10-08-2025     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 31.10.2006 "बापदादा"    मधुबन


“सदा स्नेही के साथ अखण्ड महादानी बनो तो विघ्न-विनाशक, समाधान स्वरूप बन जायेंगे''


आज प्रेम के सागर अपने परमात्म प्रेम के पात्र बच्चों से मिलने आये हैं। आप सब भी स्नेह के अलौकिक विमान से यहाँ पहुंच गये हो ना! साधारण प्लेन में आये हो वा स्नेह के प्लेन में उड़कर पहुंच गये हो? सभी के दिल में स्नेह की लहरें लहरा रही हैं और स्नेह ही इस ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन है। तो आप सभी भी जब आये तो स्नेह ने खींचा ना! ज्ञान तो पीछे सुना, लेकिन स्नेह ने परमात्म स्नेही बना दिया। कभी स्वप्न में भी नहीं होगा कि हम परमात्म स्नेह के पात्र बनेंगे। लेकिन अब क्या कहते हो? बन गये। स्नेह भी साधारण स्नेह नहीं है, दिल का स्नेह है। आत्मिक स्नेह है, सच्चा स्नेह है, नि:स्वार्थ स्नेह है। यह परमात्म स्नेह बहुत सहज याद का अनुभव कराता है। स्नेही को याद करना मुश्किल नहीं, भूलना मुश्किल होता है। स्नेह एक अलौकिक चुम्बक है। स्नेह सहज योगी बना देता है, मेहनत से छुड़ा देता है। स्नेह से याद करने में मेहनत नहीं लगती। मुहब्बत का फल खाते हैं। स्नेह की निशानी विशेष चारों ओर के बच्चे तो हैं ही लेकिन डबल विदेशी स्नेह में दौड़-दौड़ कर पहुंच गये हैं। देखो, 90 देशों से कैसे भागकर पहुंच गये हैं! देश के बच्चे तो हैं ही प्रभु प्रेम के पात्र, लेकिन आज विशेष डबल विदेशियों को गोल्डन चांस है। आप सबका भी विशेष प्यार है ना! स्नेह है ना! कितना स्नेह है? किसी से तुलना कर सकते हो? कोई तुलना नहीं हो सकती। आप सबका एक गीत है ना - न आसमान में इतने तारे हैं, ना सागर में इतना जल है..., बेहद का प्यार, बेहद का स्नेह है।

