ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे सहज याद में बैठे हैं। कोई-कोई को डिफीकल्ट लगता है। बहुत
मूंझते हैं - हम टाइट अथवा स्ट्रिक होकर बैठें। बाप कहते हैं ऐसी कोई बात नहीं है,
कैसे भी बैठो। बाप को सिर्फ याद करना है। इसमें मुश्किलात की कोई बात नहीं। वह
हठयोगी ऐसे टाइट होकर बैठते हैं। टांग, टांग पर चढ़ाते हैं। यहाँ तो बाप कहते हैं
आराम से बैठो। बाप को और 84 के चक्र को याद करो। यह है ही सहज याद। उठते-बैठते
बुद्धि में रहे। जैसे देखो यह छोटा बच्चा बाप के बाजू में बैठा है, इनको बुद्धि में
माँ-बाप ही याद होंगे। तुम भी बच्चे हो ना। बाप को याद करना तो बहुत सहज है। हम बाबा
के बच्चे हैं। बाबा से ही वर्सा लेना है। शरीर निर्वाह अर्थ गृहस्थ व्यवहार में भल
रहो। सिर्फ औरों की याद बुद्धि से निकाल दो। कोई हनूमान को, कोई किसको, साधू आदि को
याद करते थे, वह याद छोड़ देनी है। याद तो करते हैं ना, पूजा के लिए पुजारी को
मंदिर में जाना पड़ता है, इसमें कहाँ जाने की भी दरकार नहीं है। कोई भी मिले बोलो,
शिवबाबा का कहना है मुझ एक बाप को याद करो। शिवबाबा तो है निराकार। जरूर वह साकार
में ही आकर कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं पतित-पावन हूँ। यह तो राइट अक्षर है ना।
बाबा कहते हैं मुझे याद करो। तुम सब पतित हो। यह पतित तमोप्रधान दुनिया है ना इसलिए
बाबा कहते हैं कोई भी देहधारी को याद नहीं करो। यह तो अच्छी बात है ना। कोई गुरू आदि
की महिमा नहीं करते हैं। बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट
जायेंगे। यह है योगबल अथवा योग अग्नि। बेहद का बाप तो सच कहते हैं ना - गीता का
भगवान निराकार ही है। श्रीकृष्ण की बात नहीं। भगवान कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो और
कोई उपाय नहीं। पावन होकर जाने से ऊंच पद पायेंगे। नहीं तो कम पद हो जायेगा। हम
तुमको बाप का सन्देश देते हैं। मैं सन्देशी हूँ। इस समझाने में कोई तकलीफ नहीं है।
मातायें, अहिल्यायें, कुब्जायें भी ऊंच पद पा सकती हैं। चाहे यहाँ रहने वाले हों,
चाहे घर गृहस्थ में रहने वाले हों, ऐसे नहीं कि यहाँ रहने वाले जास्ती याद कर सकते
हैं। बाबा कहते हैं बाहर में रहने वाले भी बहुत याद में रह सकते हैं। बहुत सर्विस
कर सकते हैं। यहाँ भी बाप से रिफ्रेश होकर फिर जाते हैं तो अन्दर में कितनी खुशी
रहनी चाहिए। इस छी-छी दुनिया में तो बाकी थोड़े रोज़ हैं। फिर चलेंगे श्रीकृष्ण पुरी
में। श्रीकृष्ण के मन्दिर को भी सुखधाम कहते हैं। तो बच्चों को अपार खुशी होनी
चाहिए। जबकि तुम बेहद के बाप के बने हो। तुमको ही स्वर्ग का मालिक बनाया था। तुम भी
कहते हो बाबा 5 हज़ार वर्ष पहले भी हम आपसे मिले थे और फिर मिलेंगे। अब बाप को याद
करने से माया पर जीत पानी है। अब इस दु:खधाम में तो रहना नहीं है। तुम पढ़ते ही हो
