13-07-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 03.02.2006 "बापदादा" मधुबन
“परमात्म प्यार में
सम्पूर्ण पवित्रता की ऐसी स्थिति बनाओ जिसमें व्यर्थ का नामनिशान न हो''
आज बापदादा चारों ओर
के अपने प्रभु प्यारे बच्चों को देख रहे हैं। सारे विश्व के चुने हुए कोटों में से
कोई इस परमात्म प्यार के अधिकारी बनते हैं। परमात्म प्यार ने ही आप बच्चों को यहाँ
लाया है। यह परमात्म प्यार सारे कल्प में इस समय ही अनुभव करते हो। और सभी समय
आत्माओं का प्यार, महान आत्माओं का, धर्म आत्माओं का प्यार अनुभव किया लेकिन अभी
परमात्म प्यार के पात्र बन गये। कोई आपसे पूछे परमात्मा कहाँ है? तो क्या कहेंगे?
परमात्म बाप तो हमारे साथ ही है। हम उनके साथ रहते हैं। परमात्मा भी हमारे बिना रह
नहीं सकता और हम भी परमात्मा के बिना रह नहीं सकते। इतना प्यार अनुभव कर रहे हो।
फ़लक से कहेंगे वह हमारे दिल में रहता और हम उनके दिल में रहते। ऐसे अनुभवी हैं ना!
हैं अनुभवी? क्या दिल में आता? अगर हम नहीं अनुभवी होंगे तो कौन होगा! बाप भी ऐसे
प्यार के अधिकारी बच्चों को देख हर्षित होते हैं।
परमात्म प्यार की
निशानी - जिससे प्यार होता है उसके पीछे सब कुर्बान करने के लिए सहज तैयार हो जाते
हैं। तो आप सब भी जो बाप चाहते हैं कि हर एक बच्चा बाप समान बन जाए, हर एक के चेहरे
से बाप प्रत्यक्ष दिखाई दे, ऐसे बने हो ना? बापदादा की दिल पसन्द स्थिति जानते हो
ना! बाप के दिल पसन्द स्थिति है ही सम्पूर्ण पवित्रता। इस ब्राह्मण जन्म का
फाउण्डेशन भी सम्पूर्ण पवित्रता है। सम्पूर्ण पवित्रता की गुह्यता को जानते हो?
संकल्प और स्वप्न में भी रिंचक मात्र अपवित्रता का नाम-निशान न हो। बापदादा आजकल के
समय की समीपता प्रमाण बार-बार अटेन्शन खिंचवा रहे हैं कि सम्पूर्ण पवित्रता के
हिसाब से व्यर्थ संकल्प, यह भी सम्पूर्णता नहीं है। तो चेक करो व्यर्थ संकल्प चलते
हैं? किसी भी प्रकार के व्यर्थ संकल्प सम्पूर्णता से दूर तो नहीं करते? जितना-जितना
पुरुषार्थ में आगे बढ़ते जाते हैं, उतना रॉयल रूप के व्यर्थ संकल्प व्यर्थ समय तो
समाप्त नहीं कर रहे हैं? रॉयल रूप में अभिमान और अपमान व्यर्थ संकल्प के रूप में
वार तो नहीं करते? अगर अभिमान रूप में कोई भी परमात्म देन को अपनी विशेषता समझते
हैं तो उस विशेषता का भी अभिमान नीचे ले आता है। विघ्न रूप बन जाता है और अभिमान भी
सूक्ष्म रूप में यही आता, जो जानते भी हो - मेरापन आया, मेरा नाम, मान, शान होना
चाहिए, यह मेरापन अभिमान का रूप ले लेता है। यह व्यर्थ संकल्प भी सम्पूर्णता से दूर
कर लेते हैं क्योंकि बापदादा यही चाहते हैं - स्वमान, न अभिमान, न अपमान। यही कारण
बनते हैं व्यर्थ संकल्प आने के।
बापदादा हर बच्चे को
डबल मालिकपन के निश्चय और नशे में देखने चाहते हैं। डबल मालिकपन क्या है? एक तो बाप
