07-08-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर अब तुम्हें फकीर से अमीर बनना है, तुम आत्मा हो रूप-बसन्त''

प्रश्नः-
कौन-सी शुभ भावना रख पुरुषार्थ में सदा तत्पर रहना है?

उत्तर:-
सदा यही शुभ भावना रखनी है कि हम आत्मा सतोप्रधान थी, हमने ही बाप से शक्ति का वर्सा लिया था अब फिर से ले रहे हैं। इसी शुभ भावना से पुरुषार्थ कर सतोप्रधान बनना है। ऐसे नहीं सोचना कि सब सतोप्रधान थोड़ेही बनेंगे। नहीं, याद की यात्रा पर रहने का पुरुषार्थ करते रहना है, सर्विस से ताकत लेनी है।

गीत:-
इस पाप की दुनिया से........

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूहानी सेवाधारी बन आत्माओं को जगाने की सेवा करनी है। तन-मन-धन से सेवा कर श्रीमत पर रामराज्य की स्थापना के निमित्त बनना है।

2) स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र बुद्धि में फिराना है। एक बाप को ही याद करना है। दूसरे कोई की याद न रहे। कभी किसी बात से तंग हो पढ़ाई नहीं छोड़नी है।

वरदान:-
संगठन में रहते लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले सदा शक्तिशाली आत्मा भव

संगठन में एक दो को देखकर उमंग उत्साह भी आता है तो अलबेलापन भी आता है। सोचते हैं यह भी करते हैं, हमने भी किया तो क्या हुआ इसलिए संगठन से श्रेष्ठ बनने का सहयोग लो। हर कर्म करने के पहले यह विशेष अटेन्शन वा लक्ष्य हो कि मुझे स्वयं को सम्पन्न बनाकर सैम्पुल बनना है। मुझे करके औरों को कराना है। फिर बार-बार इस लक्ष्य को इमर्ज करो। लक्ष्य और लक्षण को मिलाते चलो तो शक्तिशाली हो जायेंगे।

स्लोगन:-
लास्ट में फास्ट जाना है तो साधारण और व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं गंवाओ।

अव्यक्त इशारे - सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो

जो प्यारा होता है, उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है। सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो। जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा - तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते और नि:स्वार्थ प्यार सिवाए बाप के किसी आत्मा से मिल नहीं सकता इसलिए कभी मतलब से याद नहीं करो, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रहो।