ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे जानते हैं कि यह पाप की दुनिया है। पुण्य की दुनिया को भी
मनुष्य जानते हैं। मुक्ति और जीवनमुक्ति पुण्य की दुनिया को कहा जाता है। वहाँ पाप
होता नहीं। पाप होता है दु:खधाम रावण राज्य में। दु:ख देने वाले रावण को भी देखा
है, रावण कोई चीज़ नहीं है फिर भी एफीजी जलाते हैं। बच्चे जानते हैं हम इस समय रावण
राज्य में हैं, परन्तु किनारा किया हुआ है। हम अभी पुरुषोत्तम संगमयुग पर हैं। बच्चे
जब यहाँ आते हैं तो बुद्धि में यह है - हम उस बाप के पास जाते हैं जो हमको मनुष्य
से देवता बनाते हैं। सुखधाम का मालिक बनाते हैं। सुखधाम का मालिक बनाने वाला कोई
ब्रह्मा नहीं है, कोई भी देहधारी नहीं है। वह है ही शिवबाबा, जिसको देह नहीं है।
देह तुमको भी नहीं थी, परन्तु तुम फिर देह लेकर जन्म-मरण में आते हो तो तुम समझते
हो हम बेहद के बाप पास जाते हैं। वह हमको श्रेष्ठ मत देते हैं। तुम ऐसा पुरुषार्थ
करने से स्वर्ग का मालिक बन सकेंगे। स्वर्ग को तो सब याद करते हैं। समझते हैं नई
दुनिया जरूर है। वह भी जरूर कोई स्थापन करने वाला है। नर्क भी कोई स्थापन करते हैं।
तुम्हारा सुखधाम का पार्ट कब पूरा होता है, वह भी तुम जानते हो। फिर रावण राज्य में
तुम दु:खी होने लगते हो। इस समय यह है दु:खधाम। भल कितने भी करोड़पति, पदमपति हो
परन्तु पतित दुनिया तो जरूर कहेंगे ना। यह कंगाल दुनिया, दु:खी दुनिया है। भल कितने
भी बड़े-बड़े मकान हैं, सुख के सब साधन हैं तो भी कहेंगे पतित पुरानी दुनिया है।
विषय वैतरणी नदी में गोता खाते रहते हैं। यह भी नहीं समझते कि विकार में जाना पाप
है। कहते हैं इसके बिगर सृष्टि वृद्धि को कैसे पायेगी। बुलाते भी हैं - हे भगवान,
हे पतित-पावन आकर इस पतित दुनिया को पावन बनाओ। आत्मा कहती है शरीर द्वारा। आत्मा
ही पतित बनी है तब तो पुकारती है। स्वर्ग में एक भी पतित होता नहीं।
तुम बच्चे जानते हो कि संगमयुग पर जो अच्छे पुरुषार्थी हैं वही समझते हैं कि हमने
84 जन्म लिए हैं फिर इन लक्ष्मी-नारायण के साथ ही हम सतयुग में राज्य करेंगे। एक ने
तो 84 जन्म नहीं लिया है ना। राजा के साथ प्रजा भी चाहिए। तुम ब्राह्मणों में भी
नम्बरवार हैं। कोई राजा-रानी बनते हैं, कोई प्रजा। बाप कहते हैं बच्चे अभी ही तुम्हें
दैवीगुण धारण करने हैं। यह आंखें क्रिमिनल हैं, कोई को देखने से विकार की दृष्टि
जाती है तो उनके 84 जन्म नहीं होंगे। वह नर से नारायण बन नहीं सकेंगे। जब इन आंखों
पर जीत पा लेंगे तब कर्मातीत अवस्था होगी। सारा मदार आंखों पर है, आंखें ही धोखा