के खजानों के मालिक और दूसरा स्वराज्य के मालिक। दोनों ही मालिकपन क्योंकि सभी बालक
भी हो और मालिक भी हो। लेकिन बापदादा ने देखा बालक तो सभी हैं ही क्योंकि सभी कहते
हैं मेरा बाबा। तो मेरा बाबा अर्थात् बालक हैं ही। लेकिन बालक के साथ दोनों प्रकार
के मालिक। तो मालिकपन में नम्बरवार हो जाते हैं। मैं बालक सो मालिक भी हूँ। वर्से
का खजाना प्राप्त है इसलिए बालकपन का निश्चय और नशा रहता है लेकिन मालिकपन का
प्रैक्टिकल में निश्चय का नशा उसमें नम्बरवार हो जाते हैं। स्वराज्य अधिकारी मालिक,
इसमें विशेष विघ्न डालता है मन। मन के मालिक बन कभी भी मन के परवश नहीं हो। कहते
हैं स्वराज्य अधिकारी हैं, तो स्वराज्य अधिकारी अर्थात् राजा हैं, जैसे ब्रह्मा बाप
ने हर रोज़ चेकिंग कर मन के मालिक बन विश्व के मालिक का अधिकार प्राप्त कर लिया। ऐसे
यह मन बुद्धि राजा के हिसाब से तो मत्री हैं, यह व्यर्थ संकल्प भी मन में उत्पन्न
होते हैं, तो मन व्यर्थ संकल्प के वश कर देता है। अगर आर्डर से नहीं चलाते तो मन
चंचल बनने के कारण परवश कर लेता है। तो चेक करो। वैसे भी मन को घोड़ा कहते हैं,
क्योंकि चंचल है ना! और आपके पास श्रीमत का लगाम है। अगर श्रीमत का लगाम थोड़ा भी
ढीला होता है तो मन चंचल बन जाता है। क्यों लगाम ढीला होता? क्योंकि कहाँ न कहाँ
साइडसीन देखने में लग जाते हैं। और लगाम ढीला होता तो मन को चांस मिलता है। तो मैं
बालक सो मालिक हूँ, इस स्मृति में सदा रहो। चेक करो खजाने का भी मालिक तो स्वराज्य
का भी मालिक, डबल मालिक हूँ? अगर मालिकपन कम होता है तो कमजोर संस्कार इमर्ज हो जाते
हैं। और संस्कार को क्या कहते हो? मेरा संस्कार ऐसा है, मेरी नेचर ऐसी है, लेकिन
क्या यह मेरा है? कहने में तो ऐसे ही कहते हो, मेरा संस्कार। यह मेरा है? मेरा
संस्कार कहना राइट है? राइट है? मेरा है या रावण की जायदाद है? कमजोर संस्कार रावण
की जायदाद है, उसको मेरा कैसे कह सकते हैं। मेरा संस्कार कौन सा है? जो बाप का
संस्कार वह मेरा संस्कार। तो बाप का संस्कार कौन सा है? विश्व कल्याण। शुभ भावना,
शुभ कामना। तो कोई भी कमजोर संस्कार को मेरा संस्कार कहना ही रांग है। और मेरा
संस्कार अगर मानो दिल में बिठाया है, अशुद्ध चीज़ दिल में बिठा दी है। मेरी चीज़ से
तो प्यार होता है ना! तो मेरा समझने से अपने दिल में जगह दे दी है इसीलिए कई बार
बच्चों को बहुत युद्ध करनी पड़ती है क्योंकि अशुभ और शुभ दोनों को दिल में बिठा दिया
है तो दोनों क्या करेंगे? युद्ध ही तो करेंगे! जब यह संकल्प में आता है, वाणी में
भी आता है - मेरा संस्कार। तो चेक करो यह अशुभ संस्कार मेरा संस्कार नहीं है। तो
संस्कार परिवर्तन करना पड़े।
बापदादा हर एक बच्चे
को पदम-पदमगुणा भाग्यवान चलन और चेहरे में देखने चाहते हैं। कई बच्चे कहते हैं
