ओम् शान्ति।
अब तुम बच्चे यहाँ बैठे हो और यह भी जानते हो कि अभी हम पार्टधारी हैं। 84 जन्मों
का चक्र पूरा किया है। यह तुम बच्चों की स्मृति में आना चाहिए। जानते हो कि बाबा आया
हुआ है, हमको फिर से राज्य प्राप्त कराने वा तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने। यह बातें
सिवाए बाप के और कोई नहीं समझायेंगे। तुम जब यहाँ बैठते हो तो तुम जैसे स्कूल में
बैठे हो। बाहर हो तो स्कूल में नहीं हो। जानते हो यह ऊंच ते ऊंच रूहानी स्कूल है।
रूहानी बाप बैठ पढ़ाते हैं। पढ़ाई तो बच्चों को याद आनी चाहिए ना। यह भी बच्चा ठहरा।
इनको अथवा सभी को सिखलाने वाला वह बाप है। सब मनुष्य मात्र की आत्माओं का बाप वह
है। वह आकर शरीर का लोन लेकर तुमको समझा रहे हैं। रोज़ समझाते हैं, यहाँ जब बैठते
हो तो बुद्धि में स्मृति रहनी चाहिए कि हमने 84 जन्म लिए। हम विश्व के मालिक थे,
देवी-देवता थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते आकर पट पड़े हैं। भारत कितना सालवेन्ट था।
सारी स्मृति आई है। भारत की ही कहानी है, साथ-साथ अपनी भी। अपने को फिर भूल न जाओ।
हम स्वर्ग में राज्य करते थे फिर हमको 84 जन्म लेने पड़े। यह सारा दिन स्मृति में
लाना पड़े। धंधा आदि करते स्टडी तो याद आनी चाहिए ना। कैसे हम विश्व के मालिक थे
फिर हम नीचे उतरते आये, बहुत सहज है परन्तु यह याद भी कोई को रहती नहीं है। आत्मा
पवित्र न होने कारण याद खिसक जाती है। हमको भगवान पढ़ाते हैं यह याद खिसक जाती है।
हम बाबा के स्टूडेन्ट हैं। बाबा कहते रहते हैं - याद की यात्रा पर रहो। बाप हमको
पढ़ाकर यह बना रहे हैं। सारा दिन यह स्मृति आती रहे। बाप ही स्मृति दिलाते हैं, यही
भारत था ना। हम सो देवी-देवता थे, सो अब असुर बने हैं। पहले तुम्हारी भी बुद्धि
आसुरी थी। अब बाप ने ईश्वरीय बुद्धि दी है। परन्तु फिर भी कोई-कोई की बुद्धि में
बैठता नहीं है। भूल जाते हैं। बाप कितना नशा चढ़ाते हैं। तुम फिर से देवता बनते हो
तो वह नशा रहना चाहिए ना। हम अपना राज्य ले रहे हैं। हम अपना राज्य करेंगे, कोई को
तो बिल्कुल नशा चढ़ता नहीं है। ज्ञान अमृत हज़म ही नहीं होता है। जिन्हें नशा चढ़ा
हुआ होगा, उन्हें किसका कल्याण करने के सिवाए दूसरी कोई बात करना भी अच्छा नहीं
लगेगा। फूल बनाने की सर्विस में ही लगे रहेंगे। हम पहले फूल थे फिर माया ने कांटा
बना दिया। अब फिर फूल बनते हैं। ऐसी-ऐसी बातें अपने से करनी चाहिए। इस नशे में रह
तुम किसको भी समझायेंगे तो झट कोई को तीर लगेगा। भारत गार्डन ऑफ अल्लाह था। अब पतित
बन गया है। हम ही सारे विश्व के मालिक थे, कितनी बड़ी बात है! अभी फिर हम क्या बन
गये हैं! कितना गिर गये! हमारे गिरने और चढ़ने का यह नाटक है। यह कहानी बाप बैठ
सुनाते हैं। वह है झूठी, यह है सच्ची। वह सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं, समझते
