ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे जानते हैं कि हम सत्य तीर्थवासी हैं। सच्चा पण्डा और हम उनके
बच्चे जो हैं वह भी सच्चे तीर्थ पर जा रहे हैं। यह है झूठ खण्ड अथवा पतित खण्ड। अभी
सचखण्ड वा पावन खण्ड में जा रहे हैं। मनुष्य यात्रा पर जाते हैं ना। कोई-कोई खास
यात्रायें लगती हैं, जहाँ पर कोई कभी भी जा सकते हैं। यह भी यात्रा है, इसमें जाना
तब होता है जब सत्य पण्डा खुद आये। वह आता है कल्प-कल्प के संगम पर। इसमें न ठण्डी,
न गर्मी की बात है। न धक्के खाने की बात है। यह तो है याद की यात्रा। उन यात्राओं
में संन्यासी भी जाते हैं। सच्ची-सच्ची यात्रा करने वाले जो होते हैं वह पवित्र रहते
हैं। तुम्हारे में सभी यात्रा पर हैं। तुम ब्राह्मण हो। सच्चे-सच्चे
ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ कौन हैं? जो कभी भी विकार में नहीं जाते हैं। पुरुषार्थी तो
जरूर हैं। मन्सा संकल्प भल आयें, मुख्य है ही विकार की बात। कोई पूछे निर्विकारी
ब्राह्मण कितने हैं आपके पास? बोलो, यह पूछने की जरूरत नहीं है। इन बातों से आपका
क्या पेट भरेगा। तुम यात्री बनो। यात्रा करने वाले कितने हैं, इस पूछने से कोई फायदा
नहीं है। ब्राह्मण तो कोई सच्चे भी हैं, तो झूठे भी हैं। आज सच्चे हैं, कल झूठे बन
जाते हैं। विकार में गया तो ब्राह्मण नहीं ठहरा। फिर शूद्र का शूद्र हो गया। आज
प्रतिज्ञा करते कल विकार में गिर असुर बन जाते हैं। अब यह बातें कहाँ तक बैठ समझायें।
इनसे पेट तो नहीं भरेगा वा मुख मीठा नहीं होगा। यहाँ हम बाप को याद करते हैं और बाप
की रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। बाकी और बातों में कुछ रखा नहीं है। बोलो,
यहाँ बाप की याद सिखाई जाती है और पवित्रता है मुख्य। जो आज पवित्र बन फिर अपवित्र
बन जाते हैं, तो वह ब्राह्मण ही नहीं रहा। वह हिसाब कहाँ तक बैठ तुमको सुनायेंगे।
ऐसे तो बहुत गिरते होंगे माया के तूफानों में, इसलिए ब्राह्मणों की माला नहीं बन
सकती है। हम तो पैगम्बर के बच्चे पैगाम सुनाते हैं, मैसेन्जर के बच्चे मैसेज देते
हैं। अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे।
यह ओना रखो। बाकी प्रश्न तो ढेर के ढेर मनुष्य पूछेंगे। सिवाए एक बात के और कोई बातों
मे जाने से कोई फायदा ही नहीं। यहाँ तो यह जानने का है कि नास्तिक से आस्तिक, निधनके
से धन के कैसे बनें, जो धनी से वर्सा पायें - यह पूछो। बाकी तो सब पुरुषार्थी हैं।
विकार की बात में ही बहुत फेल होते हैं। बहुत दिनों के बाद स्त्री को देखते हैं तो
बात मत पूछो। कोई को शराब की आदत होती है, तीर्थों पर जायेंगे तो शराब अथवा बीड़ी
की जिनको आदत होगी वह उसके बिगर रह नहीं सकेंगे। छिपाकर भी पीते हैं। कर ही क्या
