02-09-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम विश्व
में शान्ति स्थापन करने के निमित्त हो, इसलिए तुम्हें कभी अशान्त नहीं होना चाहिए''
प्रश्नः-
बाप किन बच्चों
को फरमानबरदार बच्चे कहते हैं?
उत्तर:-
बाप का जो
मुख्य फरमान है कि बच्चे अमृतवेले (सवेरे) उठकर बाप को याद करो, इस मुख्य फरमान को
पालन करते हैं, सवेरे-सवेरे स्नान आदि कर फ्रेश हो मुकरर टाइम पर याद की यात्रा में
रहते हैं, बाबा उन्हें सपूत वा फरमानबरदार कहते हैं, वही जाकर राजा बनेंगे। कपूत
बच्चे तो झाड़ू लगायेंगे।
ओम् शान्ति।
इसका अर्थ तो बच्चों को समझाया है। ओम् अर्थात् मैं आत्मा हूँ। ऐसे सब कहते हैं जीव
आत्मा हैं जरूर और सब आत्माओं का एक बाप है। शरीरों के बाप अलग-अलग होते हैं। यह भी
बच्चों की बुद्धि में है, हद के बाप से हद का और बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता
है। अब इस समय मनुष्य चाहते हैं विश्व में शान्ति हो। अगर चित्रों पर समझाया जाए तो
शान्ति के लिए कलियुग अन्त सतयुग आदि के संगम पर ले आना चाहिए। यह है सतयुग नई
दुनिया, उनमें एक धर्म होता है तो पवित्रता-शान्ति-सुख है। उनको कहा ही जाता है
हेविन। यह तो सब मानेंगे। नई दुनिया में सुख है, दु:ख हो नहीं सकता। किसको भी समझाना
बहुत सहज है। शान्ति और अशान्ति की बात यहाँ विश्व पर ही होती है। वह तो है ही
निर्वाणधाम, जहाँ शान्ति-अशान्ति का प्रश्न ही नहीं उठ सकता है। बच्चे जब भाषण करते
हैं तो पहले-पहले विश्व में शान्ति की बात ही उठानी चाहिए। मनुष्य शान्ति के लिए
बहुत प्रयास करते हैं, उनको प्राइज़ भी मिलती रहती है। वास्तव में इसमें दौड़ा-दौड़ी
करने की बात है नहीं। बाप कहते हैं सिर्फ अपने स्वधर्म में टिको तो विकर्म विनाश हो
जायेंगे। स्वधर्म में टिकेंगे तो शान्ति हो जायेगी। तुम हो ही एवर शान्त बाप के
बच्चे। यह वर्सा उनसे मिलता है। उनको कोई मोक्ष नहीं कहेंगे। मोक्ष तो भगवान को भी
नहीं मिल सकता। भगवान को भी पार्ट में जरूर आना है। कहते हैं कल्प-कल्प, कल्प के
संगमयुगे मैं आता हूँ। तो भगवान को भी मोक्ष नहीं तो बच्चे फिर मोक्ष को कैसे पा
सकते हैं। यह बातें सारा दिन विचार सागर मंथन करने की हैं। बाप तो तुम बच्चों को ही
समझाते हैं। तुम बच्चों को समझाने की प्रैक्टिस जास्ती है। शिवबाबा समझाते हैं तो
तुम सब ब्राह्मण ही समझते हो। विचार सागर मंथन तुमको करना है। सर्विस पर तुम बच्चे
हो। तुमको तो बहुत समझाना होता है। दिन-रात सर्विस में रहते हैं। म्युज़ियम में सारा
दिन आते ही रहेंगे। रात्रि को 10-11 तक भी कहाँ आते हैं। सवेरे 4 बजे से भी कहाँ-कहाँ
सर्विस करने लग पड़ते हैं। यहाँ तो घर है, जब चाहें तब बैठ सकते हैं। सेन्टर्स में
तो बाहर से दूर-दूर से आते हैं तो टाइम मुकरर रखना पड़ता है। यहाँ तो कोई भी टाइम
