ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे समझते हैं ऊंच ते
ऊंच भगवान कहा जाता है। आत्मा का बुद्धियोग घर की तरफ जाना चाहिए। परन्तु ऐसा एक भी
मनुष्य दुनिया में नहीं है, जिसको यह बुद्धि में आता हो। संन्यासी लोग भी ब्रह्म को
घर नहीं समझते वह तो कहते हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे तो घर थोड़ेही हुआ। घर में
ठहरना होता है। तुम बच्चों की बुद्धि वहाँ रहनी चाहिए। जैसे कोई फाँसी पर चढ़ता है
ना - तुम अब रूहानी फाँसी पर चढ़े हुए हो। अन्दर में है हमको ऊंच ते ऊंच बाप आकर
ऊंच ते ऊंच घर ले चलते हैं। अब हमको घर जाना है। ऊंच ते ऊंच बाबा हमको फिर ऊंच ते
ऊंच पद प्राप्त कराते हैं। रावण राज्य में सब नीच हैं। वह ऊंच यह नीच। उन्हों को
ऊंच का पता ही नहीं है। ऊंच वालों को भी नीच का पता नहीं रहता। अभी तुम समझते हो
ऊंच ते ऊंच एक भगवान को ही कहा जाता है। बुद्धि ऊपर में चली जाती है। वह है ही
परमधाम में रहने वाला। यह कोई भी नहीं समझते हैं, हम आत्मायें भी वहाँ की रहने वाली
हैं। यहाँ आते हैं सिर्फ पार्ट बजाने। यह कोई के ख्याल में नहीं रहता। अपने ही धन्धे
धोरी में लगे रहते हैं। अब बाप समझाते हैं ऊंच ते ऊंच तब बनेंगे जब याद की यात्रा
में मस्त रहेंगे। याद से ही ऊंच पद पाना है। नॉलेज जो तुमको सिखलाई जाती है, वह
भूलने की नहीं है। छोटे बच्चे भी वर्णन करेंगे। बाकी योग की बात को बच्चे नहीं
समझेंगे। बहुत बच्चे हैं जो याद की यात्रा पूरी रीति समझते नहीं हैं। हम कितना ऊंच
ते ऊंच जाते हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल वतन.... 5 तत्व यहाँ हैं। सूक्ष्मवतन,
मूलवतन में यह नहीं होते। यह नॉलेज बाप ही देते हैं इसलिए उनको ज्ञान का सागर कहा
जाता है। मनुष्य समझते हैं - बहुत शास्त्र आदि पढ़ना ही ज्ञान है। कितना पैसा कमाते
हैं। शास्त्र पढ़ने वालों को कितना मान मिलता है। परन्तु अब तुम समझते हो इसमें कोई
ऊंचाई तो है नहीं। ऊंच ते ऊंच तो है ही एक भगवान। उनके द्वारा हम ऊंच ते ऊंच स्वर्ग
में राज्य करने वाले बनते हैं। स्वर्ग क्या है, नर्क क्या है? 84 का चक्र कैसे फिरता
है? यह सिवाए तुम्हारे इस सृष्टि में कोई भी नहीं जानते हैं, कह देते हैं यह सब
कल्पना है। ऐसे के लिए समझना है - यह हमारे कुल का नहीं है। दिलशिकस्त नहीं होना
चाहिए। समझा जाता है - इनका पार्ट नहीं है, तो कुछ भी समझ नहीं सकेंगे। अभी तुम
बच्चों का सिर बहुत ऊंच है। जब तुम ऊंच दुनिया में होंगे तो नीच दुनिया को नहीं
जानेंगे। नीच दुनिया वाले फिर ऊंच दुनिया को नहीं जानते। उनको कहा ही जाता है
स्वर्ग। विलायत वाले भल स्वर्ग में जाते नहीं हैं फिर भी नाम तो लेते हैं, हेविन
पैराडाइज़ था। मुसलमान लोग भी बहिश्त कहते हैं। परन्तु यह उनको पता नहीं है कि वहाँ