बापदादा भी स्नेही बच्चों से मिलने पहुंच गये हैं। आप सब बच्चों ने स्नेह से याद किया और बापदादा आपके प्यार में पहुंच गये हैं। जैसे इस समय हर एक के चेहरे पर स्नेह की रेखा चमक रही है। ऐसे ही अब एडीशन क्या करना है? स्नेह तो है, यह तो पक्का है। बापदादा भी सर्टीफिकेट देते हैं कि स्नेह है। अभी क्या करना है? समझ तो गये हो। अभी सिर्फ अण्डरलाइन करना है - सदा स्नेही रहना है, सदा। समटाइम नहीं। स्नेह है अटूट लेकिन परसेन्टेज़ में अन्तर पड़ जाता है। तो अन्तर मिटाने के लिए क्या मंत्र है? हर समय महादानी, अखण्डदानी बनो। सदा दाता के बच्चे विश्व सेवाधारी समान। कोई भी समय मास्टर दाता बनने के बिना नहीं रहे क्योंकि विश्व कल्याण के कार्य प्रति बाप के साथ-साथ आपने भी मददगार बनने का संकल्प किया है। चाहे मन्सा द्वारा शक्तियों का दान वा सहयोग दो। वाचा द्वारा ज्ञान का दान दो, सहयोग दो। कर्म द्वारा गुणों का दान दो और स्नेह सम्पर्क द्वारा खुशी का दान दो। कितने अखण्ड खजानों के मालिक, रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो। अखुट और अखण्ड खजाने हैं। जितने देंगे उतने बढ़ते जाते हैं। कम नहीं होंगे, बढ़ेंगे क्योंकि वर्तमान समय इन खजानों के मैजॉरिटी आप सबके आत्मिक भाई और बहनें प्यासी हैं। तो क्या अपने भाई बहिनों के ऊपर तरस नहीं पड़ता! क्या प्यासी आत्माओं की प्यास नहीं बुझायेंगे? कानों में आवाज नहीं आता “हे हमारे देव देवियां हमें शक्ति दो, सच्चा प्यार दो''। आपके भक्त और दु:खी आत्मायें दोनों ही - दया करो, कृपा करो, हे कृपा के देव और देवियां कहकर चिल्ला रहे हैं। समय की पुकार सुनाई देती है ना! और समय भी देने का अब है। फिर कब देंगे? इतना अखुट अखण्ड खजाने जो आपके पास जमा हैं, तो कब देंगे? क्या लास्ट टाइम, अन्तिम समय देंगे? उस समय सिर्फ अंचली दे सकेंगे। तो अपने जमा हुए खजाने कब कार्य में लगायेंगे? चेक करो हर समय कोई न कोई खजाना सफल कर रहे हैं! इसमें डबल फायदा है, खजाने को सफल करने से आत्माओं का कल्याण भी होगा और साथ में आप सब भी महादानी बनने के कारण विघ्न-विनाशक, समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप सहज बन जायेंगे। डबल फायदा है। आज यह आया, कल यह आया, आज यह हो गया, कल वह हो गया। विघ्न-मुक्त, समस्या मुक्त सदा के लिए बन जायेंगे। जो समस्या के पीछे समय देते हो, मेहनत भी करते हो, कभी उदास बन जाते, कभी उल्हास में आ जाते, उससे बच जायेंगे क्योंकि बापदादा को भी बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती। जब बापदादा देखते हैं, बच्चे मेहनत में हैं, तो बच्चों की मेहनत बाप से देखी नहीं जाती। तो मेहनत मुक्त। पुरुषार्थ करना है लेकिन कौन सा पुरुषार्थ? क्या अभी तक अपनी छोटी-छोटी समस्याओं में पुरुषार्थी रहेंगे! अब पुरुषार्थ करो अखण्ड महा-दानी, अखण्ड सहयोगी। ब्राह्मणों में सहयोगी बनो और दु:खी आत्मायें, प्यासी आत्माओं के लिए महादानी बनो। अब इस पुरुषार्थ की आवश्यकता है। पसन्द है ना! पसन्द है? पीछे वाले पसन्द है! तो अभी कुछ चेंज भी करना चाहिए ना, वही स्व प्रति पुरुषार्थ बहुत टाइम किया। कैसे पाण्डव! पसन्द है? तो कल से क्या करेंगे? कल से ही शुरू करेंगे या अब से? अब से संकल्प करो - मेरा समय, संकल्प विश्व की सेवा प्रति है। इसमें स्व का ऑटोमेटिक हो ही जायेगा, रहेगा नहीं, बढ़ेगा। क्यों? किसी को भी आप उसकी आशायें पूरी करेंगे, दु:ख के बजाए सुख देंगे, निर्बल आत्माओं को शक्ति देंगे, गुण देंगे, तो वह कितनी दुआयें देंगे। और सबसे दुआयें लेना यही आगे बढ़ने का सबसे सहज साधन है। चाहे भाषण नहीं करो, प्रोग्राम ज्यादा नहीं कर सकते हो, कोई हर्जा नहीं, कर सकते हो तो और ही करो। लेकिन नहीं भी कर सकते हो तो कोई हर्जा नहीं, खजानों को सफल करो। सुनाया ना - मन्सा से शक्तियों का खजाना देते जाओ। वाणी से ज्ञान का खजाना, कर्म से गुणों का खजाना और बुद्धि से समय का खजाना, सम्बन्ध-सम्पर्क से खुशी का खजाना सफल करो। तो सफल करने से सहज सफलता मूर्त बन ही जायेंगे। सहज उड़ते रहेंगे क्योंकि दुआयें एक लिफ्ट का काम करती हैं, सीढ़ी का नहीं। समस्या आई, मिटाया, कभी दो दिन लगाया, कभी दो घण्टा लगाया, यह सीढ़ी चढ़ना है। सफल करो, सफलता मूर्त बनो, तो दुआओं की लिफ्ट से जहाँ चाहो वहाँ सेकण्ड में पहुंच जायेंगे। चाहे सूक्ष्मवतन में पहुंचो, चाहे परमधाम में पहुंचो, चाहे अपने राज्य में पहुंचो, सेकण्ड में। लण्डन में प्रोग्राम किया था ना वन मिनट। बापदादा तो कहते हैं वन सेकण्ड। वन सेकण्ड में दुआओं की लिफ्ट में चढ़ जाओ। सिर्फ स्मृति का स्वीच दबाओ बस, मेहनत मुक्त।