बच्चे उठ सकते हैं। परन्तु ऐसे टाइम तो नहीं पढ़ना है जो बच्चे उठें और झुटका खायें
इसलिए सवेरे का टाइम रखा जाता है। जो स्नान आदि कर फ्रेश हो आयें फिर भी टाइम पर नहीं
आते तो उनको फरमानबरदार नहीं कह सकते हैं। लौकिक बाप को भी सपूत और कपूत बच्चे होते
हैं ना। बेहद के बाप को भी होते हैं। सपूत जाकर राजा बनेंगे, कपूत जाकर झाड़ू
लगायेंगे। मालूम तो सब पड़ जाता है ना।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भी समझाया है। श्रीकृष्ण का जन्म जब होता है तब तो
स्वर्ग है। एक ही राज्य होता है। विश्व में शान्ति है। स्वर्ग में बहुत थोड़े
मनुष्य होंगे। वह है ही नई दुनिया। वहाँ अशान्ति हो नहीं सकती। शान्ति तब है जब एक
धर्म है। जो धर्म बाप स्थापन करते हैं। बाद में जब और-और धर्म आते हैं तो अशान्ति
होती है। वहाँ है ही शान्ति, 16 कला सम्पूर्ण हैं ना। चन्द्रमा भी जब सम्पूर्ण होता
है तो कितना शोभता है, उनको फुल मून कहा जाता है। त्रेता में 3/4 कहेंगे, खण्डित हो
गया ना। दो कला कम हो गई। सम्पूर्ण शान्ति सतयुग में होती है। 25 परसेन्ट पुरानी
सृष्टि होगी तो कुछ न कुछ खिट-खिट होगी। दो कला कम होने से शोभा कम हो गई। स्वर्ग
में बिल्कुल शान्ति, नर्क में है बिल्कुल अशान्ति। यह समय है जब मनुष्य विश्व में
शान्ति चाहते हैं, इनसे आगे यह आवाज़ नहीं था कि विश्व में शान्ति हो। अभी आवाज़
निकला है क्योंकि अब विश्व में शान्ति हो रही है। आत्मा चाहती है कि विश्व में
शान्ति होनी चाहिए। मनुष्य तो देह-अभिमान में होने कारण सिर्फ कहते रहते हैं -
विश्व में शान्ति हो। 84 जन्म अब पूरे हुए हैं। यह बाप ही आकर समझाते हैं। बाप को
ही याद करते हैं। वह कभी किस रूप में आकर स्वर्ग की स्थापना करेंगे, उनका नाम ही है
हेविनली गॉड फादर। यह किसको भी पता नहीं है - हेविन कैसे रचते हैं। श्रीकृष्ण तो रच
न सकें। उनको कहा जाता है देवता। मनुष्य देवताओं को नमन करते हैं। उनमें दैवी गुण
हैं इसलिए देवता कहा जाता है। अच्छे गुण वाले को कहते हैं ना - यह तो जैसे देवता
है। लड़ने-झगड़ने वाले को कहेंगे यह तो जैसे असुर है। बच्चे जानते हैं हम बेहद के
बाप के सामने बैठे हैं। तो बच्चों की चलन कितनी अच्छी होनी चाहिए। अज्ञान काल में
भी बाप का देखा हुआ है 6-7 कुटुम्ब इकट्ठे रहते हैं, एकदम क्षीरखण्ड हो चलते हैं।
कहाँ तो घर में सिर्फ दो होंगे तो भी लड़ते-झगड़ते रहेंगे। तो तुम हो ईश्वरीय
सन्तान। बहुत-बहुत क्षीरखण्ड हो रहना चाहिए। सतयुग में क्षीरखण्ड होते हैं, यहाँ
क्षीरखण्ड होना तुम सीखते हो तो बहुत प्यार से रहना चाहिए। बाप कहते हैं अन्दर में
जाँच करो हमने कोई विकर्म तो नहीं किया? किसको दु:ख तो नहीं दिया? ऐसे कोई बैठकर
अपने को जाँचते नहीं। यह बड़ी समझ की बात है। तुम बच्चे हो विश्व में शान्ति स्थापन