कैसे जाना होता है। अभी तुमको कितनी समझ मिलती है, ऊंच ते ऊंच बाप कितनी नॉलेज देते
हैं। यह ड्रामा कैसा वन्डरफुल बना हुआ है। जो ड्रामा के राज़ को नहीं जानते वह
कल्पना कह देते हैं।
तुम बच्चे जानते हो - यह तो है ही पतित दुनिया, इसलिए चिल्लाते हैं - हे
पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ। बाप कहते हैं हर 5 हज़ार वर्ष बाद हिस्ट्री रिपीट
होती है। पुरानी दुनिया सो नई बनती है इसलिए मुझे आना पड़ता है। कल्प-कल्प आकर तुम
बच्चों को ऊंच ते ऊंच बनाता हूँ। पावन को ऊंच और पतित को नीच कहा जाता है। यही
दुनिया नई पावन थी, अभी तो पतित है। यह बातें तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जो समझते
हैं। जिनकी बुद्धि में यह बातें रहती हैं वह सदा खुश रहते हैं। बुद्धि में नहीं है
तो कोई ने कुछ कहा, कुछ नुकसान हुआ तो रंज हो जाते हैं। बाबा कहते हैं अब इस नीच
दुनिया का अन्त आना है। यह है पुरानी दुनिया। मनुष्य कितना नीच बन जाते हैं। परन्तु
यह कोई समझते थोड़ेही हैं कि हम नीच हैं। भक्त लोग हमेशा सिर झुकाते हैं, नीच के आगे
सिर झुकाना थोड़ेही होता है। पवित्र के आगे सिर झुकाना होता है। सतयुग में कभी ऐसा
नहीं होता। भक्त लोग ही ऐसा करते हैं। बाप तो ऐसा नहीं कहते - सिर झुकाकर चलो। नहीं,
यह तो पढ़ाई है। गॉड फादरली युनिवर्सिटी में तुम पढ़ रहे हो। तो कितना नशा रहना
चाहिए। ऐसे नहीं, सिर्फ युनिवर्सिटी में नशा रहे, घर में उतर जाए। घर में नशा रहना
चाहिए। यहाँ तो तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं। यह तो कहते हैं कि मैं
थोड़ेही ज्ञान सागर हूँ। यह बाबा भी ज्ञान का सागर नहीं है। सागर से नदी निकलती है
ना। सागर तो एक है, ब्रह्मपुत्रा सबसे बड़ी नदी है। बहुत बड़े स्टीमर्स आते हैं।
नदियाँ तो बाहर भी बहुत हैं। पतित-पावनी गंगा यह सिर्फ यहाँ ही कहते हैं। बाहर में
कोई भी नदी को ऐसे नहीं कहेंगे। पतित-पावनी नदी है फिर तो गुरू की कोई दरकार नहीं।
नदियों में, तलाव में कितना भटकते हैं। कहाँ तो तलाव ऐसे गन्दे होते हैं, बात मत
पूछो। उसकी मिट्टी उठाकर रगड़ते रहते हैं। अब बुद्धि में आया है - यह सब नीचे उतरने
के रास्ते हैं। वो लोग कितना प्रेम से जाते हैं। अब तुम समझते हो कि इस ज्ञान से
हमारी आंखें ही खुल गई। तुम्हारी ज्ञान की तीसरी आंख खुली है। आत्मा को तीसरा नेत्र
मिलता है इसलिए त्रिकालदर्शी कहते हैं। तीनों कालों का ज्ञान आत्मा में आता है।
आत्मा तो बिन्दी है, उसमें नेत्र कैसे होगा। यह सब समझने की बातें हैं। ज्ञान के
तीसरे नेत्र से तुम त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ बनते हो। नास्तिक से आस्तिक बन जाते
