07-12-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 02.02.2008 "बापदादा" मधुबन
सम्पूर्ण पवित्रता
द्वारा रूहानी रॉयल्टी और पर्सनालिटी का अनुभव करते, अपने मास्टर ज्ञान सूर्य
स्वरूप को इमर्ज करो
आज बापदादा चारों ओर
के अपने रॉयल्टी और पर्सनालिटी के परिवार को देख रहे हैं। यह रॉयल्टी वा रूहानी
पर्सनालिटी का फाउण्डेशन है सम्पूर्ण प्युरिटी। प्युरिटी की निशानी सभी के मस्तक
में, सभी के सिर पर लाइट का ताज चमक रहा है। ऐसे चमकते हुए ताजधारी रूहानी रॉयल्टी,
रूहानी पर्सनालिटी वाले सिर्फ आप ब्राह्मण परिवार ही हैं क्योंकि प्युरिटी को अपनाया
है। आप ब्राह्मण आत्माओं की प्युरिटी का प्रभाव आदिकाल से प्रसिद्ध है। याद आता है
अपना अनादि और आदिकाल! याद करो अनादिकाल में भी आप प्युअर आत्मायें आत्मा रूप में
भी विशेष चमकते हुए सितारे, चमकते रहते हैं और भी आत्मायें हैं लेकिन आप सितारों की
चमक सबके साथ होते भी विशेष चमकती है। जैसे आकाश में सितारे अनेक होते हैं लेकिन
कोई कोई सितारे स्पेशल चमकने वाले होते हैं। देख रहे हो सभी अपने को? फिर आदिकाल
में आपके प्युरिटी की रॉयल्टी और पर्सनालिटी कितनी महान रही है! सभी पहुंच गये
आदिकाल में? पहुंच जाओ। चेक करो मेरी चमकने की रेखा कितनी परसेन्ट में है? आदिकाल
से अन्तिम काल तक आपके प्युरिटी की रॉयल्टी, पर्सनालिटी सदा रहती है। अनादि काल का
चमकता हुआ सितारा, चमकते हुए बाप के साथ-साथ निवास करने वाले। अभी-अभी अपनी विशेषता
अनुभव करो। पहुंच गये सब अनादि-काल में? फिर सारे कल्प में आप पवित्र आत्माओं की
रॉयल्टी भिन्न-भिन्न रूप में रहती है क्योंकि आप आत्माओं जैसा कोई सम्पूर्ण पवित्र
बने ही नहीं हैं। पवित्रता का जन्म सिद्ध अधिकार आप विशेष आत्माओं को बाप द्वारा
प्राप्त है। अभी आदिकाल में आ जाओ। अनादिकाल भी देखा, अब आदिकाल में आपके पवित्रता
की रॉयल्टी का स्वरूप कितना महान है! सभी पहुंच गये सतयुग में। पहुंच गये! आ गये?
कितना प्यारा स्वरूप देवता रूप है। देवताओं जैसी रॉयल्टी और पर्सनालिटी सारे कल्प
में किसी भी आत्मा की नहीं है। देवता रूप की चमक अनुभव कर रहे हो ना! इतनी रूहानी
पर्सनालिटी, यह सब पवित्रता की प्राप्ति है। अभी देवता रूप का अनुभव करते मध्यकाल
में आ जाओ। आ गये? आना अनुभव करना सहज है ना। तो मध्यकाल में भी देखो, आपके भक्त आप
पूज्य आत्माओं की पूजा करते हैं, चित्र बनाते हैं। कितने रॉयल्टी के चित्र बनाते और
कितनी रॉयल्टी से पूजा करते। अपना पूज्य चित्र सामने आ गया है ना! चित्र तो
धर्मात्माओं के भी बनते हैं। धर्म पिताओं के भी बनते हैं, अभिनेताओं के भी बनते हैं
लेकिन आपके चित्र की रूहानियत और विधि पूर्वक पूजा में फ़र्क होता है। तो अपना
पूज्य स्वरूप सामने आ गया! अच्छा फिर आओ अन्तकाल संगम पर, यह रूहानी ड्रिल कर रहे
हो ना! चक्कर लगाओ और अपने प्युरिटी का, अपनी विशेष प्राप्ति का अनुभव करो। अन्तिम
काल संगम पर आप ब्राह्मण आत्माओं का परमात्म पालना का, परमात्म प्यार का, परमात्म
पढ़ाई का भाग्य आप कोटों में कोई आत्माओं को ही मिलता है। परमात्मा की डायरेक्ट रचना,
पहली रचना आप पवित्र आत्माओं को ही प्राप्त होती है। जिससे आप ब्राह्मण ही विश्व की
आत्माओं को भी मुक्ति का वर्सा बाप से दिलाते हो। तो यह सारे चक्कर में अनादि काल,
आदि काल, मध्य काल और अन्तिम काल सारे चक्र में इतनी श्रेष्ठ प्राप्ति का आधार
पवित्रता है। सारा चक्कर लगाया अभी अपने को चेक करो, अपने को देखो, देखने का आइना
है ना! अपने को देखने का आइना है? जिसको है वह हाथ उठाओ। आइना है, क्लीयर है आइना?
