23-07-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - जब समय मिले तो एकान्त में बैठ विचार सागर मंथन करो, जो प्वाइंट्स सुनते हो उसको रिवाइज़ करो''

प्रश्नः-
तुम्हारी याद की यात्रा पूरी कब होगी?

उत्तर:-
जब तुम्हारी कोई भी कर्मेद्रियाँ धोखा न दें, कर्मातीत अवस्था हो जाए तब याद की यात्रा पूरी होगी। अभी तुमको पूरा पुरुषार्थ करना है, नाउम्मीद नहीं बनना है। सर्विस पर तत्पर रहना है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सवेरे के समय आधा पौना घण्टा बहुत प्यार वा रूचि से पढ़ाई पढ़नी है। बाप की याद में रहना है। याद का ऐसा पुरुषार्थ हो जो सब कर्मेन्द्रियाँ वश में हो जाएं।

2) सर्विस में दु:ख-सुख, मान-अपमान, गर्मी-ठण्डी सब कुछ सहन करना है। कभी भी सर्विस में थकना नहीं है। 3 पैर पृथ्वी में भी हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोल हीरे जैसा बनाने की सेवा करनी है।

वरदान:-
सच्चे आत्मिक स्नेह की अनुभूति कराने वाले मास्टर स्नेह के सागर भव

जैसे सागर के किनारे जाते हैं तो शीतलता का अनुभव होता है ऐसे आप बच्चे मास्टर स्नेह के सागर बनो तो जो भी आत्मा आपके सामने आये वो अनभुव करे कि स्नेह के मास्टर सागर की लहरें स्नेह की अनुभूति करा रही हैं क्योंकि आज की दुनिया सच्चे आत्मिक स्नेह की भूखी है। स्वार्थी स्नेह देख-देख उस स्नेह से दिल उपराम हो गई है इसलिए आत्मिक स्नेह की थोड़ी सी घड़ियों की अनुभूति को भी जीवन का सहारा समझेंगे।

स्लोगन:-
ज्ञान धन से भरपूर रहो तो स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: होती रहेगी।

अव्यक्त इशारे - संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो

जैसे सतयुगी सृष्टि के लिए कहते हैं एक राज्य एक धर्म है। ऐसे ही अब स्वराज्य में भी एक राज्य अर्थात् स्व के इशारे पर सभी चलने वाले हों। मन अपनी मनमत न चलावे, बुद्धि अपनी निर्णय शक्ति की हलचल न करे। संस्कार आत्मा को नाच नचाने वाले न हो तब कहेंगे एक धर्म, एक राज्य। तो ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर धारण कर लो, यही बेहद सेवा का साधन है।