16-06-2025
प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"
मधुबन
“मीठे बच्चे - सदा खुशी
में रहो कि हमें कोई देहधारी नहीं पढ़ाते, अशरीरी बाप शरीर में प्रवेश कर खास हमें
पढ़ाने आये हैं''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को
ज्ञान का तीसरा नेत्र क्यों मिला है?
उत्तर:-
हमें ज्ञान का
तीसरा नेत्र मिला है अपने शान्तिधाम और सुखधाम को देखने के लिए। इन आंखों से जो
पुरानी दुनिया, मित्र-सम्बन्धी आदि दिखाई देते हैं उनसे बुद्धि निकाल देनी है। बाप
आये हैं किचड़े से निकाल फूल (देवता) बनाने, तो ऐसे बाप का फिर रिगार्ड भी रखना है।
ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच, बच्चों प्रति। शिव भगवान को सच्चा बाबा तो जरूर कहेंगे क्योंकि
रचयिता है ना। अभी तुम बच्चे ही हो जिनको भगवान पढ़ाते हैं - भगवान भगवती बनाने के
लिए। यह तो हर एक अच्छी रीति जानते हैं, ऐसा कोई स्टूडेन्ट होता नहीं जो अपने टीचर
को, पढ़ाई को और उनकी रिजल्ट को न जानता हो। जिनको भगवान पढ़ाते हैं उनको कितनी खुशी
होनी चाहिए! यह खुशी स्थाई क्यों नहीं रहती? तुम जानते हो हमको कोई देहधारी मनुष्य
नहीं पढ़ाते हैं। अशरीरी बाप शरीर में प्रवेश कर खास तुम बच्चों को पढ़ाने आये हैं,
यह किसको भी मालूम नहीं कि भगवान आकर पढ़ाते हैं। तुम जानते हो हम भगवान के बच्चे
हैं, वह हमको पढ़ाते हैं, वही ज्ञान के सागर हैं। शिवबाबा के सम्मुख तुम बैठे हो।
आत्मायें और परमात्मा अभी ही मिलते हैं, यह भूलो मत। परन्तु माया ऐसी है जो भुला
देती है। नहीं तो वह नशा रहना चाहिए ना - भगवान हमको पढ़ाते हैं! उनको याद करते रहना
चाहिए। परन्तु यहाँ तो ऐसे-ऐसे हैं जो बिल्कुल ही भूल जाते हैं। कुछ भी नहीं जानते।
भगवान खुद कहते हैं कि बहुत बच्चे यह भूल जाते हैं, नहीं तो वह खुशी रहनी चाहिए ना।
हम भगवान के बच्चे हैं, वह हमको पढ़ा रहे हैं। माया ऐसी प्रबल है जो बिल्कुल ही भुला
देती है। इन आंखों से यह जो पुरानी दुनिया, मित्र-सम्बन्धी आदि देखते हो उनमें
बुद्धि चली जाती है। अभी तुम बच्चों को बाप तीसरा नेत्र देते हैं। तुम
शान्तिधाम-सुखधाम को याद करो। यह है दु:खधाम, छी-छी दुनिया। तुम जानते हो भारत
स्वर्ग था, अभी नर्क है। बाप आकर फिर फूल बनाते हैं। वहाँ तुमको 21 जन्मों के लिए
सुख मिलता है। इसके लिए ही तुम पढ़ रहे हो। परन्तु पूरा नहीं पढ़ने कारण यहाँ के
धन-दौलत आदि में ही बुद्धि लटक पड़ती है। उनसे बुद्धि निकलती नहीं है। बाप कहते हैं
शान्ति-धाम, सुखधाम तरफ बुद्धि रखो। परन्तु बुद्धि गन्दी दुनिया तरफ एकदम जैसे चटकी
हुई है। निकलती नहीं है। भल यहाँ बैठे हैं तो भी पुरानी दुनिया से बुद्धि टूटती नहीं
है। अभी बाबा आया हुआ है - गुल-गुल पवित्र बनाने के लिए। तुम मुख्य पवित्रता के लिए
