03-08-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 28.03.2006 "बापदादा" मधुबन
विश्व की आत्माओं को
दु:खों से छुड़ाने के लिए मन्सा सेवा को बढ़ाओ, सम्पन्न और सम्पूर्ण बनो
आज सर्व खजानों के
मालिक बापदादा अपने चारों ओर के सर्व खजाने सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा
ने हर एक बच्चे को सर्व खजाने का मालिक बनाया है। एक ही देने वाला और सर्व को एक
जैसे सर्व खजाने दिये हैं। किसको कम, किसको ज्यादा नहीं दिये हैं। क्यों? बाप अखुट
खजाने के मालिक हैं। बेहद का खजाना है इसलिए हर एक बच्चा अखुट खजाने का मालिक है।
बापदादा ने सर्व बच्चों को एक जितना एक जैसा दिया है। लेकिन धारण करने वालों में
कोई सर्व खजाने धारण करने वाले हैं और कोई यथा शक्ति धारण करने वाले हैं। कोई
नम्बरवन हैं और कोई नम्बरवार हैं। जिन्होंने जितना भी धारण किया है उन्हों के चेहरे
से, नयनों से खजानों का नशा स्पष्ट दिखाई देता है। खजाने से भरपूर आत्मा चेहरे से,
नयनों से भरपूर दिखाई देती है। जैसे स्थूल खजाना प्राप्त करने वाली आत्मा के चलन
से, चेहरे से मालूम पड़ जाता है, तो यह अविनाशी खजानों का नशा, खुशी स्पष्ट दिखाई
देती है। सम्पन्नता का फ़खुर बेफिकर बादशाह बना देता है। जहाँ ईश्वरीय फ़खुर है वहाँ
फिकर हो नहीं सकता, बेफिकर बादशाह, बेगमपुर के बादशाह बन जाते हैं। तो आप सभी
ईश्वरीय सम्पन्नता के खजाने वाले बेफिकर बादशाह हो ना! बेगमपुर के बादशाह हो। कोई
फिकर है क्या? कोई गम है? क्या होगा, कैसा होगा इसका भी फिकर नहीं। त्रिकालदर्शी
स्थिति में स्थित रहने वाले जानते हो जो हो रहा है वह सब अच्छा, जो होने वाला है वह
और अच्छा। क्यों? सर्वशक्तिवान बाप के साथी हो, साथ रहने वाले हो। हर एक को नशा है,
फ़खुर है कि बापदादा सदा हमारे दिल में रहते हैं और हम सदा बाप के दिलतख्त पर रहते
हैं। तो ऐसा नशा है ना! जो दिलतख्त नशीन हैं उसके संकल्प तो क्या स्वप्न में भी
दु:ख की लहर, लैस भी नहीं आ सकती उसमें। क्यों? सर्व खजानों से भरपूर है, जो भरपूर
चीज़ होती है उसमें हलचल नहीं होगी।
तो चारों ओर के बच्चों
की सम्पन्नता देख रहे थे, हर एक का बापदादा ने जमा का खाता चेक किया। खजाना तो अखुट
मिला है लेकिन जो मिला है उस खजाने को कार्य में लगाते खत्म किया है वा मिले हुए
खजाने को कार्य में भी लगाया है और बढ़ाया भी है? कितनी परसेन्ट में हर एक के खाते
में जमा है? क्योंकि यह खजाना सिर्फ अब इस समय के लिए नहीं है, यह खजाना भविष्य में
भी साथ में चलना है। जमा हुआ ही साथ जायेगा। तो परसेन्टेज देख रहे थे। क्या देखा?