सकते। बहुत हैं जो सच नहीं बोलते हैं। छिपाते रहते हैं।
बाबा बच्चों को युक्तियाँ बतलाते हैं कि कैसे युक्ति से जवाब देना चाहिए। एक बाप
का ही परिचय देना है, जिससे मनुष्य आस्तिक बनें। पहले जब तक बाप को नहीं जाना है तब
तक कोई प्रश्न पूछना ही फालतू है। ऐसे बहुत आते हैं, समझते कुछ भी नहीं। सिर्फ सुनते
रहते, फायदा कुछ भी नहीं। बाबा को लिखते हैं हज़ार दो हज़ार आये, उनसे दो-एक समझने
लिए आते रहते हैं। फलाना-फलाना बड़ा आदमी आता रहता है, हम समझ जाते हैं, उनको जो
परिचय मिलना चाहिए वह मिला नहीं है। पूरा परिचय मिले तो समझें यह तो ठीक कहते हैं,
हम आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा है, वह पढ़ाते हैं। कहते हैं अपने को आत्मा समझ
मुझे याद करो। यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो। जो पवित्र नहीं रहते वह ब्राह्मण नहीं,
शूद्र हैं। लड़ाई का मैदान है। झाड़ बढ़ता रहेगा और तूफान भी लगेंगे। बहुत पत्ते
गिरते रहेंगे। कौन बैठ गिनती करेंगे कि सच्चे ब्राह्मण कौन हैं? सच्चे वह जो कभी
शूद्र न बनें। ज़रा भी दृष्टि न जाए। अन्त में कर्मातीत अवस्था होती है। बड़ी ऊंची
मंजिल है। मन्सा में भी न आये, वह अवस्था अन्त में होनी है। इस समय एक की भी ऐसी
अवस्था नहीं है। इस समय सब पुरुषार्थी हैं। नीचे-ऊपर होते रहते हैं। मुख्य आंखों की
ही बात है। हम आत्मा हैं, इस शरीर द्वारा पार्ट बजाते हैं - यह पक्का अभ्यास चाहिए।
जब तक रावण राज्य है, तब तक युद्ध चलता रहेगा। पिछाड़ी में कर्मातीत अवस्था होगी।
आगे चलकर तुमको फीलिंग आयेगी, समझते जायेंगे। अभी तो झाड़ बहुत छोटा है, तूफान लगता
है, पत्ते गिर पड़ते हैं। जो कच्चे हैं वह गिर पड़ते हैं। हर एक अपने से पूछे - मेरी
अवस्था कहाँ तक है? बाकी जो प्रश्न पूछते हैं उन बातों में जास्ती जाओ ही नहीं। बोलो,
हम बाप की श्रीमत पर चल रहे हैं। वह बेहद का बाप आकर बेहद का सुख देते हैं अथवा नई
दुनिया स्थापन करते हैं। वहाँ सुख ही होता है। जहाँ मनुष्य रहते हैं उसको ही दुनिया
कहा जाता है। निराकारी वर्ल्ड में आत्मायें हैं ना। यह किसकी बुद्धि में नहीं है कि
आत्मा कैसे बिन्दी है। यह भी पहले कोई नये को नहीं समझाना है। पहले-पहले तो समझाना
है - बेहद का बाप बेहद का वर्सा देते हैं। भारत पावन था, अभी पतित है। कलियुग के
बाद फिर सतयुग आना है। दूसरा कोई भी समझा न सके, सिवाए बी.के. के। यह है नई रचना।
बाप पढ़ा रहे हैं - यह समझानी बुद्धि में रहनी चाहिए। कोई डिफीकल्ट बात नहीं है,
परन्तु माया भुला देती है, विकर्म करा देती है। आधाकल्प से विकर्म करने की आदत पड़ी
हुई है। वह सब आसुरी आदतें मिटानी हैं। बाबा खुद कहते हैं - सब पुरुषार्थी हैं।
कर्मातीत अवस्था को पाने में बहुत टाइम लगता है। ब्राह्मण कभी विकार में नहीं जाते।