देती हैं। आत्मा इन खिड़कियों से देखती है, इसमें तो डबल आत्मा है। बाप भी इन
खिड़कियों से देख रहे हैं। हमारी भी दृष्टि आत्मा पर जाती है। बाप आत्मा को ही
समझाते हैं। कहते हैं मैंने भी शरीर लिया है, तब बोल सकते हैं। तुम जानते हो बाबा
हमको सुख की दुनिया में ले जाते हैं। यह है रावण राज्य। तुमने इस पतित दुनिया से
किनारा कर लिया है। कोई बहुत आगे बढ़ गये, कोई पिछाड़ी में हट गये। हर एक कहते भी
हैं पार लगाओ। अब पार तो जायेंगे सतयुग में। परन्तु वहाँ पद ऊंच पाना है तो पवित्र
बनना है। मेहनत करनी है। मुख्य बात है बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों। यह है
पहली सब्जेक्ट।
तुम अभी जानते हो हम आत्मा एक्टर हैं। पहले-पहले हम सुखधाम में आये फिर अब
दु:खधाम में आये हैं। अब बाप फिर सुखधाम में ले जाने आये हैं। कहते हैं मुझे याद करो
और पवित्र बनो। कोई को भी दु:ख न दो। एक-दो को बहुत दु:ख देते रहते हैं। कोई में
काम का भूत आया, कोई में क्रोध आया, हाथ चलाया। बाप कहेंगे यह तो दु:ख देने वाली
पाप आत्मा है। पुण्य आत्मा कैसे बनेंगे। अब तक पाप करते रहते हैं। यह तो नाम बदनाम
करते हैं। सब क्या कहेंगे! कहते हैं हमको भगवान पढ़ाते हैं! हम मनुष्य से देवता
विश्व के मालिक बनते हैं! वह फिर ऐसे काम करते हैं क्या! इसलिए बाबा कहते हैं रोज़
रात में अपने को देखो। अगर सपूत बच्चे हैं तो चार्ट भेजें। भल कोई चार्ट लिखते हैं,
परन्तु साथ में यह लिखते नहीं कि हमने किसको दु:ख दिया वा यह भूल की। याद करते रहे
और कर्म उल्टे करते रहे, यह भी ठीक नहीं। उल्टे कर्म करते तब हैं जब देह-अभिमानी बन
पड़ते हैं।
यह चक्र कैसे फिरता है - यह तो बहुत सहज है। एक दिन में भी टीचर बन सकते हैं।
बाप तुमको 84 का राज़ समझाते हैं, टीच करते हैं। फिर जाकर उस पर मनन करना है। हमने
84 जन्म कैसे लिये? उस सिखलाने वाले टीचर से दैवीगुण भी जास्ती धारण कर लेते हैं।
बाबा सिद्ध कर बतला सकते हैं। दिखाते हैं बाबा हमारा चार्ट देखो। हमने ज़रा भी किसको
दु:ख नहीं दिया है। बाबा कहेंगे यह बच्चा तो बड़ा मीठा है। अच्छी खुशबू निकाल रहे
हैं। टीचर बनना तो सेकण्ड का काम है। टीचर से भी स्टूडेन्ट याद की यात्रा में तीखे
निकल जाते हैं। तो टीचर से भी ऊंच पद पायेंगे। बाबा तो पूछते हैं, किसको टीच करते
हो? रोज़ शिव के मन्दिर में जाकर टीच करो। शिवबाबा कैसे आकर स्वर्ग की स्थापना करते
हैं? स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। समझाना बहुत ही सहज है। बाबा को चार्ट भेज देते
हैं - बाबा हमारी अवस्था ऐसी है। बाबा पूछते हैं बच्चे कोई विकर्म तो नहीं करते हो?
