08-06-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 15.11.2005 "बापदादा" मधुबन
“सच्चे दिल से बाप व
परिवार के स्नेही बन मेहनत मुक्त बनने का वायदा करो और फायदा लो''
आज बापदादा अपने चारों
ओर के श्रेष्ठ स्वराज्य अधिकारी, स्वमानधारी बच्चों को देख रहे हैं। बाप ने बच्चों
को अपने से भी ऊंचा स्वमान दिया है। हर एक बच्चे को पांव में गिरने से छुड़ाए सिर
का ताज बना दिया। स्वयं को सदा ही प्यारे बच्चों का सेवाधारी कहलाया। इतनी बड़ी
अथॉरिटी का स्वमान बच्चों को दिया। तो हर एक अपने को इतना स्वमानधारी समझते हैं?
स्वमानधारी का विशेष लक्षण क्या होता है? जितना जो स्वमानधारी होगा उतना ही सर्व को
सम्मान देने वाला होगा। जितना स्वमानधारी उतना ही निर्मान, सर्व का स्नेही होगा।
स्वमानधारी की निशानी है - बाप का प्यारा साथ में सर्व का प्यारा। हद का प्यारा नहीं,
बेहद का प्यारा। जैसे बाप सर्व के प्यारे हैं, चाहे एक मास का बच्चा है, चाहे आदि
रत्न भी है लेकिन हर एक मानता है मैं बाबा का, बाबा मेरा। यह निशानी है सर्व के
प्यारेपन की, श्रेष्ठ स्वमान की, क्योंकि ऐसे बच्चे फालो फादर करने वाले हैं। देखो
बाप ने हर वर्ग के बच्चों को, छोटे बच्चों से लेके, बुजुर्ग समान बच्चों को स्वमान
दिया। यूथ को विनाशकारी से विश्व कल्याणकारी का स्वमान दिया। महान बनाया। प्रवृत्ति
वालों को महात्मायें, बड़े-बड़े जगतगुरू उनसे भी ऊंचा, प्रवृत्ति में रहते,
पर-वृत्ति वाले महात्माओं का भी सिर झुकाने वाला बनाया। कन्याओं को शिव शक्ति
स्वरूप का स्वमान याद दिलाया, बनाया। बुजुर्ग बच्चों को ब्रह्मा बाप की हमजिन्स
अनुभवी का स्वमान दिया। ऐसे ही स्वमानधारी बच्चे हर आत्मा को ऐसे स्वमान से देखेंगे।
सिर्फ देखेंगे नहीं लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में आयेंगे, क्योंकि स्वमान देह-अभिमान
को मिटाने वाला है। जहाँ स्वमान होगा वहाँ देह का अभिमान नहीं होगा। बहुत सहज साधन
है, देह-अभिमान को मिटाने का - सदा स्वमान में रहना। सदा हर एक को स्वमान से देखना।
चाहे प्यादा है, 16 हजार की माला में लास्ट नम्बर भी है लेकिन लास्ट नम्बर में भी
ड्रामानुसार बाप द्वारा कोई न कोई विशेषता है। स्वमानधारी विशेषता को देख स्वमान
देते हैं। उनकी दृष्टि में, वृत्ति में, कृत्ति में, हर एक की विशेषता समाई हुई होती
है। जो भी बाप का बना वह विशेष आत्मा है, चाहे नम्बरवार है लेकिन दुनिया के कोटों
में कोई है। ऐसे अपने को सभी विशेष आत्मा समझते हो? स्वमान में स्थित रहना है।
देह-अभिमान में नहीं, स्वमान।
बाप को हर एक बच्चे
से प्यार क्यों है? क्योंकि बाप जानते हैं मेरे को पहचान, मेरे बने हैं ना। चाहे आज
इस मेले में भी पहली बार आये हैं, फिर भी बाबा कहा, तो बाप के प्यार के पात्र हैं।
