13-08-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - अकाल मूर्त
बाप का बोलता-चलता तख्त यह (ब्रह्मा) है, जब वह ब्रह्मा में आते हैं तब तुम
ब्राह्मणों को रचते हैं''
प्रश्नः-
अक्लमंद बच्चे
किस राज़ को समझकर ठीक रीति से समझा सकते हैं?
उत्तर:-
ब्रह्मा कौन
है और वह ब्रह्मा सो विष्णु कैसे बनते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ है, वह कोई देवता
नहीं। ब्रह्मा ने ही ब्राह्मणों द्वारा ज्ञान यज्ञ रचा है.... यह सब राज़ अक्लमंद
बच्चे ही समझकर समझा सकते हैं। घोड़ेसवार और प्यादे तो इसमें मूँझ जायेंगे।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए........
ओम् शान्ति।
भक्ति में महिमा करते हैं एक की। महिमा तो गाते हैं ना। परन्तु न उनको जानते हैं, न
उनके यथार्थ परिचय को जानते हैं। अगर यथार्थ महिमा जानते तो वर्णन जरूर करते। तुम
बच्चे जानते हो ऊंच ते ऊंच है भगवान। चित्र मुख्य है उनका। ब्रह्मा की सन्तान भी
होगी ना। तुम सब ब्राह्मण ठहरे। ब्रह्मा को भी ब्राह्मण जानेंगे और कोई नहीं जानते,
इसलिए मूँझते हैं। यह ब्रह्मा कैसे हो सकता। ब्रह्मा को दिखाया है सूक्ष्मवतनवासी।
अब प्रजापिता सूक्ष्मवतन में हो न सके। वहाँ रचना होती नहीं। इस पर तुम्हारे साथ
बहुत वाद-विवाद भी करते हैं। समझाना चाहिए - ब्रह्मा और ब्राह्मण हैं तो सही ना।
जैसे क्राइस्ट से क्रिश्चियन अक्षर निकला है। बुद्ध से बौद्धी, इब्राहम से इस्लामी।
वैसे प्रजापिता ब्रह्मा से ब्राह्मण नामीग्रामी हैं। आदि देव ब्रह्मा। वास्तव में
ब्रह्मा को देवता नहीं कह सकते। यह भी रांग है। ब्राह्मण जो अपने को कहलाते हैं उनसे
पूछना चाहिए ब्रह्मा कहाँ से आया? यह किसकी रचना है। ब्रह्मा को किसने क्रियेट किया?
कभी कोई बता न सके, जानते ही नहीं। यह भी तुम बच्चे जानते हो - शिवबाबा का जो रथ
है, जिसमें प्रवेश करते हैं। यह है ही वह जो आत्मा श्रीकृष्ण प्रिन्स बना था। 84
जन्मों के बाद यह (ब्रह्मा) आकर बने हैं। जन्मपत्री का नाम तो इनका अपना अलग होगा
ना क्योंकि है तो मनुष्य ना। फिर इनमें प्रवेश करने से इनका नाम ब्रह्मा रख देते
हैं। यह भी बच्चे जानते हैं - वही ब्रह्मा, विष्णु का रूप है। नारायण बनते हैं ना।
84 जन्मों के अन्त में भी साधारण रथ है ना। यह (शरीर) सब आत्माओं के रथ हैं।
अकालमूर्त का बोलता चलता तख्त है। सिक्ख लोगों ने फिर वह तख्त बना दिया है। उसको
अकालतख्त कहते हैं। यह तो अकाल तख्त सब हैं। आत्मायें सब अकालमूर्त हैं। ऊंच ते ऊंच
भगवान को यह रथ तो चाहिए ना। रथ में प्रवेश हो बैठ नॉलेज देते हैं। उनको ही
नॉलेजफुल कहा जाता है। रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज देते हैं। नॉलेजफुल
का अर्थ कोई अन्तर्यामी वा जानी जाननहार नहीं है। सर्वव्यापी का अर्थ दूसरा है, जानी