भाग्यवान तो बने हैं लेकिन चलते-फिरते भाग्य इमर्ज हो, वह मर्ज हो जाता है और
बापदादा हर समय, हर बच्चे के मस्तक में भाग्य का सितारा चमकता हुआ देखने चाहते हैं।
कोई भी आपको देखे तो चेहरे से, चलन से भाग्यवान दिखाई दे तब आप बच्चों द्वारा बाप
की प्रत्यक्षता होगी क्योंकि वर्तमान समय मैजारिटी अनुभव करने चाहते हैं, जैसे आजकल
की साइन्स प्रत्यक्ष रूप में दिखाती है ना! अनुभव कराती है ना! गर्म का भी अनुभव
कराती है, ठण्डाई का भी अनुभव कराती है तो साइलेन्स की शक्ति से भी अनुभव करने चाहते
हैं। जितना-जितना स्वयं अनुभव में रहेंगे तो औरों को भी अनुभव करा सकेंगे। बापदादा
ने इशारा दिया ही है कि अभी कम्बाइन्ड सेवा करो। सिर्फ आवाज से नहीं, लेकिन आवाज के
साथ अनुभवी मूर्त बन अनुभव कराने की भी सेवा करो। कोई न कोई शान्ति का अनुभव, खुशी
का अनुभव, आत्मिक प्यार का अनुभव..., अनुभव ऐसी चीज़ है जो एक बारी भी अनुभव हुआ तो
छोड़ नहीं सकते हैं। सुनी हुई चीज़ भूल सकती है लेकिन अनुभव की चीज़ भूलती नहीं है।
वह अनुभव कराने वाले के समीप लाती है।
सभी पूछते हैं कि अभी
आगे के लिए क्या नवीनता करें? तो बापदादा ने देखा सर्विस तो सभी उमंग-उत्साह से कर
रहे हो, हर एक वर्ग भी कर रहा है। आज भी बहुत वर्ग इकट्ठे हुए है ना! मेगा
प्रोग्राम भी कर लिया, सन्देश तो दे दिया, अपना उल्हना निकाल लिया, इसकी मुबारक हो।
लेकिन अब तक यह आवाज नहीं फैला है कि यह परमात्म ज्ञान है। ब्रह्माकुमारियां कार्य
अच्छा कर रही हैं, ब्रह्माकुमारियों का ज्ञान बहुत अच्छा है लेकिन यही परमात्म
ज्ञान है, परमात्म कार्य चल रहा है यह आवाज फैले। मेडीटेशन कोर्स भी कराते हो, आत्मा
का परमात्मा से कनेक्शन भी जोड़ते हो लेकिन अब परमात्म कार्य स्वयं परमात्मा करा रहा
है, यह बहुत कम अनुभव करते हैं। आत्मा और धारणायें यह प्रत्यक्ष हो रहा है, अच्छा
कार्य कर रहे हैं, अच्छा बोलते हैं, अच्छा सिखाते हैं, यहाँ तक ठीक है। नॉलेज अच्छी
है इतना भी कहते हैं लेकिन परमात्म नॉलेज है... यह आवाज बाप के नजदीक लायेगा और
जितना बाप के नजदीक आयेंगे उतना अनुभव स्वत: ही करते रहेंगे। तो ऐसा प्लैन बनाओ और
भाषणों में ऐसा कुछ जौहर भरो, जिससे परमात्मा के नजदीक आ जायें। दिव्यगुणों की धारणा
इसमें अटेन्शन गया है, आत्मा का ज्ञान देते हैं, परमात्मा का ज्ञान देते हैं, यह
कहते हैं लेकिन परमात्मा आ चुका है, परमात्म कार्य स्वयं परमात्मा चला रहा है, यह
प्रत्यक्षता चुम्बक की तरह समीप लायेगी। आप लोग भी समीप तब आये जब समझा बाप मिला
है, बाप से मिलना है। स्नेही मैजॉरिटी बनते हैं, वह क्या समझके? कार्य बहुत अच्छा
है। जो कार्य ब्रह्माकुमारियां कर रही हैं, वह कार्य कोई कर नहीं सकता, परिवर्तन