सुखधाम में जाने के लिए। सबको हिसाब किताब चुक्तु कर वापिस जाना है। मैं आया ही हूँ
नई दुनिया स्थापन करने। बाकी सब आत्मायें चली जायेंगी मुक्तिधाम। बाप कहते हैं -
मैं कालों का काल हूँ। सबको शरीर से छुड़ाए और आत्माओं को ले जाऊंगा। सब कहते भी
हैं हम जल्दी जायें। यहाँ तो रहने का नहीं है। यह तो पुरानी दुनिया, पुराना शरीर
है। अब बाप कहते हैं मैं सबको ले जाऊंगा। छोडूँगा किसको भी नहीं। तुम सबने बुलाया
ही है - हे पतित-पावन आओ। भल याद करते रहते हैं परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते हैं।
पतित-पावन की कितनी धुन लगाते हैं। फिर कहते हैं रघुपति राघव राजा राम। अब शिवबाबा
तो राजा बनते नहीं, राजाई करते नहीं। उनको राजा राम कहना रांग हो गया। माला जब
सिमरते हैं तो राम-राम कहते हैं। उसमें भगवान की याद आती है। भगवान तो है ही शिव।
मनुष्यों के नाम बहुत रख दिये हैं। श्रीकृष्ण को भी श्याम सुन्दर, वैकुण्ठ नाथ,
मक्खन चोर आदि-आदि बहुत नाम देते हैं। तुम अभी श्रीकृष्ण को मक्खनचोर कहेंगे?
बिल्कुल नहीं। तुम अभी समझते हो भगवान तो एक निराकार है, कोई भी देहधारी को भगवान
कह नहीं सकते। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी नहीं कह सकते तो फिर मनुष्य अपने को
भगवान कैसे कह सकते। वैजयन्ती माला सिर्फ 108 की गाई जाती है। शिवबाबा ने स्वर्ग
स्थापन किया, उनके यह मालिक हैं। जरूर उससे पहले उन्होंने यह पुरुषार्थ किया होगा।
उसको कहा जाता है कलियुग अन्त सतयुग आदि का संगमयुग। यह है कल्प का संगमयुग। मनुष्यों
ने फिर युगे-युगे कह दिया है, अवतार नाम भी भूल फिर उनको ठिक्कर-भित्तर में, कण-कण
में कह दिया है। यह भी है ड्रामा। जो बात पास्ट हो जाती है उसको कहा जाता है ड्रामा।
कोई से झगड़ा आदि हुआ, पास हुआ, उनका चिंतन नहीं करना है। अच्छा कोई ने कम जास्ती
बोला, तुम उनको भूल जाओ। कल्प पहले भी ऐसे बोला था। वह बातें याद रहने से फिर
बिगड़ते रहेंगे। वह बात फिर कभी बोलो भी नहीं।
तुम बच्चों को सर्विस तो करनी है ना। सर्विस में कोई विघ्न नहीं पड़ना चाहिए।
सर्विस में कमजोरी नहीं दिखानी चाहिए। शिव-बाबा की सर्विस है ना। उनमें कभी ज़रा भी
ना नहीं करना चाहिए। नहीं तो अपना पद भ्रष्ट कर देंगे। बाप के मददगार बने हो तो पूरी
मदद देनी है। बाप की सर्विस करने में ज़रा भी धोखा नहीं देना है। पैगाम सबको
पहुँचाना ही है। बाप कहते रहते हैं म्युजियम का नाम ऐसा रखो जो मनुष्य देख अन्दर
घुसें और आकर समझें क्योंकि यह नई चीज़ है ना। मनुष्य नई चीज़ देख अन्दर घुसते हैं।
आजकल बाहर से आते हैं, भारत का प्राचीन योग सीखने। अब प्राचीन अर्थात् पुराने ते
पुराना, वह तो भगवान का ही सिखाया हुआ है, जिसको 5 हज़ार वर्ष हुए। सतयुग-त्रेता