जाननहार का अर्थ दूसरा है। मनुष्य तो सबको मिलाकर जो आता है सो कहते जाते हैं। अभी
तुम बच्चे जानते हो हम सब ब्राह्मण ब्रह्मा की औलाद हैं। हमारा कुल सबसे ऊंच है। वो
लोग देवताओं को ऊंच रखते हैं क्योंकि सतयुग आदि में देवता हुए हैं। प्रजापिता
ब्रह्मा की औलाद ब्राह्मण होते हैं - यह कोई जानते नहीं सिवाए तुम बच्चों के। उनको
पता भी कैसे पड़े। जबकि ब्रह्मा को सूक्ष्मवतन में समझ लेते हैं। वह जिस्मानी
ब्राह्मण अलग हैं जो पूजा करते हैं, धामा खाते हैं। तुम तो धामा आदि नहीं खाते हो।
ब्रह्मा का राज़ अभी अच्छी रीति समझाना पड़ता है। बोलो और बातों को छोड़ बाप जिससे
पतित से पावन बनना है, पहले उनको तो याद करो। फिर यह बातें भी समझ जायेंगे। थोड़ी
बात में संशय पड़ने से बाप को ही छोड़ देते हैं। पहली मुख्य बात है अल्फ और बे। बाप
कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं जरूर किसमें तो आऊंगा ना। उनका नाम भी होना चाहिए।
उनको आकर रचता हूँ। ब्रह्मा के लिए तुमको समझाने का बहुत अक्ल चाहिए। प्यादे,
घोड़ेसवार मूँझ पड़ते हैं। अवस्था अनुसार समझाते हैं ना। प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ
है। ब्राह्मणों द्वारा ज्ञान यज्ञ रचते हैं तो जरूर ब्राह्मण ही चाहिए ना। प्रजापिता
ब्रह्मा भी यहाँ चाहिए, जिससे ब्राह्मण हों। ब्राह्मण लोग कहते भी हैं हम ब्रह्मा
की सन्तान हैं। समझते हैं परम्परा से हमारा कुल चला आता है। परन्तु ब्रह्मा कब था
वह पता नहीं है। अभी तुम ब्राह्मण हो। ब्राह्मण वह जो ब्रह्मा की सन्तान हों। वह तो
बाप के आक्यूपेशन को जानते ही नहीं। भारत में पहले ब्राह्मण ही होते हैं। ब्राह्मणों
का है ऊंच ते ऊंच कुल। वह ब्राह्मण भी समझते हैं हमारा कुल जरूर ब्रह्मा से ही निकला
होगा। परन्तु कैसे, कब... वह वर्णन नहीं कर सकते। तुम समझते हो - प्रजापिता ब्रह्मा
ही ब्राह्मणों को रचते हैं। जिन ब्राह्मणों को ही फिर देवता बनना है। ब्राह्मणों को
आकर बाप पढ़ाते हैं। ब्राह्मणों की भी डिनायस्टी नहीं है। ब्राह्मणों का कुल है,
डिनायस्टी तब कहा जाए जब राजा-रानी बनें। जैसे सूर्यवंशी डिनायस्टी। तुम ब्राह्मणों
में राजा तो बनते नहीं। वह जो कहते हैं कौरवों और पाण्डवों का राज्य था, दोनों रांग
हैं। राजाई तो दोनों को नहीं है। प्रजा का प्रजा पर राज्य है, उनको राजधानी नहीं
कहेंगे। ताज है नहीं। बाबा ने समझाया था - पहले डबल सिरताज भारत में थे, फिर सिंगल
ताज। इस समय तो नो ताज। यह भी अच्छी रीति सिद्धकर बताना है, जो बिल्कुल अच्छी धारणा
वाला होगा वह अच्छी रीति समझा सकेंगे। ब्रह्मा पर ही जास्ती बात समझाने की होती है।
विष्णु को भी नहीं जानते। यह भी समझाना होता है। वैकुण्ठ को विष्णुपुरी कहा जाता है