ही कहते हो - बाबा हमको पवित्र बनाकर पवित्र दुनिया में ले जाते हैं तो ऐसे बाप का
कितना रिगार्ड रखना चाहिए। ऐसे बाबा पर तो कुर्बान जायें। जो परमधाम से आकर हम बच्चों
को पढ़ा रहे हैं। बच्चों पर कितनी मेहनत करते हैं। एकदम किचड़े से निकालते हैं। अभी
तुम फूल बन रहे हो। जानते हो कल्प-कल्प हम ऐसे फूल (देवता) बनते हैं। मनुष्य से
देवता किये करत न लागी वार। अभी हमको बाप पढ़ा रहे हैं। हम यहाँ मनुष्य से देवता
बनने आये हैं। यह अभी तुमको मालूम पड़ा है, पहले यह पता नहीं था कि हम स्वर्गवासी
थे। अभी बाप ने बताया है तुम राज्य करते थे फिर रावण ने राज्य लिया है। तुमने ही
बहुत सुख देखे फिर 84 जन्म लेते-लेते सीढ़ी नीचे उतरते हो। यह है ही छी-छी दुनिया।
कितने मनुष्य दु:खी हैं। कितने तो भूख मरते रहते हैं, कुछ भी सुख नहीं है। भल कितना
भी धनवान है, तो भी यह अल्पकाल का सुख काग विष्टा समान है। इनको कहा जाता है विषय
वैतरणी नदी। स्वर्ग में तो हम बहुत सुखी होंगे। अभी तुम सांवरे से गोरे बन रहे हो।
अभी तुम समझते हो हम ही देवता थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते वेश्यालय में आकर पड़े
हैं। अभी फिर तुमको शिवा-लय में ले जाते हैं। शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना कर रहे
हैं। तुमको पढ़ाई पढ़ा रहे हैं तो अच्छी रीति पढ़ना चाहिए ना। पढ़कर, चक्र बुद्धि
में रखकर दैवीगुण धारण करने चाहिए। तुम बच्चे हो रूप-बसन्त, तुम्हारे मुख से सदा
ज्ञान रत्न ही निकलें, किचड़ा नहीं। बाप भी कहते हैं मैं रूप-बसन्त हूँ... मैं परम
आत्मा ज्ञान का सागर हूँ, पढ़ाई सोर्स आफ इनकम होती है। पढ़कर जब बैरिस्टर डॉक्टर
आदि बनते हैं, लाखों कमाते हैं। एक-एक डॉक्टर मास में लाख रुपया कमाते हैं। खाने की
भी फुर्सत नहीं रहती। तुम भी अभी पढ़ रहे हो। तुम क्या बनते हो? विश्व का मालिक। तो
इस पढ़ाई का नशा होना चाहिए ना। तुम बच्चों में बातचीत करने की कितनी रॉयल्टी होनी
चाहिए। तुम रॉयल बनते हो ना। राजाओं की चलन देखो कैसी होती है। बाबा तो अनुभवी है
ना। राजाओं को नज़राना देते हैं, कभी ऐसे हाथ में लेंगे नहीं। अगर लेना होगा तो
इशारा करेंगे - सेक्रेटरी को जाकर दो। बहुत रॉयल होते हैं। बुद्धि में यह ख्याल
रहता है, इनसे लेते हैं तो इनको वापस भी देना है, नहीं तो लेंगे नहीं। कोई राजायें
प्रजा से बिल्कुल लेते नहीं हैं। कोई तो बहुत लूटते हैं। राजाओं में भी फ़र्क होता
है। अभी तुम सतयुगी डबल सिरताज राजाएं बनते हो। डबल ताज के लिए पवित्रता जरूर
चाहिए। इस विकारी दुनिया को छोड़ना है। तुम बच्चों ने विकारों को छोड़ा है, विकारी
कोई आकर बैठ न सके। अगर बिगर बताये आकर बैठ जाते हैं तो अपना ही नुकसान करते हैं।