सेवा तो सभी बच्चे यथा योग वा यथा शक्ति कर रहे हैं लेकिन सेवा का फल जमा होना, उसमें
अन्तर हो जाता है। कई बच्चों का जमा खाता देखा, सेवा बहुत करते लेकिन सेवा करने का
फल जमा हुआ या नहीं, उसकी निशानियां क्या होंगी? सेवा कोई भी हो चाहे मन्सा, चाहे
वाचा, चाहे कर्मणा तीनों में 100 परसेन्ट मार्क होती हैं। तीनों में 100 हैं। सेवा
तो की लेकिन अगर सेवा करने के समय वा सेवा के बाद स्वयं अपने मन में, अपने से
सन्तुष्ट हैं और साथ में जिनकी सेवा की, जो सेवा में साथी बनते हैं वा सेवा करने
वाले को देखते हैं, सुनते हैं वह भी सन्तुष्ट हैं तो समझो जमा हुआ। स्व की
सन्तुष्टता, सर्व की सन्तुष्टता नहीं है तो परसेन्टेज़ जमा का कम हो जाता है।
यथार्थ सेवा की विधि
पहले भी बताई है - तीन बातें विधि पूर्वक हैं तो जमा है, वह सुनाया है - एक निमित्त
भाव, दूसरा निर्मान भावना, तीसरा निर्मल स्वभाव, निर्मल वाणी। भाव, भावना और स्वभाव,
बोल अगर यह तीन बातों से एक बात भी कम है, एक है दो नहीं है, दो हैं एक नहीं है तो
वह कमजोरी जमा की परसेन्टेज़ कम कर देती है। तो चार ही सबजेक्ट में अपने आपको चेक
करो - क्या चार ही सबजेक्ट में हमारा खाता जमा हुआ है? क्यों? बापदादा ने देखा कि
कईयों की चार बातें जो सुनाई, भाव, भावना.... उस प्रमाण कई बच्चों का सेवा समाचार
बहुत है लेकिन जमा का खाता कम है।
हर खजाने को चेक करो
- ज्ञान का खजाना अर्थात् जो भी संकल्प, कर्म किया वह नॉलेजफुल हो करके किया?
साधारण तो नहीं हुआ? योग अर्थात् सर्व शक्ति का खजाना भरपूर हो। तो चेक करो हर दिन
की दिनचर्या में समय प्रमाण जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसी समय वह शक्ति आर्डर में
रही? मास्टर सर्वशक्तिवान का अर्थ ही है मालिक। ऐसे तो नहीं समय बीतने के बाद शक्ति
का सोचते ही रह जाएं। अगर समय पर आर्डर करने पर शक्ति इमर्ज नहीं होती, एक शक्ति को
भी अगर आर्डर में नहीं चला सकते तो निर्विघ्न राज्य के अधिकारी कैसे बनेंगे? तो
शक्तियों का खजाना कितना जमा है? जो समय पर कार्य में लगाते हैं, वह जमा होता है।
चेक करते जा रहे हो कि मेरा खाता क्या है? क्योंकि बापदादा को सभी बच्चों से अति
प्यार है, बापदादा यही चाहते हैं कि सभी बच्चों का जमा का खाता भरपूर हो। धारणा में
भी भरपूर, धारणा की निशानी है - हर कर्म गुण सम्पन्न होगा। जिस समय जिस गुण की
आवश्यकता है वह गुण चेहरे, चलन में इमर्ज दिखाई दे। अगर कोई भी गुण की कमी है, मानों
सरलता के गुण की कर्म के समय आवश्यकता है, मधुरता की आवश्यकता है, चाहे बोल में,
चाहे कर्म में अगर सरलता, मधुरता के बजाए थोड़ा भी आवेशता या थकावट के कारण बोल
मधुर नहीं है, चेहरा मधुर नहीं है, सीरियस है तो गुण सम्पन्न तो नहीं कहेंगे ना!