अर्थात् लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। श्रीकृष्ण प्रिन्स होगा तो कहेंगे ना - हमारा
बाबा राजा है। ऐसे नहीं कि श्रीकृष्ण का बाप राजा नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण प्रिन्स
कहलाया जाता है तो जरूर राजा के पास जन्म हुआ है। साहूकार पास जन्म ले तो प्रिन्स
थोड़ेही कहलायेंगे। राजा के पद और साहूकार के पद में रात-दिन का फ़र्क हो जाता है।
श्रीकृष्ण के बाप राजा का नाम ही नहीं है। श्रीकृष्ण का कितना नाम बाला है। बाप का
ऊंच पद नहीं कहेंगे। वह सेकण्ड क्लास का पद है जो सिर्फ निमित्त बनते हैं श्रीकृष्ण
को जन्म देने। ऐसे नहीं कि श्रीकृष्ण की आत्मा से वह ऊंच पढ़ा हुआ है। नहीं।
श्रीकृष्ण ही सो फिर नारायण बनते हैं। बाकी बाप का नाम ही गुम हो जाता है। है जरूर
ब्राह्मण। परन्तु पढ़ाई में श्रीकृष्ण से कम है। श्रीकृष्ण की आत्मा की पढ़ाई अपने
बाप से ऊंच थी, तब तो इतना नाम होता है। श्रीकृष्ण का बाप कौन था - यह जैसे किसको
पता नहीं। आगे चल मालूम पड़ेगा। बनना तो यहाँ से ही है। राधे के भी माँ-बाप तो होंगे
ना। परन्तु उनसे राधे का नाम जास्ती है क्योंकि माँ-बाप कम पढ़े हुए हैं। राधे का
नाम उनसे ऊंच हो जाता है। यह हैं डीटेल की बातें - बच्चों को समझाने के लिए। सारा
मदार पढ़ाई पर है। ब्रह्मा पर भी समझाने का अक्ल चाहिए। वही श्रीकृष्ण जो है उनकी
आत्मा ही 84 जन्म भोगती है। तुम भी 84 जन्म लेते हो। सब इकट्ठे तो नहीं आयेंगे। जो
पढ़ाई में पहले-पहले होते हैं, वहाँ भी वह पहले आयेंगे। नम्बरवार तो आते हैं ना। यह
बड़ी महीन बातें हैं। कम बुद्धि वाले तो धारणा कर न सकें। नम्बरवार जाते हैं। तुम
ट्रांसफर होते हो नम्बरवार। कितनी बड़ी क्यू है, जो पिछाड़ी में जायेगी। नम्बरवार
अपने-अपने स्थान पर जाकर निवास करेंगे। सबका स्थान बना हुआ है। यह बड़ा वन्डरफुल
खेल है। परन्तु कोई समझते नहीं हैं। इनको कहा जाता है कांटों का जंगल। यहाँ सब एक-दो
को दु:ख देते रहते हैं। वहाँ तो नैचुरल सुख है। यहाँ है आर्टीफिशियल सुख। रीयल सुख
एक बाप ही देने वाला है। यहाँ है काग विष्टा के समान सुख। दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान
बनते जाते हैं। कितना दु:ख है। कहते हैं - बाबा माया के तूफान बहुत आते हैं। माया
उलझा देती है, दु:ख की फीलिंग बहुत आती है। सुखदाता बाप के बच्चे बनकर भी अगर दु:ख
की फीलिंग आती है तो बाप कहते - बच्चे, यह तुम्हारा बड़ा कर्मभोग है। जब बाप मिला
तो दु:ख की फीलिंग नहीं आनी चाहिए। जो पुराने कर्मभोग हैं उसे योगबल से चुक्तू करो।
अगर योगबल नहीं होगा तो मोचरा खाकर चुक्तू करना पड़ेगा। मोचरा और मानी तो अच्छा नहीं।
(सज़ा खाकर पद पाना अच्छा नहीं) पुरुषार्थ करना चाहिए नहीं तो फिर ट्रिब्युनल बैठती
