19-09-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - इस बेहद के नाटक में तुम आत्माओं को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है, अभी तुम्हें यह शरीर रूपी कपड़े उतार घर जाना है, फिर नये राज्य में आना है''

प्रश्नः-
बाप कोई भी कार्य प्रेरणा से नहीं करते, उनका अवतरण होता है, यह किस बात से सिद्ध होता है?

उत्तर:-
बाप को कहते ही हैं करनकरावनहार। प्रेरणा का तो अर्थ है विचार। प्रेरणा से कोई नई दुनिया की स्थापना नहीं होती है। बाप बच्चों से स्थापना कराते हैं, कर्मेन्द्रियों बिगर तो कुछ भी करा नहीं सकते इसलिए उन्हें शरीर का आधार लेना होता है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) 21 जन्म श्रेष्ठ पद का अधिकारी बनने के लिए सब आसुरी मतों को छोड़ एक ईश्वरीय मत पर चलना है। सम्पूर्ण वाइसलेस बनना है।

2) इस पुराने शरीर में बैठ बाप की शिक्षाओं को धारण कर देवता बनना है। यह है बहुत वैल्युबल जीवन, इसमें वर्थ पाउण्ड बनना है।

वरदान:-
सर्व आत्माओं को यथार्थ अविनाशी सहारा देने वाले आधार, उद्धारमूर्त भव

वर्तमान समय विश्व के चारों ओर कोई न कोई हलचल है, कहाँ मन के अनेक टेन्शन की हलचल है, कहाँ प्रकृति के तमोप्रधान वायुमण्डल के कारण हलचल है, अल्पकाल के साधन सर्व को चिंता की चिता पर लिये जा रहे हैं इसलिए अल्पकाल के आधार से, प्राप्तियों से, विधियों से थककर वास्तविक सहारा ढूंढ रहे हैं। तो आप आधार, उद्धारमूर्त आत्मायें उन्हें श्रेष्ठ अविनाशी प्राप्तियों की यथार्थ, वास्तविक, अविनाशी सहारे की अनुभूति कराओ।

स्लोगन:-
समय अमूल्य खजाना है - इसलिए इसे नष्ट करने के बजाए फौरन निर्णय कर सफल करो।

अव्यक्त इशारे - अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ

जैसे सूर्य की किरणें फैलती हैं, वैसे ही मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज पर शक्तियों व विशेषताओं रूपी किरणें चारों ओर फैलती अनुभव करें, इसके लिए “मैं मास्टर सर्वशक्तिवान, विघ्न-विनाशक आत्मा हूँ'', इस स्वमान के स्मृति की सीट पर स्थित होकर कार्य करो तो विघ्न सामने तक भी नहीं आयेंगे।