में योग होता नहीं, जिसने सिखाया वह तो चला गया फिर जब 5 हज़ार वर्ष बाद आये तब ही
आकर राजयोग सिखाये। प्राचीन अर्थात् 5 हज़ार वर्ष पहले भगवान ने सिखाया था। वही
भगवान फिर संगम पर ही आकर राजयोग सिखलायेंगे, जिससे पावन बन सकते हैं। इस समय तो
तत्व भी तमोप्रधान हैं। पानी भी कितना नुकसान कर देता है। उपद्रव होते रहते हैं,
पुरानी दुनिया में। सतयुग में उपद्रव की बात ही नहीं। वहाँ तो प्रकृति दासी बन जाती
है। यहाँ प्रकृति दुश्मन बनकर दु:ख देती है। इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में दु:ख
की बात नहीं थी। सतयुग था। अभी फिर वह स्थापन हो रहा है। बाप प्राचीन राजयोग सिखा
रहे हैं। फिर 5 हज़ार वर्ष बाद सिखायेंगे, जिसका पार्ट है वही बजायेंगे। बेहद का
बाप भी पार्ट बजा रहे हैं। बाप कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर, स्थापना कर चला जाता
हूँ। हाहाकार के बाद फिर जय जयकार हो जाती है। पुरानी दुनिया खत्म हो जायेगी। इन
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो पुरानी दुनिया नहीं थी। 5 हज़ार वर्ष की बात है। लाखों
वर्ष की बात हो नहीं सकती। तो बाप कहते हैं और सब बातों को छोड़ इस सर्विस में लग
जाओ, अपना कल्याण करने। रूठ कर सर्विस में धोखा नहीं देना चाहिए। यह है ईश्वरीय
सर्विस। माया के तूफान बहुत आयेंगे। परन्तु बाप की ईश्वरीय सर्विस में धोखा नहीं
देना है। बाप सर्विस अर्थ डायरेक्शन तो देते रहते हैं। मित्र-सम्बन्धी आदि जो भी आयें,
सबके सच्चे मित्र तो तुम हो। तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ तो सारी दुनिया के मित्र
हो क्योंकि तुम बाप के मददगार हो। मित्रों में कोई शत्रुता नहीं होनी चाहिए। कोई भी
बात निकले बोलो, शिवबाबा को याद करो। बाप की श्रीमत पर लग जाना है। नहीं तो अपना
नुकसान कर देंगे। ट्रेन में तुम आते हो वहाँ तो सब फ्री हैं। सर्विस का बहुत अच्छा
चांस है। बैज तो बहुत अच्छी चीज़ है। हर एक को लगाकर रखना है। कोई पूछे आप कौन हो
तो बोलो, हम हैं फायर ब्रिगेड, जैसे वह फायर ब्रिगेड होते हैं, आग को बुझाने के लिए।
तो इस समय सारी सृष्टि में काम अग्नि में सब जले हुए हैं। अब बाप कहते हैं काम
महाशत्रु पर जीत पहनो। बाप को याद करो, पवित्र बनो, दैवी गुण धारण करो तो बेड़ा पार
है। यह बैज श्रीमत से ही तो बने हैं। बहुत थोड़े बच्चे हैं जो बैज पर सर्विस करते
हैं। बाबा मुरलियों में कितना समझाते रहते हैं। हर एक ब्राह्मण के पास यह बैज होना
चाहिए, कोई भी मिले उनको इस पर समझाना है, यह है बाबा, इनको याद करना है। हम साकार
की महिमा नहीं करते। सर्व का सद्गति दाता एक ही निराकार बाप है, उनको याद करना है।
याद के बल से ही तुम्हारे पाप कट जायेंगे। फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। दु:खधाम
से छूट जायेंगे। फिर तुम विष्णुपुरी में आ जायेंगे। कितनी बड़ी खुशखबरी है। लिटरेचर