तो आइने में देखो मेरी पवित्रता का कितना परसेन्ट है? पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं
लेकिन ब्रह्माचारी। मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें पवित्रता है? कितनी परसेन्ट
में है? परसेन्टेज़ निकालने आती है ना! टीचर्स को आती है? पाण्डवों को आती है? अच्छा
होशियार हो। माताओं को आती है? आती है माताओं को? अच्छा।
पवित्रता की परख -
वृत्ति, दृष्टि और कृति तीनों में चेक करो, सम्पूर्ण पवित्रता की जो वृत्ति होगी,
वह बुद्धि में आ गई ना। सोचो, सम्पूर्ण पवित्रता की वृत्ति अर्थात् हर आत्मा के
प्रति शुभ भावना, शुभ कामना। अनुभवी हो ना! और दृष्टि क्या होगी? हर आत्मा को आत्मा
रूप में देखना। आत्मिक स्मृति से बोलना, चलना। शार्ट में सुना रहे हैं। डिटेल तो आप
भाषण कर सकते हैं और कृति अर्थात् कर्म में सुख लेना सुख देना। यह चेक करो - मेरी
वृत्ति, दृष्टि, कृति इसी प्रमाण है? सुख लेना, दु:ख नहीं लेना। तो चेक करो कभी
दु:ख तो नहीं ले लेते हो! कभी-कभी, थोड़ा-थोड़ा? दु:ख देने वाले भी तो होते हैं ना।
मानों वह दु:ख देता है तो क्या आपको उसको फॉलो करना है! फॉलो करना है कि नहीं? फॉलो
किसको करना है? दु:ख देने वाले को या बाप को? बाप ने, ब्रह्मा बाप ने निराकार की तो
बात है ही, लेकिन ब्रह्मा बाप ने किसी बच्चे का दु:ख लिया? सुख दिया और सुख लिया।
फॉलो फादर है या कभी-कभी लेना ही पड़ता है? नाम ही है दु:ख, जब दु:ख देते हैं,
इनसल्ट करते हैं, तो जानते हो कि यह खराब चीज़ है, कोई आपकी इनसल्ट करता है तो उसको
आप अच्छा समझते हो? खराब समझते हो ना! तो वह आपको दु:ख देता है या इनसल्ट करता है,
तो खराब चीज़ अगर आपको कोई देता है, तो आप ले लेते हो? ले लेते हो? थोड़े समय के
लिए, ज्यादा समय नहीं थोड़ा समय? खराब चीज़ लेनी होती है? तो दु:ख या इनसल्ट लेते
क्यों हो? अर्थात् मन में फीलिंग के रूप में रखते क्यों हो? तो अपने से पूछो हम
दु:ख लेते हैं? या दु:ख को परिवर्तन के रूप में देखते हैं? क्या समझते हो - दु:ख
लेना राइट है? है राइट? मधुबन वाले राइट है? थोड़ा-थोड़ा ले लेना चाहिए? दु:ख ले
लेना चाहिए ना! नहीं लेना चाहिए लेकिन ले लेते हो। गलती से ले लेते हो। यदि दु:ख की
फीलिंग आई तो परेशान कौन होगा? मन में किचड़ा रखा तो परेशान कौन होगा? जहाँ किचड़ा
होगा वहाँ ही परेशान होंगे ना! तो उस समय अपने रॉयल्टी और पर्सनालिटी को सामने लाओ
और अपने को किस स्वरूप में देखो? जानते हो आपका क्या टाइटल है? आपका टाइटल है
सहनशीलता की देवी, सहनशीलता का देव। तो आप कौन हो? सहनशीलता की देवियां हो, सहनशीलता
के देव हो या नहीं? कभी-कभी हो जाते हैं। अपना पोज़ीशन याद करो, स्वमान याद करो।
मैं कौन! यह स्मृति में लाओ। सारे कल्प के विशेष स्वरूप की स्मृति को लाओ। स्मृति
तो आती है ना!