कोई चालाकी करते हैं, किसको पता थोड़ेही पड़ेगा। बाप भल देखे, न देखे, खुद ही पाप
आत्मा बन पड़ते हैं। तुम भी पाप आत्मा थे। अब पुरुषार्थ से पुण्य आत्मा बनना है।
तुम बच्चों को कितनी नॉलेज मिली है। इस नॉलेज से तुम श्रीकृष्णपुरी के मालिक बनते
हो। बाप कितना श्रृंगारते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं तो कितना खुशी से पढ़ना
चाहिए। ऐसी पढ़ाई तो कोई सौभाग्यशाली पढ़ते हैं और फिर सर्टीफिकेट भी लेना है। बाबा
कहेंगे तुम पढ़ते कहाँ हो। बुद्धि भटकती रहती है। तो क्या बनेंगे! लौकिक बाप भी
कहते हैं इस हालत में तो तुम नापास हो जायेंगे। कोई तो पढ़कर लाख कमाते हैं। कोई
देखो तो धक्के खाते रहेंगे। तुमको फालो करना है, मदर फादर को। और जो ब्रदर्स अच्छी
रीति पढ़ते पढ़ाते हैं, यही धंधा करते हैं। प्रदर्शनी में बहुतों को पढ़ाते हैं ना।
आगे चल जितना दु:ख बढ़ता जायेगा उतना मनुष्यों को वैराग्य आयेगा फिर पढ़ने लग
पड़ेंगे। दु:ख में भगवान को बहुत याद करेंगे। दु:ख में मरने समय हे राम, हाय भगवान
करते रहते हैं ना। तुमको तो कुछ भी करना नहीं है। तुम तो खुशी से तैयारी करते हो।
कहाँ यह पुराना शरीर छूटे तो हम अपने घर जायें। फिर वहाँ शरीर भी सुन्दर मिलेगा।
पुरुषार्थ कर पढ़ाने वाले से भी ऊंच जाना चाहिए। ऐसे भी हैं पढ़ाने वाले से पढ़ने
वाले की अवस्था बहुत अच्छी रहती है। बाप तो हर एक को जानते हैं ना। तुम बच्चे भी
जान सकते हो अपने अन्दर को देखना चाहिए - हमारे में कौन-सी कमी है? माया के विघ्नों
से पार जाना है, उसमें फँसना नहीं है।
जो कहते हैं माया तो बड़ी जबरदस्त है, हम कैसे चल सकेंगे, अगर ऐसा सोचा तो माया
एकदम कच्चा खा लेगी। गज को ग्राह ने खाया। यह अभी की बात है ना। अच्छे-अच्छे बच्चों
को भी माया रूपी ग्राह एकदम हप कर लेता है। अपने को छुड़ा नहीं सकते हैं। खुद भी
समझते हैं - हम माया के थप्पड़ से छूटने चाहते हैं। परन्तु माया छूटने नहीं देती
है। कहते हैं बाबा माया को बोलो - ऐसे पकड़े नहीं। अरे, यह तो युद्ध का मैदान है
ना। मैदान में ऐसे थोड़ेही कहेंगे इनको कहो हमको अंगूली न लगावे। मैच में कहेंगे
क्या हमको बॉल नहीं देना। झट कह देंगे युद्ध के मैदान में आये हो तो लड़ो, तो माया
खूब पछाड़ेगी। तुम बहुत ऊंच पद पा सकते हो। भगवान पढ़ाते हैं, कम बात है क्या! अभी
तुम्हारी चढ़ती कला होती है - नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। हर एक बच्चे को शौक रखना
है कि हम भविष्य जीवन हीरे जैसा बनायें। विघ्नों को मिटाते जाना है। कैसे भी करके
बाप से वर्सा जरूर लेना है। नहीं तो हम कल्प-कल्पान्तर फेल हो जायेंगे। समझो कोई
साहूकार का बच्चा है, बाप उनको पढ़ाई में अटक (रूकावट) डालते हैं तो कहेगा हम यह