कैसे भी सरकमस्टॉन्स हो लेकिन मेरा जो गुण है, वह मेरा गुण इमर्ज होना चाहिए। अभी
शार्ट में सुना रहे हैं।
ऐसे ही सेवा - सेवा
में सेवाधारी की सबसे अच्छी निशानी है - स्वयं भी सदा हल्का, लाइट और खुशनुम: दिखाई
दे। सेवा का फल है खुशी। अगर सेवा करते खुशी गायब हो जाती है तो सेवा का खाता जमा
नहीं होता। सेवा की, समय लगाया, मेहनत की तो थोड़ी परसेन्टेज़ में वह जमा होगा,
फालतू नहीं जायेगा। लेकिन जितनी परसेन्टेज़ में जमा होना चाहिए उतना नहीं होता। ऐसे
ही सम्बन्ध-सम्पर्क की निशानी - दुआओं की प्राप्ति हो। जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क
में आये उनके मन से आपके प्रति दुआयें निकलें - बहुत अच्छा, बाहर से नहीं, दिल से
निकले। दिल से दुआयें निकलें और दुआयें अगर प्राप्त हैं, तो दुआयें मिलना यह बहुत
सहज पुरुषार्थ का साधन है। भाषण नहीं करो, चलो मन्सा सेवा भी इतनी पावरफुल नहीं है।
कोई नये-नये प्लैन नहीं बनाने आते हैं, कोई हर्जा नहीं। सबसे सहज पुरुषार्थ का साधन
है दुआयें लो, दुआयें दो। ऐसे बापदादा कई बच्चों के मन के संकल्प रीड करते हैं। कई
बच्चे समय अनुसार, सरकमस्टॉन्स अनुसार कहते हैं कि अगर कोई खराब काम करता है तो उसको
दुआयें कैसे दें? उस पर तो क्रोध आता है ना, दुआयें कैसे देंगे! फिर क्रोध के
बाल-बच्चे भी तो बहुत हैं। लेकिन उसने खराब काम किया, वह खराब है आपने ठीक समझा कि
यह खराब है। यह निर्णय तो अच्छा किया, समझा अच्छा लेकिन एक होता है समझना, दूसरा
होता है उनके खराब काम, खराब बातों को अपने दिल में समाना। समझना और समाना फ़र्क
है। अगर आप समझदार हो, क्या समझदार कोई खराब चीज़ अपने पास रखेगा! लेकिन वह खराब
है, आपने दिल में समाया अर्थात् आपने खराब चीज़ अपने पास रखी, सम्भाली। समझना अलग
चीज़ है, समाना अलग चीज़ है। समझदार बनना तो ठीक है, बनो लेकिन समाओ नहीं। यह तो है
ही ऐसा, यह समा लिया। ऐसे समझ करके व्यवहार में आना, यह समझदारी नहीं है। तो बापदादा
ने चेक किया, अभी समय ऐसे समीप नहीं आना है, आपको लाना है। कई पूछते हैं थोड़ा सा
इशारा तो दे दो ना - 10 साल लगेंगे, 20 साल लगेंगे, कितना समय लगेगा!
तो बाप बच्चों से
प्रश्न करता है, बाप से तो प्रश्न बहुत करते हैं ना, तो आज बाप बच्चों से प्रश्न
करता है - समय को समीप लाने वाले कौन? ड्रामा है लेकिन निमित्त कौन? आपका एक गीत भी
है, किसके रोके रूका है सवेरा। है ना गीत? तो सवेरा लाने वाला कौन? विनाशकारी तो
तड़प रहे हैं कि विनाश करें, विनाश करें... लेकिन नव निर्माण करने वाले इतना रेडी
हैं? अगर पुराना खत्म हो जाए, नया निर्माण हो नहीं तो क्या होगा? इसलिए बापदादा ने
अभी बाप के बजाए टीचर का रूप धारण किया है। होमवर्क दिया है ना? कौन होमवर्क देता
है? टीचर। लास्ट में है सतगुरू का पार्ट। तो अपने आपसे पूछो सम्पन्न और सम्पूर्ण
स्टेज कहाँ तक बनी है? क्या आवाज से परे वा आवाज में आना, दोनों ही समान हैं? जैसे
आवाज में आना जब चाहो सहज है, ऐसे ही आवाज से परे हो जाना जब चाहे, जैसे चाहे वैसे
है? सेकण्ड में आवाज में आ सकते हैं, सेकण्ड में आवाज से परे हो जाएं - इतनी
प्रैक्टिस है? जैसे शरीर द्वारा जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ आ-जा सकते हो ना। ऐसे मन
बुद्धि द्वारा जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ आ-जा सकते हो? क्योंकि अन्त में पास मार्क्स
उसको मिलेगी जो सेकण्ड में जो चाहे जैसा चाहे, जो आर्डर करना चाहे उसमें सफल हो जाए।
साइन्स वाले भी यही प्रयत्न कर रहे हैं, सहज भी हो और कम समय में भी हो। तो ऐसी
स्थिति है? क्या मिनटों तक आये हैं, सेकण्ड तक आये हैं, कहाँ तक पहुंचे हैं? जैसे
लाइट हाउस माइट हाउस सेकण्ड में ऑन करते ही अपनी लाइट फैलाते हैं, ऐसे आप सेकण्ड
में लाइट हाउस बन चारों ओर लाइट फैला सकते हो? यह स्थूल आंख एक स्थान पर बैठे दूर
तक देख सकती है ना! फैला सकती है ना अपनी दृष्टि! ऐसे आप तीसरे नेत्र द्वारा एक
स्थान पर बैठे चारों ओर वरदाता, विधाता बन नज़र से निहाल कर सकते हो? अपने को सब
बातों में चेक कर रहे हो? इतना तीसरा नेत्र क्लीन और क्लीयर है? सभी बातों में अगर
थोड़ी भी कमजोरी है, तो उसका कारण पहले भी सुनाया है कि यह हद का लगाव “मैं और मेरा''
है। जैसे मैं के लिए स्पष्ट किया था - होमवर्क भी दिया था। दो मैं को समाप्त कर एक
मैं रखनी है। सभी ने यह होमवर्क किया? जो इस होमवर्क में सफल हुए वह हाथ उठाओ।
बापदादा ने सबको देखा है। हिम्मत रखो, डरो नहीं हाथ उठाओ। अच्छा है मुबारक मिलेगी।
बहुत थोड़े हैं। इन सबके हाथ टी.वी. में दिखाओ। बहुत थोड़ों ने हाथ उठाया है। अभी
क्या करें? सभी को अपने ऊपर हँसी भी आ रही है।
अच्छा - दूसरा
होमवर्क था - क्रोध को छोड़ना है, यह तो सहज है ना! तो क्रोध को किसने छोड़ा? इतने
दिनों में क्रोध नहीं किया? (इसमें बहुतों ने हाथ उठाया) इसमें थोड़े ज्यादा हैं,
जिन्होंने क्रोध नहीं किया, आपके आस पास रहने वालों से भी पूछेंगे। जिन्होंने हाथ
उठाया वह खड़े हो जाओ। अच्छा बहुत हैं। क्रोध नहीं किया है? संकल्प में, मन में
क्रोध आया? चलो, फिर भी मुबारक हो, अगर मन में आया मुख से नहीं किया तो भी मुबारक
है। बहुत अच्छा।
तो आप ही रिजल्ट के
हिसाब से देखो - क्या स्थापना का कार्य, स्व को सम्पन्न बनाना और सर्व आत्माओं को
मुक्ति का वर्सा दिलाना, यह सम्पन्न हुआ है? स्वयं को जीवनमुक्ति स्वरूप बनाना और
सर्व आत्माओं को मुक्ति का वर्सा दिलाना - यह है स्थापना कर्ता आत्माओं का श्रेष्ठ
कर्म। तो बापदादा इसीलिए पूछता है कि सर्व बन्धनों से मुक्त, जीवनमुक्त की स्टेज पर
संगम पर ही पहुंचना है वा सतयुग में पहुंचना है? संगमयुग में सम्पन्न होना है या वहाँ
भी राजयोग करके सीखना है? सम्पन्न तो यहाँ बनना है ना? सम्पूर्ण भी यहाँ ही बनना
है। संगमयुग के समय का भी सबसे बड़े ते बड़ा खजाना है। तो किसके रोके रूका है सवेरा,
बताओ।
तो बापदादा क्या चाहते
हैं? क्योंकि बाप की आशाओं का दीपक बच्चे ही हैं। तो अपना खाता अच्छी तरह से चेक करो।
कई बच्चों को तो देखा कई बच्चे तो मौजीराम हैं, मौज़ में चल रहे हैं। जो हुआ सो
अच्छा। अभी तो मौज़ मना लो, सतयुग में कौन देखता, कौन जानता। तो जमा के खाते में ऐसे
मौजीलाल कहो, मौजीराम कहो, ऐसे भी बच्चे देखे। मौज़ कर लो। दूसरों को भी कहते अरे
क्या करना है, मौज़ करो। खाओ, पिओ मौज़ करो। कर लो मौज़, बाप भी कहते कर लो। अगर
थोड़े में राज़ी रहने वाले हो तो थोड़े में राज़ी हो जाओ। विनाशी साधनों की मौज़
अल्पकाल की होती है। सदाकाल की मौज़ को छोड़ अगर अल्पकाल के साधन की मौज़ में रहना
चाहते हैं तो बापदादा क्या कहेगा? इशारा देगा और क्या करेगा? कोई हीरों की खान पर
जाये और दो हीरे लेकर खुश हो जाए उसको क्या कहेंगे? तो ऐसे नहीं बनना। अतीन्द्रिय
सुख के मौज़ के झूले में झूलो। अविनाशी प्राप्तियों के झूले की मौज़ में झूलो।
ड्रामा में देखो, माया का पार्ट भी विचित्र है। इसी समय ऐसे-ऐसे साधन निकले हैं, जो
पहले थे ही नहीं। लेकिन बिना साधन के भी जिन्होंने साधना की, सेवा की वह भी तो
एक्जैम्पुल सामने हैं ना! क्या यह साधन थे? लेकिन सेवा कितनी हुई? क्वालिटी तो निकली
ना! आदि रत्न तो तैयार हो गये ना! यह साधनों की आकर्षण है। साधनों को यूज़ करना
रांग नहीं कहते हैं लेकिन साधना को भूल साधन में लग जाना, इसको बापदादा रांग कहते
हैं। साधन जीवन के उड़ती कला का साधन नहीं है, आधार नहीं है। साधना आधार है। अगर
साधना के बजाए साधनों को आधार बनाया तो रिजल्ट क्या होगी? साधन विनाशी हैं, रिजल्ट
क्या? साधना अविनाशी है, उसकी रिजल्ट क्या होगी? अच्छा।
चारों ओर के बच्चों
के पुरुषार्थ और प्यार के समाचार पत्र बापदादा को मिले हैं, बापदादा बच्चों का
उमंग-उत्साह देख यह करेंगे, यह करेंगे... यह समाचार सुन खुश होते हैं। अभी सिर्फ जो
हिम्मत रखी है, उमंग-उत्साह रखा है, इसको बार-बार अटेन्शन दे प्रैक्टिकल में लाना।
यही सभी बच्चों के प्रति बापदादा के दिल की दुआयें हैं और सभी चारों ओर के संकल्प,
बोल और कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सम्पन्न बनने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को सदा
स्वदर्शन करने वाले, स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों को, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा मायाजीत
बन बाप के आगे स्वयं को प्रत्यक्ष करने वाले और विश्व के आगे बाप को प्रत्यक्ष करने
वाले सर्विसएबुल, नॉलेजफुल, सक्सेसफुल बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दिल से
पदम-पदमगुणा दुआयें हो, नमस्ते हो। नमस्ते।
वरदान:-
सच्चे साफ दिल
के आधार से नम्बरवन लेने वाले दिलाराम पसन्द भव
दिलाराम बाप को सच्ची
दिल वाले बच्चे ही पसन्द है। दुनिया का दिमाग न भी हो लेकिन सच्ची साफ दिल हो तो
नम्बरवन ले लेंगे क्योंकि दिमाग तो बाप इतना बड़ा दे देता है जिससे रचयिता को जानने
से रचना के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज को जान लेते हो। तो सच्ची साफ दिल के आधार से
ही नम्बर बनते हैं, सेवा के आधार से नहीं। सच्चे दिल की सेवा का प्रभाव दिल तक
पहुंचता है। दिमाग वाले नाम कमाते हैं और दिल वाले दुआयें कमाते हैं।
स्लोगन:-
सर्व के प्रति शुभ चिंतन और शुभ कामना रखना ही सच्चा परोपकार है।
अव्यक्त इशारे -
सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो
जो बच्चे परमात्म
प्यार में सदा लवलीन, खोये हुए रहते हैं उनकी झलक और फ़लक, अनुभूति की किरणें इतनी
शक्तिशाली होती हैं जो कोई भी समस्या समीप आना तो दूर लेकिन आंख उठाकर भी नहीं देख
सकती। उन्हें कभी भी किसी भी प्रकार की मेहनत हो नहीं सकती।