आज डबल विदेशियों का दिन है ना तो बापदादा पहले डबल विदेशियों को किस स्वरूप में देखने चाहते हैं? मेहनत मुक्त, सफलता मूर्त, दुआओं के पात्र। बनेंगे ना? क्योंकि डबल विदेशियों का बाप से प्यार अच्छा है, शक्ति चाहिए लेकिन प्यार अच्छा है। कमाल तो की है ना? देखो 90 देशों से अलग-अलग देश, अलग-अलग रसम-रिवाज लेकिन 5 ही खण्डों के एक चन्दन के वृक्ष बन गये हैं। एक वृक्ष में आ गये हैं। एक ही ब्राह्मण कल्चर हो गया, अभी इंगलिश कल्चर है क्या? हमारा कल्चर इंगलिश है... नहीं ना! ब्राह्मण है ना? जो समझते हैं अभी तो हमारा ब्राह्मण कल्चर है वह हाथ उठाओ। ब्राह्मण कल्चर और एडीशन नहीं। एक हो गये ना! बापदादा इसकी मुबारक दे रहे हैं कि सभी एक वृक्ष के बन गये। कितना अच्छा लगता है! किसी से भी पूछो, अमेरिका से पूछो, यूरोप से पूछो, आप कौन हो? तो क्या कहेंगे? ब्राह्मण हैं ना! या कहेंगे यू.के. के हैं, अफ्रीकन हैं, अमेरिकन हैं नहीं, सब एक ब्राह्मण हो गये, एक मत हो गये, एक स्वरूप के हो गये। ब्राह्मण और एक मत श्रीमत। इसमें मज़ा आता है ना! मज़ा है या मुश्किल है? मुश्किल तो नहीं है ना! कांध हिला रहे हैं, अच्छा है।