करने वाले। अगर घर में ही अशान्ति करने वाले होंगे तो शान्ति फिर कैसे करेंगे।
लौकिक बाप का बच्चा तंग करता है तो कहेंगे यह तो मुआ भला। कोई आदत पड़ जाती है तो
पक्की हो जाती है। यह समझ नहीं रहती कि हम तो बेहद के बाप के बच्चे हैं, हमको तो
विश्व में शान्ति स्थापन करनी है। शिवबाबा के बच्चे हो अगर अशान्त होते हो तो
शिवबाबा के पास आओ। वह तो हीरा है, वो झट तुमको युक्ति बतायेंगे - ऐसे शान्ति हो
सकती है। शान्ति का प्रबन्ध देंगे। ऐसे बहुत हैं चलन दैवी घराने जैसी नहीं है। तुम
अब तैयार होते हो गुल-गुल दुनिया में जाने। यह है ही गन्दी दुनिया वेश्यालय, इनसे
तो ऩफरत आती है। विश्व में शान्ति होगी तो नई दुनिया में। संगम पर हो नहीं सकती।
यहाँ शान्त बनने का पुरुषार्थ करते हैं। पूरा पुरुषार्थ नहीं करते तो फिर सज़ा खानी
पड़ेगी। मेरे साथ तो धर्मराज है ना। जब हिसाब-किताब चुक्तु होने का समय आयेगा तो
खूब मार खायेंगे। कर्म का भोग जरूर है। बीमार होते हैं, वह भी कर्मभोग है ना। बाप
के ऊपर तो कोई नहीं है। समझाते हैं - बच्चे गुल-गुल बनो तो ऊंच पद पायेंगे। नहीं तो
कोई फायदा नहीं। भगवान बाप जिसको आधाकल्प याद किया उनसे वर्सा नहीं लिया तो बच्चे
किस काम के। परन्तु ड्रामा अनुसार यह भी होना है जरूर। तो समझाने की युक्तियाँ बहुत
हैं। विश्व में शान्ति तो सतयुग में थी, जहाँ इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। लड़ाई
भी जरूर लगेगी क्योंकि अशान्ति है ना। श्रीकृष्ण फिर आयेगा सतयुग में। कहते हैं
कलियुग में देवताओं का परछाया नहीं पड़ सकता है। यह बातें तुम बच्चे ही अब सुन रहे
हो। तुम जानते हो शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं। धारणा करनी है, सारी आयु ही लग जाती है।
कहते हैं ना - सारी आयु समझाया है फिर भी समझते नहीं हैं।
बेहद का बाप कहते हैं - पहले-पहले मुख्य चीज़ तो समझाओ - ज्ञान अलग और भक्ति अलग
चीज़ है। आधाकल्प है दिन, आधाकल्प है रात। शास्त्रों में कल्प की आयु ही उल्टी लिख
दी है। तो आधा-आधा भी हो नहीं सकते। तुम्हारे में कोई शास्त्र आदि पढ़े हुए नहीं
हैं तो अच्छे हैं। पढ़े हुए होंगे तो संशय उठायेंगे, प्रश्न पूछते रहेंगे। वास्तव
में जब वानप्रस्थ अवस्था होती है तब भगवान को याद करते हैं। कोई न कोई की मत से।
फिर जैसे गुरू सिखलायेंगे। भक्ति भी सिखलाते हैं। ऐसे कोई नहीं जो भक्ति न सिखलायें।
उनमें भक्ति की ताकत है तब तो इतने फालोअर्स बनते हैं। फालोअर्स को भक्त पुजारी
कहेंगे। यहाँ सब हैं पुजारी। वहाँ पुजारी कोई होता नहीं। भगवान कभी पुजारी नहीं बनता।
अनेक प्वाइंट्स समझाई जाती है, धीरे-धीरे तुम बच्चों में भी समझाने की ताकत आती
जायेगी।
अभी तुम बतलाते हो श्रीकृष्ण आ रहा है। सतयुग में जरूर श्रीकृष्ण होगा। नहीं तो