बापदादा को चारों ओर के सर्व बच्चे सर्व से प्यारे हैं। ऐसे ही फालो फादर। कोई भी
अप्रिय नहीं, सर्व प्रिय हैं। देखो, जो भी बच्चे मेरा बाबा कहते हैं, तो मेरापन
किसने लाया? स्नेह ने। जो भी यहाँ बैठे हैं, वह समझते हो कि स्नेह ने बाप का बना
लिया। बाप का स्नेह चुम्बक है, स्नेह के चुम्बक से बाप के बन गये। दिल का स्नेह,
कहने मात्र स्नेह नहीं। दिल का स्नेह इस ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन है। मिलने क्यों
आते हो? स्नेह ले आया है ना! जो भी सभी बैठे हैं, आये हैं, क्यों आये हो? स्नेह ने
खींचा ना। स्नेह भी कितना है? 100 परसेन्ट है वा कम है? जो समझते हैं स्नेह में हम
100 परसेन्ट हैं, वह हाथ उठाओ। स्नेह में 100 परसेन्ट। थोड़ा भी कम नहीं? अच्छा। तो
इतना ही स्नेह आपस में ब्राह्मणों में है? इसमें हाथ उठवायें? इसमें परसेन्टेज है।
जैसे बाप का सभी से स्नेह है, ऐसे ही बच्चों का भी सर्व से स्नेह, सर्व के स्नेही।
दूसरे की कमजोरी को देखो नहीं। अगर कोई संस्कार के वशीभूत है, तो फालो किसको करना
है? वशीभूत वाले को? आप वशीकरण मंत्र देने वाले हो, वशीभूत से छुड़ाने वाला मंत्र,
छुड़ाने वाले हो ना! या देखने वाले हो? कि दिखाई दे देता है? अगर कोई खराब चीज़
दिखाई भी देती है, तो क्या करते हैं? देखते रहते हैं या किनारा कर लेते हैं? क्योंकि
बापदादा ने देखा कि जो दिल के स्नेही हैं, बाप के दिल के स्नेही, सर्व के स्नेही
अवश्य होंगे। दिल का स्नेह बहुत सहज विधि है सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने की। चाहे कोई
कितना भी ज्ञानी हो, लेकिन अगर दिल का स्नेह नहीं है तो ब्राह्मण जीवन में रमणीक
जीवन नहीं होगी। रूखी जीवन होगी क्योंकि ज्ञान में, स्नेह बिना अगर ज्ञान है तो
ज्ञान में प्रश्न उठते हैं क्यों, क्या! लेकिन स्नेह ज्ञान सहित है तो स्नेही सदा
स्नेह में लवलीन रहते हैं। स्नेही को याद करने की मेहनत करनी नहीं पड़ती। सिर्फ
ज्ञानी है, स्नेह नहीं है तो मेहनत करनी पड़ती है। वह मेहनत का फल खाता, वह मुहब्बत
का फल खाता। ज्ञान है बीज लेकिन पानी है स्नेह। अगर बीज को स्नेह का पानी नहीं मिलता
तो फल नहीं निकलता है।
तो आज बापदादा सर्व
बच्चों के दिल का स्नेह चेक कर रहे थे। चाहे बाप से, चाहे सर्व से। तो आप सभी अपने
को क्या समझते हैं? स्नेही हैं? हैं स्नेही? जो समझते हैं दिल के स्नेही हैं, वह
हाथ उठाओ। (मैजारिटी सभी ने हाथ उठाया) अच्छा-सर्व के स्नेही। बाप के तो दिल के
स्नेही हैं, सर्व के स्नेही हो? सर्व के? हर एक समझता है - यह मेरा भाई-बहन है? हर
एक समझता है यह मेरा है? समझता है? कि कोई-कोई समझता है? जैसे बाप के स्नेह में सभी
हाथ उठाते हैं, हाँ बाप के स्नेही हैं, ऐसे आप हर एक के लिए हाथ उठायेंगे, कि हाँ
