22-07-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारी
पढ़ाई का फाउन्डेशन है प्योरिटी, प्योरिटी है तब योग का जौहर भर सकेगा, योग का जौहर
है तो वाणी में शक्ति होगी''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को
अभी कौन-सा प्रयत्न पूरा-पूरा करना है?
उत्तर:-
सिर पर जो
विकर्मों का बोझा है उसे उतारने का पूरा-पूरा प्रयत्न करना है। बाप का बनकर कोई
विकर्म किया तो बहुत ज़ोर से गिर पड़ेंगे। बी.के. की अगर निंदा कराई, कोई तकलीफ दी
तो बहुत पाप हो जायेगा। फिर ज्ञान सुनने-सुनाने से कोई फायदा नहीं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पढ़ाई के साथ-साथ पवित्र जरूर बनना है। ऐसा लायक वा सपूत बच्चा बन
सर्विस का सबूत देना है। श्रीमत पर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है।
2) स्थूल धन भी व्यर्थ नहीं गँवाना है। पतितों को दान नहीं करना है। ज्ञान धन भी
पात्र को देखकर देना है।
वरदान:-
पुराने
संस्कारों का अग्नि संस्कार करने वाले सच्चे मरजीवा भव
जैसे मरने के बाद शरीर का
संस्कार करते हैं तो नाम रूप समाप्त हो जाता है ऐसे आप बच्चे जब मरजीवा बनते हो तो
शरीर भल वही है लेकिन पुराने संस्कारों, स्मृतियों वा स्वभावों का संस्कार कर देते
हो। संस्कार किया हुआ मनुष्य फिर से सामने आये तो उसको भूत कहा जाता है। ऐसे यहाँ
भी यदि कोई संस्कार किये हुए संस्कार जागृत हो जाते हैं तो यह भी माया के भूत हैं।
इन भूतों का भगाओ, इनका वर्णन भी नहीं करो।
स्लोगन:-
कर्मभोग का वर्णन करने के बजाए, कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते रहो।
अव्यक्त इशारे -
संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
जैसे राजा स्वयं
कोई कार्य नहीं करता, कराता है। करने वाले राज्य कारोबारी अलग होते हैं। अगर राज्य
कारोबारी ठीक नहीं होते तो राज्य डगमग हो जाता है। ऐसे आत्मा भी करावनहार है,
करनहार ये विशेष त्रिमूर्ति शक्तियाँ (मन-बुद्धि और संस्कार) हैं। पहले इनके ऊपर
रूलिंग पावर हो तो यह साकार कर्मेन्द्रियाँ स्वत: सही रास्ते पर चलेंगी।