हो। आगे तुम रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते थे। अभी बाप द्वारा रचना
के आदि-मध्य-अन्त को जानने से तुमको वर्सा मिल रहा है। यह नॉलेज है ना।
हिस्ट्री-जॉग्राफी भी है, हिसाब-किताब है ना। अच्छा, तीखा बच्चा हो तो हिसाब करे,
हम कितने जन्म लेते हैं, इस हिसाब से और धर्म वालों के कितने जन्म होंगे। परन्तु
बाप कहते हैं इन सब बातों में जास्ती माथा मारने की दरकार नहीं है। टाइम वेस्ट हो
जायेगा। यहाँ तो सब भूलना है। यह सुनाने की दरकार नहीं। तुम तो रचता बाप की पहचान
देते हो, जिसको कोई जानते नहीं। शिवबाबा भारत में ही आते हैं। जरूर कुछ करके जाते
हैं तब तो जयन्ती मनाते हैं ना। गांधी अथवा कोई साधू आदि होकर गये हैं, उन्हों के
स्टैम्प बनाते रहते हैं। फैमिली प्लैनिंग की स्टैम्प बनाते हैं। अभी तुमको तो नशा
है - हम तो पाण्डव गवर्मेन्ट हैं। आलमाइटी बाबा की गवर्मेन्ट है। तुम्हारा यह कोट
ऑफ आर्मस है। और कोई इस कोट ऑफ आर्मस को जानते ही नहीं। तुम समझते हो कि विनाश काले
प्रीत बुद्धि हमारी ही है। बाप को हम बहुत याद करते हैं। बाप को याद करते-करते
प्रेम में आंसू आ जाते हैं। बाबा, आप हमें आधाकल्प के लिए सब दु:खों से दूर कर देते
हो। और कोई गुरू वा मित्र-सम्बन्धी आदि किसको भी याद करने की दरकार नहीं। एक बाप को
ही याद करो। सवेरे का टाइम बहुत अच्छा है। बाबा आपकी तो बड़ी कमाल है। हर 5 हज़ार
वर्ष बाद हमें आप जगाते हो। सभी मनुष्य मात्र कुम्भकरण की आसुरी नींद में सोये हुए
हैं अर्थात् अज्ञान अन्धेरे में हैं। अभी तुम समझते हो - भारत का प्राचीन योग तो यह
है, बाकी जो भी इतने हठयोग आदि सिखलाते हैं, वह सभी हैं - एक्सरसाइज़, शरीर को
तन्दरूस्त रखने के लिए। अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है तो खुशी रहती है। यहाँ
आते हो, समझते हो बाबा रिफ्रेश करते हैं। कोई तो यहाँ रिफ्रेश हो बाहर निकलते हैं,
वह नशा खलास हो जाता है। नम्बरवार तो हैं ना। बाबा समझाते हैं - यह है पतित दुनिया।
बुलाते भी हैं - हे पतित-पावन आओ परन्तु अपने को पतित समझते थोड़ेही हैं, इसलिए पाप
धोने जाते हैं। लेकिन शरीर को थोड़ेही पाप लगता है। बाप तो आकर तुम्हें पावन बनाते
हैं और कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। यह ज्ञान अभी
तुमको मिला है। भारत स्वर्ग था, अभी नर्क है। तुम बच्चे तो अभी संगम पर हो। कोई
विकार में गिरते हैं तो फेल होते हैं तो जैसे नर्क में जाकर गिर पड़ते हैं। 5 मंजिल
से गिर पड़ते हैं, फिर 100 गुणा सज़ा खानी पड़ती है। तो बाप समझाते हैं कि भारत
कितना ऊंच था, अब कितना नीच है। अब तुम कितना समझदार बनते हो। मनुष्य तो कितने
बेसमझ हैं। बाबा तुमको यहाँ कितना नशा चढ़ाते हैं, फिर बाहर निकलने से नशा कम हो
जाता है, खुशी उड़ जाती है। स्टूडेण्ट कोई बड़ा इम्तहान पास करते हैं तो कभी नशा कम
