ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप समझाते हैं - ज्ञानी और अज्ञानी किस-किस को कहा
जाता है, यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो। ज्ञान है पढ़ाई जिससे तुम जान गये हो
कि हम आत्मा हैं, वह परमपिता परमात्मा है। तुम जब वहाँ से मधुबन आते हो तो पहले
जरूर अपने को आत्मा समझते हो। हम जाते हैं अपने बाप के पास। बाबा, शिवबाबा को कहते
हैं, शिवबाबा है प्रजापिता ब्रह्मा के तन में। वह भी बाबा हो गया। तुम घर से निकलते
हो तो समझते हो हम बापदादा के पास जाते हैं। तुम चिट्ठी में भी लिखते हो “बापदादा''
शिवबाबा, ब्रह्मा दादा। हम बाबा के पास जाते हैं। बाबा कल्प-कल्प हमसे मिलते हैं।
बाबा हमको बेहद का वर्सा देते हैं, बेहद पवित्र बनाए। पवित्रता में हद और बेहद है।
तुम पुरुषार्थ करते हो बेहद पवित्र सतोप्रधान बनने के लिए। नम्बरवार तो होते ही
हैं। बेहद पवित्र अर्थात् सिवाए एक बेहद के बाप के और कोई की याद न आये। वह बाबा
बहुत मीठा है। ऊंच ते ऊंच भगवान है और बेहद का बाप है। सभी का बाप है। तुम बच्चों
ने ही पहचाना है। बेहद का बाप सदैव भारत में ही आते हैं। आकर बेहद का संन्यास कराते
हैं। संन्यास भी मुख्य है ना, जिसको वैराग्य कहा जाता है। बाप सारी पुरानी छी-छी
दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं। बच्चे इनसे बुद्धि का योग हटा दो। इनका नाम ही है
नर्क, दु:खधाम। खुद भी कहते रहते हैं, कोई मरते हैं तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ, तो
नर्क में था ना। अभी तुम समझते हो यह जो कहते हैं वह भी रांग है। बाप राइट बात बताते
हैं, स्वर्गवासी बनने के लिए। अभी ही पुरुषार्थ करना होता है। स्वर्गवासी बनने लिए
भी सिवाए बाप के और कोई पुरुषार्थ करा न सके। तुम अभी पुरुषार्थ कर रहे हो -
21जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनें। बनाने वाला है बाप। उनको कहा ही जाता है हेविनली
गॉड फादर। खुद आकर कहते हैं बच्चों - हम पहले तुमको शान्तिधाम ले जाऊंगा। मालिक है
ना। शान्तिधाम जाकर फिर आयेंगे सुखधाम में पार्ट बजाने। हम शान्तिधाम जायेंगे तो सब
धर्म वाले शान्तिधाम जायेंगे। बुद्धि में यह सारा ड्रामा का चक्र रखना है। हम सब
जायेंगे शान्तिधाम फिर हम ही पहले आकर बाप से वर्सा पाते हैं। जिससे वर्सा पाना होता
है उनको याद जरूर करना है। बच्चे जानते हैं वर्सा मिल जायेगा तो फिर बाप की याद भूल
जायेगी। वर्सा बहुत सहज रीति मिलता है। बाप सम्मुख कहते हैं - मीठे बच्चों, तुम्हारे
जो भी देह के सम्बन्ध है, सब भूल जाओ। अभी कोई भी नया सम्बन्ध नहीं जोड़ना है। अगर
कोई भी सम्बन्ध जोड़ेंगे तो फिर उनको भूलना पड़ेगा। समझो बच्चा वा बच्ची पैदा हुए
तो वह भी मुसीबत हुई। एक्स्ट्रा याद बढ़ी ना। बाप कहते हैं सबको भूल एक को ही याद
करना है। वही हमारा मात, पिता, टीचर गुरू आदि सब कुछ है, एक बाप के बच्चे हम
भाई-बहन हैं। चाचा-मामा आदि का कोई सम्बन्ध नहीं। यह एक ही समय है जबकि भाई-बहन का
सम्बन्ध ही रहता है। ब्रह्मा के बच्चे शिवबाबा के बच्चे भी हैं तो पोत्रे-पोत्रियां