थोड़ेही है कि हम कैसे चढ़े फिर कैसे गिरे हैं। यह बाप ने सच्ची सत्य नारायण की कथा
सुनाई है। राजाई कैसे गंवाई, यह सारी है अपने ऊपर। आत्मा को अभी मालूम पड़ा है कि
हम कैसे अब बाप से राजाई ले रहे हैं। बाप यहाँ पूछते हैं तो कहते हैं - हाँ, नशा है
फिर बाहर जाने से कुछ भी नशा नहीं रहता। बच्चे खुद समझते हैं भल हाथ तो उठाते हैं
परन्तु चलन ऐसी है जो नशा रह न सके। फीलिंग तो आती है ना।
बाप बच्चों को स्मृति दिलाते हैं - बच्चे, तुमको मैंने राजाई दी थी फिर तुमने
गँवा दी। तुम नीचे उतरते आये हो क्योंकि यह नाटक है चढ़ने और उतरने का। आज राजा है,
कल उसको उतार देते हैं। अखबार में बहुत ऐसी-ऐसी बातें पड़ती हैं, जिसका रेस्पॉन्ड
दिया जाए तो कुछ समझें। यह नाटक है, यह याद रहे तो भी सदैव खुशी रहे। बुद्धि में है
ना - आज से 5 हज़ार वर्ष पहले शिव-बाबा आया था, आकर राजयोग सिखाया था। लड़ाई लगी
थी। अभी यह सब राइट बातें बाप सुनाते हैं। यह है पुरुषोत्तम युग। कलियुग के बाद यह
पुरुषोत्तम युग आता है। कलियुग को पुरुषोत्तम युग नहीं कहेंगे। सतयुग को भी नहीं
कहेंगे। आसुरी सम्प्रदाय और दैवी सम्प्रदाय कहते हैं, उनके बीच का है यह संगमयुग,
जबकि पुरानी दुनिया से नई दुनिया बनती है। नई से पुरानी होने में सारा चक्र लग जाता
है। अभी है संगमयुग। सतयुग में देवी-देवताओं का राज्य था। अब वह है नहीं। बाकी अनेक
धर्म आ गये हैं। यह तुम्हारी बुद्धि में रहता है। बहुत हैं जो 6-8 मास, 12 मास
पढ़कर फिर गिर पड़ते हैं। फेल हो पड़ते हैं। भल पवित्र बनते हैं परन्तु पढ़ाई नहीं
करते तो फँस पड़ते हैं। सिर्फ पवित्रता भी काम नहीं आती। ऐसे बहुत सन्यासी भी हैं,
वह सन्यास धर्म छोड़ जाए गृहस्थी बन जाते हैं, शादी आदि कर लेते हैं। तो अब बाप
बच्चों को समझाते हैं - तुम स्कूल में बैठे हो। यह स्मृति में है हमने अपनी राजाई
कैसे गँवाई, कितने जन्म लिए। अब फिर बाप कहते हैं विश्व के मालिक बनो। पावन जरूर
बनना है। जितना जास्ती याद करेंगे उतना पवित्र होते जायेंगे क्योंकि सोने में खाद
पड़ती है, वह निकले कैसे? तुम बच्चों की बुद्धि में है हम आत्मा सतोप्रधान थी, 24
कैरेट थी फिर गिरते-गिरते ऐसी हालत हो गई है। हम क्या बन गये! बाप तो ऐसे नहीं कहते
कि हम क्या थे। तुम मनुष्य ही कहते हो हम देवता थे। भारत की महिमा तो है ना। भारत
में कौन आते हैं, क्या ज्ञान देते हैं, यह कोई नहीं जानते। यह तो पता होना चाहिए ना
कि लिबरेटर कब आते हैं। भारत प्राचीन गाया जाता है तो जरूर भारत में ही रीइनकारनेशन
होता होगा अथवा जयन्ती भी भारत में ही मनाते हैं। जरूर फादर यहाँ आता है। कहते भी
हैं भागीरथ। तो मनुष्य शरीर में आया होगा ना। फिर घोड़े गाड़ी भी दिखाई है। कितना
फ़र्क है। श्री कृष्ण और रथ दिखाया है। मेरा किसको पता नहीं है। अभी तुम समझते हो
बाबा इस रथ पर आते हैं, इनको ही भाग्यशाली रथ कहा जाता है। ब्रह्मा सो विष्णु,