होता है क्या? पढ़कर पास होते हैं फिर क्या-क्या बन जाते हैं। अभी देखो दुनिया का
क्या हाल है। तुमको ऊंच ते ऊंच बाप आकर पढ़ाते हैं। सो भी है निराकार। तुम आत्मायें
भी निराकार हो। यहाँ पार्ट बजाने आई हो। यह ड्रामा का राज़ बाप ही आकर समझाते हैं।
इस सृष्टि चक्र को ड्रामा भी कहा जाता है। उस नाटक में तो कोई बीमार पड़ते हैं तो
निकल जाते हैं। यह है बेहद का नाटक। यथार्थ रीति तुम बच्चों की बुद्धि में है, तुम
जानते हो हम यहाँ पार्ट बजाने लिए आते हैं। हम बेहद के एक्टर्स हैं। यहाँ शरीर लेकर
पार्ट बजाते हैं, बाबा आया हुआ है - यह सब बुद्धि में होना चाहिए। बेहद का ड्रामा
कितना बुद्धि में रहना चाहिए। बेहद विश्व की बादशाही मिलती है तो उसके लिए
पुरुषार्थ भी ऐसा अच्छा करना चाहिए ना। गृहस्थ व्यवहार में भी भल रहो परन्तु पवित्र
बनो। विलायत में ऐसे बहुत हैं जब बूढ़े होते हैं तो फिर कम्पेनियनशिप के लिए शादी
करते हैं..... सम्भालने के लिए फिर विल करते हैं। कुछ उनको, कुछ चैरिटी को। विकार
की बात नहीं रहती है। आशिक-माशूक भी विकार के लिए फिदा नहीं होते हैं। जिस्म का
सिर्फ प्यार रहता है। तुम हो रूहानी आशिक, एक माशूक को याद करते हो। सब आशिकों का
एक माशूक है। सभी एक को ही याद करते हैं। वह कितना शोभनिक है। आत्मा गोरी है ना। वह
है एवर गोरा। तुम तो सांवरे बन गये हो, तुमको वह सांवरे से गोरा बनाते हैं। यह तुम
जानते हो कि बाप हमें गोरा बनाते हैं। यहाँ बहुत हैं जो पता नहीं किस-किस ख्यालात
में बैठे रहते हैं। स्कूल में ऐसे होता है - बैठे-बैठे कहाँ बुद्धि बाइसकोप तरफ,
दोस्तों आदि तरफ चली जाती है। सतसंग में भी ऐसे होता है। यहाँ भी ऐसे है, बुद्धि
में नहीं बैठता तो नशा ही नहीं चढ़ता, धारणा ही नहीं होती - जो औरों को करायें।
बहुत बच्चियां आती हैं, जिनकी दिल होती है सर्विस में कहाँ लग जायें परन्तु
छोटे-छोटे बच्चे हैं। बाबा कहते हैं बच्चों को सम्भालने के लिए कोई माई को रख दो।
यह तो बहुतों का कल्याण करेंगी। होशियार हैं तो क्यों नहीं रूहानी सर्विस में लग
जायें। 5-6 बच्चों को सम्भालने के लिए कोई माई को रख दो। इन माताओं की अब बारी है
ना। नशा बहुत रहना चाहिए। आगे होगा, पुरुष देखेंगे कि हमारी स्त्री ने तो संन्यासियों
को भी जीत लिया है। यह मातायें लौकिक, पारलौकिक का नाम बाला करके दिखायेंगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) तुम्हें बुद्धि से सब कुछ भूलना है। जिन बातों में टाइम वेस्ट होता
है, वह सुनने-सुनाने की दरकार नहीं है।
2) पढ़ाई के समय बुद्धियोग एक बाप से लगा रहे, कहाँ भी बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए।
निराकार बाप हमें पढ़ा रहे हैं, इस नशे में रहना है।