यह सर्व के स्नेही हैं? यह सर्टीफिकेट मिलेगा? क्योंकि बापदादा ने पहले भी कहा था
कि सिर्फ बाप से सर्टीफिकेट नहीं लेना है, ब्राह्मण परिवार से भी लेना है क्योंकि
इस समय बाप धर्म और राज्य दोनों साथ-साथ स्थापन कर रहे हैं। राज्य में सिर्फ बाप नहीं
होंगे, परिवार भी होगा। बाप के भी प्यारे, परिवार के भी प्यारे।
ज्ञानी बने हो लेकिन
साथ में स्नेही बनना भी जरूरी है। स्वमान में रहना और सम्मान देना, यह दोनों जरूरी
हैं। बाप ने ब्राह्मण जन्म लेते ही हर एक बच्चे को सम्मान दिया, तब तो ऊंचे बनें।
इस एक जन्म में सम्मान देना है और सारा कल्प उसकी प्रालब्ध सम्मान प्राप्त होता है।
आधाकल्प राज्य अधिकारी का सम्मान मिलता है, आधाकल्प भक्ति में भक्तों द्वारा सम्मान
मिलता है। लेकिन इसका, सारे कल्प का आधार है इस एक जन्म में सम्मान देना, सम्मान
लेना।
अभी-अभी बापदादा देख
रहे हैं चारों ओर विदेश में कोई रात में, कोई दिन में मिलन मना रहे हैं। अच्छी
पुरुषार्थ की गति को बढ़ाने के लिए आपको दादी भी (जानकी दादी) अच्छी मिली है। है ना
ऐसे? जरा सी कोई कमी देखती है, फौरन क्लास पर क्लास कराती है। किसी भी बच्चे को,
चाहे देश वाले चाहे विदेश वालों को, किसी भी सबजेक्ट में मेहनत लगती है तो उसका मूल
कारण है - दिल के स्नेह की कमी। स्नेह माना लवलीन। याद करना नहीं पड़ता, याद भुलाना
मुश्किल होता। अगर मेहनत करनी पड़ती है तो दिल के स्नेह को चेक करो - कहाँ लीकेज तो
नहीं है? चाहे लगाव कोई व्यक्ति से, चाहे व्यक्ति की विशेषता से, चाहे कोई साधन से,
सैलवेशन से, एकस्ट्रा सैलवेशन, कायदे प्रमाण सैलवेशन ठीक है, लेकिन एक्स्ट्रा
सैलवेशन से भी प्यार होता है, लगाव होता है। वह सैलवेशन याद आती रहेगी। उसकी निशानी
है - कहाँ भी लीकेज होगी तो सदा जीवन में किसी भी कारण से सन्तुष्टता की अनुभूति नहीं
होगी। कोई न कोई कारण असन्तुष्टता का अनुभव करायेंगे। और सन्तुष्टता जहाँ होगी उसकी
निशानी सदा प्रसन्नता होगी। सदा रूहानी गुलाब के मुआफिक मुस्कराता रहेगा, खिला हुआ
रहेगा। मूड आफ नहीं होगी, सदा डबल लाइट। तो समझा मेहनत से अभी बच जाओ। बापदादा को
बच्चों की मेहनत नहीं अच्छी लगती। आधाकल्प मेहनत की है, अभी मौज करो। मुहब्बत में
लवलीन हो, अनुभव के मोती ज्ञान सागर के तले में अनुभव करो। सिर्फ डुबकी लगाकर सागर
से निकल नहीं आओ, लवलीन रहो।
सभी ने वायदा तो किया
है ना! कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे? वायदा किया है? साथ चलेंगे या पीछे-पीछे आयेंगे?
जो साथ चलने के लिए तैयार हैं वह हाथ उठाओ। तैयार हैं, सोचकर उठाओ, तैयार हैं
अर्थात् बाप समान हैं। कौन साथ चलेगा? समान साथ चलेगा ना! तो चलेंगे? एवररेडी? पहली
लाइन एवररेडी? कल चलने के लिए आर्डर करें, चलेंगे? अच्छा प्रवृत्ति वाले चलेंगे?