है। प्रजा तो ढेर है। यह तो ड्रामा अनुसार सब गर्भजेल में बहुत सज़ायें खाते हैं।
आत्मायें भटकती भी बहुत हैं। कोई-कोई आत्मा बहुत नुकसान करती है - जब कोई में
अशुद्ध आत्मा का प्रवेश होता है तो कितना हैरान होते हैं। नई दुनिया में यह बातें
होती नहीं। अभी तुम पुरुषार्थ करते हो - हम नई दुनिया में जायें। वहाँ जाकर नये-नये
महल बनाने पड़ेंगे। राजाओं के पास जन्म लेते हो, जैसे श्रीकृष्ण जन्म लेते हैं।
परन्तु इतने महल आदि सब पहले से थोड़ेही होते हैं। वह तो फिर बनाने पड़े। कौन रचते
हैं, जिनके पास जन्म लेते हैं। गाया हुआ भी हैं - राजाओं के पास जन्म होता है। क्या
होता है सो तो आगे चल देखना है। अभी थोड़ेही बाबा बतायेंगे। वह फिर आर्टीफिशियल
नाटक हो जाए, इसलिए बताते कुछ भी नहीं हैं। ड्रामा में बताने की नूँध नहीं। बाप कहते
हैं मैं भी पार्टधारी हूँ। आगे की बातें पहले से ही जानता होता तो बहुत कुछ बतलाता।
बाबा अन्तर्यामी होता तो पहले से बताता। बाप कहते हैं - नहीं, ड्रामा में जो होता
है, उनको साक्षी हो देखते चलो और साथ-साथ याद की यात्रा में मस्त रहो। इसमें ही फेल
होते हैं। ज्ञान कभी कम-जास्ती नहीं होता। याद की यात्रा ही कभी कम, कभी जास्ती होती
है। ज्ञान तो जो मिला है सो है ही। याद की यात्रा में कभी उमंग रहता है, कभी ढीला।
नीचे-ऊपर यात्रा होती है। ज्ञान में तुम सीढ़ी नहीं चढ़ते। ज्ञान को यात्रा नहीं कहा
जाता। यात्रा है याद की। बाप कहते हैं याद में रहने से तुम सेफ्टी में रहेंगे।
देह-अभिमान में आने से तुम बहुत धोखा खाते हो। विकर्म कर देते हो। काम महाशत्रु है,
उनमें फेल हो पड़ते हैं। क्रोध आदि की बाबा इतनी बात नहीं करते।
ज्ञान से या तो है सेकण्ड में जीवनमुक्ति या तो फिर कहते सागर को स्याही बनाओ तो
भी पूरा नहीं हो। या तो सिर्फ कहते हैं अल्फ को याद करो। याद करना किसको कहा जाता,
यह थोड़ेही जानते हैं। कहते हैं कलियुग से हमको सतयुग में ले चलो। पुरानी दुनिया
में है दु:ख। देखते हो बरसात में कितने मकान गिरते रहते हैं, कितने डूब जाते हैं।
बरसात आदि यह नैचुरल कैलेमिटीज भी होंगी। यह सब अचानक होता रहेगा। कुम्भकरण की नींद
में सोये हुए हैं। विनाश के समय जागेंगे फिर क्या कर सकेंगे! मर जायेंगे। धरती भी
जोर से हिलती है। तूफान बरसात आदि सब होता है। बॉम्ब्स भी फेंकते हैं। परन्तु यहाँ
एडीशन है सिविलवार........ रक्त की नदियां गाई हुई हैं। यहाँ मारामारी होती है। एक-दो
पर केस करते रहते हैं। सो लड़ेंगे भी जरूर। सब हैं निधनके, तुम हो धनी के। कोई
लड़ाई आदि तुमको नहीं करनी है। ब्राह्मण बनने से तुम धनी के बन गये। धनी बाप को या
पति को कहते हैं। शिवबाबा तो पतियों का पति है। सगाई हो जाती है तो फिर कहते हैं हम
