06-10-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठेबच्चे - श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है, पहले स्वयं निर्विकारी बनना है फिर दूसरों को कहना है''

प्रश्नः-
तुम महावीर बच्चों को किस बात की परवाह नहीं करनी है? सिर्फ कौन सी चेकिंग करते स्वयं को सम्भालना है?

उत्तर:-
अगर कोई पवित्र बनने में विघ्न डालता है तो तुम्हें उसकी परवाह नहीं करनी है। सिर्फ चेक करो कि मैं महावीर हूँ? मैं अपने आपको ठगता तो नहीं हूँ? बेहद का वैराग्य रहता है? मैं आप समान बनाता हूँ? मेरे में क्रोध तो नहीं है? जो दूसरों को कहता हूँ वह खुद भी करता हूँ?

गीत:-
तुम्हें पाके हमने....

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा इसी नशे वा खुशी में रहना है कि हम 21 जन्मों के लिए बेहद बाबा के वारिस बने हैं, जिनके वारिस बने हैं उनको याद भी करना है और पवित्र भी जरूर बनना है।

2) बाप जो श्रेष्ठ कर्म सिखला रहे हैं, वही कर्म करने हैं। श्रीमत लेते रहना है।

वरदान:-
स्थूल देश और शरीर की स्मृति से परे सूक्ष्म देश के वेशधारी भव

जैसे आजकल की दुनिया में जैसा कर्तव्य वैसा वेश धारण कर लेते हैं, ऐसे आप भी जिस समय जैसा कर्म करना चाहते हो वैसा वेश धारण कर लो। अभी-अभी साकारी और अभी-अभी आकारी। ऐसे बहुरूपी बन जाओ तो सर्व स्वरूपों के सुखों का अनुभव कर सकेंगे। यह अपना ही स्वरूप है। दूसरे के वस्त्र फिट हो या न हों लेकिन अपने वस्त्र सहज ही धारण कर सकते हो इसलिए इस वरदान को प्रैक्टिकल अभ्यास में लाओ तो अव्यक्त मिलन के विचित्र अनुभव कर सकेंगे।

स्लोगन:-
सबका आदर करने वाले ही आदर्श बन सकते हैं। सम्मान दो तब सम्मान मिलेगा।

अव्यक्त इशारे - स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो

जैसे अपने स्थूल कार्य के प्रोग्राम को दिनचर्या प्रमाण सेट करते हो, ऐसे अपनी मन्सा समर्थ स्थिति का प्रोग्राम सेट करो तो कभी अपसेट नहीं होंगे। जितना अपने मन को समर्थ संकल्पों में बिजी रखेंगे तो मन को अपसेट होने का समय ही नहीं मिलेगा। मन सदा सेट अर्थात् एकाग्र है तो स्वत: अच्छे वायब्रेशन फैलते हैं। सेवा होती है।