क्रिमिनल आई उल्टा-सुल्टा काम तो नहीं कराती है? अपने मैनर्स, कैरेक्टर्स देखने
हैं। चाल-चलन का सारा मदार आंखों पर है। आंखें अनेक प्रकार से धोखा देती हैं। ज़रा
भी बिगर पूछे चीज़ उठाकर खाया तो वह भी पाप बन जाता है क्योंकि बिगर छुट्टी के उठाई
ना। यहाँ कायदे बहुत हैं। शिवबाबा का यज्ञ है ना। चार्ज वाली के बिगर पूछे चीज़ खा
नहीं सकते। एक खायेंगे तो और भी ऐसे करने लग पड़ेंगे। वास्तव में यहाँ कोई चीज़ ताले
के अन्दर रखने की दरकार नहीं है। लॉ कहता है इस घर के अन्दर, किचन के सामने कोई भी
अपवित्र आने नहीं चाहिए। बाहर में तो अपवित्र-पवित्र का सवाल ही नहीं। परन्तु पतित
तो अपने को कहते हैं ना। सब पतित हैं। कोई वल्लभाचारी को अथवा शंकराचार्य को हाथ लगा
न सकें क्योंकि वह समझते हैं हम पावन, यह पतित हैं। भल यहाँ सबके शरीर पतित हैं तो
भी पुरुषार्थ अनुसार विकारों का संयास करते हैं। तो निर्विकारी के आगे विकारी
मनुष्य माथा टेकते हैं। कहते हैं यह बड़ा स्वच्छ धर्मात्मा मनुष्य है। सतयुग में तो
मलेच्छ होते नहीं। है ही पवित्र दुनिया। एक ही कैटेगरी है। तुम इस सारे राज़ को
जानते हो। शुरू से लेकर सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बुद्धि में रहना चाहिए। हम
सब कुछ जानते हैं। बाकी कुछ भी जानने का रहता ही नहीं। रचता बाप को जाना,
सूक्ष्मवतन को जाना, भविष्य मर्तबे को जाना, जिसके लिए ही पुरुषार्थ करते हो फिर
अगर चलन ऐसी हो जाती है तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। किसको दु:ख देते, विकार में जाते
हैं या बुरी दृष्टि रखते हैं, तो यह भी पाप है। दृष्टि बदल जाए बड़ी मेहनत है।
दृष्टि बहुत अच्छी चाहिए। आंखे देखती हैं - यह क्रोध करते हैं तो खुद भी लड़ पड़ते
हैं। शिवबाबा में ज़रा भी लव नहीं, याद ही नहीं करते। बलिहारी शिवबाबा की है।
बलिहारी गुरू आपकी...... बलिहारी उस सतगुरू की जिसने गोविन्द श्रीकृष्ण का
साक्षात्कार कराया। गुरू द्वारा तुम गोविन्द बनते हो। साक्षात्कार से सिर्फ मुख मीठा
नहीं होता। मीरा का मुख मीठा हुआ क्या? सचमुच स्वर्ग में तो गई नहीं। वह है भक्ति
मार्ग, उनको स्वर्ग का सुख नहीं कहेंगे। गोविन्द को सिर्फ देखना नहीं है, ऐसा बनना
है। तुम यहाँ आये ही हो ऐसा बनने। यह नशा रहना चाहिए हम उनके पास जाते हैं जो हमको
ऐसा बनाते हैं। तो बाबा सबको यह राय देते हैं चार्ट में यह भी लिखो - आंखों ने धोखा
तो नहीं दिया? पाप तो नहीं किया? आंखें कोई न कोई बात में धोखा जरूर देती हैं। आंखें
बिल्कुल शीतल हो जानी चाहिए। अपने को अशरीरी समझो। यह कर्मातीत अवस्था पिछाड़ी में
होगी सो भी जब बाबा को अपना चार्ट भेज देंगे। भल धर्मराज के रजिस्टर में सब जमा हो
जाता है ऑटोमेटिकली। परन्तु जबकि बाप साकार में आये हैं तो कहते हैं साकार को मालूम
पड़ना चाहिए। तो खबरदार करेंगे। क्रिमिनल आई अथवा देह-अभिमान वाला होगा तो
वायुमण्डल को अशुद्ध कर देंगे। यहाँ बैठे भी बुद्धियोग बाहर चला जाता है। माया बहुत