भी दे सकते हो। बोलो, तुम गरीब हो तो फ्री दे सकते हैं। साहूकारों को तो पैसा देना
ही चाहिए क्योंकि यह तो बहुत छपाने होते हैं। यह चीज़ ऐसी है जिससे तुम फकीर से
विश्व का मालिक बन जायेंगे। समझानी तो मिलती रहती है। कोई भी धर्म वाला हो, बोलो,
वास्तव में तुम आत्मा हो, अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। अब विनाश सामने खड़ा
है, यह दुनिया बदलने वाली है। शिवबाबा को याद करेंगे तो विष्णुपुरी में आ जायेंगे।
बोलो, यह आपको करोड़ों पदमों की चीज़ देते हैं।
बाबा ने कितना समझाया है - बैज पर सर्विस करनी है परन्तु बैज लगाते नहीं। लज्जा
आती है। ब्राह्मणियाँ जो पार्टी लेकर आती हैं अथवा कहाँ ऑफिस आदि में अकेली जाती
हैं, तो यह बैज जरूर लगा रहना चाहिए, जिसको तुम इन पर समझायेंगे वह बहुत खुश होंगे।
बोलो, हम एक बाप को ही मानते हैं, वही सबको सुख-शान्ति देने वाला है, उनको याद करो।
पतित आत्मा तो जा न सके। अभी यह पुरानी दुनिया बदल रही है। ऐसे-ऐसे रास्ते में
सर्विस करते आना चाहिए। तुम्हारा नाम बहुत होगा, बाबा समझते हैं शायद लज्जा आती है
जो बैज पहन सर्विस नहीं करते हैं। एक तो बैज, सीढ़ी का चित्र अथवा त्रिमूर्ति, गोला
और झाड़ का चित्र साथ में हो, आपस में बैठ एक-दो को समझाओ तो सब इकट्ठे हो जायेंगे।
पूछेंगे यह क्या है? बोलो, शिवबाबा इनके द्वारा यह नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं। अब
बाप कहते हैं मुझे याद करो, पवित्र बनो। अपवित्र तो वापस जा नहीं सकेंगे। ऐसी
मीठी-मीठी बातें सुनानी चाहिए। तो खुशी से सब सुनेंगे। परन्तु कोई की बुद्धि में
बैठता नहीं है। सेन्टर पर क्लास में जाते हो तो भी बैज लगा रहे। मिलेट्री वालों को
यहाँ बिल्ला (बैज) लगा रहता है। उनको कभी लज्जा आती है क्या? तुम भी रूहानी मिलेट्री
हो ना। बाप डायरेक्शन देते हैं फिर अमल में क्यों नहीं लाते। बैज लगा रहे तो शिवबाबा
की याद भी रहेगी - हम शिवबाबा के बच्चे हैं। दिन-प्रतिदिन सेन्टर्स भी खुलते जायेंगे।
कोई न कोई निकल आयेंगे। कहेंगे फलाने शहर में आपकी ब्रान्च नहीं है। बोलो, कोई
प्रबन्ध करे मकान आदि का, निमंत्रण दे तो हम आकर सर्विस कर सकते हैं। हिम्मते बच्चे
मददे बाप, बाप तो बच्चों को ही कहेंगे सेन्टर खोलो, सर्विस करो। यह सब शिवबाबा की
दुकान है ना। बच्चों द्वारा चला रहे हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कभी आपस में रूठ कर सर्विस में धोखा नहीं देना है। विघ्न रूप नहीं
बनना है। अपनी कमजोरी नहीं दिखानी है। बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है।
2) कभी कोई से झगड़ा आदि हुआ, पास हुआ, उनका चिंतन नहीं करना है। कोई ने कम
जास्ती बोला, तुम उनको भूल जाओ। कल्प पहले भी ऐसे बोला था। वह बात फिर कभी बोलो भी
नहीं।