बापदादा सेवा में नवीनता क्या चाहता है? जो भी सेवा कर रहे हो - बहुत-बहुत-बहुत अच्छी कर रहे हो, उसकी तो मुबारक है ही। लेकिन आगे एडीशन क्या करना है? आप लोगों के मन में है ना कोई नवीनता चाहिए। तो बापदादा ने देखा, जो भी प्रोग्राम किये हैं, समय भी दिया है, और मुहब्बत से ही किया है, मेहनत भी मुहब्बत से की है और अगर स्थूल धन भी लगाया है तो वह तो पदमगुणा होके आपके परमात्म बैंक में जमा हो गया है। वह लगाया क्या, जमा किया है। रिजल्ट में देखा गया कि सन्देश पहुंचाने का कार्य, परिचय देने का कार्य सभी ने बहुत अच्छा किया है। चाहे कहाँ भी किया, अभी दिल्ली में हो रहा है, लण्डन में हुआ और डबल फारेनर्स जो कॉल ऑफ टाइम वा पीस ऑफ माइण्ड का प्रोग्राम करते हैं, वह सब प्रोग्राम बापदादा को बहुत अच्छे लगते हैं। और जो भी काम कर सको करते रहो। सन्देश तो मिलता है, स्नेही भी बनते हैं, सहयोगी भी बनते हैं, सम्बन्ध में भी कोई-कोई आ जाते हैं लेकिन अभी एडीशन चाहिए - जब भी कोई बड़ा प्रोग्राम करते हो उसमें सन्देश तो मिलता है, लेकिन कुछ अनुभव करके जायें, वह अनुभव बहुत जल्दी आगे बढ़ाता है। जैसे यह कॉल ऑफ टाइम में या पीस ऑफ माइन्ड में अनुभव थोड़ा ज्यादा करते हैं। लेकिन जो बड़े प्रोग्राम होते हैं उसमें सन्देश तो अच्छा मिल जाता है, लेकिन जो भी आवे उसकी पीठ करके अनुभव कराने का लक्ष्य रखो, कुछ न कुछ अनुभव करे, क्योंकि अनुभव कभी भूलता नहीं है और अनुभव ऐसी चीज़ है जो न चाहते हुए भी उस तरफ खीचेंगे। तो बापदादा पूछते हैं - पहले जो सभी ब्राह्मण हैं, वह ज्ञान की जो भी प्वाइंटस हैं, उनके स्वयं अनुभवी बने हो? हर शक्ति का अनुभव किया है, हर गुण का अनुभव किया है? आत्मिक स्थिति का अनुभव किया है? परमात्म प्यार का अनुभव किया है? ज्ञान समझना इसमें तो पास हो, नॉलेजफुल तो बन गये हो, इसमें तो बापदादा भी रिमार्क्स देते हैं, ठीक है। आत्मा क्या, परमात्मा क्या, ड्रामा क्या, ज्ञान तो समझ लिया है, लेकिन जब चाहे जितना समय चाहे, जिस भी परिस्थिति में हो, उस परिस्थिति में आत्मिक बल का अनुभव हो, परमात्म शक्ति का अनुभव हो, वह होता है? जिस समय, जितना समय, जैसे अनुभव करने चाहो वैसे होता है? कि कभी कैसे, कभी कैसे? सोचो आत्मा हूँ, और फिर बार-बार देहभान आ जाए, तो अनुभव क्या काम में आया? अनुभवी मूर्त हर सब्जेक्ट के अनुभवी मूर्त, हर शक्तियों के अनुभवी मूर्त। तो स्वयं में भी अनुभव को और बढ़ाओ। है, ऐसे नहीं कि नहीं है, लेकिन कभी-कभी है, समटाइम। तो बापदादा समटाइम नहीं चाहते हैं, समथिंग हो जाता है, तो समटाइम भी हो जाता है क्योंकि आप सबका लक्ष्य है, पूछते हैं क्या बनने का लक्ष्य है? तो कहते हो बाप समान। एक ही जवाब सभी देते हो। तो बाप समान, अब बाप तो समटाइम और समथिंग नहीं था, ब्रह्मा बाप सदा राज़युक्त, योगयुक्त, हर शक्ति में सदा, कभी-कभी नहीं। अनुभव जो होता है, वह सदाकाल चलता है, वह सम टाइम नहीं होता है। तो स्वयं अनुभवी मूर्त बन हर बात में, हर सबजेक्ट में अनुभवी, ज्ञान स्वरूप में अनुभवी, योगयुक्त में अनुभवी, धारणा स्वरूप में अनुभवी। आलराउण्ड सेवा मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें अनुभवी, तब कहेंगे पास विद आनर। तो क्या बनने चाहते हो? पास होने चाहते हो या पास विद ऑनर बनने चाहते हो? पास करने वाले तो पीछे भी आयेंगे, आप तो टूलेट से पहले आ गये हो, चाहे अभी नये भी आये हैं लेकिन टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है। लेट का लगा है, टूलेट का नहीं लगा है। इसीलिए चाहे कोई नये भी हैं लेकिन अभी भी तीव्र पुरुषार्थ करे, पुरुषार्थ नहीं तीव्र, तो आगे जा सकता है क्योंकि नम्बर आउट नहीं हुआ है। सिर्फ दो नम्बर आउट हुए हैं, बाप और माँ। अभी कोई भी भाई बहन का तीसरा नम्बर आउट नहीं हुआ है। भले आप कहेंगे दादियों से बहुत प्यार है, बाप का भी दादियों से प्यार है, लेकिन नम्बर आउट नहीं हुआ है। इसीलिए आप बहुत-बहुत सिकीलधे, लाडले भाग्यवान हो, जितना उड़ने चाहो उड़ो क्योंकि देखो जो छोटे बच्चे होते हैं ना उसको बाप अपनी अंगुली देके चलाता है, एकस्ट्रा प्यार करता है, और बड़े को अंगुली से नहीं चलाता है, वह अपने पांव से चलता है। तो नया भी कोई मेकप कर सकता है। गोल्डन चांस है। लेकिन जल्दी में जल्दी टूलेट का बोर्ड लगना है, इसलिए पहले ही कर लो। नये जो पहली बार आये हैं, वह हाथ उठाओ। अच्छा। मुबारक हो। पहले बारी अपने घर मधुबन में पहुंच गये हो, इसलिए बापदादा और सारा परिवार चाहे देश वाले, चाहे विदेश वाले सबकी तरफ से पदम-पदमगुणा मुबारक हो। अच्छा - अभी सेकण्ड में जिस स्थिति में बापदादा डायरेक्शन दे उसी स्थिति में सेकण्ड में पहुंच सकते हो! कि पुरुषार्थ में समय चला जायेगा? अभी प्रैक्टिस चाहिए सेकण्ड की क्योंकि आगे जो फाइनल समय आने वाला है, जिसमें पास विद ऑनर का सर्टीफिकेट मिलना है, उसका अभ्यास अभी से करना है। सेकण्ड में जहाँ चाहे, जो स्थिति चाहिए उस स्थिति में स्थित हो जाएं। तो एवररेडी। रेडी हो गये।