भी हैं। यह तो पक्का बुद्धि में याद आता है ना। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।
स्वदर्शन चक्रधारी तुम बच्चे चलते-फिरते बनते हो।
तुम बच्चे इस समय चैतन्य लाइट हाउस हो, तुम्हारी एक आंख में मुक्तिधाम, दूसरी
आंख में जीवनमुक्तिधाम है। वह लाइट हाउस जड़ होते, तुम हो चैतन्य। तुम्हें ज्ञान का
नेत्र मिला है। तुम ज्ञानवान बन सबको रास्ता दिखाते हो। बाप भी तुम्हें पढ़ा रहे
हैं। तुम जानते हो - यह दु:खधाम है। हम अभी संगम पर है। बाकी सारी दुनिया कलियुग
में है। संगम पर बाप बच्चों के साथ बैठ बात करते हैं और बच्चे ही यहाँ आते हैं।
कोई-कोई लिखते हैं बाबा फलाने को ले आवें? अच्छा है गुण उठायेगा, शायद तीर लग जाए।
तो बाबा को भी रहम पड़ता है, हो सकता है कल्याण हो जाए। तुम बच्चे जानते हो यह है
पुरुषोत्तम संगमयुग। इस समय ही तुम पुरुषोत्तम बनते हो। कलियुग में सब हैं कनिष्ट
पुरुष, जो उत्तम पुरुष लक्ष्मी-नारायण को नमन करते हैं। सतयुग में कोई भी किसको नमन
नहीं करते हैं। यहाँ की यह सब बातें वहाँ होती नहीं। यह भी बाप समझाते हैं - अच्छी
रीति बाप की याद में रह सर्विस करेंगे तो आगे चल तुमको साक्षात्कार भी होते रहेंगे।
तुम कोई की भी भक्ति आदि नहीं करते हो। तुमको बाप सिर्फ पढ़ाते हैं। घर बैठे आपेही
साक्षात्कार आदि होते रहते हैं। बहुतों को ब्रह्मा का साक्षात्कार होता है, उनके
साक्षात्कार के लिए कोई पुरुषार्थ नहीं करते। बेहद का बाप इन द्वारा साक्षात्कार
कराते हैं। भक्ति मार्ग में जो जिसमें जैसी भावना रखते हैं, उसका साक्षात्कार होता
है। अभी तुम्हारी भावना सबसे ऊंच ते ऊंच बाप में है। तो बिगर मेहनत बाप साक्षात्कार
कराते रहते हैं। शुरू में कितना ध्यान में जाते थे, आपेही आपस में बैठ ध्यान में चले
जाते थे। कोई भक्ति थोड़ेही की। बच्चे कभी भक्ति करते हैं क्या? जैसे एक खेल हो गया
था, चलो बैकुण्ठ चलें। एक-दो को देखते चले जाते थे, जो कुछ भी पास्ट हुआ वह फिर
रिपीट करेंगे। तुम जानते हो हम ही इस धर्म के थे। सतयुग में पहले-पहले यह धर्म है,
इनमें बहुत सुख है। फिर धीरे-धीरे कलायें कम होती जाती हैं। जो सुख नये मकान में
होता है वह पुराने में नहीं। थोड़े समय के बाद वह भभका कम हो जाता है। स्वर्ग और
नर्क में तो बहुत फर्क है ना। कहाँ स्वर्ग, कहाँ यह नर्क! तुम खुशी में रहते हो, यह
भी जानते हो बाप की याद भी पक्की ठहरेगी। हम आत्मा हैं - यही भूल जाते हैं तो फिर
देह-अभिमान में आ जाते हैं। यहाँ बैठे हो तो भी कोशिश करके अपने को आत्मा निश्चय करो।
तो बाप की याद भी रहेगी। देह में आने से फिर देह के सब सम्बन्ध याद आयेंगे। यह एक
लॉ है। तुम गाते भी हो मेरा तो एक दूसरा न कोई। बाबा हम बलिहार जायेंगे। वह अभी समय
है, एक को ही याद करना है। आंखों से भल किसको भी देखो, घूमो फिरो सिर्फ आत्मा को
बाप को याद करना है। शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है। परन्तु हाथों से काम करते,
दिल बाप की याद में रहे, आत्मा को अपने माशूक को ही याद करना है। कोई की किसी सखी