लाख भी क्या करेंगे, हमको तो बेहद के बाप से विश्व की बादशाही लेनी है। यह
लाख-करोड़ तो सब भस्मीभूत हो जाने वाले हैं। किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी जलाये
आग, सारे सृष्टि रूपी भंभोर को आग लगनी है। यह सारी रावण की लंका है। तुम सब
सीतायें हो। राम आया हुआ है। सारी धरती एक टापू है, इस समय है ही रावण राज्य। बाप
आकर रावण राज्य को खलास कराये तुमको रामराज्य का मालिक बनाते हैं। तुमको तो अन्दर
में अथाह खुशी होनी चाहिए - गाया हुआ है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो बच्चों से
पूछो। तुम प्रदर्शनी में अपना सुख बताते हो ना। हम भारत को स्वर्ग बना रहे हैं।
श्रीमत पर भारत की सेवा कर रहे हैं। जितना-जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना तुम श्रेष्ठ
बनेंगे। तुमको मत देने वाले ढेर निकलेंगे इसलिए वह भी परखना है, सम्भालना है।
कहाँ-कहाँ माया भी गुप्त प्रवेश हो जाती है। तुम विश्व के मालिक बनते हो, अन्दर में
बहुत खुशी रहनी चाहिए। तुम कहते हो बाबा हम आपसे स्वर्ग का वर्सा लेने आये हैं।
सत्य नारायण की कथा सुनकर हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। तुम सब हाथ
उठाते हो बाबा हम आपसे पूरा वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे, नहीं तो हम कल्प-कल्प गंवा
देंगे। कोई भी विघ्न को हम उड़ा देंगे, इतनी बहादुरी चाहिए। तुमने इतनी बहादुरी की
है ना। जिससे वर्सा मिलता है उनको थोड़ेही छोड़ेंगे। कोई तो अच्छी रीति ठहर गये,
कोई फिर भागन्ती हो गये। अच्छे-अच्छे को माया खा गई। अजगर ने खाकर सारा हप कर लिया।
अब बाप कहते हैं हे आत्मायें, बहुत प्यार से समझाते हैं। मैं पतित दुनिया को आकर
पावन दुनिया बनाता हूँ। अब पतित दुनिया का मौत सामने खड़ा है। अब मैं तुमको राजाओं
का राजा बनाता हूँ। पतित राजाओं का भी राजा। सिंगल ताज वाले राजा डबल ताज वाले
राजाओं को माथा क्यों झुकाते हैं, आधाकल्प बाद जब इन्हों की वह पवित्रता उड़ जाती
है, तो रावण राज्य में सब विकारी और पुजारी बन जाते हैं। तो अब बाप बच्चों को
समझाते हैं - कोई ग़फलत नहीं करो। भूल न जाओ। अच्छी रीति पढ़ो। रोज़ क्लास अटेण्ड
नहीं कर सकते हो तो भी बाबा सब प्रबन्ध दे सकते हैं। 7 रोज़ का कोर्स लो, जो मुरली
को सहज समझ सको। कहाँ भी जाओ सिर्फ दो अक्षर याद करो। यह है महामंत्र। अपने को
आत्मा समझ बाप को याद करो। कोई भी विकर्म वा पाप कर्म देह-अभिमान में आने से ही
होता है। विकर्मों से बचने के लिए बुद्धि की प्रीति एक बाप से ही लगानी है। कोई
देहधारी से नहीं। एक से बुद्धि का योग लगाना है। अन्त तक याद करना है तो फिर कोई
विकर्म नहीं होगा। यह तो सड़ी हुई देह है। इनका अभिमान छोड़ दो। नाटक पूरा होता है,