चित्र में कितना क्लीयर है। त्रिमूर्ति के ऊपर शिव, यह शिव का परिचय किसने दिया।
बाबा ने ही बनवाया ना। अभी तुम समझते हो बाबा इस ब्रह्मा रथ में आये हैं। ब्रह्मा
सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा। यह भी बच्चों को समझाया है, कहाँ 84 जन्म के बाद
विष्णु सो ब्रह्मा बनते, कहाँ ब्रह्मा सो विष्णु एक सेकेण्ड में। वन्डरफुल बातें है
ना बुद्धि में धारण करने की। पहले-पहले समझाना होता है बाप का परिचय। भारत स्वर्ग
था जरूर। हेविनली गॉड फादर ने स्वर्ग बनाया होगा। यह चित्र तो बड़ा फर्स्टक्लास है,
समझाने का शौक रहता है ना। बाप को भी शौक है। तुम सेन्टर्स पर भी ऐसे समझाते रहते
हो। यहाँ तो डायरेक्ट बाप है। बाप आत्माओं को बैठ समझाते हैं। आत्माओं के समझाने और
बाप के समझाने में फ़र्क तो जरूर रहता है इसलिए यहाँ सम्मुख आते हैं सुनने लिए। बाप
ही घड़ी-घड़ी बच्चे-बच्चे कहते हैं। भाई-भाई का इतना असर नहीं रहता जितना बाप का
रहता है। यहाँ तुम बाप के सम्मुख बैठे हो। आत्मायें और परमात्मा मिलते हैं तो इसको
मेला कहा जाता है। बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं तो बहुत नशा चढ़ता है। समझते हैं बेहद
का बाप कहते हैं, हम उनका नहीं मानेंगे! बाप कहते हैं हमने तुमको स्वर्ग में भेजा
था फिर तुम 84 जन्म लेते-लेते पतित बने हो। फिर तुम पावन नहीं बनेंगे! आत्माओं को
कहते हैं। कोई समझते हैं, बाबा सच कहते हैं, कोई तो झट कहते बाबा हम पवित्र क्यों
नहीं बनेंगे!
बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे। तुम सच्चा सोना बन
जायेंगे। मैं सभी का पतित-पावन बाप हूँ तो बाप की समझानी और आत्माओं की (बच्चों की)
समझानी में कितना फ़र्क है। समझो कोई नये आ जाते हैं, उनमें भी जो यहाँ का फूल होगा
तो उनको टच होगा। यह कहते ठीक हैं। जो यहाँ का नहीं होगा तो समझेगा नहीं। तो तुम भी
समझाओ हम आत्माओं को बाप कहते हैं तुम पावन बनो। मनुष्य पावन बनने के लिए गंगा
स्नान करते हैं, गुरू करते हैं। परन्तु पतित-पावन तो बाप ही है। बाप आत्माओं को कहते
हैं कि तुम कितने पतित बन गये हो इसलिए आत्मा याद करती है कि आकर पावन बनाओ। बाप
कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ, तुम बच्चों को कहता हूँ यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो।
यह रावण राज्य खत्म होना है। मुख्य बात है ही पावन बनने की। स्वर्ग में विष होता नहीं।
जब कोई आते हैं तो उनको यह समझाओ कि बाप कहते हैं - अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को
याद करो तो पावन बन जायेंगे, खाद निकल जायेगी। मनमनाभव अक्षर याद है ना। बाप
निराकार है हम आत्मा भी निराकार हैं। जैसे हम शरीर द्वारा सुनते हैं, बाप भी इस
शरीर में आकर समझाते हैं। नहीं तो कैसे कहें कि मामेकम् याद करो। देह के सभी
