19-06-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो, तुम्हारे में कोई आसुरी गुण नहीं होने चाहिए, अपनी उन्नति करनी है, ग़फलत नहीं करनी है''

प्रश्नः-
आप संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों को कौन-सा निश्चय और नशा है?

उत्तर:-
हम बच्चों को निश्चय और नशा है कि अभी हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं। हम स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। संगम पर हम ट्रांसफर हो रहे हैं। आसुरी औलाद से ईश्वरीय औलाद बन 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनते हैं, इससे भारी कोई वस्तु होती नहीं।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश करनी है जो कोई भी चंचलता न रहे। टाइम बहुत थोड़ा है इसलिए अच्छी रीति पुरुषार्थ कर मायाजीत बनना है।

2) बाप जो ज्ञान देते हैं उसे अन्तर्मुखी बन धारण करना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है। बाप को अपनी खुशखैऱाफत का समाचार जरूर देना है।

वरदान:-
कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा करने वाले सर्व आत्माओं की दुआओं के अधिकारी भव

कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा करना - यही सर्व आत्माओं की दुआयें प्राप्त करने का साधन है। जब लक्ष्य रहता है कि हम विश्व कल्याणकारी हैं, तो अकल्याण का कर्तव्य हो नहीं सकता। जैसा कार्य होता है वैसी अपनी धारणायें होती हैं, अगर कार्य याद रहे तो सदा रहमदिल, सदा महादानी रहेंगे। हर कदम में कल्याणकारी वृत्ति से चलेंगे, मैं पन नहीं आयेगा, निमित्त पन याद रहेगा। ऐसे सेवाधारी को सेवा के रिटर्न में सर्व आत्माओं की दुआओं का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

स्लोगन:-
साधनों की आकर्षण साधना को खण्डित कर देती है।

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

अन्तर्मुखी आत्मायें तीन प्रकार की भाषा के अनुभवी होती हैं: 1- नयनों की भाषा 2- भावना की भाषा 3- संकल्प की भाषा। यह तीन प्रकार की भाषा रुहानी योगी जीवन की भाषा है, जितना-जितना आप अन्तर्मुखी स्वीट साइलेन्स स्वरूप में स्थिति होते जायेंगे - उतना इन तीन भाषाओं द्वारा सर्व आत्माओं को अनुभव करा सकेंगे। अब इसी रुहानी भाषा के अभ्यास बनो।