बापदादा ने देखा कि
जैसे मेरा शब्द को सहज याद में परिवर्तन किया है। तो मेरा के विस्तार को समेटने के
लिए क्या कहते हो? मेरा बाबा। जब भी मेरा मेरा आता तो मेरा बाबा में समेट लेते हो।
और बार-बार मेरा बाबा कहने से याद भी सहज हो जाती है और प्राप्ति भी ज्यादा होती
है। ऐसे ही सारे दिन में अगर किसी भी प्रकार की समस्या या कारण आता है, तो उसके यह
दो शब्द विशेष हैं - मैं और मेरा। तो जैसे बाबा शब्द कहते ही मेरा शब्द पक्का याद
हो गया है। हो गया है ना? सभी अभी बाबा बाबा नहीं कहते, मेरा बाबा कहते हैं। ऐसे ही
यह जो मैं शब्द है, इसको भी परिवर्तन करने के लिए जब भी मैं शब्द बोलो तो अपने
स्वमान की लिस्ट सामने लाओ। मैं कौन? क्योंकि मैं शब्द गिराने के निमित्त भी बनता
और मैं शब्द स्वमान की स्मृति से ऊंचा भी उठाता है। तो जैसे मेरा बाबा का अभ्यास हो
गया है, ऐसे ही मैं शब्द को बॉडी-कान्सेसनेस की स्मृति के बजाए अपने श्रेष्ठ स्वमान
को सामने लाओ। मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तख्तनशीन आत्मा हूँ, विश्व कल्याणी आत्मा
हूँ, ऐसे कोई न कोई स्वमान मैं से जोड़ लो। तो मैं शब्द उन्नति का साधन हो जाए। जैसे
मेरा शब्द अभी मैजारिटी बाबा शब्द याद दिलाता है ऐसे मैं शब्द स्वमान की याद दिलाये
क्योंकि अभी समय प्रकृति द्वारा अपनी चैलेन्ज कर रहा है।
समय की समीपता को
कॉमन बात नहीं समझो। अचानक और एवररेडी शब्द को अपने कर्मयोगी जीवन में हर समय स्मृति
में रखो। अपने शान्ति की शक्ति का स्वयं प्रति भी भिन्न-भिन्न रूप से प्रयोग करो।
जैसे साइन्स अपना नया-नया प्रयोग करती रहती है। जितना स्व के प्रति प्रयोग करने की
प्रैक्टिस करते रहेंगे उतना ही औरों प्रति भी शान्ति की शक्ति का प्रयोग होता रहेगा।
अभी विशेष अपने
शक्तियों की सकाश चारों ओर फैलाओ। जब आपकी प्रकृति सूर्य की शक्ति, सूर्य की किरणें
अपना कार्य कितने रूप से कर रही हैं। पानी बरसाता भी है, पानी सुखाता भी है। दिन से
रात, रात से दिन करके दिखाता है। तो क्या आप अपने शक्तियों की सकाश वायुमण्डल में
नहीं फैला सकते? आत्माओं को अपनी शक्तियों की सकाश से दु:ख अशान्ति से नहीं छुड़ा
सकते! ज्ञान सूर्य स्वरूप को इमर्ज करो। किरणें फैलाओ, सकाश फैलाओ। जैसे स्थापना के
आदिकाल में बापदादा के तरफ से अनेक आत्माओं को सुख-शान्ति की सकाश मिलने का घर बैठे
अनुभव हुआ। संकल्प मिला जाओ। ऐसे अब आप मास्टर ज्ञान सूर्य बच्चों द्वारा सुख-शान्ति
की लहर फैलाने की अनुभूति होनी चाहिए। लेकिन वह तब होगी, इसका साधन है मन की
एकाग्रता। याद की एकाग्रता। एकाग्रता की शक्ति को स्वयं में बढ़ाओ। जब चाहो जैसे