से प्रीत हो जाती है तो फिर उनकी याद ठहर जाती है। फिर वह रग टूटने में बड़ी
मुश्किलात होती है। पूछते हैं बाबा यह क्या है! अरे, तुम नाम-रूप में क्यों फँसते
हो। एक तो तुम देह-अभिमानी बनते हो और दूसरा फिर तुम्हारा कोई पास्ट का हिसाब-किताब
है, वह धोखा देता है। बाप कहते हैं इन आंखों से जो कुछ देखते हो उनमें बुद्धि न जाये।
तुम्हारी बुद्धि में यह रहे कि हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। ऐसे बहुत बच्चे हैं जो यहाँ
बैठे भी बाप को कभी याद नहीं करते। कई तो यहाँ बैठे भी याद में नहीं रह सकते हैं।
तो अपने को देखना चाहिए - हमने कितना शिवबाबा को याद किया? नहीं तो चार्ट में रोला
पड़ जायेगा।
भगवान कहते हैं - मीठे बच्चों, मुझे याद करो। अपने पास नोट करो, जब चाहे याद में
बैठ जाओ। खाना खाकर चक्र लगाए 10-15 मिनट आकर बैठ जाओ याद में क्योंकि यहाँ कोई
गोरखधन्धा तो है नहीं। फिर भी जो काम-काज छोड़कर आये हो वह कोई-कोई की बुद्धि में
आता रहता है। बड़ी जबरदस्त मंजिल है, तब बाबा कहते हैं अपनी जांच करो। यह तुम्हारा
मोस्ट वैल्युबुल टाइम है। भक्ति मार्ग में तुमने कितना टाइम वेस्ट किया है।
दिन-प्रतिदिन गिरते ही रहते हो। श्रीकृष्ण का दीदार हुआ, बहुत खुशी हो जाती है।
मिलता तो कुछ भी नहीं। बाप का वर्सा तो एक ही बार मिलता है, अब बाप कहते हैं मेरी
याद में रहो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप मिट जाएं। स्वर्ग का पासपोर्ट उन्हीं
बच्चों को मिलता है जो याद में रह अपने विकर्मों को विनाश कर कर्मातीत अवस्था को
पाते हैं। नहीं तो बहुत सज़ा खानी पड़ती है। बाबा और भी राय देते हैं अपने ताज व
तख्त का फोटो अपने पॉकेट में रख दो तो याद रहेगी। इनसे हम यह बनते हैं। जितना
देखेंगे उतना याद करेंगे। फिर उसमें ही मोह लग जायेगा। हम यह बन रहे हैं - नर से
नारायण, चित्र देखकर खुशी होगी। शिवबाबा याद आयेगा। यह सब पुरुषार्थ की युक्तियां
हैं। कोई से भी तुम पूछो सत्य नारायण की कथा सुनने से क्या होता है? हमारा बाबा हमको
सत्य नारायण की कथा सुना रहे हैं। कैसे 84 जन्म लिये हैं, वह भी हिसाब तो चाहिए ना।
सब तो 84 जन्म नहीं लेंगे। दुनिया को तो कुछ भी पता नहीं है। ऐसे ही मुख से सिर्फ
कह देते हैं - इसको कहा जाता है थ्योरीटिकल। यह है तुम्हारा प्रैक्टिकल। अभी जो हो
रहा है उनके फिर भक्ति मार्ग में पुस्तक आदि बनेंगे। तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनकर
विष्णुपुरी में आते हो। यह है नई बात। रावण राज्य झूठ खण्ड, फिर सचखण्ड रामराज्य
होगा। चित्रों में बड़ा क्लीयर है। अभी इस पुरानी दुनिया का अन्त है, 5 हज़ार वर्ष
पहले भी विनाश हुआ था। साइंसदान जो भी हैं उन्हों को ख्याल में आता है कि हमको कोई
प्रेरक है, जो हम यह सब करते रहते हैं। समझते भी हैं हम यह करेंगे तो इनसे सब खत्म
हो जायेंगे। परन्तु परवश हैं, डर लगा हुआ है। समझते हैं घर बैठे एक बाम छोड़ेंगे तो
खत्म कर देंगे। एरोप्लैन, पेट्रोल आदि की भी दरकार नहीं रहेगी। विनाश तो जरूर होना