अभी हमारे 84 जन्म पूरे हुए। यह पुरानी आत्मा पुराना शरीर है। अब तमोप्रधान से
सतोप्रधान बनना है फिर शरीर भी सतोप्रधान मिल जायेगा। आत्मा को सतोप्रधान बनाना है
- यही तात लगी रहे। बाप सिर्फ कहते हैं मामेकम् याद करो। बस यही ओना रखो। तुम भी
कहते हो ना - बाबा हम पास होकर दिखायेंगे। क्लास में जानते हैं सबको स्कॉलरशिप तो
नहीं मिलेगी। फिर भी पुरुषार्थ तो बहुत करते हैं ना। तुम भी समझते हो हमको नर से
नारायण बनने का पूरा पुरुषार्थ करना है। कम क्यों करें। कोई भी बात की परवाह नहीं।
वारियर्स कभी परवाह नहीं करते हैं। कोई कहते हैं बाबा बहुत तूफान, स्वप्न आदि आते
हैं। यह तो सब होगा। तुम एक बाप को याद करते रहो। इन दुश्मन पर जीत पानी है। कोई
समय ऐसे-ऐसे स्वप्न आयेंगे न मन, न चित, ऐसे-ऐसे घुटके आयेंगे। यह सब माया है। हम
माया को जीतते हैं। आधाकल्प के लिए दुश्मन से राज्य लेते हैं, हमको कोई परवाह नहीं।
बहादुर कभी चूँ-चाँ नहीं करते। लड़ाई में खुशी से जाते हैं। तुम तो यहाँ बड़े आराम
से बाप से वर्सा लेते हो। यह छी-छी शरीर छोड़ना है। अब जाते हैं स्वीट साइलेन्स
होम। बाप कहते हैं मैं आया हूँ, तुमको ले चलने। मुझे याद करो तो पावन बनेंगे।
इमप्योर आत्मा जा न सके। यह हैं नई बातें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विकर्मों से बचने के लिए बुद्धि की प्रीत एक बाप से लगानी है, इस
सड़ी हुई देह का अभिमान छोड़ देना है।
2) हम वारियर्स हैं, इस स्मृति से माया रूपी दुश्मन पर विजय प्राप्त करनी है,
उसकी परवाह नहीं करनी है। माया गुप्त रूप में बहुत प्रवेश करती है इसलिए उसे परखना
और सम्भलना है।
वरदान:-
मन्सा-वाचा और
कर्मणा की पवित्रता में सम्पूर्ण मार्क्स लेने वाले नम्बरवन आज्ञाकारी भव
मन्सा पवित्रता अर्थात्
संकल्प में भी अपवित्रता के संस्कार इमर्ज न हों। सदा आत्मिक स्वरूप अर्थात्
भाई-भाई की श्रेष्ठ स्मृति रहे। वाचा में सदा सत्यता और मधुरता हो, कर्मणा में सदा
नम्रता, सन्तुष्टता और हर्षितमुखता हो। इसी आधार पर नम्बर मिलते हैं और ऐसे
सम्पूर्ण पवित्र आज्ञाकारी बच्चों का बाप भी गुणगान करते हैं। वही अपने हर कर्म से
बाप के कर्तव्य को सिद्ध करने वाले समीप रत्न हैं।
स्लोगन:-
सम्बन्ध-सम्पर्क और स्थिति में लाइट बनो, दिनचर्या में नहीं।
अव्यक्त
इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो
अन्तर्मुखी
आत्मायें कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे अच्छी हो, चाहे हिलाने वाली हो लेकिन हर समय,
हर सरकमस्टांस के अन्दर अपने को एडजस्ट कर लेती हैं। अकेले हो या संगठन में हो,
दोनों में एडजस्ट होना - ये है ब्राह्मण जीवन।
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