चाहो जब तक चाहो तब तक मन को एकाग्र कर सको। अभी मास्टर ज्ञान सूर्य के स्वरूप को
इमर्ज करो और शक्तियों की किरणें, सकाश फैलाओ।
बापदादा ने सुना और
खुश है कि बच्चे सेवा के उमंग-उत्साह में जगह-जगह पर सेवा अच्छी कर रहे हैं, बापदादा
के पास सेवा के समाचार सब तरफ के अच्छे अच्छे पहुंचे हैं, चाहे प्रदर्शनी करते हैं,
चाहे समाचार पत्रों द्वारा, टी.वी. द्वारा सन्देश देने का कार्य बढ़ाते जाते हैं।
सन्देश भी पहुंचता है, सन्देश अच्छा पहुंचा रहे हो। गांव में भी जहाँ रहा हुआ है,
हर एक ज़ोन अच्छा अपनी अपनी एरिया को बढ़ा रहा है। अखबारों द्वारा टी.वी. द्वारा
भिन्न भिन्न साधनों द्वारा उमंग-उत्साह से कर रहे हो। उसकी सब करने वाले बच्चों को
बापदादा बहुत स्नेहयुक्त दुआओं भरी मुबारक दे रहे हैं। लेकिन अभी सन्देश देने में
तो अच्छा उमंग-उत्साह है और चारों ओर ब्रह्माकुमारीज़ क्या है, बहुत अच्छा शक्तिशाली
कार्य कर रही हैं, यह भी आवाज अच्छा फैल रहा है और बढ़ता जा रहा है। लेकिन, लेकिन
सुनायें क्या? सुनायें लेकिन... लेकिन ब्रह्माकुमारियों का बाबा कितना अच्छा है, वह
आवाज अभी बढ़ना चाहिए। ब्रह्माकुमारियां अच्छा काम कर रही हैं लेकिन कराने वाला कौन
हैं, अभी यह प्रत्यक्षता आनी चाहिए। बाप आया है, यह समाचार मन तक पहुंचना चाहिए।
इसका प्लैन बनाओ।
बापदादा से बच्चों ने
प्रश्न पूछा कि वारिस या माइक किसको कहें? माइक निकले भी हैं, लेकिन बापदादा माइक
अभी के समय अनुसार ऐसा चाहते हैं या आवश्यक है जिसके आवाज की महानता हो। अगर साधारण
बाबा शब्द बोल भी देते हैं, अच्छा करते हैं इतने तक भी लाया है, तो बापदादा मुबारक
देते हैं लेकिन अभी ऐसे माइक चाहिए जिनके आवाज की भी लोगों तक वैल्यु हो। ऐसे
प्रसिद्ध हो, प्रसिद्ध का मतलब यह नहीं कि श्रेष्ठ मर्तबे वाला हो लेकिन उसका आवाज
सुनकर समझें कि यह कहने वाला जो कहता है, इसकी आवाज में वैल्यु है। अगर यह अनुभव से
कहता है, तो उसकी वैल्यु हो। जैसे माइक तो बहुत होते हैं लेकिन माइक भी कोई पावर
वाला कितना होता है, कोई कितना होता है, ऐसे ही ऐसा माइक ढूँढो, जिसकी आवाज में
शक्ति हो। उसकी आवाज को सुनकर समझ में आवे कि यह अनुभव करके आया है तो अवश्य कोई
बात है लेकिन फिर भी वर्तमान समय हर ज़ोन, हर वर्ग में माइक निकले जरूर हैं। बापदादा
यह नहीं कहते कि सेवा की प्रत्यक्ष रिजल्ट नहीं निकली है, निकली है। लेकिन अभी समय
कम है और सेवा के महत्व वाली आत्मायें अभी निमित्त बनानी पड़ेंगी। जिसके आवाज की
वैल्यु हो। मर्तबा भले नहीं हो लेकिन उनकी प्रैक्टिकल लाइफ और प्रैक्टिकल अनुभव की