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होगी। सिर्फ एक श्रीकृष्ण तो नहीं होगा, यथा
राजा-रानी तथा प्रजा होगी ना। इनमें भी समझ की बात है। तुम बच्चे समझते हो हम तो
बाप के बच्चे हैं। बाप वर्सा देने आये हैं। स्वर्ग में तो सभी नहीं आयेंगे। न त्रेता
में सब आ सकते हैं। झाड़ आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि को पाता रहता है। मनुष्य सृष्टि
रूपी झाड़ है। वहाँ है आत्माओं का झाड़। यहाँ ब्रह्मा द्वारा स्थापना, फिर शंकर
द्वारा विनाश फिर पालना..... अक्षर भी यह कायदेसिर बोलने चाहिए। बच्चों की बुद्धि
में यह नशा है, यह सृष्टि का चक्र कैसे चलता है। रचना कैसे होती है। अब नई छोटी रचना
है ना। यह जैसे बाजोली है। पहले शूद्र हैं अनेक, फिर बाप आकर रचना रचते हैं -
ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की। ब्राह्मण हो जाते हैं चोटी। चोटी और पैर आपस में
मिलते हैं। पहले ब्राह्मण चाहिए। ब्राह्मणों का युग बहुत छोटा होता है। पीछे हैं
देवतायें। यह वर्णों वाला चित्र भी काम का है। यह चित्र समझाने में बहुत इज़ी है।
वैरायटी मनुष्यों का वैरायटी रूप है। समझाने में कितना मज़ा आता है। ब्राह्मण जब
हैं तो सब धर्म हैं। शूद्रों से ब्राह्मणों का सैपलिंग लगता है। मनुष्य तो झाड़ के
सैपलिंग लगाते हैं। बाप भी सैपलिंग लगाते हैं जहाँ विश्व में शान्ति हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा स्मृति रखनी है कि हम हैं ईश्वरीय सन्तान। हमें क्षीरखण्ड होकर
रहना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
2) अन्दर में अपनी जाँच करनी है कि हमसे कोई विकर्म तो नहीं होता है! अशान्त होने
तथा अशान्ति फैलाने की आदत तो नहीं है?
वरदान:-
पवित्रता की
शक्ति द्वारा सदा सुख के संसार में रहने वाले बेगमपुर के बादशाह भव
सुख-शान्ति का फाउन्डेशन
पवित्रता है। जो बच्चे मन-वचन-कर्म तीनों से पवित्र बनते हैं वही हाइनेस और होलीनेस
हैं। जहाँ पवित्रता की शक्ति है वहाँ सुख शान्ति स्वत: है। पवित्रता सुख-शान्ति की
माता है। पवित्र आत्मायें कभी भी उदास नहीं हो सकती। वे बेगमपुर के बादशाह हैं उनका
ताज भी न्यारा और तख्त भी न्यारा है। लाइट का ताज पवित्रता की ही निशानी है।
स्लोगन:-
मैं
आत्मा हूँ, शरीर नहीं - यह चिंतन करना ही स्वचिंतन है।
अव्यक्त इशारे -
अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ
पावरफुल योग
अर्थात् लगन की अग्नि, ज्वाला रूप की याद ही भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि को
समाप्त करेगी और सर्व आत्माओं को सहयोग देगी, इससे ही बेहद की वैराग्य वृत्ति
प्रज्वलित होगी। याद की अग्नि एक तरफ उस अग्नि को समाप्त करेगी, दूसरी तरफ आत्माओं
को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करोयगी, इससे ही आत्मायें पापों की
आग से मुक्त हो सकेंगी।