ही है। नई दुनिया सतयुग था, क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले स्वर्ग था फिर अब स्वर्ग
की स्थापना हो रही है। आगे चल समझेंगे - तुम जानते हो स्थापना जरूर होनी है। इसमें
तो पाई का भी संशय नहीं।
यह ड्रामा चलता रहता है कल्प पहले मुआफिक। ड्रामा जरूर पुरुषार्थ करायेगा। ऐसे
भी नहीं, जो ड्रामा में होगा सो होगा.....। पूछते हैं पुरुषार्थ बड़ा या प्रालब्ध
बड़ी? पुरुषार्थ बड़ा क्योंकि पुरुषार्थ की ही प्रालब्ध बनेगी। पुरुषार्थ बिगर कभी
कोई रह न सके। तुम पुरुषार्थ कर रहे हो ना। कहाँ-कहाँ से बच्चे आते हैं, पुरुषार्थ
करते हैं। कहते हैं बाबा हम भूल जाते हैं। अरे, शिवबाबा तुमको कहते हैं मुझे याद करो,
किसको कहा? मुझ आत्मा को कहा। बाप आत्माओं से ही बात करते हैं। शिवबाबा ही
पतित-पावन है, यह आत्मा भी उनसे सुनती है। तुम बच्चों को यह पक्का निश्चय रहना
चाहिए कि बेहद का बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। वह है ऊंच ते ऊंच, प्यारे ते
प्यारा बाप। भक्तिमार्ग में उनको ही याद करते थे, गाते भी हैं तुम्हारी गति-मति
न्यारी। तो जरूर मत दी थी। अब तुम्हारी बुद्धि में है - इतने सब मनुष्य मात्र वापिस
घर जायेंगे। विचार करो कितनी आत्मायें हैं, सबका सिजरा है। सब आत्मायें फिर
नम्बरवार जाकर बैठेंगी। क्लास ट्रांसफर होता है तो नम्बरवार बैठती हैं ना। तुम भी
नम्बरवार जाते हो। छोटी बिन्दी (आत्मा) नम्बरवार जाकर बैठेगी फिर नम्बरवार आयेगी
पार्ट में। यह है रूद्र माला। बाप कहते हैं इतने करोड़ आत्माओं की मेरी माला है।
ऊपर में मैं फूल हूँ फिर पार्ट बजाने के लिए सब यहाँ ही आये हैं। यह ड्रामा बना हुआ
है। कहा भी जाता है बना बनाया ड्रामा है। कैसे यह ड्रामा चलता है सो तुम जानते हो।
सबको यही बताओ कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे
फिर तुम चले जायेंगे। यह मेहनत है। सबको रास्ता बताना है, तुम्हारा फ़र्ज है। तुम
कोई देहधारी में नहीं फँसाते हो। बाप तो कहते हैं मुझे याद करो तो पाप भस्म हो
जायेंगे। बाप डायरेक्शन देते हैं सो तो करना पड़ेगा। पूछने की क्या बात। कैसे भी
करके याद जरूर करो, इसमें बाबा क्या कृपा करेंगे। याद तुमको करना है, वर्सा तुमको
लेना है। बाप स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलेगा। अभी तुम जानते
हो यह झाड़ पुराना हो गया है इसलिए इस पुरानी दुनिया से वैराग्य है। इनको कहा जाता
है बेहद का वैराग्य। वह हठयोगियों का है हद का वैराग्य। वह बेहद का वैराग्य सिखला न
सकें। बेहद के वैराग्य वाले फिर हद का कैसे सिखलायेंगे। अब बाप कहते हैं सिकीलधे
बच्चे, तुम भी कहते हो कितना सिकीलधा बाप है। 63 जन्म बाप को याद किया है, बस हमारा
तो एक बाप दूसरा न कोई। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वर्ग में जाने का पासपोर्ट लेने के लिए बाप की याद से अपने विकर्मों
को विनाश कर कर्मातीत अवस्था बनानी है। सज़ाओं से बचने का पुरुषार्थ करना है।
2) ज्ञानवान बन सबको रास्ता बताना है, चैतन्य लाइट हाउस बनना है। एक आंख में
शान्तिधाम, दूसरी आंख में सुखधाम रहे। इस दु:खधाम को भूल जाना है।