14-06-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हें अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, इसलिए अब तुम्हारी आंख किसी में भी डूबनी नहीं चाहिए''

प्रश्नः-
जिन्हें पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य होगा, उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-
वो अपना सब कुछ बाप को अर्पण कर देंगे, हमारा कुछ भी नहीं। बाबा हमारी यह देह भी नहीं है, यह तो पुरानी देह है, इनको भी छोड़ना है। उनका मोह सबसे टूटता जायेगा, नष्टोमोहा होंगे। उनकी बुद्धि में रहता कि यहाँ का कुछ भी काम नहीं आना है, क्योंकि यह सब हद का है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बन अपना सब कुछ अर्पण कर देना है। हमारा कुछ भी नहीं, यह देह भी हमारी नहीं। इनसे मोह तोड़ नष्टोमोहा बनना है।

2) कभी भी ऐसी कोई भूल नहीं करनी है जो रजिस्टर पर दाग़ लग जाए। सर्व दैवीगुण धारण करने हैं, अन्दर क्रोध का ज़रा भी अंश न हो।

वरदान:-
कहना, सोचना और करना - इन तीनों को समान बनाने वाले ज्ञानी तू आत्मा भव

अभी वानप्रस्थ अवस्था में जाने का समय समीप आ रहा है - इसलिए कमजोरियों के मेरे पन को वा व्यर्थ के खेल को समाप्त कर कहना, सोचना और करना समान बनाओ तब कहेंगे ज्ञान स्वरूप। जो ऐसे ज्ञान स्वरूप ज्ञानी तू आत्मायें हैं उनका हर कर्म, संस्कार, गुण और कर्तव्य समर्थ बाप के समान होगा। वे कभी व्यर्थ के विचित्र खेल नहीं खेल सकते। सदा परमात्म मिलन के खेल में बिजी रहेंगे। एक बाप से मिलन मनायेंगे और औरों को बाप समान बनायेंगे।

स्लोगन:-
सेवाओं का उमंग छोटी-छोटी बीमारियों को मर्ज कर देता है।

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

अन्तर्मुखी अर्थात् मुख और मन का मौन रखने वाले। मुख का मौन तो दुनिया में भी रखते हैं लेकिन यहाँ व्यर्थ संकल्प से मन का मौन होना चाहिए। जैसे ट्रैफिक कन्ट्रोल करते हो तो व्यर्थ की ट्रैफिक को कन्ट्रोल करते हो वैसे बीच-बीच में एक दिन मन के व्यर्थ का ट्रैफिक कन्ट्रोल करो।