ऐसे पति के साथ कब मिलेंगी। आत्मायें कहती हैं - शिवबाबा, हमारी तो आपसे सगाई हो गई।
अब आपसे हम मिलें कैसे? कोई तो सच लिखते हैं, कोई तो बहुत छिपाते हैं। सच्चाई से
लिखते नहीं कि बाबा हमसे यह भूल हो गई। क्षमा करो। अगर कोई विकार में गिरा तो बुद्धि
में धारणा हो नहीं सकती। बाबा कहते हैं तुम ऐसी कड़ी भूल करेंगे तो चकनाचूर हो
जायेंगे। तुमको हम गोरा बनाने के लिए आये हैं, फिर तुम काला मुँह कैसे करते हो। भल
स्वर्ग में आयेंगे, पाई पैसे का पद पायेंगे। राजधानी स्थापन हो रही है ना। कोई तो
हार खाकर जन्म-जन्मान्तर पद भ्रष्ट हो जाते हैं। कहेंगे बाप से तुम यह पद पाने आये
हो, बाप इतना ऊंच बनें, हम बच्चे फिर प्रजा थोड़ेही बनेंगे। बाप गद्दी पर हो और
बच्चा दास-दासी बने, कितनी लज्जा की बात है। पिछाड़ी में तुमको सब साक्षात्कार होंगे।
फिर बहुत पछतायेंगे। नाहेक ऐसा किया। संयासी भी ब्रह्मचर्य में रहते हैं, तो विकारी
सब उनको माथा टेकते हैं। पवित्रता का मान है। किसकी तकदीर में नहीं है तो बाप आकर
पढ़ाते फिर भी ग़फलत करते रहते हैं। याद ही नहीं करते। बहुत विकर्म बन जाते हैं।
तुम बच्चों पर अब है ब्रहस्पति की दशा। इससे ऊंच दशा और कोई होती नहीं। दशायें
चक्र लगाती रहती हैं तुम बच्चों पर। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखना है, एक बाप की याद में
मस्त रहना है। याद की यात्रा में कभी उमंग कम न हो।
2) पढ़ाई में कभी ग़फलत नहीं करना, अपनी ऊंच तकदीर बनाने के लिए पवित्र जरूर बनना
है। हार खाकर जन्म-जन्मान्तर के लिए पद भ्रष्ट नहीं करना है।
वरदान:-
सच्ची सेवा
द्वारा अविनाशी, अलौकिक खुशी के सागर में लहराने वाली खुशनसीब आत्मा भव
जो बच्चे सेवाओं में
बापदादा और निमित्त बड़ों के स्नेह की दुआयें प्राप्त करते हैं उन्हें अन्दर से
अलौकिक, आत्मिक खुशी का अनुभव होता है। वे सेवाओं द्वारा आन्तरिक खुशी, रूहानी मौज,
बेहद की प्राप्ति का अनुभव करते हुए सदा खुशी के सागर में लहराते रहते हैं। सच्ची
सेवा सर्व का स्नेह, सर्व द्वारा अविनाशी सम्मान और खुशी की दुआयें प्राप्त होने की
खुशनसीबी के श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव कराती है। जो सदा खुश हैं वही खुशनसीब हैं।
स्लोगन:-
सदा
हर्षित व आकर्षण मूर्त बनने के लिए सन्तुष्टमणी बनो।
अव्यक्त इशारे -
सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो
कर्म में, वाणी
में, सम्पर्क व सम्बन्ध में लव और स्मृति व स्थिति में लवलीन रहना है, जो जितना लवली
होगा, वह उतना ही लवलीन रह सकता है। इस लवलीन स्थिति को मनुष्यात्माओं ने लीन की
अवस्था कह दिया है। बाप में लव खत्म करके सिर्फ लीन शब्द को पकड़ लिया है। आप बच्चे
बाप के लव में लवलीन रहेंगे तो औरों को भी सहज आप-समान व बाप-समान बना सकेंगे।