25-06-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - बाप तुम्हें नई दुनिया के लिए राजयोग सिखला रहे हैं, इसलिए इस पुरानी दुनिया का विनाश भी जरूर होना है''

प्रश्नः-
मनुष्यों में कौन-सी एक अच्छी आदत पड़ी हुई है लेकिन उससे भी प्राप्ति नहीं होती?

उत्तर:-
मनुष्यों में भगवान को याद करने की जैसे आदत पड़ी हुई है, जब कोई बात होती है तो कह देते हैं - हे भगवान! सामने शिवलिंग आ जाता है लेकिन पहचान यथार्थ न होने के कारण प्राप्ति नहीं होती है फिर कह देते सुख-दु:ख सब वही देता है। तुम बच्चे अभी ऐसे नहीं कहेंगे।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शिवबाबा को अपना वारिस बनाकर सब कुछ एक्सचेंज कर देना है। वारिस बनाकर शरीर निर्वाह भी करना है, ट्रस्टी समझकर रहना है। पैसे कोई भी पाप कर्म में नहीं लगाने हैं।

2) अन्दर खुशी में गुदगुदी होती रहे कि स्वयं ज्ञान का सागर बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। पुण्य आत्मा बनने के लिए याद में रहना है, माया के तूफानों से डरना नहीं है।

वरदान:-
सत्यता के आधार पर एक बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, निर्भय अथॉरिटी स्वरूप भव

सत्यता ही प्रत्यक्षता का आधार है। बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए निर्भय और अथॉरिटी स्वरूप बन-कर बोलो, संकोच से नहीं। जब अनेक मत वाले सिर्फ एक बात को मान लेंगे कि हम सबका बाप एक है और वही अब कार्य कर रहे हैं, हम सब एक की सन्तान एक हैं और यह एक ही यथार्थ है..तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इसी संकल्प से मुक्तिधाम जायेंगे और फिर जब अपना-अपना पार्ट बजाने आयेंगे तो पहले यही संस्कार इमर्ज होंगे कि गाड इज वन। यही गोल्डन एज की स्मृति है।

स्लोगन:-
सहन करना ही स्वयं के शक्ति रूप को प्रत्यक्ष करना है।

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

जैसे यह देह स्पष्ट दिखाई देती है वैसे अपनी आत्मा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे अर्थात् अनुभव में आये। मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे वा स्मृति में न आये। ऐसे निरन्तर तपस्वी बनो तब हर आत्मा के प्रति कल्याण का शुभ संकल्प उत्पन्न होगा। भल कोई अपने संस्कार-स्वभाव के वश आपके पुरुषार्थ में परीक्षा के निमित्त बना हुआ हो, उसके प्रति भी सदा कल्याण का संकल्प उत्पन्न हो।