धोखा देती है। मन बहुत तूफानी है। कितनी मेहनत करनी पड़ती है - यह बनने के लिए। बाबा
के पास आते हैं, बाबा ज्ञान का श्रृंगार कराते हैं आत्मा को। समझते हो हम आत्मा
ज्ञान से पवित्र होंगी। फिर शरीर भी पवित्र मिलेगा। आत्मा और शरीर दोनों पवित्र
सतयुग में होते हैं फिर आधाकल्प बाद रावण राज्य होता है। मनुष्य कहेंगे भगवान ने ऐसे
क्यों किया? यह अनादि ड्रामा बना हुआ है। भगवान ने थोड़ेही कुछ किया। सतयुग में होता
ही है - एक देवी-देवता धर्म। कोई-कोई कहते हैं ऐसे भगवान को हम याद ही क्यों करें।
लेकिन तुम्हारा दूसरे धर्म से कोई मतलब नहीं। जो कांटे बने हैं वही आकर फूल बनेंगे।
मनुष्य कहते हैं क्या भगवान सिर्फ भारतवासियों को ही स्वर्ग में ले जायेंगे, हम
मानेंगे नहीं, भगवान को भी दो आंखे हैं क्या! परन्तु यह तो ड्रामा बना हुआ है। सब
स्वर्ग में आयें तो फिर अनेक धर्मों का पार्ट कैसे चले? स्वर्ग में इतने करोड़ होते
नहीं। पहली-पहली मुख्य बात भगवान कौन है, उनको तो समझो। यह नहीं समझा है तो अनेक
प्रश्न करते रहेंगे। अपने को आत्मा समझेंगे तो कहेंगे यह तो बात ठीक है। हमको पतित
से पावन जरूर बनना है। याद करना है उस एक को। सब धर्मों में भगवान को याद करते हैं।
तुम बच्चों को अभी यह ज्ञान मिल रहा है। तुम समझते हो यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता
है। तुम कितना प्रदर्शनी में भी समझाते हो। निकलते बिल्कुल थोड़े हैं। परन्तु ऐसे
थोड़ेही कहेंगे कि इसलिए करनी नहीं चाहिए। ड्रामा में था, किया, कहाँ निकलते भी हैं
प्रदर्शनी से। कहाँ नहीं निकलते हैं। आगे चल आयेंगे, ऊंच पद पाने का पुरुषार्थ
करेंगे। कोई को कम पद पाना होगा तो इतना पुरुषार्थ नहीं करेंगे। बाप बच्चों को फिर
भी समझाते हैं, विकर्म कोई नहीं करो। यह भी नोट करो कि हमने किसी को दु:ख तो नहीं
दिया? कोई से लड़ा-झगड़ा तो नहीं? उल्टा-सुल्टा तो नहीं बोला? कोई अकर्तव्य कार्य
तो नहीं किया? बाबा कहते हैं विकर्म जो किये हैं सो लिखो। यह तो जानते हो द्वापर से
लेकर विकर्म करते अभी बहुत विकर्मी बन गये। बाबा को लिखकर देने से बोझा हल्का हो
जायेगा। लिखते हैं हम किसको दु:ख नहीं देते हैं। बाबा कहेंगे अच्छा, चार्ट लेकर आना
तो देखेंगे। बाबा बुलायेंगे भी ऐसे अच्छे बच्चे को हम देखें तो सही। सपूत बच्चों को
बाप बहुत प्यार करते हैं। बाबा जानते हैं अभी कोई सम्पूर्ण बना नहीं है। बाबा हर एक
को देखते हैं, कैसे पुरुषार्थ करते हैं। बच्चे चार्ट नहीं लिखते हैं तो जरूर कुछ
खामियां हैं, जो बाबा से छिपाते हैं। सच्चा ऑनेस्ट बच्चा उनको ही समझता हूँ जो
चार्ट लिखते हैं। चार्ट के साथ फिर मैनर्स भी चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं का बोझ हल्का करने के लिए जो भी विकर्म हुए हैं, वह बाप को
लिखकर देना है। अब किसी को भी दु:ख नहीं देना है। सपूत बनकर रहना है।
2) अपनी दृष्टि बहुत अच्छी बनानी है। आंखें धोखा न दें - इसकी सम्भाल करनी है।
अपने मैनर्स बहुत-बहुत अच्छे रखने हैं। काम-क्रोध के वश हो कोई पाप नहीं करने हैं।