अथॉरिटी हो। उनके बोल में अनुभव की अथॉरिटी हो। समझा कैसा माइक चाहिए? वारिस को तो
जानते ही हो। जिसके हर श्वांस में, हर कदम में बाप और कर्तव्य और साथ-साथ
मन-वचन-कर्म, तन-मन-धन सबमें बाबा और यज्ञ समाया हुआ हो। बेहद की सेवा समाई हुई हो।
सकाश देने की समर्थी हो। अच्छा।
अभी एक सेकण्ड में,
एक सेकण्ड हुआ, एक सेकण्ड में सारी सभा जो भी जहाँ है वहाँ मन को एक ही संकल्प में
स्थित करो - बाप और मैं परमधाम में अनादि ज्योतिबिन्दु स्वरूप हूँ, परमधाम में बाप
के साथ बैठ जाओ। अच्छा। अभी साकार में आ जाओ।
अभी वर्तमान समय के
हिसाब से मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास, जो कार्य कर रहे हो उसी कार्य में
एकाग्र करो, कन्ट्रोलिंग पॉवर को ज्यादा बढ़ाओ। मन-बुद्धि संस्कार तीनों के ऊपर
कन्ट्रोलिंग पावर। यह अभ्यास आने वाले समय में बहुत सहयोग देगा। वायुमण्डल के
अनुसार एक सेकण्ड में कन्ट्रोल करना पड़ेगा। जो चाहे वही हो। तो यह अभ्यास बहुत
आवश्यक है, इसको हल्का नहीं करना क्योंकि समय पर यही अन्त सुहानी करेगा। अच्छा!
चारों ओर के डबल
तख्तनशीन, बापदादा के दिलतख्तनशीन, साथ में विश्व राज्य तख्त अधिकारी, सदा अपने
अनादि स्वरूप, आदि स्वरूप, मध्य स्वरूप, अन्तिम स्वरूप में जब चाहे तब स्थित रहने
वाले सदा सर्व खजानों को स्वयं कार्य में लगाने वाले और औरों को भी खजानों से
सम्पन्न बनाने वाले सर्व आत्माओं को बाप से मुक्ति का वर्सा दिलाने वाले ऐसे
परमात्म प्यार के पात्र आत्माओं को बापदादा का यादप्यार, दिल की दुआयें और नमस्ते।
वरदान:-
साथी और
साक्षीपन के अनुभव द्वारा सदा सफलतामूर्त भव
जो बच्चे सदा बाप के
साथ रहते हैं वह साक्षी स्वत: बन जाते हैं क्योंकि बाप स्वयं साक्षी होकर पार्ट
बजाते हैं तो उनके साथ रहने वाले भी साक्षी होकर पार्ट बजायेंगे और जिनका साथी स्वयं
सर्वशक्तिमान् बाप है वे सफलता मूर्त भी स्वत: बन ही जाते हैं। भक्ति मार्ग में तो
पुकारते हैं कि थोड़े समय के साथ का अनुभव करा दो, झलक दिखा दो लेकिन आप सर्व
सम्बन्धों से साथी हो गये - तो इसी खुशी और नशे में रहो कि पाना था सो पा लिया।
स्लोगन:-
व्यर्थ संकल्पों की निशानी है - मन उदास और खुशी गायब।
अव्यक्त इशारे - अब
सम्पन्न वा कर्मातीत बनने की धुन लगाओ
बहुतकाल अचल-अडोल,
निर्विघ्न, निर्बन्धन, निर्विकल्प, निर-विकर्म अर्थात् निराकारी, निर्विकारी और
निरंहकारी स्थिति में रहो तब कर्मातीत बन सकेंगे। सेवा का विस्तार भल कितना भी
बढ़ाओ लेकिन विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, विस्तार में सार
भूल न जाये। खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो।