सागर कहा जाता है। यह भी बहुत बच्चे भूल
जाते हैं क्योंकि देह-अभिमान में रहते हैं, देही-अभिमानी होते नहीं। बाप शान्ति तो
सबको देते हैं ना। चित्र में संगम पर जाकर दिखाओ। इस समय सब अशान्त हैं। सतयुग में
तो इतने धर्म होंगे ही नहीं। सब शान्ति में चले जायेंगे। वहाँ दिल भर कर शान्ति
मिलती है। तुमको राजाई में शान्ति भी है, सुख भी है। सतयुग में पवित्रता, सुख,
शान्ति सब है तुमको। मुक्तिधाम कहा जाता है स्वीट होम को। वहाँ पतित दु:खी होंगे नहीं।
दु:ख-सुख की कोई बात नहीं। तो शान्ति का अर्थ नहीं समझते हैं। रानी के हार का मिसाल
देते हैं ना। अब बाप कहते हैं शान्ति-सुख सब लो। आयुश्वान भव...... वहाँ कायदे
अनुसार बच्चा भी होगा। बच्चा मिले उसके लिए कोई पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता है। शरीर
छोड़ने का टाइम होता है तो साक्षात्कार हो जाता है और शरीर खुशी से छोड़ देते हैं।
जैसे बाबा को खुशी रहती है ना - शरीर छोड़कर हम यह बनूँगा, अभी पढ़ रहा हूँ। तुम भी
जानते हो हम सतयुग में जायेंगे। संगम पर ही तुम्हारी बुद्धि में यह रहता है। तो
कितनी खुशी में रहना चाहिए। जितनी ऊंच पढ़ाई उतनी खुशी। हमको भगवान पढ़ाते हैं। एम
आब्जेक्ट सामने है तो कितनी खुशी होनी चाहिए। परन्तु चलते-चलते गिर पड़ते हैं।
तुम्हारी सर्विस वृद्धि को तब पायेगी जब कुमारियाँ मैदान में आयेंगी। बाप कहते हैं
आपस में एक तो लूनपानी मत बनो। जबकि जानते हो हम ऐसी दुनिया में जाते हैं जहाँ
शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं, वहाँ तो हर एक चीज़ देखने से ही दिल खुश हो जाती है।
नाम ही है स्वर्ग। तो कुमारियाँ लौकिक माँ-बाप को बोलें - अभी हम वहाँ जाने की
तैयारी कर रहे हैं, पवित्र तो जरूर बनना है। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है। अब मैं
योगिन बनी हूँ इसलिए पतित नहीं बन सकती। बात करने की खड़ाई चाहिए। ऐसी कुमारियाँ जब
निकलेंगी फिर देखना कितना जल्दी सर्विस होती है। परन्तु चाहिए नष्टोमोहा। एक बार मर
गई तो फिर याद क्यों आनी चाहिए। परन्तु बहुतों को घर की, बच्चों आदि की याद आती रहती
है। फिर बाप के साथ योग कैसे लगेगा। इसमें तो यही बुद्धि में रहे कि हम बाबा के
हैं। यह पुरानी दुनिया खत्म हुई पड़ी है। बाप कहते हैं मुझे याद करो। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी ऊंची तकदीर
बनाने के लिए जितना हो सके - अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। शरीर का भान बिल्कुल
भूल जाए, किसी का भी नाम-रूप याद न आये - यह मेहनत करनी है।
2) अपनी चलन का
चार्ट रखना है - कभी भी आसुरी चलन नहीं चलनी है। दिल की सच्चाई से नष्टोमोहा बन
भारत को स्वर्ग बनाने की सर्विस में लग जाना है।
वरदान:-
माया के रॉयल
रूप के बन्धनों से मुक्त, विश्व जीत, जगतजीत भव
मेरा पुरुषार्थ, मेरी
इन्वेन्शन, मेरी सर्विस, मेरी टचिंग, मेरे गुण अच्छे हैं, मेरी निर्णय शक्ति बहुत
अच्छी है, यह मेरा पन ही रॉयल माया का रूप है। माया ऐसा जादू मंत्र कर देती है जो
तेरे को भी मेरा बना देती है, इसलिए अब ऐसे अनेक बन्धनों से मुक्त बन एक बाप के
सम्बन्ध में आ जाओ तो मायाजीत बन जायेंगे। माया जीत ही प्रकृति जीत, विश्व जीत व
जगतजीत बनते हैं। वही एक सेकण्ड के अशरीरी भव के डायरेक्शन को सहज और स्वत: कार्य
में लगा सकते हैं।
स्लोगन:-
विश्व
परिवर्तक वही है जो किसी के निगेटिव को पॉजिटिव में बदल दे।
अव्यक्त इशारे -
रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो
आपका स्व-स्वरूप
पवित्र है, स्वधर्म अर्थात् आत्मा की पहली धारणा पवित्रता है। स्वदेश पवित्र देश
है। स्वराज्य पवित्र राज्य है। स्व का यादगार परम पवित्र पूज्य है। कर्मेन्द्रियों
का अनादि स्वभाव सुकर्म है, बस यही सदा स्मृति में रखो तो मेहनत और हठ से छूट
जायेंगे। पवित्रता वरदान रूप में धारण कर लेंगे।