सम्बन्ध छोड़ो। जरूर यहाँ आते हैं, ब्रह्मा में प्रवेश करते हैं। प्रजापिता अब
प्रैक्टिकल में है, इन द्वारा हमको बाप ऐसे कहते हैं, हम बेहद के बाप की ही मानते
हैं। वह कहते पावन बनो। पतितपना छोड़ो। पुरानी देह के अभिमान को छोड़ो। मुझे याद करो
तो अन्त मती सो गति हो जायेगी, तुम लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे।
बाप से बेमुख करने वाला मुख्य अवगुण है - एक दूसरे का परचिंतन करना। ईविल बातें
सुनना और सुनाना। बाप का डायरेक्शन है तुम्हें ईविल बातें सुननी नहीं है। इनकी बात
उनको, उनकी बात इनको सुनाना यह धूतीपना तुम बच्चों में नहीं होना चाहिए। इस समय
दुनिया में सभी विप्रीत बुद्धि हैं ना। सिवाए राम के दूसरी कोई बात सुनाना, उसको
धूतीपना कहा जाता है। अब बाप कहते हैं - यह धूतीपना छोड़ो। तुम सभी आत्माओं को बताओ
कि हे सीतायें तुम एक राम से योग लगाओ। तुम हो मैसेन्जर, यह मैसेज दो कि बाप ने कहा
है मुझे याद करो, बस। इस बात के सिवाए बाकी सब है धूतीपना। बाप सब बच्चों को कहते
हैं - धूतीपना छोड़ दो। सभी सीताओं का एक राम से योग जुड़वाओ। तुम्हारा धंधा ही यह
है। बस, यह पैगाम देते रहो। बाप आया हुआ है, कहते हैं तुमको गोल्डन एज में जाना है।
अब इस आइरन एज को छोड़ना है। तुमको वनवास मिला हुआ है, जंगल में बैठे हो ना। वन
जंगल को कहा जाता है। कन्या की जब शादी होती है तो वन में बैठती है फिर महल में जाती
है। तुम भी जंगल में बैठे हो। अब ससुर घर जाना है, इस पुरानी देह को छोड़ना है। एक
बाप को याद करो। जिनकी विनाश काले प्रीत बुद्धि है वह तो महल में जायेंगे, बाकी
विप्रीत का है वनवास। जंगल में वास है। बाप तुम बच्चों को भिन्न-भिन्न रीति से
समझाते हैं। जिस बाप से इतनी बेहद की बादशाही ली है, उनको भूल गये हो तो वनवास में
चले गये हो। वनवास और गॉर्डन वास। बाप का नाम ही है बागवान। परन्तु जब कोई की बुद्धि
में आये। भारत में ही हमारा राज्य था। अभी नहीं है। अभी तो वनवास है। फिर गॉर्डन
में चलते हैं। तुम यहाँ बैठे हो तो भी बुद्धि में है - हम बेहद के बाप से अपना
राज्य ले रहे हैं। बाप कहते हैं मेरे साथ प्रीत रखो फिर भी भूल जाते हैं। बाप उल्हना
देते हैं - तुम मुझ बाप को कहाँ तक भूलते रहेंगे। फिर गोल्डन एज में कैसे जायेंगे।
अपने से पूछो हम कितना समय बाबा को याद करते हैं? हम जैसेकि याद की अग्नि में पड़े
हैं, जिससे विकर्म विनाश होते हैं। एक बाप से प्रीत बुद्धि होना है। सबसे
फर्स्टक्लास माशूक है जो तुमको भी फर्स्टक्लास बनाते हैं। कहाँ थर्ड क्लास में
बकरियों मिसल ट्रेवल करना, कहाँ एयरकन्डीशन में। कितना फ़र्क है। यह सब विचार सागर
मंथन करना है तो तुमको मजा आयेगा। यह बाबा भी कहते हैं मैं भी बाबा को याद करने लिए
बहुत माथा मारता हूँ। सारा दिन ख्यालात चलती रहती हैं। तुम बच्चों को भी यही मेहनत
करनी है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-