बच्चे नहीं याद आयेंगे? मातायें चलेंगी? मातायें तैयार हैं? कोई भी चीज़ याद नहीं
आयेगी? टीचर्स को सेन्टर याद आयेगा, जिज्ञासु याद आयेंगे? नहीं याद आयेंगे? अच्छा।
सभी निर्मोही हो गये हो? फिर तो बहुत अच्छी बात है। फिर तो मेहनत नहीं करनी पड़ेगी
ना।
आज बापदादा सभी को
चाहे सम्मुख बैठे हैं, चाहे दूर बैठे भी बाप के दिल में बैठे हैं, सभी को आज का दिन
मेहनत मुक्त बनाने चाहते हैं। बनेंगे? ताली तो बजा दी, बनेंगे? कल से कोई दादियों
के पास नहीं आयेगा। मेहनत नहीं करायेंगे? मौज से मिलेंगे। ज़ोन हेड के पास नहीं
जायेंगे, कम्पलेन नहीं करेंगे, कम्पलीट। ठीक है? अभी हाथ उठाओ। देखो सोच के हाथ
उठाना, ऐसे नहीं उठा लेना। कोई कम्पलेन नहीं, कोई मेरा-मेरा नहीं, कोई मेरा नहीं।
मैं भी नहीं, मेरा भी नहीं, खत्म। देखो वायदा तो किया है, अच्छा है मुबारक हो लेकिन
क्या है, वायदे का फायदा नहीं उठाते हो। वायदा बहुत जल्दी कर लेते हो लेकिन फायदा
उठाने के लिए रोज़ एक तो रियलाइजेशन दूसरा रिवाइज करो, वायदे को रोज़ रिवाइज करो
क्या वायदा किया? अमृतवेले मिलने के बाद वायदा और फायदा दोनों के बैलेन्स का चार्ट
बनाओ। वायदा क्या किया? और फायदा क्या उठा रहे हैं? रियलाइज़ करो, रिवाइज करो,
बैलेन्स हो जायेगा तो ठीक हो जायेगा। बापदादा को पता है मीटिंग वालों ने वायदा किया
है।
बापदादा ने देखा है
प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हैं, बापदादा को पसन्द हैं। बापदादा क्या चाहते हैं?
बापदादा सिर्फ एक शब्द चाहता है - एक शब्द है - सफल करो, सफल बनो। जो भी खजाने हैं,
शक्तियां हैं, संकल्प हैं, बोल हैं, कर्म भी शक्ति है, यह समय भी शक्ति है, खजाना
है। सबको सफल करना है। चाहे स्थूल धन, चाहे अलौकिक खजाने, सबको सफल करना है।
सफलतामूर्त का सर्टीफिकेट लेना ही है। सफल करो और सफल कराओ। अगर कोई असफल करता है,
तो बोल द्वारा शिक्षा द्वारा नहीं, अपने शुभ भावना, शुभ कामना और सदा शुभ सम्मान
देने द्वारा सफल कराओ। सिर्फ शिक्षा नहीं दो, अगर शिक्षा देनी भी पड़ती है तो क्षमा
और शिक्षा, क्षमा रूप बनकर शिक्षा दो। मर्सीफुल बनो, रहमदिल बनो। आपका मर्सीफुल रूप
अवश्य शिक्षा का फल दिखायेगा। देखो, आजकल साइंस वाले डॉक्टर्स भी जब आपरेशन करते
हैं, तो पहले क्या करते हैं? पहले सुला देते हैं, पीछे काटते हैं, पहले ही नहीं
काटते हैं। टिंचर भी लगाते हैं तो पहले फूंक देते हैं फिर टिंचर लगाते हैं। तो आप
भी पहले मर्सीफुल बनो फिर शिक्षा दो तो प्रभाव डालेगी, नहीं तो क्या होता है, आप
शिक्षा देने लगते हो, वह पहले ही आपसे ज्यादा शिक्षक है। तो शिक्षक, शिक्षक की
शिक्षा नहीं मानता। जो प्वाइंट आप देंगे, ऐसे नहीं करो, ऐसे करो, उसके पास कट करने
की 10 प्वाइंट होंगी, इसीलिए क्षमा और शिक्षा साथ-साथ हो, तो इस 70 वें वर्ष का थीम
है - सफल करो, सफल कराओ। सफलता मूर्त बनो सब सफल करो। डबल लाइट बनना है ना तो सफल
कर लो। संस्कार को भी सफल करो। जो ओरीज्नल आपके आदि संस्कार, देवताई संस्कार, अनादि
संस्कार आत्मा के हैं उसको इमर्ज करो। उल्टे संस्कारों का संस्कार करो। आदि अनादि