कराती हैं। लेकिन परमात्मा बोल रहा है, परमात्मा से वर्सा लेना है, इतना नजदीक नहीं
आते क्योंकि अभी जो पहले समझते नहीं थे कि ब्रह्माकुमारियां क्या करती हैं, क्या
इन्हों की नॉलेज है, वह समझने लगे हैं। लेकिन परमात्म प्रत्यक्षता, अगर समझ जाएं कि
परमात्मा का ज्ञान है तो रुक सकते हैं क्या! जैसे आप भागकर आ गये हो ना, ऐसे भागेंगे।
तो अभी ऐसा प्लैन बनाओ, ऐसे भाषण तैयार करो, ऐसे परमात्म अनुभूति के प्रैक्टिकल
सबूत बनो तभी बाप की प्रत्यक्षता प्रैक्टिकल में दिखाई देगी। अभी ‘अच्छा है' - यहाँ
तक पहुंचे हैं, ‘अच्छा बनना है', वह लहर परमात्म प्यार की अनुभूति से होगी। तो
अनुभवी मूर्त बन अनुभव कराओ। अभी डबल मालिकपन की स्मृति से समर्थ बन समर्थ बनाओ।
अच्छा।
सेवा का टर्न पंजाब
ज़ोन का है:-
हाथ हिलाओ। अच्छा है जिस भी ज़ोन को टर्न मिलता है वह खुली दिल से आ जाते हैं। (पंजाब
ज़ोन से 4000 आये हैं) बापदादा को भी खुशी होती है कि हर एक ज़ोन सेवा का चांस अच्छा
ले लेते हैं। पंजाब को सभी कामन रीति से शेर कहते हैं, पंजाब शेर और बापदादा कहते
हैं शेर अर्थात् विजयी। तो सदा पंजाब वालों को अपने मस्तक के बीच विजय का तिलक
अनुभव करना है। विजय का तिलक मिला हुआ है। यह सदा स्मृति रहे हम ही कल्प कल्प के
विजयी हैं। थे, हैं और कल्प-कल्प बनेंगे। अच्छा है। पंजाब भी वारिस क्वालिटी को बाप
के आगे लाने का प्रोग्राम बना रहे हैं ना! अभी बापदादा के आगे वारिस क्वालिटी लाई
नहीं है। स्नेही क्वालिटी लाई है, सभी ज़ोन ने स्नेही सहयोगी क्वालिटी लाई है लेकिन
वारिस क्वालिटी नहीं लाये हैं। तैयारी कर रहे हैं ना! सब प्रकार के चाहिए ना! वारिस
भी चाहिए, स्नेही भी चाहिए, सहयोगी भी चाहिए, माइक भी चाहिए, माइट भी चाहिए। सब
प्रकार के चाहिए। अच्छा है, सेन्टरों में वृद्धि तो हो रही है। हर एक उमंग-उत्साह
से सेवा में वृद्धि कर भी रहे हैं, अभी देखेंगे कि किस ज़ोन में यह प्रत्यक्ष होता
है - परमात्मा आ चुका है। बाप को प्रत्यक्ष कौन सा ज़ोन करता है, वह बापदादा देख रहे
हैं। फॉरेन करेगा? फॉरेन भी कर सकता है। पंजाब नम्बर ले लो। ले लो अच्छा है। सब आपको
सहयोग देंगे। बहुत समय से प्रयत्न कर रहे हैं - ‘यही है, यही है, यही है'.. यह आवाज
फैलाने का। अभी है - ‘यह भी हैं', यही है नहीं है। तो पंजाब क्या करेगा? यह आवाज आ
जाये - यही है, यही है...। टीचर्स ठीक है? कब तक करेंगे? इस साल में करेंगे? नया
साल शुरू हुआ है ना! तो नये साल में कोई नवीनता होनी चाहिए ना! ‘यह भी है'- यह तो
बहुत सुन लिया। जैसे आपके मन में बस बाबा, बाबा, बाबा स्वत: याद रहता है, ऐसे उनके
मुख से निकले ‘हमारा बाबा आ गया।' वह भी कहे ‘मेरा बाबा', ‘ मेरा बाबा'- यह आवाज
चारों कोनों से निकले, लेकिन शुरूआत तो एक कोने से होगी ना। तो पंजाब कमाल करेगा?