युद्ध के मैदान में चलते-चलते हार खा लेते हैं। इन प्रश्नों से कोई फायदा नहीं। पहले
अपने बाप को याद करो। हमको शिवबाबा ने कल्प पहले मुआफिक फरमान दिया है कि अपने को
आत्मा समझ मुझे याद करो। यह वही लड़ाई है। बाप एक है, श्रीकृष्ण को बाप नहीं कहेंगे।
श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। रांग से राइट बनाने वाला बाप है, तब तो उनको ट्रूथ
कहा जाता है ना। इस समय तुम बच्चे ही सारे सृष्टि के राज़ को जानते हो। सतयुग में
है डीटी डिनायस्टी। रावण राज्य में फिर है आसुरी डिनायस्टी। संगमयुग क्लीयर कर
दिखाना है, यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। उस तरफ देवतायें, इस तरफ असुर। बाकी उन्हों
की लड़ाई हुई नहीं है। लड़ाई तुम ब्राह्मणों की है विकारों से, इनको भी लड़ाई नहीं
कहेंगे। सबसे बड़ा है काम विकार, यह महाशत्रु है। इन पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत
बनेंगे। इस विष पर ही अबलायें मार खाती हैं। अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं। मूल
बात है पवित्रता की। पुरुषार्थ करते-करते, तूफान आते-आते तुम्हारी जीत हो जायेगी।
माया थक जायेगी। कुश्ती में पहलवान जो होते हैं, वह झट सामना कर लेते हैं। उन्हों
का धन्धा ही है अच्छी रीति लड़कर जीत पाना। पहलवान का बड़ा नामाचार होता है। इनाम
मिलता है। तुम्हारी तो यह है गुप्त बात।
तुम जानते हो हम आत्मायें पवित्र थी। अभी अपवित्र बनी हैं फिर पवित्र बनना है।
यही मैसेज सबको देना है और कोई भी प्रश्न पूछे, तुमको इन बातों में जाना ही नहीं
है। तुम्हारा है ही रूहानी धन्धा। हम आत्माओं में बाबा ने ज्ञान भरा था, बाद में
प्रालब्ध पाई, ज्ञान खत्म हो गया। अब फिर बाबा ज्ञान भर रहे हैं। बाकी नशे में रहो,
बोलो बाप का मैसेज देते हैं कि बाप को याद करो तो कल्याण होगा। तुम्हारा धन्धा ही
यह रूहानी है। पहली-पहली बात कि बाप को जानों। बाप ही ज्ञान का सागर है। वह कोई
पुस्तक थोड़ेही सुनाते हैं। वो लोग जो डॉक्टर ऑफ फिलॉसॉफी आदि बनते हैं, वह किताब
पढ़ते हैं। भगवान तो नॉलेजफुल है। उनको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज है। वह
कुछ पढ़ा है क्या? वह तो सब वेदों-शास्त्रों आदि को जानते हैं। बाप कहते हैं मेरा
पार्ट है तुमको नॉलेज समझाने का। ज्ञान और भक्ति का कान्ट्रास्ट और कोई बता न सके।
यह है ज्ञान की पढ़ाई। भक्ति को ज्ञान नहीं कहा जाता है। सर्व का सद्गति दाता एक ही
बाप है। वर्ल्ड की हिस्ट्री जरूर रिपीट होगी। पुरानी दुनिया के बाद फिर नई दुनिया
जरूर आनी है। तुम बच्चे जानते हो बाबा हमको फिर से पढ़ाते हैं। बाप कहते हैं मुझे
याद करो, ज़ोर सारा इस पर है। बाबा जानते हैं बहुत अच्छे-अच्छे नामीग्रामी बच्चे इस
