17-04-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - यह रूहानी
हॉस्पिटल तुम्हें आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बनाने वाली है, यहाँ तुम देही-अभिमानी
होकर बैठो''
प्रश्नः-
धन्धा आदि करते
भी कौन-सा डायरेक्शन बुद्धि में याद रहना चाहिए?
उत्तर:-
बाप का
डायरेक्शन है तुम किसी साकार वा आकार को याद नहीं करो, एक बाप की याद रहे तो विकर्म
विनाश हों। इसमें कोई ये नहीं कह सकता कि फुर्सत नहीं। सब कुछ करते भी याद में रह
सकते हो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूप-बसन्त बन मुख से सदैव रत्न निकालने हैं, बहुत-बहुत मीठा बनना है।
कभी भी पत्थर (कटु वचन) नहीं निकालना है।
2) ज्ञान और योग में तीखा बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है। अपनी ऊंच तकदीर
बनाने का पुरूषार्थ करना है। अन्धों की लाठी बनना है।
वरदान:-
त्रि-स्मृति
स्वरूप का तिलक धारण करने वाले सम्पूर्ण विजयी भव
स्वयं की स्मृति, बाप की
स्मृति और ड्रामा के नॉलेज की स्मृति - इन्हीं तीन स्मृतियों में सारे ज्ञान का
विस्तार समाया हुआ है। नालेज के वृक्ष की यह तीन स्मृतियां हैं। जैसे वृक्ष का पहले
बीज होता है, उस बीज द्वारा दो पत्ते निकलते हैं फिर वृक्ष का विस्तार होता है ऐसे
मुख्य है बीज बाप की स्मृति फिर दो पत्ते अर्थात् आत्मा और ड्रामा की सारी नॉलेज।
इन तीन स्मृतियों को धारण करने वाले स्मृति भव वा सम्पूर्ण विजयी भव के वरदानी बन
जाते हैं।
स्लोगन:-
प्राप्तियों को सदा सामने रखो तो कमजोरियाँ सहज समाप्त हो जायेंगी।
अव्यक्त इशारे -
“कम्बाइण्ड रूप की स्मृति से सदा विजयी बनो''
संगमयुग पर
ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं हो सकते। सिर्फ बाप के साथ का अनुभव,
कम्बाइण्ड पन का अनुभव इमर्ज करो। ऐसे नहीं कि बाप तो है ही मेरा, साथ है ही। नहीं,
साथ का प्रैक्टिकल अनुभव इमर्ज हो। तो यह माया का वार, वार नहीं होगा, माया हार खा
लेगी। सिर्फ घबराओ नहीं, क्या हो गया! हिम्मत रखो, बाप के साथ को स्मृति में रखो तो
विजय आपका जन्म सिद्ध अधिकार है।