क्यों नहीं करेंगे! करना ही है। बहुत अच्छा। इनएडवांस मुबारक हो। अच्छा।
सभी तरफ के सर्व
रूहानी गुलाब बच्चों को सदा बाप के अति प्यारे और देहभान से अति न्यारे, बापदादा के
दिल के दुलारे बच्चों को, सदा एक बाप, एकाग्र मन और एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले
बच्चों को, चारों ओर के भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न स्थान में रहते भी साइंस के
साधनों से मधुबन में पहुंचने वाले, सम्मुख देखने वाले, सभी लाडले, सिकीलधे,
कल्प-कल्प के परमात्म प्यार के पात्र अधिकारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दिल
की दुआयें, पदम-पदम गुणा स्वीकार हो और साथ में डबल मालिक बच्चों को बापदादा की
नमस्ते।
दादी जी से:-
मधुबन का हीरो एक्टर है, सदा जीरो याद है। शरीर भले नहीं चलता, थोड़ा धीरे-धीरे चलता
लेकिन सभी का प्यार और दुआयें चला रही हैं। बाप की तो हैं ही लेकिन सभी की हैं। सभी
दादी को बहुत प्यार करते हो ना! देखो सभी यही कहते हैं कि दादियां चाहिए, दादियां
चाहिए, दादियां चाहिए...। तो दादियों की विशेषता क्या है? दादियों की विशेषता है
बाप की श्रीमत पर हर कदम उठाना। मन को भी बाप की याद और सेवा में समर्पण करना। आप
सभी भी ऐसे ही कर रहे हो ना! मन को समर्पण करो। बापदादा ने देखा है, मन बड़ी कमाल
करके दिखाता है। कमाल क्या करता है? चंचलता करता है। मन एकाग्र हो जाए, जैसे झण्डा
ऊपर करते हो ना, ऐसे मन का झण्डा शिव बाबा, शिवबाबा में एकाग्र हो जाए। आ रहा है,
समय समीप आ रहा है। कभी-कभी बापदादा बच्चों के संकल्प बहुत अच्छे-अच्छे सुनते हैं।
सबका लक्ष्य बहुत अच्छा है। अच्छा। देखो हाल की शोभा कितनी अच्छी है। माला लगती है
ना! और माला के बीच में मणके बैठे हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:-
साइलेन्स की
शक्ति द्वारा सेकण्ड में मुक्ति और जीवनमुक्त का अनुभव कराने वाले विशेष आत्मा भव
विशेष आत्माओं की
लास्ट विशेषता है - कि सेकण्ड में किसी भी आत्मा को मुक्ति और जीवनमुक्ति के अनुभवी
बना देंगे। सिर्फ रास्ता नहीं बतायेंगे लेकिन एक सेकण्ड में शान्ति का वा
अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करायेंगे। जीवनमुक्ति का अनुभव है सुख और मुक्ति का अनुभव
है शान्ति। तो जो भी सामने आये वह सेकण्ड में इसका अनुभव करे - जब ऐसी स्पीड होगी
तब साइंस के ऊपर साइलेंस की विजय देखते हुए सबके मुख से वाह-वाह का आवाज निकलेगा और
प्रत्यक्षता का दृश्य सामने आयेगा।
स्लोगन:-
बाप के हर फरमान पर स्वयं को कुर्बान करने वाले सच्चे परवाने बनो।
अव्यक्त इशारे -
संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
अभी जैसे वाचा से
डायरेक्शन देना पड़ता है, ऐसे श्रेष्ठ संकल्प से सारी कारोबार चल सकती है। साइंस
वाले नीचे पृथ्वी से ऊपर तक डायरेक्शन लेते रहते हैं, तो क्या आप श्रेष्ठ संकल्प की
शक्ति से सारी कारोबार नहीं चला सकते हो! जैसे बोल करके बात को स्पष्ट करते हैं,
वैसे आगे चल कर संकल्प से सारी कारोबार चलेगी, इसके लिए श्रेष्ठ संकल्पों का स्टाक
जमा करो।