संस्कार इमर्ज करो। अभी सभी की कम्पलेन विशेष एक ही रह गई है, संस्कार नहीं बदलते,
संस्कार नहीं बदलते।
सभी ने मेहनत मुक्त
का वायदा तो किया है ना! (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा - इनका फोटो निकालो। अभी एक मिनट
के लिए अपने दिल से इस वायदे को दृढ़ता का अण्डरलाइन लगाओ। अपने मन में पक्का करो।
(ड्रिल) अच्छा।
सर्व चारों ओर के
स्वमानधारी बच्चों को, सदा बाप के दिल के स्नेही, सर्व के स्नेही श्रेष्ठ आत्माओं
को, सदा मेहनत मुक्त, जीवनमुक्त अनुभव करने वाले तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को, सदा
वायदा और वायदे का फायदा लेने वाले, बैलेन्स रखने वाले ब्लिसफुल बच्चों को, सदा मौज
में रहने वाले, मौज में औरों को भी रहाने वाले, ऐसे संगमयुगी श्रेष्ठ भाग्य के
अधिकारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दिलाराम के दिल की दुआयें स्वीकार हों।
यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:-
ठीक है ना! सभी आप लोगों को देखकर खुश होते हैं। बाप और बच्चों, दोनों को देखकर खुश
होते हैं। दोनों समान। सभी के सिकीलधे हो। सभी का दादियों से विशेष प्यार है ना!
बहुत प्यार है क्योंकि जो निमित्त बनते हैं, तो निमित्त बनने वालों के ऊपर
जिम्मेवारी भी होती है, तो स्नेह भी इतना होता है क्योंकि सबके प्यार और दुआओं की
उनके जीवन में लिफ्ट मिल जाती है। आप भी जो निमित्त बनते हो उन्हों को भी लिफ्ट
मिलती है लेकिन लिफ्ट की गिफ्ट को कायम रखें तो बहुत फायदा हो सकता है। यह एक्स्ट्रा
वरदान मिलता है। किसी भी कार्य में, ईश्वरीय कार्य में वा यज्ञ सेवा में जो विशेष
निमित्त बनता है उसको दुआयें और प्यार दोनों की लिफ्ट मिलती है। प्यार एक ऐसी चीज़
है जो क्या से क्या बना देती है। आज दुनिया में भी किसी से पूछो क्या चाहिए? कहेंगे
प्यार चाहिए। शान्ति चाहिए, वह भी प्यार से मिलेगी। तो प्यार, आत्मिक प्यार सबसे
श्रेष्ठ है। अच्छा।
वरदान:-
कम्बाइन्ड
स्वरूप की स्मृति द्वारा अभुल बनने वाले निरन्तर योगी भव
जो बच्चे स्वयं को
बाप के साथ कम्बाइन्ड अनुभव करते हैं उन्हें निरन्तर योगी भव का वरदान स्वत: मिल
जाता है क्योंकि वो जहाँ भी रहते हैं मिलन मेला होता रहता है। उन्हें कोई कितना भी
भुलाने की कोशिश करे - लेकिन वे अभुल होते हैं। ऐसे अभुल बच्चे जो बाप को अति प्यारे
हैं वही निरन्तर योगी हैं क्योंकि प्यार की निशानी है - स्वत: याद। उनके संकल्प रूपी
नाखून को भी माया हिला नहीं सकती।
स्लोगन:-
कारण सुनाने के बजाए उसका निवारण करो तो दुआओं के अधिकारी बन जायेंगे।
अव्यक्त इशारे-आत्मिक
स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो
अन्तर्मुखी बन ज्ञान
मनन के अभ्यास द्वारा अलौकिक मस्ती में सदा मस्त रहो तो इस दुनिया की उलझनें अपनी
ओर आकर्षित नहीं करेंगी। जैसे मिलेट्री वाले अन्डरग्राउण्ड चले जाते हैं तो बाहर के
बाम्ब्स आदि का असर नहीं होता है, ऐसे आप अन्तर्मुखी, अण्डरग्राउण्ड आत्मिक स्थिति
में रहने का अभ्यास करो तो बाहरमुखता की बातें डिस्टर्ब नहीं करेगी।