अभी पहले एक सेकण्ड में पुरुषोत्तम संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण हूँ, इस स्थिति में स्थित हो जाओ.... अभी मैं फरिश्ता रूप हूँ, डबल लाइट हूँ..., अभी विश्व कल्याणकारी बन मन्सा द्वारा चारों ओर शक्ति की किरणें देने का अनुभव करो। ऐसे सारे दिन में सेकण्ड में स्थित हो सकते हैं! इसका अनुभव करते रहो क्योंकि अचानक कुछ भी होना है। ज्यादा समय नहीं मिलेगा। हलचल में सेकण्ड में अचल बन सकें इसका अभ्यास स्वयं ही अपना समय निकाल बीच-बीच में करते रहो। इससे मन का कन्ट्रोल सहज हो जायेगा। कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर बढ़ती जायेगी। अच्छा!

चारों ओर के बच्चों के पत्र भी बहुत आये हैं, अनुभव भी बहुत आये हैं, तो बापदादा बच्चों को रिटर्न में बहुत-बहुत दिल की दुआयें और दिल का याद प्यार पदम-पदमगुणा दे रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं - चारों ओर के बच्चे सुन भी रहे हैं, देख भी रहे हैं। जो नहीं भी देख रहे हैं, वह भी याद में तो हैं। सबकी बुद्धि इस समय मधुबन में ही है। तो चारों ओर के हर एक बच्चे को नाम सहित यादप्यार स्वीकार हो।

सभी सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा ऊंची स्थिति में उड़ते रहने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्नेह में लवलीन रहने वाले समाये हुए बच्चों को, सदा मेहनत मुक्त, समस्या मुक्त, विघ्न-मुक्त, योगयुक्त, राज़युक्त बच्चों को, सदा हर परिस्थिति में सेकण्ड में पास होने वाले, हर समय सर्व शक्ति स्वरूप रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:-
गोल्डन एजेड स्वभाव द्वारा गोल्डन एजेड सेवा करने वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी भव

जिन बच्चों के स्वभाव में ईर्ष्या, सिद्ध और जिद के भाव की अथवा किसी भी पुराने संस्कार की अलाए मिक्स नहीं है वे हैं गोल्डन एजेड स्वभाव वाले। ऐसा गोल्डन एजेड स्वभाव और सदा हाँ जी का संस्कार बनाने वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी बच्चे जैसा समय, जैसी सेवा वैसे स्वयं को मोल्ड कर रीयल गोल्ड बन जाते हैं। सेवा में भी अभिमान वा अपमान की अलाए मिक्स न हो तब कहेंगे गोल्डन एजेड सेवा करने वाले।

स्लोगन:-
क्यों क्या के प्रश्नों को समाप्त कर सदा प्रसन्नचित रहो।

अव्यक्त इशारे - सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो

लवलीन स्थिति वाली समान आत्मायें सदा के योगी हैं। योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन। अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे! स्वत: याद है ही। जहाँ साथ होता है तो याद स्वत: रहती है। तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है, समाये हुए रहने की है।