29-07-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - इस शरीर की वैल्यु तब है जब इसमें आत्मा प्रवेश करे, लेकिन सजावट शरीर की होती, आत्मा की नहीं''

प्रश्नः-
तुम बच्चों का फ़र्ज क्या है? तुम्हें कौन-सी सेवा करनी है?

उत्तर:-
तुम्हारा फ़र्ज है - अपने हमजिन्स को नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने की युक्ति बताना। तुम्हें अब भारत की सच्ची रूहानी सेवा करनी है। तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो तुम्हारी बुद्धि और चलन बड़ी रिफाइन होनी चाहिए। किसी में मोह ज़रा भी न हो।

गीत:-
नयन हीन को राह दिखाओ..........

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अभी हम बाप द्वारा वर्थ पाउण्ड बने हैं, हम सो देवता बनने वाले हैं, इसी नारायणी नशे में रहना है, बन्धनमुक्त बन सेवा करनी है। बन्धनों में फंसना नहीं है।

2) ज्ञान-योग में तीखे बन मात-पिता समान किंग आफ फ्लावर बनना है और अपने हमजिन्स की भी सेवा करनी है।

वरदान:-
अपने सर्व खजानों को अन्य आत्माओं की सेवा में लगाकर सहयोगी बनने वाले सहजयोगी भव

सहजयोगी बनने का साधन है - सदा अपने को संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा और हर कार्य द्वारा विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति सेवाधारी समझ सेवा में ही सब कुछ लगाना। जो भी ब्राह्मण जीवन में शक्तियों का, गुणों का, ज्ञान का वा श्रेष्ठ कमाई के समय का खजाना बाप द्वारा प्राप्त हुआ है वह सेवा में लगाओ अर्थात् सहयोगी बनो तो सहजयोगी बन ही जायेंगे। लेकिन सहयोगी वही बन सकते हैं जो सम्पन्न है। सहयोगी बनना अर्थात् महादानी बनना।

स्लोगन:-
बेहद के वैरागी बनो तो आकर्षण के सब संस्कार सहज ही खत्म हो जायेंगे।

अव्यक्त इशारे - संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो

जैसे अपने स्थूल कार्य के प्रोग्राम को दिनचर्या प्रमाण सेट करते हो, ऐसे अपनी मन्सा समर्थ स्थिति का प्रोग्राम सेट करो तो संकल्प शक्ति जमा होती जायेगी। अपने मन को समर्थ संकल्पों में बिजी रखेंगे तो मन को अपसेट होने का समय ही नहीं मिलेगा। मन सदा सेट अर्थात् एकाग्र है तो स्वत: अच्छे वायब्रेशन फैलते हैं, सेवा होती है।