23-06-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारा
पहला-पहला शब्क (पाठ) है - मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं, आत्म-अभिमानी होकर रहो तो बाप
की याद रहेगी''
प्रश्नः-
तुम बच्चों के
पास कौन सा गुप्त खजाना है, जो मनुष्यों के पास नहीं है?
उत्तर:-
तुम्हें भगवान
बाप पढ़ाते हैं, उस पढ़ाई की खुशी का गुप्त खजाना तुम्हारे पास है। तुम जानते हो हम
जो पढ़ रहे हैं, भविष्य अमरलोक के लिए न कि इस मृत्युलोक के लिए। बाप कहते हैं
सवेरे-सवेरे उठकर घूमो फिरो, सिर्फ पहला-पहला पाठ याद करो तो खुशी का खजाना जमा होता
जायेगा।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) योगबल से अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को वश में करना है। एक वृक्षपति
बाप की याद में रहना है। सच्चा वैष्णव अर्थात् पवित्र बनना है।
2) सवेरे उठकर पहला पाठ पक्का करना है कि मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं। हमारा रूहानी
बाबा हमको पढ़ाते हैं, यह दु:ख की दुनिया अब बदलनी है...... ऐसे बुद्धि में सारा
ज्ञान सिमरण होता रहे।
वरदान:-
हर खजाने को
कार्य में लगाकर पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव
हर सेकण्ड पदमों की कमाई
जमा करने का वरदान ड्रामा में संगम के समय को मिला हुआ है। ऐसे वरदान को स्वयं प्रति
जमा करो और औरों के प्रति दान करो, ऐसे ही संकल्प के खजान को, ज्ञान के खजाने को,
स्थूल धन रूपी खजाने को कार्य में लगाकर पदमों की कमाई जमा करो क्योंकि इस समय
स्थूल धन भी ईश्वर अर्थ समर्पण करने से एक नया पैसा एक रत्न समान वैल्यु का हो जाता
है - तो इन सर्व खजानों को स्वयं के प्रति वा सेवा के प्रति कार्य में लगाओ तो
पदमापदम भाग्यशाली बन जायेंगे।
स्लोगन:-
जहाँ
दिल का स्नेह है वहाँ सबका सहयोग सहज प्राप्त होता है।
अव्यक्त
इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो
अब ऐसे
ट्रान्सपेरेंट (पारदर्शी) हो जाओ जो आपके शरीर के अन्दर आत्मा विराजमान है, वह
स्पष्ट सभी को दिखाई दे। आपका आत्मिक स्वरूप उन्हों को अपने आत्मिक स्वरूप का
साक्षात्कार कराये, इसको ही कहते हैं अव्यक्त वा आत्मिक स्थिति का अनुभव कराना।