01-08-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप को तुम
बच्चे ही प्यारे हो, बाप तुम्हें ही सुधारने के लिए श्रीमत देते हैं, सदा ईश्वरीय
मत पर चल स्वयं को पवित्र बनाओ''
प्रश्नः-
विश्व में
शान्ति की स्थापना कब और किस विधि से होती है?
उत्तर:-
तुम जानते हो
विश्व में शान्ति तो महाभारत लड़ाई के बाद ही होती है। लेकिन उसके लिए तुम्हें पहले
से ही तैयार होना है। अपनी कर्मातीत अवस्था बनाने की मेहनत करनी है। सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सिमरण कर बाप की याद से सम्पूर्ण पावन बनना है तब इस सृष्टि
का परिवर्तन होगा।
गीत:-
आज अन्धेरे
में है इंसान ........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान की धारणा करने के लिए पवित्र बन बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ
बनाना है। सिर्फ कुक्कड़ ज्ञानी नहीं बनना है।
2) डायरेक्ट बाप के आगे अपना सब कुछ अर्पण कर श्रीमत पर चलकर 21 जन्मों के लिए
राजाई पद लेना है।
वरदान:-
हर शक्ति को
कार्य में लगाकर वृद्धि करने वाले श्रेष्ठ धनवान वा समझदार भव
समझदार बच्चे हर शक्ति को
कार्य में लगाने की विधि जानते हैं। जो जितना शक्तियों को कार्य में लगाते हैं उतना
उनकी वह शक्तियां वृद्धि को प्राप्त होती हैं। तो ऐसा ईश्वरीय बजट बनाओ जो विश्व की
हर आत्मा आप द्वारा कुछ न कुछ प्राप्ति करके आपके गुणगान करे। सभी को कुछ न कुछ देना
ही है। चाहे मुक्ति दो, चाहे जीवनमुक्ति दो। ईश्वरीय बजेट बनाकर सर्व शक्तियों की
बचत कर जमा करो और जमा हुई शक्ति द्वारा सर्व आत्माओं को भिखारीपन से, दु:ख अशान्ति
से मुक्त करो।
स्लोगन:-
शुद्ध
संकल्पों को अपने जीवन का अनमोल खजाना बना लो तो मालामाल बन जायेंगे।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य - “अब विकर्म बनाने की कॉम्पीटेशन नहीं करनी है''
पहले-पहले तो अपने
पास यह एम अवश्य रखनी है कि हमको किस भी रीति से अपने विकारों को वश करना है, तब ही
ईश्वरीय सुख शान्ति में रह सकते हैं। अपना मुख्य पुरुषार्थ है खुद शान्ति में रहकर
औरों को शान्ति में लाना, इसमें सहनशक्ति जरूर चाहिए। सारा अपने ऊपर मदार है, ऐसा
नहीं कोई ने कुछ कहा तो अशान्ति में आ जाना चाहिए, नहीं। ज्ञान का पहला गुण है
सहनशक्ति धारण करना। देखो अज्ञानकाल में कहते हैं भल कोई कितनी भी गाली देवे, ऐसे
समझो कि मुझे कहाँ लगी? भल जिसने गाली दी वो खुद तो अशान्ति में आ गया, उन्हों का
हिसाब-किताब अपना बना। लेकिन हम भी अशान्ति में आए, कुछ कह दिया तो फिर हमारा
विकर्म बनेगा, तो विकर्म बनाने की कॉम्पीटेशन नहीं करनी है। अपने को तो विकर्मों को
भस्म करना है, न कि बनाना है, ऐसे विकर्म तो जन्म जन्मान्तर बनाते आये और दु:ख उठाते
आये। अब तो नॉलेज मिल रही है इन पाँच विकारों को जीतो। विकारों का भी बड़ा प्रस्ताव
(विस्तार) है, बहुत सूक्ष्म रीति से आते हैं। कब ईर्ष्या आ जाती है तो सोचते हैं
इसने ऐसा किया तो मैं क्यों न करूँ? यह है बड़ी भूल। अपने को तो अभुल बनाना है, अगर
कोई ने कुछ कहा तो ऐसे समझो यह भी मेरी परीक्षा है, कितने तक मेरे अन्दर सहनशक्ति
है? अगर कोई कहे मैंने बहुत सहन किया, एक बारी भी जोश आ गया तो आखरीन फेल हो गया।
जिसने कहा उसने अपना बिगाड़ा परन्तु अपने को तो बनाना है, न कि बिगाड़ना है इसलिए
अच्छा पुरुषार्थ कर जन्म जन्मान्तर के लिये अच्छी प्रालब्ध बनानी है। बाकी जो विकारों
के वश है गोया उन्हों में भूत प्रवेश है, भूतों की भाषा ही ऐसे निकलती है परन्तु जो
दैवी सोल्स हैं, उनकी भाषा दैवी ही निकलेगी। तो अपने को दैवी बनाना है न कि आसुरी।
अच्छा-ओम् शान्ति।
अव्यक्त इशारे -
सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो
परमात्म-प्यार के
अनुभवी बनो तो इसी अनुभव से सहजयोगी बन उड़ते रहेंगे। परमात्म-प्यार उड़ाने का साधन
है। उड़ने वाले कभी धरनी की आकर्षण में आ नहीं सकते। माया का कितना भी आकर्षित रूप
हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों के पास पहुँच नहीं सकती।