याद की यात्रा में बहुत कमज़ोर हैं और जो नामीग्रामी नहीं, बांधेलियां हैं, गरीब
हैं, वह याद की यात्रा में बहुत रहते हैं। हर एक अपनी दिल से पूछे - मैं बाप को
कितना समय याद करता हूँ? बाबा कहते हैं - बच्चे, जितना हो सके तुम मुझे याद करो।
अन्दर में बहुत हर्षित रहो। भगवान पढ़ाते हैं तो कितनी खुशी होनी चाहिए। बाप कहते
हैं तुम पवित्र आत्मा थे फिर शरीर धारण कर पार्ट बजाते-बजाते पतित बने हो। अब फिर
पवित्र बनना है। फिर वही दैवी पार्ट बजाना है। तुम दैवी धर्म के हो ना। तुमने ही 84
का चक्र लगाया है। सब सूर्यवंशी भी 84 जन्म थोड़ेही लेते हैं। पीछे आते रहते हैं
ना। नहीं तो फट से सभी आ जाएं। सवेरे उठकर बुद्धि से कोई काम ले तो समझ सकते हैं।
बच्चों को ही विचार सागर मंथन करना है। शिवबाबा तो नहीं करते हैं। वह तो कहते हैं
ड्रामा अनुसार जो कुछ सुनाता हूँ, ऐसे ही समझो कल्प पहले मुआफिक जो समझाया था, वही
समझाया। मंथन तुम करते हो। तुमको ही समझाना है, ज्ञान देना है। यह ब्रह्मा भी मंथन
करते हैं। बी.के. को मंथन करना है, शिवबाबा को नहीं। मूल बात कोई से भी जास्ती टॉक
नहीं करनी है। आरग्यु शास्त्रवादी आपस में बहुत करते हैं, तुमको आरग्यु (वाद-विवाद)
नहीं करना है। तुमको सिर्फ पैगाम देना है। पहले सिर्फ मुख्य एक बात पर समझाओ और
लिखाओ। पहले-पहले यह सब़क (पाठ) रखो कि यह कौन पढ़ाते हैं, सो लिखो। यह बात तुम
पिछाड़ी में ले जाते हो इसलिए संशय पड़ता रहता है। निश्चयबुद्धि न होने कारण समझते
नहीं हैं। सिर्फ कह देते बात ठीक है। पहले-पहले मुख्य बात ही यह है। रचता बाप को
समझो फिर रचना का राज़ समझना। मुख्य बात गीता का भगवान कौन? तुम्हारी विजय भी इनमें
होनी है। पहले-पहले कौन सा धर्म स्थापन हुआ? पुरानी दुनिया को नई दुनिया कौन बनाते
हैं। बाप ही आत्माओं को नया ज्ञान सुनाते हैं, जिससे नई दुनिया स्थापन होती है।
तुमको बाप और रचना की पहचान मिलती है। पहले-पहले तो अल्फ पर पक्का कराओ तो बे
बादशाही है ही। बाप से ही वर्सा मिलता है। बाप को जाना और वर्से का हकदार बना। बच्चा
जन्म लेता है, माँ-बाप को देखा और बस पक्का हो जायेगा। माँ-बाप के सिवाए कोई के पास
जायेगा भी नहीं क्योंकि माँ से दूध मिलता है। यह भी ज्ञान का दूध मिलता है। मात-पिता
है ना। यह बड़ी महीन बातें हैं, जल्दी कोई समझ न सकें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सच्चा-सच्चा पवित्र ब्राह्मण बनना है, कभी शूद्र (पतित) बनने का मन्सा
में भी ख्याल न आये, जरा भी दृष्टि न जाए, ऐसी अवस्था बनानी है।
2) बाप जो पढ़ा रहे हैं, वह समझानी बुद्धि में रखनी है। जो विकर्म करने की आसुरी
आदतें पड़ी हुई हैं, उन्हें मिटाना है। पुरुषार्थ करते-करते सम्पूर्ण पवित्रता की
ऊंची मंजिल को प्राप्त करना है।